लखनऊ/मुंबई/पुणे:
नवाबों के शहर लखनऊ में वीआईपी मेहमानों के लिए कभी सभी रास्ते 180 एकड़ में फैले सहारा के महलनुमा एस्टेट की तरफ जाते थे. यह करीब 15 साल पहले की बात है. आज उसी के मेहराबदार गेट पर एक कमीज़ सूख रही है—गेट बंद है और मोम की सील लगी है.
लखनऊ नगर निगम ने अब इस सुनसान पड़े एस्टेट पर दावा ठोक दिया है, जो कभी सहारा परिवार का घर और 36,000 एकड़ से ज्यादा ज़मीन संपत्ति वाले साम्राज्य का दिल हुआ करता था.
गेट के बाहर ठेला लगाने वाले व्यक्ति जिन्होंने इस साम्राज्य को बनते और बिखरते देखा है, कहा, “वो भी क्या दिन थे” अंदर की दौलत के किस्से आज भी चलते हैं, जिनमें सैकड़ों मुर्गे भी शामिल हैं. उन्होंने एकदम कहा, “पांच सौ से ज़्यादा तो सिर्फ कड़कनाथ मुर्गे थे अंदर”.
सहारा शहर अब उन 80 से ज्यादा ज़मीनों में से एक है जिन्हें अडाणी ग्रुप को दिया जाना है. अगर यह डिस्ट्रेस सेल हो जाती है, तो इससे मिलने वाला पैसा लाखों सहारा निवेशकों को लौटाने में जाएगा. यह अरबों डॉलर की डील—आज़ाद भारत के इतिहास में किसी भी डील से बड़ी—अडाणी ग्रुप को एक ऐसे मकाम पर पहुंचा देगी जिस पर ‘बॉम्बे क्लब’ के अलावा बहुत कम जा पाए हैं. यह उस साम्राज्य के सूर्यास्त का भी प्रतीक होगा, जिसकी शुरुआत 1978 में गोरखपुर की गलियों से हुई थी.

सहारा के संस्थापक सुब्रत रॉय जानते थे कि उनकी असली ताकत टेबल फैन या स्नैक्स बेचने में नहीं, बल्कि हर तरह के सपने बेचने में है—चाहे वह बैंकिंग सिस्टम से दूर एक रिक्शावाले का सपना हो या सह्याद्रि पहाड़ियों में ज़मीन के एक टुकड़े की चाह रखने वाले अमीरों का. राजनीति, क्रिकेट और ग्लैमर की तिकड़ी का सहारा लेकर उन्होंने वैधता पाई. अडाणी ग्रुप की तरह, उनका साम्राज्य भी बहुत तेज़ी से बढ़ा—रियल एस्टेट, फाइनेंस, रिटेल, हॉस्पिटैलिटी, स्पोर्ट्स—हर जगह उनके कदम थे. दोनों ही ने ऐसे बड़े सपने देखे जिन्हें देखकर भारत चकित रह गया.
अडाणी ग्रुप, जिसकी कीमत 2.88 लाख करोड़ रुपये (32 अरब डॉलर से ज्यादा) है, को इस डिस्टेस सेल से सहारा की दो सबसे बड़ी संपत्तियां मिलने वाली हैं—पुणे के पास 10,000 एकड़ की एंबी वैली सिटी और मुंबई के दिल में स्थित सहारा स्टार होटल.
सहारा के एक 20 साल पुराने कर्तव्य योगी (कर्मचारी) ने कहा, “उनके (अडाणी) पास पैसा है, वो इसे डेवलप कर देंगे.”
उन जैसे हज़ारों कर्मचारी कई सालों तक चली SEBI-सहारा लड़ाई के दर्शक रहे, जिसने ‘सहाराश्री’ रॉय के लगभग 1.6 लाख करोड़ रुपये (18 अरब डॉलर) के बिज़नेस को खींचकर नीचे लाया.

