दिल्ली-एनसीआर: 21 सितंबर को दिल्ली के पंजाबी बाग क्लब में हुए एक प्री-डांडिया इवेंट में, गुजराती परिधानों में सजे-धजे पुरुष और महिलाएं कभी डांडिया स्टिक्स के साथ सेल्फी ले रहे थे, कभी गोल घेरे में नाच रहे थे, तो कभी गोलगप्पों का मज़ा ले रहे थे. ऑर्केस्ट्रा “तूने मारी एंट्रियां” जैसे गानों के गुजराती वर्ज़न बजा रहा था. शर्मीले कपल्स अपनी ड्रीम डेट की प्लानिंग कर रहे थे और परिवार साथ में क्वालिटी टाइम बिता रहे थे. डांडिया दिल्ली-एनसीआर का नया buzzword बन चुका है.
गुजरात से दिल्ली तक आते-आते इसने पंजाबी, हरियाणवी, cow-belt और बॉलीवुड का रंग भी ओढ़ लिया है. अब ये डांडिया-कम-रेव-कम-पंजाबी पॉप बन चुका है. गुजरात कभी दिल्ली के इतना करीब महसूस नहीं हुआ और ये है एनसीआर की ओर से गरबा क्वीन फाल्गुनी पाठक को ट्रिब्यूट.
“भैया, आज की रात बजाइए” एक छोटे बच्चे ने डांडिया इवेंट में कहा, जो स्त्री-2 फिल्म का गाना है, जिसे तमन्ना भाटिया ने परफॉर्म किया था. लगातार गुजराती फोक गानों से बोर हो चुके उस बच्चे को उसके माता-पिता ने तुरंत चुप कराया और सही ढंग से डांडिया स्टिक पकड़ना सिखाने लगे.
सोशल मीडिया रील्स देखकर, जिनमें दिखता है कि गुजरात किस तरह नवरात्रि के नौ दिनों में कार्निवल स्पेस में बदल जाता है, दिल्ली-एनसीआर के इवेंट प्लानर्स ने भी खास तैयारियां की हैं. डिस्ट्रिक्ट बाय जौमेटो और बुकमायशो जैसी बुकिंग साइट्स पर टिकट घंटे-घंटे में बिक रहे हैं और विकल्पों की कोई कमी नहीं — स्पेशल थीम वाले कॉकटेल्स से लेकर सेलेब्रिटी परफॉर्मर्स और फ्यूज़न बीट्स तक, हर आयोजक सबसे खुशहाल डांडिया इवेंट कराने की होड़ में है.
दिल्ली में पहली बार किसी स्मारक—पुराना किला पर डांडिया हुआ, वहीं सुंदर नर्सरी का ग्लोबल गरबा फेस्टिवल और दिल्ली हाट पीतमपुरा का ओपन-एयर डांडिया भी चर्चा में है. नोएडा, गुरुग्राम और द्वारका में रिहायशी सोसायटियां भी curated डांडिया नाइट्स आयोजित कर रही हैं, जिससे लोगों को अपने ही मोहल्ले में गुजरात का स्वाद मिल रहा है. डांडिया ने सचमुच दिल्ली-एनसीआर को अपने रंग में रंग लिया है.
कॉलेज ग्रेजुएट कृति नारनौली ने कहा, “हम कई डांडिया इवेंट्स में शामिल होने के लिए एक्साइटेड हैं. ये वाला तो फैमिली के साथ है, लेकिन हम सिर्फ फ्रेंड्स वाला आउटिंग भी करना चाहते हैं. हम इंस्टाग्राम पर सबसे पॉपुलर और ट्रेंडी इवेंट ढूंढकर जाएंगे.”

इस साल के जश्न को दिल्ली सरकार की मंज़ूरी भी मिली है. मंगलवार को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने घोषणा की कि अब दिल्ली सरकार ने रामलीला, दुर्गा पूजा पंडाल और अन्य सांस्कृतिक आयोजनों में लाउडस्पीकर बजाने की डेडलाइन रात 12 बजे तक बढ़ा दी है, जबकि पहले यह समय सीमा रात 10 बजे तक थी.
