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Friday, 14 November, 2025
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तीस्ता की त्रासदी: बांधों और अतिक्रमण ने कैसे भड़काई बाढ़ की विनाशलीला

लेपचा शादियों के गीतों में अब भी गाई जाती है तीस्ता की प्रेम कहानी, लेकिन अब यह नदी अपने गुस्से के लिए भी जानी जाती है. जो कहानी बर्फ के पिघलने से शुरू हुई थी, उसे बांधों और अतिक्रमण ने और भी भयावह बना दिया है.

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तीस्ता बाज़ार/जलपाईगुड़ी/गंगटोक: कभी तीस्ता नदी में प्यार और गुस्सा, दोनों बहते थे — यह वही नदी थी जिसके बारे में सिक्किम के लोग पीढ़ियों से लोकगीतों में गाते आए हैं. गाने अब भी गाए जाते हैं, लेकिन अब यह नदी विनाश और क्रोध का प्रतीक बन चुकी है — अपने रास्ते में घरों और ज़िंदगियों को निगलते हुए.

इस मानसून में, पूर्वी भारत की यह मुख्य जलधारा फिर बाढ़ बनकर उमड़ी, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में तबाही मचा गई.

पश्चिम बंगाल के तीस्ता बाज़ार में एक सामुदायिक केंद्र में दर्जनों विस्थापित परिवारों के साथ रहने वाले 38 साल के दिनेश लामा ने कहा, “पिछले तीन साल में मैंने अपना घर तीन बार बनाया है. अब तो समझ नहीं आता, कोई मतलब भी है या नहीं.”

सिक्किम हिमालय की ऊपरी ढलानों पर जहां से तीस्ता निकलती है, इस बार मानसून में लगातार बारिश होती रही. फिर अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में बंगाल की खाड़ी में आए साइक्लोन ‘मोंथा’ ने बाढ़ को और बढ़ा दिया.

नदी किनारे बने कई निर्माण एक ही रात में बह गए, हज़ारों लोग बेघर हो गए, लेकिन लोगों के बीच यह झटका या हैरानी का नहीं, बल्कि ‘पहले भी देखा हुआ’ डर था — 2023 के ग्लेशियर झील फटने (GLOF) की दर्दनाक याद.

तीस्ता की परेशानी वही पुरानी है — तेज़ी से पिघलते ग्लेशियर, नए हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट, पुराने प्रोजेक्ट्स का खराब प्रबंधन और नदी किनारे बढ़ता अतिक्रमण. सीधी बात में कहा जाए तो, जलवायु परिवर्तन ने पहाड़ों से निकलते ही तीस्ता को और ताकतवर और हिंसक बना दिया है और नीचे इंसानी छेड़छाड़ ने उसके गुस्से को और खतरनाक व अनियंत्रित कर दिया है.

दार्जिलिंग ज़िले का तीस्ता बाज़ार, जो इस साल की बाढ़ और 2023 की GLOF में सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाकों में से एक रहा | फोटो: सौम्या पिल्लई/दिप्रिंट
दार्जिलिंग ज़िले का तीस्ता बाज़ार, जो इस साल की बाढ़ और 2023 की GLOF में सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाकों में से एक रहा | फोटो: सौम्या पिल्लई/दिप्रिंट

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के ‘स्पेशल सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया’ के प्रोफेसर विमल खवास ने कहा, “तीस्ता की बाढ़ एक मानव-निर्मित आपदा है. पहाड़ों में अभूतपूर्व गर्मी ने भौगोलिक प्रक्रियाओं को तेज़ कर दिया है जैसे ग्लेशियरों का पिघलना, खतरनाक ग्लेशियर झीलों का बढ़ना और आखिर में यह सब कुछ तीस्ता में मिल जाता है.”

गुस्से वाला प्यार और साझा पानी

जब सिक्किम के हरे-भरे पहाड़ बर्फ की सफेद चादर में ढक जाते हैं, तो तीस्ता नदी फिर से ज़िंदा हो उठती है.

लेकिन इस नदी की कहानी उतनी ही उथल-पुथल भरी है जितनी इसकी लहरें.

सिक्किम की लेपचा जनजाति जिन्हें मुतांची रोंगकुप रुमकुप यानी “प्रकृति माता और भगवान के प्यारे बच्चे” कहा जाता है — मानती है कि तीस्ता का जन्म दो जल आत्माओं के गुस्से भरे प्रेम से हुआ था: रांगीत (जो अब एक सहायक नदी है) और रोंगन्यू (यानी तीस्ता खुद).