अडाणी को बिक्री का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है. 17 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की बेंच ने केंद्र द्वारा समय मांगे जाने पर सुनवाई छह हफ्ते के लिए टाल दी. केस के अमीकस क्यूरी ने सोमवार को शीर्ष अदालत में 65 पन्नों की रिपोर्ट देकर बताया कि 60 से ज्यादा संपत्तियां आईटी विभाग और अन्य सरकारी एजेंसियों ने अटैच की हैं.
दिप्रिंट ने अडाणी ग्रुप और सहारा—दोनों को सवाल ईमेल किए हैं, लेकिन रिपोर्ट के छापे जाने तक कोई जवाब नहीं मिल पाया है.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान, जिन्होंने वर्षों तक सहारा की कहानी को कवर किया, उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि रॉय “गरीब लोगों के साथ धोखा” कर रहे थे.
प्रधान ने कहा, “उन्होंने सारा पैसा चिटफंड से बनाया. वह पैसा गरीबों को कभी लौटाया नहीं गया. हालांकि, बड़े लोगों को उनके रिटर्न मिलते रहे. वह लगातार इस जादुई चिटफंड में पैसा डालते रहे. आप मासूम लोगों को सपने दिखाते हैं, जिनके पास उन्हें परखने का कोई तरीका नहीं.”
उन्होंने यह भी कहा कि अगर डिस्ट्रेस सेल हो जाती है तो अडाणी ग्रुप को “सबसे पहले” सहारा कर्मचारियों की लंबित तनख्वाह देने का वादा करना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा, “अडाणी को सारी संपत्तियां मिलेंगी, तो ज़िम्मेदारियां भी मिलनी चाहिए.”
हीरे से खाक तक
जनवरी 2013 तक भी, सुब्रत राय को उम्मीद थी कि वे दूसरी बार भी वो कर पाएंगे जो किसी दूसरी भारतीय कंपनी ने नहीं किया था.
अपनी किताब Sahara: The Untold Story में पत्रकार तमाल बंद्योपाध्याय ने लिखा, “(रॉय ने कहा था) हमें और बड़ा होना है. मैं अपने 10 मिलियन लोगों को खुश देखना चाहता हूं. हमने कंपनी में एक ऐलान किया था और सभी की सैलरी 50% बढ़ गई थी. मैं फिर से वही करना चाहता हूं.” यह बात 2002 की है, जब सहारा ने अपनी सिल्वर जुबली मनाई थी और सभी कर्मचारियों और एजेंट्स की ग्रॉस सैलरी में 25-50% की बढ़ोतरी की थी.

इसके करीब 10 साल बाद सहारा की किस्मत तेज़ी से गिरने लगी. सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी की फंड जुटाने की तरीकों पर सख्ती बढ़ा दी. SEBI ने निवेशकों के बकाया पैसे न मिलने पर उसकी प्रॉपर्टी अटैच करनी शुरू कर दी. नवंबर 2013 की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुब्रत रॉय ने SEBI को “बदले की भावना रखने वाला” और “सरकारी गुंडा” कहा था. सहारा ने निवेशकों को पैसा लौटाना शुरू किया, लेकिन पूरा नहीं लौटा पाया और आखिरकार फरवरी 2014 में रॉय को गिरफ्तार कर लिया गया.
आज सहारा का साम्राज्य अलग-अलग शहरों में बिखरा पड़ा है. इसका सबसे साफ उदाहरण मुंबई के गोरेगांव वेस्ट में एसवी रोड पर ‘सहारा इंडिया प्वाइंट’ है, जो अब एक पुरानी गौशाला और अंडर कंस्ट्रक्शन ज़ूडियो स्टोर के बीच में बस खाली पड़ी ज़मीन है.
मुंबई ऑफिस के रूप में दर्ज इस जगह पर पिछले दो साल से कोई बिल्डिंग नहीं है. सिर्फ एक बाउंड्री वॉल और एक गेट बचा है, जो लोगों को अंदर झांकने से रोकता है. बगल के पार्किंग लॉट में कंपनी की पुरानी कारें पड़ी सड़ रही हैं—यहां तक कि एक टीवी ओबी वैन भी.
शोरूम के सामने खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने कहा, “क्या आपको भी पैसे लेने हैं? बहुत लोग यहां सहारा ऑफिस ढूंढते हुए आते हैं.”


सहारा समय की टूटी हुई ओबी वैन | फोटो: अमृतांश अरोड़ा/दिप्रिंट
जहां कभी सहारा की ऑफिस बिल्डिंग थी, वहां अब बस झाड़ियां हैं | फोटो: अमृतांश अरोड़ा/दिप्रिंट
मुंबई में सहारा के निशान
सहारा स्टार होटल का कभी चमकता हुआ ग्लास फ्रंट अब हल्का घिसा हुआ लगता है. एक वक्त यह सहारा का मुंबई वाला वॉर रूम होता था—सुब्रत रॉय की पावर का सिंबल.
बंद्योपाध्याय की किताब बताती है, यह होटल पहले एयर इंडिया की सहायक कंपनी के रूप में एयरपोर्ट सेंटॉर होटल कहलाता था. फरवरी 2002 में इसे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की डिसइन्वेस्टमेंट ड्राइव में 83 करोड़ रुपए में एक दिल्ली के ग्रुप को बेचा गया. उसी साल अक्टूबर में सहारा ने इसे 115 करोड़ में खरीद लिया. यही वह जगह थी जहां बोर्ड मीटिंग होती थीं और रॉय पेंटहाउस से सीधे प्राइवेट एलिवेटर से नीचे आते थे.