जहां गुजरात और मध्य प्रदेश में मुस्लिमों को डांडिया इवेंट्स से बाहर रखने की खबरें सुर्खियों में हैं, वहीं दिल्ली-एनसीआर में इसने उत्साह को ज़रा भी कम नहीं किया. यहां डांडिया फीवर का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है.
दिल्ली हाट पीतमपुरा में open-air dandiya night आयोजित करने वाले मयंक कुमार अग्रवाल ने कहा, “हमारे सारे पास पहले ही बिक चुके हैं और हमें लगातार नई पूछताछ मिल रही है. दिलचस्प बात ये है कि बहुत से मुस्लिम भी हमसे संपर्क कर रहे हैं—ड्रेस कोड और शाम की खासियतें पूछने के लिए.”
गुजराती गरबा, पंजाबी बीट्स
स्टीरियोटाइप्स से बंटे हुए लेकिन डांडिया फीवर से जुड़े हुए, दिल्ली के हर ज़ोन में आने वाले दिनों में कम से कम दो बड़े डांडिया इवेंट्स तय हैं. दिल्ली हाट पीतमपुरा में 27 और 28 अगस्त को बड़े स्तर पर open-air dandiya haat का आयोजन किया जा रहा है. यह दूसरा साल है. पिछली बार यह शुरुआत में एक छोटे प्रयोग जैसा था, जिसे Diyaansh Events (दो भाई-बहन मयंक और रितिक कुमार अग्रवाल द्वारा संचालित) ने किया था. अब यह एक भव्य सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है.
पिछले साल इस एक-दिवसीय इवेंट में 6,000 लोग आए थे, जो रात 10 बजे तक चला. इस बार मयंक को उम्मीद है कि दो दिन में कम से कम 10,000 लोग जुटेंगे.
रितिक ने कहा, “पिछले कुछ सालों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का क्रेज़ काफी बढ़ा है. हमें ऐसे आयोजनों के लिए कॉल आते हैं—चाहे तीज हो या छठ. अब तो यंगस्टर्स को भी ये इवेंट्स ज्यादा ‘cool’ लगते हैं. वे पारंपरिक कपड़े पहनते हैं, सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं और पब्स की बजाय open events में जाना पसंद करते हैं.”
इस साल इवेंट को दिल्ली टूरिज़्म भी प्रमोट कर रहा है. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, जिनका शालीमार बाग़ निर्वाचन क्षेत्र पास ही है, भी यहां आ सकती हैं.
मयंक ने कहा, “हमारे इवेंट में हम सिर्फ DJ बुलाने या सेलेब्रिटी इनवाइट करने के बजाय लोकल बैंड्स और आर्टिस्ट्स को बुलाते हैं. वे गुजराती और हिंदी गानों का फ्यूज़न भी बना रहे हैं, क्योंकि आखिर में भीड़ बॉलीवुड और पंजाबी गाने ही चाहती है. आखिर दिल्ली है.”
हिट ट्रैक्स जैसे हनी सिंह और पैराडॉक्स का ‘पायल’ और गुजराती गाने ‘ढोलिडा’ और ‘खलासी’ आपस में मिक्स किए जाते हैं. पंजाबी बाग क्लब में जहां एक ग्रुप की महिलाएं गरबा नृत्य सहजता से कर रही थीं, वहीं बाकी लोग डांडिया टकराने में व्यस्त थे. जब कुछ और नहीं चलता, तो लोग गोल घेरे में घूमना शुरू कर देते हैं.
एनसीआर के ज़्यादातर DJs कुछ गुजराती गानों के बाद पॉपुलर हिंदी नंबर्स पर शिफ्ट हो जाते हैं.