कहानी के मुताबिक, जब देवताओं को इनके प्रेम के बारे में पता चला, तो उन्होंने तय किया कि रांगीत और रोंगन्यू मैदानों की ओर साथ-साथ बहेंगे. उनके मार्गदर्शन के लिए, कंचन-चू (जो कंचनजंगा पर्वत का स्थानीय नाम है) ने दोनों को साथी दिए रांगीत के लिए एक पक्षी और रोंगन्यू के लिए एक सर्प.

रांगीत और उसके मार्गदर्शक पक्षी का चित्रण | फोटो: सिक्किम प्रोजेक्ट
रांगीत और उसके मार्गदर्शक पक्षी का चित्रण | फोटो: सिक्किम प्रोजेक्ट
रोंगन्यू और उसके मार्गदर्शक सर्प का चित्रण | फोटो: सिक्किम प्रोजेक्ट
रोंगन्यू और उसके मार्गदर्शक सर्प का चित्रण | फोटो: सिक्किम प्रोजेक्ट

पक्षी ने लंबा रास्ता चुना, जबकि सर्प ने रोंगन्यू को शॉर्टकट से आगे बढ़ाया. इस तरह रोंगन्यू पहले ही मिलन स्थल पर पहुंच गई और इंतज़ार करते-करते वह आज की महान तीस्ता नदी में बदल गई.

जब रांगीत वहां पहुंचा और देखा कि रोंगन्यू उसका इंतज़ार कर रही है, तो उसने कहा, “थीस्थ!” (जिससे ‘तीस्ता’ नाम पड़ा).

रोंगन्यू को इंतज़ार कराने पर गुस्से में रांगीत पलट गया और अपने पीछे बाढ़ का कहर छोड़ गया.

यह प्रेम और प्रतिस्पर्धा की कहानी आज भी लेपचा शादियों के गीतों में गाई जाती है.

लेपचा समुदाय के सदस्य सिक्किम में रांगीत और रोंगन्यू का उत्सव मनाते हुए | फोटो: सिक्किम प्रोजेक्ट
लेपचा समुदाय के सदस्य सिक्किम में रांगीत और रोंगन्यू का उत्सव मनाते हुए | फोटो: सिक्किम प्रोजेक्ट

एक और मान्यता के अनुसार, ‘तीस्ता’ नाम संस्कृत शब्द त्रि-श्रॊता से निकला है, जिसका मतलब है “तीन धाराओं वाली नदी”. कहा जाता है कि प्राचीन काल की नदियां — करतोया, अत्रेयी और पुनर्भावा मिलकर आज की तीस्ता बनीं.

कहानी कोई भी हो, एक बात सभी मानते हैं — यह नदी हमेशा उदार रही है. सिक्किम, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश तीनों के लिए यह भरोसेमंद और प्रचुर जलस्रोत रही है.

तीस्ता लगभग 414 किलोमीटर तक बहती है जिसमें पहले 151 किमी सिक्किम में, 142 किमी पश्चिम बंगाल में और बाकी 121 किमी बांग्लादेश से होकर गुज़रती है, जहां यह ब्रह्मपुत्र से मिलती है.

लेकिन यही प्रचुरता अब विवाद का कारण भी बन गई है. दशकों से तीस्ता भारत और बांग्लादेश के बीच खींचतान का केंद्र रही है. ढाका लगातार जल-बंटवारे पर समझौते की मांग कर रहा है, लेकिन नई दिल्ली अब तक झिझक रही है.

पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत की एक तकनीकी टीम जल्द ही बांग्लादेश जाएगी ताकि तीस्ता के “संरक्षण और प्रबंधन” पर चर्चा की जा सके, लेकिन जल-बंटवारे का ज़िक्र नहीं किया गया. केंद्र की ओर से अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुलकर इसका विरोध करती रही हैं. उनका कहना है कि ऐसा कोई समझौता उत्तर बंगाल के लाखों लोगों को प्रभावित करेगा. 2017 में उन्होंने तोर्सा, संकोश, मानसाई और धानसाई नदियों का पानी साझा करने की पेशकश की थी, लेकिन तीस्ता का नहीं.

ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) की 2016 की एक रिपोर्ट में कहा गया था — “भारत में तीस्ता का पानी ऊपर की ओर से मोड़े जाने की वजह से पांच ज़िलों में एक लाख हेक्टेयर से अधिक ज़मीन प्रभावित है और सूखे मौसम में गंभीर जल-संकट का सामना करती है.” बातचीत के शुरुआती दौर में बांग्लादेश ने दिसंबर से मई तक की अवधि में तीस्ता के सालाना प्रवाह का 50% मांगा था, जबकि भारत ने 55% का दावा किया.

भारतीय सरकार के अनुमान के मुताबिक, तीस्ता का लगभग 2,750 वर्ग किलोमीटर का बाढ़ क्षेत्र बांग्लादेश में आता है. इस नदी का जलग्रहण क्षेत्र देश की लगभग 8.5% आबादी को सहारा देता है और कृषि उत्पादन का करीब 14% हिस्सा इससे जुड़ा है.

विशेषज्ञों का कहना है कि ये आंकड़े बताते हैं कि कितनी ज़िंदगियां तीस्ता पर निर्भर हैं, लेकिन यह भी याद दिलाते हैं कि अगर उसकी उदारता का दुरुपयोग हुआ, तो वह नाराज़ भी हो सकती है — जैसा वह पहले कर चुकी है और भविष्य में फिर कर सकती है.

2023 के GLOF के बाद क्षतिग्रस्त घर अब तक नहीं बन पाए हैं | फोटो: सौम्या पिल्लई/दिप्रिंट
2023 के GLOF के बाद क्षतिग्रस्त घर अब तक नहीं बन पाए हैं | फोटो: सौम्या पिल्लई/दिप्रिंट
तीस्ता बाज़ार में नदी किनारे बनी कई इमारतें एक रात में बह गईं, हज़ारों लोग बेघर हुए | फोटो: सौम्या पिल्लई/दिप्रिंट
तीस्ता बाज़ार में नदी किनारे बनी कई इमारतें एक रात में बह गईं, हज़ारों लोग बेघर हुए | फोटो: सौम्या पिल्लई/दिप्रिंट

लेखक माया मिर्चंदानी ने ORF की रिपोर्ट में लिखा, “स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर तीस्ता नाराज़ हो जाए, तो उसका जीवनदायिनी जल विनाशक बन सकता है जैसे करीब 50 साल पहले 1968 में हुआ था, जब बंगाल के जलपाईगुड़ी ज़िले में आई भयानक बाढ़ ने नदी किनारे बसे सैकड़ों लोगों की जान ले ली.”

“नदी गाद से भर गई, फसलें और मवेशी बह गए. उस बाढ़ की याद आज भी स्थानीय कहानियों और लोककथाओं में ज़िंदा है.”

पिघलते ग्लेशियर, उफनती तीस्ता

सिक्किम की राजधानी गंगटोक के रहने वाले तेंजिन लेपचा को महसूस होता है कि हिमालय में कुछ “खतरनाक” हो रहा है.

वह 2023 की GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) और 2025 की बाढ़ को चेतावनी के रूप में देखते हैं. उनका कहना है कि अगर इंसान अब भी “अपना तरीका नहीं बदलेगा”, तो इसके नतीजे बहुत विनाशकारी होंगे.

लेपचा ने कहा, “यहां के पुराने लोगों की एक जीवनशैली थी — वह मानते थे कि प्रकृति देने वाली है, लेकिन अगर तुम उसका शोषण करने लगो, तो वही प्रकृति तुम्हें ऐसे सबक सिखाती है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. अभी वही हो रहा है.”

उनकी यह बात सिर्फ मान्यता नहीं, बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों से भी साबित होती है.

