नई दिल्ली : स्वास्थ्य मंत्रालय ने मेडिकल शिक्षा को लेकर बड़ा फैसला लिया है. अब मेडिकल से जुड़े अंडर ग्रेजुएट (यूजी) कोर्स में दाखिले के लिए देशभर में एक ही तरह की परीक्षा होगी. नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) और कॉमन काउंसिलिंग के जरिए अब मेडिकल के छात्र देश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में दाखिला पा सकेंगे.
अब एम्स और जिपमर (जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च) जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान भी अपवाद नहीं होंगे. यानी इन संस्थानों में प्रवेश के लिए भी अब नीट की ही परीक्षा देनी होगी. शिक्षा को नियमित करने का ज़िम्मा अब एनएमसी के पास है. इसके पहले ये काम मेडिकल कमिशन ऑफ़ इंडिया (एमसीआई) के पास था. अगस्त में एनएमसी कानून बनाए जाने के बाद अब ये अपना आकार ले रहा है और इस बीच इसके ये फैसले सामने आए हैं.
घोषणाओं के दौरान स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की सचिव प्रीति सूदन ने कहा, ‘अगले अकादमिक सत्र से पहले एनएमसी काम करने लगेगा. अगले साल से प्रवेश के लिए सिर्फ़ एक परीक्षा देनी होगी और फ़ीस तय करने की प्रक्रिया भी पूरी कर ली जाएगी.’ मंत्रालय की मानें तो प्रक्रिया को आसान बनाए जाने से मेडिकल सीटों की संख्या बढ़ेगी और देश को पर्याप्त चिकित्सक मिलेंगे.
मेडिकल की पढ़ाई के अंतिम साल में छात्रों को नेशनल एक्ज़िट टेस्ट (नेक्स्ट) देना होगा. इस टेस्ट के जरिए उन्हें मिली मेडिकल की शिक्षा का स्तर तय किया जाएगा, साथ ही ये उनके पोस्ट ग्रेजुएशन (पीजी) में एडमिशन को तय करने वाली परीक्षा के तौर पर भी काम करेगा. इसकी वजह से पीजी की प्रवेश परीक्षा के लिए अलग से पढ़ाई नहीं करनी होगी.
स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि इससे छात्र अब अपने यूजी के विषयों और इंटर्नशिप पर पूरा ध्यान दे सकेंगे. विदेश से मेडिकल की डिग्री पाने वाले छात्रों को भी नेक्स्ट की परीक्षा देनी होगी जिसमें पास होने पर उन्हें लाइसेंस मिलेगा.
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प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड यूनिवर्सिटीज में 50% सीटों की फीस तय करने को लेकर भी गाइडलाइन होगी. ऐसे में इन कॉलेजों में लगभग आधी सीटों के लिए छात्रों को बाकी की महंगी सीटों जितनी कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी. गाइडलाइन नहीं मानने वाले कॉलेजों को चेतावनी दिए जाने से लेकर उन पर फाइन लगाने और अंत में उनकी मान्यता छीन लेने तक का प्रावधान है.
डेढ़ लाख हेल्थ-वेलनेस सेंटर बनाने का लक्ष्य, अहम होगी सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं की भूमिका
स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा कि देशभर में डेढ़ लाख हेल्थ-वेलनेस सेंटर बनाने का लक्ष्य है. उन्होंने इसमें सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं की भूमिका अहम होने पर भी ज़ोर दिया. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, ‘सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं की भूमिका विश्व स्तर पर स्थापित है और विकसित देशों में भी इनकी अहम भूमिका होती है.’
उन्होंने ये भी कहा कि सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता सिर्फ अंग्रेज़ी दवाओं के जरिए ही इलाज़ करेंगे. यानी इनमें आयुष या किसी और तरह से इलाज करने वाले शामिल नहीं होंगे. सभी रजिस्टर्ड चिकित्सकों से जुड़ा एक लाइव रजिस्टर मेंटेन किया जाएगा और सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं से जुड़ा एक अलग रजिस्टर भी मेंटेन किया जाएगा.
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मंत्रालय की सचिव प्रीति सूदन ने जानकारी दी कि एनएमसी को सुचारू रूप से लागू करने के लिए मंत्रालय को 9 महीने का समय तय किया है, लेकिन उनका मानना है कि ये उससे कम समय में सुचारू रूप से काम करने लग जाएगा. ये जानकारी भी दी गई कि अभी तक मंत्रालय के पास कुलपति के 23 और स्टेट मेडिकल काउंसिल (एसएमआई) के लिए 22 आवेदन आए हैं.
एनएमसी का काम मेडिकल से जुड़ी शिक्षा, पेशे और संस्थानों को रेग्युलेट करना है. इसे सलाह-मशविरा देने के लिए इसमें एक चिकित्सा सलाहकार परिषद (मेडिकल अडवाइज़री काउंसिल- मैक) के भी गठन का प्रावधान है. एनएमसी में चार स्वायत्त बोर्ड होंगे. इनमें अंडर ग्रेजुएट मेडिकल शिक्षा बोर्ड, पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल शिक्षा बोर्ड, मेडिकल असेस्मेंट और रेटिंग बोर्ड के अलावा एथिक्स और मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड शामिल हैं.
सूदन ने कहा कि एक बार मैक को नोटिफाई किए जाने के बाद स्टेट मेडिकल काउंसिल के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से नौ लोगों को एनएमसी के सदस्यों के तौर पर चुना जाएगा. जो नाम आए हैं उनका अंतिम चुनाव लकी ड्रॉ के तहत 14 अक्टूबर को मीडिया की मौजूदगी में सुबह 11.30 बजे किया जाएगा. इस ड्रॉ के पहले मैक को आंशिक तौर पर नोटिफाई कर दिया जाएगा.