नॉर्थ दिल्ली के लोकल इवेंट्स में परफॉर्म करने वाले DJ नवीन ने कहा, “चाहे आप सिर्फ गुजराती गाने बजाने की कोशिश करें, दिल्लीवाले हनी सिंह और गुरु रंधावा ही मांगेंगे. भीड़ को जोड़े रखने का एक ही तरीका है—पंजाबी बीट्स.”
ओपन-एयर इवेंट्स ने पब्स और रेस्तरां को भी डांडिया फीवर से जुड़ने से नहीं रोका है.
गुरुग्राम सेक्टर-30 के ब्रूपब Soca की मालिक प्रगति शर्मा ने कहा, “हमने इन इवेंट्स के लिए खास मेन्यू बनाए हैं. ध्यान रखा है कि बहुत से लोग नवरात्रि में व्रत रखते हैं. हमारे पास व्रत-स्पेशल स्नैक्स और जूस हैं, साथ ही थीम वाले कॉकटेल्स भी, उन लोगों के लिए जो सिर्फ डांस और मस्ती के लिए आते हैं.”
इस ब्रुअरी में बड़ा डांस फ्लोर है और ऊपर जाने के लिए सर्कुलर सीढ़ियां, जिससे लोगों को चार्टबस्टर गानों पर डांस करने की पूरी जगह मिलती है.
शर्मा ने कहा, “हालांकि, गरबा और डांडिया इवेंट्स परंपरागत रूप से बाहर होते हैं, लेकिन इस साल दिल्ली-एनसीआर में काफी गर्मी है. ऐसे में इनडोर इवेंट बेहतर है, ताकि लोग पसीने से तरबतर न हों.”
सिर्फ रेस्टोरेंट ही नहीं, बल्कि और लोग भी इस नए क्रेज़ का फायदा उठा रहे हैं. पिछले तीन सालों से ओम नव चैतन्य मंडल और डांस फ्रीक स्टूडियो साथ मिलकर दिल्ली-एनसीआर के लोगों को फ्री गरबा क्लासेस दे रहे हैं.
एक कोरियोग्राफर ने कहा, “ज्यादातर जो लोग गरबा क्लासेस के लिए आते हैं, वे शादीशुदा महिलाएं होती हैं. वे अपने किट्टी ग्रुप या छोटे बच्चों को साथ लाकर डांस सीखती हैं.”
पति के बिना महिलाएं ही डांडिया इवेंट्स में सबसे ज़्यादा दिखाई देती हैं. किट्टी ग्रुप्स अब शहरभर में होने वाले डांडिया आयोजनों की नोटिस बोर्ड बन गए हैं.
गरबा और डांडिया की अर्थव्यवस्था
सोशल मीडिया वेलिडेशन की दुनिया में सिर्फ किसी गरबा या डांडिया इवेंट में RSVP करना ही काफी नहीं है—आपको लुक भी परफेक्ट चाहिए. ‘गुजराती लुक’ बिंदी, चनिया-चोली से लेकर एक्सेसरीज़ तक. माथे पर पसीना चमकता हुआ और हाथों में प्लास्टिक बैग्स, जिनमें लहंगे और ब्लाउज़ भरे हों—हर उम्र की महिलाएं नवरात्रि से एक हफ़्ता पहले जनपथ की गुजराती लेन में अपनी पसंद का आउटफिट ढूंढने की जद्दोजहद में जुटी रहती हैं. मिशन साफ है—ऐसा रील बनाने वाला आउटफिट खोजना जो वायरल हो जाए और ग्रुप की बाकी महिलाओं को जलाए.
हीराबेन ने कहा, “लोग आते हैं और हमें गरबा की रील्स दिखाते हैं, पूछते हैं कि वही ड्रेस है क्या? लेकिन वे 1,000 रुपये में हाथ से बनी चनिया-चोली चाहते हैं. हमारे कपड़े गुजरात से आते हैं और दिल्ली में इससे अच्छा आपको कहीं नहीं मिलेगा.” उनकी छोटी-सी दुकान गुरुवार दोपहर की बारिश में भी कॉलेज स्टूडेंट्स, मां-बेटी और कपल्स से खचाखच भरी थी. सबके सब बेस्ट आउटफिट के लिए मोलभाव में लगे थे.