सहारा की एक और प्रॉपर्टी—नरीमन प्वाइंट के अटलांटा बिल्डिंग में 1990 के दशक से मौजूद है. दूसरे फ्लोर के दरवाजे पर डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर का नोटिस लगा है कि यह प्रॉपर्टी जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, नैनीताल के आदेश पर 6.85 लाख रुपए की रिकवरी के लिए अटैच की गई है.

लखनऊ में भी एक और सहारा स्मारक—एक वक्त शहर का सबसे शानदार निजी निवास—अब बस अपनी पुरानी शान की परछाई बनकर रह गया है. यह वही जगह है जहां 2004 में देश की सबसे भव्य शादी हुई थी.
अवध का तख्त
लखनऊ के गोमती नगर में, जहां हर दूसरी गाड़ी पर लाल या नीली बत्ती लगी दिखती है, वहीं सहारा शहर का विशाल खंभों वाला दरवाज़ा सबसे अलग दिखता है. उसके बीच में कांच से घिरा एक मंदिर है, जो ग्रुप की ‘मुख्य देवी’—भारत माता—को समर्पित है. उनके हाथ में तिरंगा है और वे चार शेरों पर बैठी हैं, जो भारत के चार प्रमुख धर्मों का प्रतीक हैं.
अकादमिक और पूर्व पत्रकार जेम्स क्रैबट्री ने अपनी किताब The Billionaire Raj में सहारा शहर को “एक ऐसी जगह बताया है, जो किसी हवेली से ज़्यादा मुगल किले जैसी लगती है.” यहां एक हेलीपैड है, थिएटर है, ऑडिटोरियम है, लाइट वाली कृत्रिम झील पर बना लेकहाउस है और एक ऐसी इमारत है जो व्हाइट हाउस की नकल जैसी लगती है—जहां हर शनिवार रॉय बैठते थे.
वे (रॉय) साल में एक-दो बड़े कार्यक्रम करते थे, जिनमें मुंबई से अभिनेता और अभिनेत्रियां बुलाए जाते थे, ताकि नेताओं पर अच्छा प्रभाव पड़े.
— पी.एल. पुनिया, मुलायम सिंह यादव के पूर्व प्रमुख सचिव
यही वह जगह है, जहां 2004 में उनके दोनों बेटों की शादी के लिए 10,000 से ज़्यादा मेहमान आए थे. मेहमानों की लिस्ट में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उप-प्रधानमंत्री एल.के. आडवाणी, उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत और यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे. इसके अलावा ढेरों फिल्म स्टार्स और भारत की पुरुष और महिला क्रिकेट टीम के लगभग सभी खिलाड़ी भी आए थे. यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक की सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा के 100 मेंबर्स और उनके 140 इंस्ट्रूमेंट्स भी लाए गए थे. डायरेक्टर राजकुमार संतोषी ने पूरे इवेंट की शूटिंग की थी. द गार्जियन ने इस शादी का खर्च 50 मिलियन पाउंड बताया था.

सहारा शहर सिर्फ रॉय परिवार और शीर्ष अधिकारियों के लिए था—बाहर वालों के लिए यह लगभग बंद ही रहता था. यह ग्रुप की दूसरा हाई-एंड प्रोजेक्ट—‘सहारा सिटी होम्स’—से अलग था, जिसके विज्ञापन में अमिताभ बच्चन और जया बच्चन ने कहा था—“यही है वह जगह, जहां इंडिया बसता है.”
लेकिन, तब से अब तक गोमती में बहुत पानी बह चुका है.
अक्टूबर के पहले हफ्ते में करीब 150 कर्मचारी सहारा शहर के अंदरूनी गेट पर जमा हुए, यह मांग करते हुए कि नगर निगम (एलएमसी) द्वारा संपत्ति सील करने से पहले उनके बकाए भुगतान किए जाएं. कम से कम दो कर्मचारियों ने दावा किया कि उन्हें चार महीने से सैलरी नहीं मिली है.
मालिक को कर्मचारियों से मिलकर उनकी शिकायतें सुननी चाहिए और यह तो चोरों की तरह भाग रहे हैं
— सहारा शहर की सिक्योरिटी टीम का मेंबर
भीड़ बढ़ने पर सुब्रत रॉय की पत्नी, स्वप्ना रॉय, को जल्दी से दूसरी ओर के गेट से निकालकर ले जाया गया.
1997 से रॉय परिवार के साथ रहने वाले एक सुरक्षाकर्मी ने कहा कि उन्हें भारी धोखा महसूस हुआ.


