scorecardresearch
Sunday, 16 November, 2025
होमराजनीतिनीतीश कुमार, हर मौसम के नेता: क्यों बिहार उन्हें रिटायर नहीं कर सकता और BJP उनकी जगह नहीं ले सकती

नीतीश कुमार, हर मौसम के नेता: क्यों बिहार उन्हें रिटायर नहीं कर सकता और BJP उनकी जगह नहीं ले सकती

बिहार की लगातार बदलती राजनीति में एक आदमी हमेशा स्थिर रहा है — नीतीश कुमार और BJP की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के बावजूद, उसकी सीमाएं यह सुनिश्चित करती हैं कि नीतीश अभी जल्द ही नहीं हटेंगे.

Text Size:

नई दिल्ली: नीतीश कुमार का राजनीतिक करियर सच में एक अल्टीमेटम से शुरू हुआ था. 1985 में, जब वह अपने तीसरे चुनाव में उतरे थे—पिछले दो हार चुके थे—तो उन्होंने हरनौत में एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया. वहां उन्होंने कहा, “यह आखिरी बार है जब मैं आपसे मुझे वोट देने की अपील कर रहा हूं. अगर इस बार आपने मुझे नहीं चुना तो मैं कभी चुनाव नहीं लड़ूंगा.”

उनके दोस्त अरुण सिन्हा ने अपनी किताब Battle for Bihar: Nitish Kumar and the Theatre of Power में लिखा, नीतीश ने बाद में याद किया कि भीड़ अचानक शांत हो गई थी और उन्होंने सामने बैठे लोगों की आंखों में आंसू देखे. “इसने उनके दिल को छू लिया था.”

नीतीश ने अपनी पत्नी मंजू से भी कहा था, “बस एक बार और कोशिश कर लेता हूं. अगर इस बार भी हार गया, तो राजनीति छोड़ दूंगा.”

लेकिन वह नहीं हारे और 1985 की उस जीत के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

उन्होंने यह भी सीख लिया कि कैसे प्रासंगिक बने रहना है—ज़रूरत पड़ने पर बार-बार गठबंधन बदलकर, चुनाव दर चुनाव जीत हासिल कर और आखिरकार बिहार की राजनीति का केंद्र बनकर—यहां तक कि लालू प्रसाद यादव को भी पीछे छोड़ दिया, जो कभी अजेय लगते थे.

लगातार 15 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद, नीतीश को 2020 में दो बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा: कोविड-19 की मानवीय और प्रशासनिक संकट और उनके गठबंधन साथी बीजेपी से राजनीतिक चुनौती जिसने एलजेपी नेता चिराग पासवान का इस्तेमाल करके नीतीश की राजनीतिक साख को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की.

नीतीश ने एक बार फिर सीधे मतदाताओं से अपील की, कहा कि 2020 उनका आखिरी चुनाव होगा. जनता ने एक बार फिर उन पर भरोसा किया, लेकिन इस बार जेडी(यू) सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई. फिर भी, शायद यह समझते हुए कि नीतीश गठबंधन के लिए ज़रूरी हैं, बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लिया.

बीजेपी की 2025 रणनीति

2025 के विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी ने शुरुआत में नीतीश के साथ संयुक्त प्रचार नहीं करने का फैसला किया, ताकि अपने उस कैडर को नाराज़ न करे जो चाहता था कि बीजेपी का ही मुख्यमंत्री बने, लेकिन पहले चरण के बाद बीजेपी को अपनी गलती समझ आ गई. नीतीश के खिलाफ कोई एंटी-इंकम्बेंसी नहीं थी; बल्कि, ईबीसी वोटर और महिलाएं उनके प्रति सहानुभूति रखती थीं, उन्हें एक बुजुर्ग लेकिन भरोसेमंद नेता के रूप में देखती थीं.

अमित शाह से लेकर सम्राट चौधरी तक, बीजेपी नेताओं को सार्वजनिक रूप से दोहराना पड़ा कि “बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए कोई खाली जगह नहीं है”, यानी जनादेश के बाद भी नीतीश ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे.