2023 की GLOF के बाद से सिक्किम और पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों में हुए अध्ययन यह दिखाते हैं कि इस क्षेत्र में ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं. इन शोधों में यह भी पाया गया कि ऊंचाई वाले इलाकों में तापमान में तेज़ बढ़ोतरी दर्ज की गई है और यही तीस्ता नदी में बढ़ते जल प्रवाह की एक बड़ी वजह है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस साल भारी बारिश के बाद कई दिनों तक सड़कें पूरी तरह कट गई थीं | फोटो: सौम्या पिल्लई/दिप्रिंट
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस साल भारी बारिश के बाद कई दिनों तक सड़कें पूरी तरह कट गई थीं | फोटो: सौम्या पिल्लई/दिप्रिंट

मध्य प्रदेश की डॉ. हरिसिंह गौर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा की गई एक 2023 के स्टडी में 1988 से 2018 के बीच सिक्किम के 24 ग्लेशियरों का विश्लेषण किया गया. इनमें से आधे ग्लेशियर अलग-अलग स्तर पर पीछे हटे, जबकि कम से कम सात — ईस्ट लंगपो, लोनक, साउथ लोनक, ईस्ट रथोंग, रुला, तीस्ता और ताशा-1 — ने पूरी स्टडी के दौरान लगातार पीछे हटने के संकेत दिखाए.

चांगसांग और साउथ लोनक ग्लेशियरों में सबसे ज्यादा पिघलाव पाया गया — क्रमशः 1917.1-170.8 मीटर और 1328.8-118.4 मीटर तक.

भारत के Academy of Scientific and Innovative Research (AcSIR) और अमेरिका के Byrd Polar and Climate Research Centre के वैज्ञानिकों द्वारा 2024 में प्रकाशित एक और अध्ययन ने पूर्वी हिमालय में जलवायु परिवर्तन से बढ़ते GLOF के खतरे पर जोर दिया.

शोध में कहा गया, “ग्लेशियर की बर्फ का नुकसान और ग्लेशियल झीलों का बनना व फैलना अब स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. झीलों की बढ़ती संख्या और आकार नीचे बसे समुदायों और उनके ढांचे के लिए गंभीर खतरा हैं.”

सिक्किम स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (SSDMA) के अधिकारी भी इससे सहमत हैं. उनका कहना है कि पहाड़ों का असामान्य रूप से गर्म होना, हाल के वर्षों में तीस्ता के तेज़ और खतरनाक प्रवाह की एक बड़ी वजह है.

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के पुराने आंकड़े भी इसे साबित करते हैं. 1980 से 2020 के बीच सिक्किम हिमालय में औसत तापमान में साफ बढ़ोतरी दर्ज हुई — ताडोंग में 1.05 डिग्री सेल्सियस और गंगटोक में 1.98 डिग्री सेल्सियस.

SSDMA के एक सीनियर अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “जब हमारी टीमें 2023 की GLOF के बाद गांवों में बचाव के लिए पहुंचीं, तो कई लोगों ने बताया कि आपदा आने से कुछ घंटे पहले हिमालय में स्थित निकटतम स्वचालित मौसम स्टेशन ने दिन के समय तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया था.”

अधिकारी ने कहा, “इतनी ऊंचाई पर अगर तापमान शून्य से ऊपर पहुंच जाए, तो यह खुद में एक चेतावनी संकेत है.”

जलविद्युत परियोजनाओं की गड़बड़ी और बदइंतज़ामी

तीस्ता नदी में हाल की बाढ़ें कोई अचानक हुई आपदा नहीं थीं — इसकी तैयारी पिछले दो दशकों से चल रही थी.

वैज्ञानिक रिपोर्टों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने बहुत पहले ही चेतावनी दी थी कि नदी के किनारों पर लगातार अतिक्रमण और निर्माण का गंभीर असर पड़ेगा, लेकिन पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं ने इसका एक बड़ा कारण तीस्ता नदी पर लगातार मंजूर की गई जलविद्युत परियोजनाओं को भी बताया है.

सिक्किम में फिलहाल 11 जलविद्युत परियोजनाएं चालू हैं. मुख्य तीस्ता चैनल पर दो प्रमुख प्रोजेक्ट हैं — 1,200 मेगावाट की तीस्ता स्टेज-III और 510 मेगावाट की तीस्ता स्टेज-V। कम से कम पांच अन्य परियोजनाएं अभी योजना या निर्माण के चरण में हैं.

2005 में लगभग 5,700 करोड़ की शुरुआती लागत से मंजूर हुआ तीस्ता-III प्रोजेक्ट बाद में बढ़कर 14,000 करोड़ तक पहुंच गया. इसे नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) ने शुरू किया और 2017 में इसे चालू किया गया.