उन्होंने कहा, “गेट की एक डुप्लीकेट चाबी थी, जो कभी इस्तेमाल नहीं होती थी. उसी से मैडम को बाहर निकाला गया. मालिक को तो कर्मचारियों से मिलकर बात करनी चाहिए, यह खुद चोरों की तरह भागने की सोच रहे हैं.”
2001 से काम करने वाले एक और घरेलू कर्मचारी ने भी नाराज़गी जताई कि स्वप्ना रॉय को “चोरी-छुपे तरीके से” बाहर ले जाया गया.

एक स्टाफर ने बताया, “सीनियर अधिकारियों ने मैडम से कहा कि नेपाल में जो हुआ, वह यहां भी हो सकता है; उनकी सुरक्षा में लगे लोग ही शामिल थे.” वह सितंबर में केपी शर्मा ओली की सरकार के गिरने का ज़िक्र कर रहे थे.
स्टाफर के मुताबिक, स्वप्ना रॉय को पहले ही समझ आ गया था कि बड़ी मुसीबत आने वाली है. “मैडम की पैकिंग पहले से ही शुरू हो चुकी थी.”
6 अक्टूबर को एलएमसी ने पूरी सहारा शहर की संपत्ति सील कर दी. उनका कहना था कि यह ज़मीन 1995 में मुलायम सरकार ने सहारा को एक रिहायशी कॉलोनी बनाने के लिए दी थी, लेकिन इसे निजी एस्टेट में बदल दिया गया. इसके बाद 1997 में लीज़ खत्म कर दी गई. बाद में सिविल कोर्ट ने सहारा के पक्ष में स्टे दिया. कंपनी अब हाई कोर्ट गई है, ताज़ा आदेश रद्द कराने के लिए.

दिप्रिंट ने एलएमसी के प्रॉपर्टी सेक्शन के प्रमुख रमेश्वर प्रसाद को कॉल और मैसेज किया, लेकिन रिपोर्ट के छापे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला है.
इधर लखनऊ में गेट सील हो रहे थे, तो उधर नई मुश्किलें भी पैदा हो गईं. सितंबर में, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कोलकाता में सुब्रत रॉय की पत्नी स्वप्ना, उनके बेटे सुशांतों और कई सहारा अधिकारियों के खिलाफ 1.74 लाख करोड़ रुपए के मनी लॉन्ड्रिंग केस में चार्जशीट दायर की. एक समय राजनीतिक ताकत वाला सहारा ग्रुप अब इससे बहुत दूर जा चुका है.

पी.एल. पुनिया ने दावा किया, अपने पीक टाइम में, सुब्रत रॉय समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों के “करीबी” माने जाते थे. अमर सिंह अक्सर इनके बीच पुल का काम करते थे.
उन्होंने कहा, “वह हर साल एक-दो इवेंट्स करते थे, जिनमें मुंबई से फिल्मी सितारों को बुलाया जाता था ताकि नेता खुश हों.”
हालांकि, यूपी के पूर्व डीजीपी ओ.पी. सिंह का कहना है कि उन्हें सहारा की तरफ से “कोई दबाव” महसूस नहीं हुआ, पुलिस प्रशासन के रोज़मर्रा कामों में.