स्वास्थ्य चिंताओं को चुनौती दी

2025 के ऐतिहासिक जनादेश ने एक बार फिर साबित कर दिया कि बिहार की राजनीति में केवल एक ही स्थिर चेहरा है—नीतीश. उनकी कल्याणकारी नीतियों, महिलाओं के सशक्तिकरण पर जोर, ‘सुशासन बाबू’ की छवि और एनडीए के व्यापक सामाजिक गठबंधन ने इस जीत में योगदान दिया.

लेकिन बीजेपी के ऐतिहासिक प्रदर्शन—लगभग 90% स्ट्राइक रेट ने नए सवाल खड़े कर दिए हैं: क्या बीजेपी नीतीश को पूरा कार्यकाल चलाने देगी? क्या नीतीश, अपने स्वास्थ्य और कभी-कभी होने वाली चूकों को देखते हुए, पूरा कार्यकाल निभा पाएंगे? या बिहार की जटिल जातीय राजनीति को देखते हुए बीजेपी मौजूदा संतुलन को बिगाड़ने से बचेगी?

सी-वोटर के संस्थापक यशवंत देशमुख कहते हैं कि नीतीश को कई बार खारिज किया गया है, लेकिन वे हमेशा वापसी करते हैं. “उनके खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी नहीं थी. बीते 20 साल में सशक्त हुई महिलाओं ने उनके स्वास्थ्य को लेकर फैल रही अफवाहों के बावजूद उन पर भरोसा किया.”

मज़ाक, अफवाहें और नीतीश का कैंपेन

कैंपेन शुरू होने से पहले, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश के स्वास्थ्य का मज़ाक उड़ाया और सोशल मीडिया ट्रोल्स ने मुज़फ्फरपुर की रैली में एक महिला उम्मीदवार को माला पहनाने को लेकर उन्हें निशाना बनाया. जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन नीतीश ने झा को डांटा और राम निशाद को माला पहनाई. राहुल गांधी ने भी नीतीश के स्वास्थ्य का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि वह “अमित शाह के हाथों की कठपुतली” हैं. नीतीश ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

स्वास्थ्य अफवाहों के बावजूद, नीतीश ने 74 साल की उम्र में 84 रैलियां कीं—तेजस्वी से सिर्फ एक कम. गृहमंत्री अमित शाह ने एनडीटीवी से बातचीत में नीतीश का बचाव करते हुए कहा कि “जो व्यक्ति एक दिन में पांच-छह रैलियां कर सकता है, वह पूरी तरह फिट है.”

जेडी(यू) की तरफ से बचाव

जेडी(यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा, “पूरे कैंपेन में नीतीश-जी ने 80 से ज्यादा रैलियां कीं. वह स्वस्थ हैं और मुख्यमंत्री बने रहने के लिए पूरी तरह फिट हैं.”

उन्होंने टिकट वितरण के दौरान की एक घटना का ज़िक्र किया, जब नीतीश ने व्यक्तिगत तौर पर हस्तक्षेप करके रत्नेश सदा को पार्टी का सिंबल दिलवाया, क्योंकि उनकी सीट बिना मंजूरी बदली जा रही थी. “यह दिखाता है कि वह मानसिक रूप से कितने सतर्क हैं.”

बीजेपी की सीमाएं

बीजेपी के कईं नेता मानते हैं कि इतने मजबूत जनादेश के बाद नीतीश का सम्मान किया जाना चाहिए. उन्हें किनारे करने की कोशिश करना महिलाओं और EBC वोटरों को नाराज़ कर देगा. एनडीए ने चुनाव नीतीश के नेतृत्व में लड़ा था और महाराष्ट्र वाला फार्मूला बिहार में लागू नहीं किया जा सकता.

TISS के अश्विनी कुमार का कहना है कि बिहार की सामाजिक जनसांख्यिकी महाराष्ट्र से बिल्कुल अलग है. नीतीश और बीजेपी “लव-कुश” की तरह एक-दूसरे को पूरक हैं और बीजेपी पिछड़े वर्गों के अपने आधार को खोने का जोखिम नहीं उठा सकती.

समता पार्टी के संस्थापक शिवानंद तिवारी का कहना है कि नीतीश वही सब कर रहे हैं जो बीजेपी चाहती है. “बीजेपी क्यों EBC समर्थन खोने का जोखिम लेगी? केंद्र सरकार की स्थिरता के लिए भी नीतीश की भूमिका महत्वपूर्ण है.”