सिक्किम में तीस्ता नदी के किनारे बने प्रतिष्ठान | फोटो: सौम्या पिल्लई/दिप्रिंट
सिक्किम में तीस्ता नदी के किनारे बने प्रतिष्ठान | फोटो: सौम्या पिल्लई/दिप्रिंट

सिक्किम की जनजातीय समुदायों ने शुरुआत से ही इस बांध का विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि यह परियोजना पर्यावरण के लिए खतरनाक है और स्थानीय लोगों के ज़मीन के अधिकारों की अनदेखी की जा रही है.

उनके डर अक्टूबर 2023 में सच साबित हो गए. पहाड़ों से आई बाढ़ का पानी जब नीचे उतरा, तो तीस्ता-III बांध ने उसे रोका. जब बांध टूटा, तो पानी और तेज़ी से नीचे की ओर बहा—अपने साथ मलबा और तबाही लेकर.

सिक्किम यूनिवर्सिटी के भूविज्ञान विभाग के प्रमुख राकेश रंजन ने कहा, “जब बांध टूटने के बाद मलबे के साथ पानी नीचे बहा, तो उसने और ज़्यादा नुकसान किया. पत्थर घरों और इमारतों से टकराए. अगर सिर्फ पानी होता, तो शायद इतना नुकसान नहीं होता.”

अब स्थानीय लोग 2023 जैसी तबाही को दोबारा होने से रोकने की लड़ाई लड़ रहे हैं. वे अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, जो टूटे हुए बांधों को दोबारा बनाने और नए बांध तैयार करने की ज़िद पर अड़े हैं.

सिक्किम की जनआंदोलन संस्था Affected Citizens of Teesta (ACT) की अगुवाई में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं. इनका ज़ोर है कि किसी भी नई परियोजना से पहले विस्तृत पर्यावरणीय अध्ययन ज़रूरी है—खासकर उन क्षेत्रों में जो पहले से ही आपदा-प्रभावित हैं.

यह इलाका बेहद नाज़ुक है. हर मानसून में भूस्खलन बढ़ते जा रहे हैं. यहां कोई भी गलत कदम हमारे लिए विनाशकारी हो सकता है

— ACT के अध्यक्ष संगदुप लेप्चा

उन्होंने बताया कि अभी सिक्किम में तीस्ता नदी का केवल 10 किलोमीटर का हिस्सा—नामप्रिकडांग से लेकर दिक्चू तक—ऐसा है जहां बांध नहीं बना है.

पर्यावरणविदों ने यह भी कहा कि केवल सरकार ही नहीं, आम लोगों को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी. नदी के बिलकुल किनारे बने घर, दुकानें और होटल किसी भी आपदा के बाद हालात को और बिगाड़ देते हैं.

तीस्ता की तबाही से सबसे ज़्यादा प्रभावित ज़िले वही हैं जहां बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुआ है. नतीजा—लोगों ने अपने परिवार, घर और रोज़ी-रोटी सब खो दिया.

लेप्चा ने कहा, “यहां के बुज़ुर्ग हमेशा कहते थे कि नदियों की याददाश्त होती है. वह सालों तक सब कुछ सहती है, लेकिन उसे याद रहता है कि किसने उसके साथ गलत किया. वक्त आने पर वह हमेशा पलटकर जवाब देती है—अपना हक वापस लेती है और जो उसे छोटा करने की कोशिश करता है, उसे मिटा देती है.”

पश्चिम बंगाल के तीस्ता बाज़ार में अब लोग कहते हैं कि इन हर साल आने वाली बाढ़ों से बचने का एक ही रास्ता है — इस जगह को छोड़ देना, या कम से कम अपने बच्चों को कहीं और भेज देना.

कई लोग अब हर साल मानसून में अपना घर छोड़कर भागने से तंग आ चुके हैं, जब तीस्ता एक जानलेवा नदी बन जाती है.

लामा ने कहा, “हमारे घरों को ‘अतिक्रमण’ कहना आसान है. हम तो दशकों से तीस्ता के किनारे रह रहे हैं. हम रातों-रात अपनी पूरी ज़िंदगी समेटकर कहां जाएं? लेकिन पिछले कुछ सालों में जो कुछ हमने झेला है, उसके बाद मुझे लगता है कि यहां से जाना ही बेहतर होगा.”

यह तीन-पार्ट की सीरीज़ “Angry Rivers” की तीसरी रिपोर्ट है. पहली रिपोर्ट ब्यास नदी पर और दूसरी चिनाब नदी पर यहां पढ़ें.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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