मायावती और रॉय के रिश्ते भी हमेशा सीधे नहीं थे. 2008 में लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी ने सहारा शहर की बाईं दीवार गिरा दी थी. सहारा कोर्ट गया और जीत गया. एक कांग्रेस नेता ने कहा कि यह तनातनी उस विशाल बाइक रैली से जुड़ी थी जिसे सहारा कर्मचारियों ने मुलायम सिंह के शपथ ग्रहण में निकाला था.
2014 में रॉय की गिरफ्तारी के बाद हालात बदलने लगे.
सुरक्षाकर्मी ने कहा, “सहाराश्री (रॉय) सभी को परिवार जैसा मानते थे. उनके जेल जाने के बाद वह सब कभी वैसा नहीं रहा. कई लोग, जो अंदर रहते और काम करते थे, घर जाने तक के पैसे नहीं बचा पाते थे.”
लेकिन अब सहारा शहर का पतन स्थायी लगता है. रॉय 2023 में मर गए, लेकिन कानून का पहिया चलता ही रहा.
सहारा कैसे बिखर गया?
लखनऊ के दूसरे हिस्से में हिंदी दैनिक अखबार राष्ट्रीय सहारा का दफ्तर है. सहारा के बाकी दफ्तरों की तरह, यहां भी हर कोने में रॉय की तस्वीरें लगी हैं. दो लिफ्टों के बीच लगे एक बोर्ड पर ‘सहाराश्री’ का यह कथन लिखा है: “प्रगति तभी प्रगति है जब वह निरंतर एवं गुणवत्तापूर्ण हो.” यह अखबार सहारा परिवार की कुछ गिनी-चुनी इकाइयों में से एक है जो अभी भी चल रही हैं. रविवार दोपहर, वहां मौजूद चार-पांच कर्मचारियों में से कोई भी इस ग्रुप पर टिप्पणी करने को तैयार नहीं था.

अपने पीक टाइम में, सहारा के पास 16 सेक्टरों में 4,799 ग्रुप कंपनियां, 1,000 से ज़्यादा ऑफिस, 6 लाख एजेंट और 10 करोड़ डिपॉजिटर्स थे. करीब एक दशक पहले, इसकी संपत्तियों की वैल्यू लगभग 1.52 लाख करोड़ रुपये थी. क्रैबट्री के शब्दों में, “रॉय के पास किसी भी लिस्टेड भारतीय कंपनी से ज़्यादा संपत्तियां थीं.”
सहारा, सरल शब्दों में, इतना बड़ा था कि डूब ही नहीं सकता था — जब तक कि वह डूब नहीं गया.
रॉय गरीब लोगों के साथ धोखाधड़ी कर रहे थे. उन्होंने सारा पैसा चिट फंड से कमाया. वह पैसा गरीबों को कभी वापस नहीं मिला, लेकिन बड़े लोगों को उनका पैसा मिल गया.
— शरत प्रधान, राजनीतिक विश्लेषक
सहारा परिवार की शुरुआत एक चिट फंड कंपनी से हुई थी. इसकी एक योजना अन-बैंक्ड लोगों के लिए थी, जिसे 1998 में रेजिड्यूअरी नॉन-बैंकिंग कंपनी (RNBC) के रूप में रजिस्टर किया गया था.
योजना आसान थी: दिहाड़ी मज़दूर हर दिन अपनी कमाई का थोड़ा हिस्सा जमा करते और बाद में (प्रिंसिपल) के साथ थोड़ा ब्याज मिल जाता.
ऐसे ‘लो-रिस्क और नो-रिस्क’ डिपॉजिटर्स को जोड़ने के लिए इसकी एक बड़ी टीम थी — छोटे शहरों और गांवों में घर-घर जाकर, बिल्कुल कार बेचने वाले सेल्समैन की तरह. वे दशक तेज़-तर्रार सपनों के थे, जब जल्दी पैसा कमाने का नशा पूरी हवा में था. भारत में हर कुछ महीनों में एक नया करोड़पति बन रहा था. देश समाजवादी दौर छोड़ रहा था और लालच ‘अच्छी चीज़’ लगने लगा था.

सहारा की यह ‘वित्तीय समावेशन’ की महत्वाकांक्षा तब तक चली जब तक इसका टकराव आरबीआई और बाद में SEBI से नहीं हुआ.
2008 में मामला बिगड़ना शुरू हुआ, जब आरबीआई ने सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉर्पोरेशन को जनता से पैसा लेना से रोकने को कहा, लेकिन सहारा ने इसे आसानी से नहीं माना और आरबीआई के आदेश को “सोच-विचार की कमी वाला” कहा, लेकिन रॉय जानते थे कि कब पीछे हटना है. उसी साल आरबीआई के साथ बैठक में उन्होंने 2015 तक आरएनबीसी कारोबार खत्म करने पर सहमति दे दी, जब फाइनल पैसा मैच्योर होना थी. जैसा कि बंद्योपाध्याय लिखते हैं—रॉय “मुस्कुराते हुए अपना साम्राज्य छोड़ आए.”
लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकी.
2012 में SEBI ने ग्रुप पर आरोप लगाया कि उसने OFCDs (Optionally Fully Convertible Debentures) के ज़रिये गैरकानूनी तरीके से पैसा जुटाया है—यानी ऐसे बॉन्ड जो ब्याज भी देते हैं और जिन्हें बाद में कंपनी के शेयर में बदला जा सकता है. उसी साल सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को लगभग 25,000 करोड़ रुपए निवेशकों को लौटाने का आदेश दिया और सभी दस्तावेज़ SEBI को सौंपने को कहा.