लेखक प्रेम कुमार मणि का कहना है कि बिहार की सामाजिक रसायन शास्त्र अनोखी है और बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति कभी सफल नहीं रही. बीजेपी नीतीश के बिना सीमित है, जो ईबीसी और महिलाओं दोनों पर कब्जा रखते हैं—ठीक वैसे ही जैसे कभी कर्पूरी ठाकुर करते थे.

जेडी(यू) में उत्तराधिकार का सवाल

नई सरकार बनाने की तैयारी के साथ ही उत्तराधिकार का मुद्दा उठना तय था. जेडी(यू) नेताओं का कहना है कि नीतीश सही समय पर फैसला करेंगे; अभी वह समय नहीं आया है.

पार्टी के अंदर कई लोग चेतावनी देते हैं कि जेडी(यू) को ओडिशा की बीजेडी जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, जिसके पास नवीन पटनायक का कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी नहीं है. नीतीश के बिना, जेडी(यू) या तो बीजेपी में विलय हो सकती है या आरजेडी में, लेकिन इसका जवाब सिर्फ नीतीश जानते हैं.

नीतीश ने कभी किसी उत्तराधिकारी का संकेत नहीं दिया. उनके करीबी सहयोगी विजय चौधरी, संजय झा और ललन सिंह तक कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि नीतीश क्या सोचते हैं. जैसे ही उन्हें किसी की निष्ठा पर शक होता है, नीतीश तुरंत कार्रवाई करते हैं. उदाहरण के लिए, आर.सी.पी. सिंह को हटाया गया क्योंकि वह अमित शाह के करीब जा रहे थे; जीतन राम मांझी को उनके बागी रुख के बाद हटाया गया; ललन सिंह को तब बदला गया जब उन्होंने पार्टी में लोकतंत्र पर सवाल उठाए.

2023 में तेजस्वी के साथ बैठकों की अफवाहों के बीच, नीतीश ने पार्टी अध्यक्ष का पद फिर संभाल लिया.

जेडी(यू) के अंदरूनी लोग मानते हैं कि नीतीश जैसी कद वाली दूसरी लाइन की कोई नेतृत्व टीम मौजूद नहीं है.

निशांत का सवाल

कैडर के एक हिस्से में यह दबाव है कि नीतीश के बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाया जाए, लेकिन नीतीश ने इसकी अनुमति नहीं दी. जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा, “कैडर चाहता है कि निशांत राजनीति में आए—इससे युवाओं में ऊर्जा आएगी, लेकिन नीतीश-जी ने इसकी इजाज़त नहीं दी.”

कैंपेन के दौरान, नीतीश ने बार-बार लालू प्रसाद यादव पर परिवारवाद का आरोप लगाया और कहा कि उनकी समाजवादी पृष्ठभूमि उन्हें वंशवाद का समर्थन करने से रोकती है. वरिष्ठ नेता के.सी. त्यागी कहते हैं कि नीतीश की वैचारिक सोच उन्हें निशांत को आगे बढ़ाने से रोकती है.

जेडी(यू) में स्पष्ट उत्तराधिकार योजना नहीं है और बीजेपी भी इस पीढ़ी परिवर्तन का जोखिम नहीं ले सकती—इसलिए नीतीश अपरिहार्य बने हुए हैं.

बिहार के मतदाताओं ने इस चुनाव में प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव दोनों को खारिज किया है और 74 की उम्र में नीतीश की केंद्रीयता को फिर से स्वीकार किया है.

लेखक प्रेम कुमार मणि ने कहा, कर्पूरी ठाकुर ने नीतीश, लालू, रामविलास पासवान और कई अन्य नेताओं को तैयार किया था, लेकिन न तो नीतीश और न ही लालू ने ऐसी दूसरी लाइन तैयार की है. बीजेपी के पास भी सुशील मोदी के निधन के बाद नीतीश के बराबर कद का कोई पिछड़ा वर्ग नेता नहीं है. यही वजह है कि नीतीश तब तक बने रहेंगे, जब तक वे खुद हटने का फैसला न कर लें.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: बिहार में BJP की बड़ी जीत के अगले दिन, पूर्व पावर मंत्री आर.के. सिंह ने दिया इस्तीफा


 

share & View comments