एक बेहद मशहूर “malicious compliance” में, सहारा ने 127 ट्रकों से 5 करोड़ कागज़ात मुंबई में SEBI दफ्तर भेज दिए—यह ‘साबित’ करने के लिए कि उसने लगभग 20,000 करोड़ रुपए लौटा दिए हैं. सालों बाद, SEBI ने कहा कि इन बिखरे और अधूरे कागज़ों को छांटने में ही 41 करोड़ रुपए खर्च हुए. आखिरकार सहारा की बात नहीं मानने की आदत ही 2014 में रॉय की गिरफ्तारी का कारण बनी.
पैसा जमा करने वालों के लिए सरकार ने 2023 में CRCS– सहारा रिफंड पोर्टल शुरू किया. सितंबर 2025 तक, इस पोर्टल के ज़रिए 13 लाख जमाकर्ताओं को 2,314 करोड़ रुपए लौटाए जा चुके थे.

एक कारण यह था कि डिपॉजिटर्स सहारा पर भरोसा करते थे—क्योंकि इसकी हर चीज़ विश्वसनीय दिखती थी. इसका लोगो भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी पर था. यह फॉर्मूला वन में तिरंगा लहराता था और इसके कर्तव्य परिषद में अमिताभ बच्चन समेत राज बब्बर, कपिल देव, सौरव गांगुली, लिएंडर पेस, टीएन शेषन, रुसी मोदी जैसे नाम शामिल थे.
बंद्योपाध्याय अपने किताब में लिखते हैं— “चमक-दमक गरीबों को आकर्षित करती है; वे रॉय के मुरीद हो जाते थे, जो ग्लैमर की दुनिया और गोरखपुर-वाराणसी-लखनऊ वाले भारत—दोनों में एक साथ सहजता से चलते हैं.”

स्टेडियम से गगनचुंबी इमारतों तक
रॉय की दो सबसे बड़ी दीवानगियां — उनकी अपनी स्वीकारोक्ति के अनुसार, रियल एस्टेट और खेल थीं.
एक दशक से भी ज़्यादा समय तक, 2013 तक, सहारा का लोगो भारत की पुरुष और महिला क्रिकेट टीम की जर्सी पर था. ग्रुप ने इस स्पॉन्सरशिप के लिए करीब 300 करोड़ रुपये चुकाए थे, जो 2001 में कुल मांग की राशि का 10 प्रतिशत से भी ज़्यादा था और 2010 में, उसने पुणे वॉरियर्स के लिए 1,700 करोड़ रुपये की बोली लगाई—जो उस समय आईपीएल फ्रेंचाइजी के लिए सबसे ऊंची बोली थी. यह हॉकी इंडिया का भी मुख्य स्पॉन्सर था और यूपी विजार्डस टीम का मालिक था.
यह आज भी लखनऊ की अवध वॉरियर्स टीम का मालिक है, जो इंडियन बैडमिंटन लीग की आठ टीमों में से एक है. इस टीम की कप्तान सायना नेहवाल (2017-18) सीज़न तक रहीं.

रियल एस्टेट की बात करें तो सहारा की मौजूदगी पूरे देश में फैली हुई थी— लखनऊ, हैदराबाद, भोपाल और गोरखपुर में सहारा स्टेट्स टाउनशिप्स; लखनऊ और गुरुग्राम में सहारा मॉल्स और मुंबई में 106 एकड़ का वर्सोवा प्लॉट, जो अब SEBI के साथ विवाद में फंसा हुआ है.
खेल और रियल एस्टेट के अलावा, समूह का कारोबार और भी कई क्षेत्रों में फैला था— इलेक्ट्रिक वाहन (Sahara Evols), रिटेल (Q Shop), आईटी कंसल्टिंग (Sahara Next).
इसके पास एक मीडिया और एंटरटेनमेंट विंग भी था, सहारा वन, जिसने नो एंट्री, मालामाल वीकली जैसी हिट फिल्में और डोर जैसी सराही गई फिल्म बनाई. इसने 1993 में एक एयरलाइन भी खरीदी थी, जिसे उसने 2007 में जेट एयरवेज़ को 1,450 करोड़ रुपये में बेच दिया.
सहारा कर्मचारियों की सैलरी कभी-कभी देर से आती है. चिंता होना लाज़मी है, कई लोगों को उम्मीद है कि अगर अडाणी ग्रुप इसे संभाल ले, तो स्टैबलिटी आ जाएगी
— सहारा के अंदरूनी सूत्र
लेकिन इसका हॉस्पिटैलिटी बिज़नेस असली हीरा था. 2010 में, सहारा ने लंदन के Grosvenor House होटल को खरीदा. दो साल बाद, उसने न्यूयॉर्क के प्लाज़ा और ड्रीम डाउनटाउन होटलों में 75 प्रतिशत हिस्सेदारी ले ली. Grosvenor House को उसने 2017 में £575 मिलियन में GH Equity UK को बेच दिया और प्लाज़ा में अपनी हिस्सेदारी उसने 2018 में लगभग 600 मिलियन डॉलर में कतर की एक सरकारी संस्था को बेच दी.
भारत में वापस, सहारा परिवार की जो बड़ी संपत्तियां बची हैं— सहारा स्टार और एंबी वैली सिटी — वे अब ग्रुप की परेशानियों के बीच डिस्ट्रेस सेल का केंद्र बनी हुई हैं.
सपनों का शहर, फीकी पड़ती चमक
मुंबई के पूर्व में एंबी वैली सिटी जाने वाला रास्ता वेस्टर्न घाट्स की एक न खत्म होने वाली पेंटिंग जैसा खुलता है—दोनों ओर हरे रंग के चार अलग-अलग शेड्स. इसे भारत का पहला प्लान्ड हिल सिटी बताया गया था और 2006 में एक प्रोफेशनल गोल्फ टूर्नामेंट के साथ लॉन्च किया गया था. इस टाउनशिप में एक लैंडिंग स्ट्रिप, तीन कृत्रिम झीलें, एक ऑडिटोरियम, एक बिज़नेस सेंटर, 18-होल वाला इंटरनेशनल गोल्फ कोर्स और अमीरों के लिए एक-दो- या आधे एकड़ के डिज़ाइनर वेकेशन होम्स थे.


सहारा की शैली के अनुसार, एंबी वैली के प्रवेश पर दो बड़े मेहराब माहौल बना देते हैं. थोड़ी दूर पर ‘भारत माता प्वाइंट’ है—20 फीट से ऊंची एक मूर्ति, जो सहारा की ‘आराध्या देवी’ को समर्पित है, साथ में एक जिस पर रॉय का संदेश लिखा है.

होलिडे पर आए राजकोट के एक बिजनेसमैन ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने अपने ट्रैवल एजेंट को सिर्फ इतना कहा था कि उन्हें कहीं “शांत और कम भीड़ वाली जगह” ले जाए. यहां रुकने की लागत कमरे के अनुसार, प्रति रात 8,000 रुपये से ऊपर है. अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि लोग कहते हैं कि यहां रहने वाले 10 में से 8 लोग पर्यटक होते हैं. वीकडे पर 60 प्रतिशत और वीकेंड पर 80-90 प्रतिशत तक ऑक्यूपेंसी होती है.
एक ने कहा, “दीवाली पर पूरा बुक था.”


लेकिन अब बदहाली के निशान साफ दिखते हैं. इमारतें छोड़ी हुई, अधूरी, या बेकार पड़ी हैं. कुछ सड़कें कहीं नहीं जातीं—कहीं पत्थरों से बंद, कहीं घास से ढकी हुई. इसी बीच Maybachs और लग्जरी SUVs सुनसान सुरक्षा चौकियों से गुज़रती हैं. एक खाली स्विमिंग पूल है, उसके आगे एक स्टील की कुर्सी इतनी देर से वहीं पड़ी है कि पौधे उसकी बांहों पर चढ़ चुके हैं. फव्वारे को भी जंगल ने निगल लिया है. 10,000 एकड़ की टाउनशिप में सिर्फ एक छोटा सा, कम सामान वाला डेली-नीड्स स्टोर है.

कुछ मेहमान यह सब देखकर थोड़ा हैरान हो जाते हैं.
पहली बार परिवार के साथ यहां आए अहमदाबाद के बिजनेसमैन अजय महाजन ने कहा, “मेरे कहने पर (एंबी वैली घूमने का प्लान बना) आया, लेकिन यहां मेंटेनेंस नहीं है. लगता है जैसे सालों से किसी ने सफाई नहीं की.”


सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में सहारा को एंबी वैली की नीलामी करने को कहा था, लेकिन कोई खरीदार नहीं आया. अगले साल कोर्ट ने एक-एक हिस्से में बिक्री की अनुमति दी, जिसे कोर्ट-नियुक्त लिक्विडेटर देख रहा है. अब दो अन्य हॉस्पिटैलिटी ग्रुप इस जगह पर रिज़ॉर्ट चला रहे हैं, लेकिन यह साफ नहीं है कि वे जमीन लीज़ पर लेते हैं या खरीदी है.
मुंबई के मिलन वोहरा जिनका शैले यहां बन रहा है, बताते हैं, “मैं 2019 से अब तक 50 बार आ चुका हूं. उस वक्त आइडिया बहुत अच्छा था; भारत में किसी ने ऐसा नहीं सोचा था.” अब उन्हें लगातार चल रहे निर्माण और ग्रीन कवर के कम होते जाने का दुख है.

अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि आर्थिक मुश्किलों की वजह से रखरखाव मुश्किल है, परिवार के साथ वेकेशन पर आए सहारा के एक पूर्व कर्मी ने स्वीकार किया कि 2023 के बाद से मेंटेनेंस गिरा है. हालांकि, स्टाफ “दबाव में भी बेहतरीन काम करता था.” वह आज भी वह समय याद करते हैं जब रॉय ने कोविड लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों की सैलरी देने का वादा किया था.
उन्होंने कहा, “सहाराश्री ने कोविड में हमारे लिए वो किया जो कोई नहीं कर सकता था.”
टाउनशिप यहां की एकमात्र आय का साधन था; हर किसी को काम मिल जाता था. सुब्रत रॉय के वक्त सब अच्छा था
— अनंत, मुल्शी गांव के निवासी
लेकिन अब सहारा कर्मचारी लगातार अनिश्चितता से जूझ रहे हैं.
एक अंदरूनी सूत्र ने कहा, “सहारा कर्मचारियों की सैलरी कभी-कभी देर से आती है. थोड़ी चिंता होना लाज़मी है, कई लोग उम्मीद कर रहे हैं कि अडाणी अगर संभाले तो स्टैबिलिटी आ जाएगी.”



फिर भी, रॉय के प्रति वफादारी मौजूद है. उन्होंने भले ही तिहाड़ की जेल नंबर 3 में लगभग 800 दिन बिताए हों, लेकिन 2023 में 75 साल की उम्र में मौत तक वह सहारा परिवार के ‘सूत्रधार’ बने रहे. एनसीसी के पूर्व सदस्य रॉय ने अपनी खुद की सेना बनाई थी और एक समय उन्हें रेलवे के बाद भारत का सबसे बड़ा एम्प्लॉयर माना जाता था.
एंबी वैली के इस ‘कब्रिस्तान’ जैसे इलाके में भी, लोग उन्हें वह मानते हैं जिसने यहां मौके दिलाए.
अनंत ने कहा, “टाउनशिप ही यहां रोज़गार का एकमात्र सहारा थी—सबको काम मिल जाता था. सुब्रत रॉय के समय हालात अच्छे थे.”
वे मुल्शी गांव के पांचवीं पीढ़ी के निवासी हैं और अपने घर के सामने एक छोटा किराने का ठेला चलाते हैं.
अब कारोबार पहले जैसा नहीं है. अनंत अफसोस जताते हैं, “पर्यटकों का फुटफॉल कोरोना से पहले जितना था, उससे कम है.”
लखनऊ में, सहारा की रियल एस्टेट संपत्तियों पर मोहर, ताले और सीज़र नोटिस आम नज़ारा बन चुके हैं.

अलीगंज में इसका सफेद-नीला सहारा इंडिया भवन जुलाई में यूपी रेरा द्वारा सील कर दिया गया. यह एक स्कायवॉक से जुड़ा है सहारा इंडिया सेंटर से कंपनी का लाइफ इंश्योरेंस ऑफिस है, जिसे ईपीएफओ ने कर्मचारियों के बकाया पीएफ और पेंशन की जांच के दौरान सील किया.
सहारा के एक पूर्व कर्मी ने बंदरों के झुंड की ओर इशारा करते हुए कहा, “कुछ दिनों में यहां सिर्फ वही रह जाएंगे.”
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