यहां बिक्री ज़बरदस्त है. गुजराती लेन के दुकानदार औसतन एक दिन में कम से कम 5 चनिया-चोली सेट बेचते हैं, जिनकी कीमत 3,000 रुपये से शुरू होती है.
इस साल अजरख प्रिंट वाले लहंगे सबसे ज़्यादा पसंद किए जा रहे हैं. पिछले साल काले चनिया-चोली की धूम थी.
तानिया सचदेवा और काला भसीन गरबा आउटफिट्स की खरीदारी के लिए मेट्रो पकड़कर गुरुग्राम से सीधे जनपथ पहुंचीं.
भसीन ने कपड़ों और ज्वेलरी के बैग संभालते हुए कहा, “मैं पूरा व्हाइट लुक ट्राय कर रही हूं, जैसे आलिया ने गंगूबाई में पहना था.”
नोएडा की तैयारी
ग्रेटर नोएडा की पॉश गौर सौनदर्यम सोसायटी में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना वाले दिन जहां माता-पिता आपस में मेलजोल में व्यस्त रहते हैं, वहीं बच्चे गरबा की प्रैक्टिस के लिए बेसब्री से इंतज़ार करते हैं. सोसायटी में ‘ऑथेंटिक’ भोग, कोलकाता से बुलाए गए पंडित और डांडिया नाइट के साथ एक संयुक्त उत्सव मनाया जाता है. पंडाल के बगल का इलाका डांडिया नाइट पर डांस फ्लोर में बदल जाएगा, और फिर दशहरे पर रामलीला मंचन शुरू होगा. यह जगह एक ही जगह पर सभी त्योहारों का मज़ा देने वाली है.
गौर सौनदर्यम की अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन (AOA) के कार्यकारी सदस्य अक्षय भटनागर ने कहा, “मेरी 5 साल की बेटी ने रील्स और टीवी पर डांडिया देखा और मुझसे घाघरा दिलाने की ज़िद्द की. मुझे उसके लिए तीन अलग-अलग घाघरे खरीदने पड़े.”

हर दिन के लिए तय रंग कोड और कई टीमें—जो सांस्कृतिक कार्यक्रम, डांस प्रैक्टिस और प्रसाद संभालती हैं के साथ सोसायटी एक अच्छी तरह संगठित मशीन की तरह काम करती है. पिछले साल यहां की डांडिया नाइट में करीब 9,000 लोग पहुंचे थे. विशाल सोसायटी में 13 टावर और 2,000 से ज़्यादा फ्लैट हैं और लगभग हर कोई इसमें हिस्सा लेता है.
एओए के दूसरे सदस्य अनुरुद्ध गुप्ता ने बताया, “हमारा बजट पिछले साल से दोगुना हो गया है. इस बार हम करीब 14 लाख रुपये खर्च कर रहे हैं. स्पॉन्सर्स भी बढ़े हैं, क्योंकि हर कोई इसमें शामिल होना चाहता है.”
यह अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स बाहर की दुनिया का भी आईना है. पहले जो पर्व-त्योहार निश समुदाय तक सीमित रहते थे, जैसे गणेश चतुर्थी से लेकर छठ और तीज, अब टिकट लेकर मनाए जाने वाले बड़े आयोजन बन चुके हैं, जिनमें हर कोई शामिल होता है.

भटनागर ने कहा, “पिछले कुछ सालों से हम डांडिया और दुर्गा पूजा के साथ-साथ रामलीला भी सक्रिय रूप से आयोजित कर रहे हैं. इससे हमें, जो ज्यादातर नौकरीपेशा लोग हैं, समाज के भीतर ही एक साथ त्योहार मनाने का मौका मिलता है. सबसे अच्छी प्रतिक्रिया बच्चों से मिल रही है, जो अब ऑनलाइन इन उत्सवों को देखकर खुद भी हिस्सा लेना चाहते हैं.”
‘ऑथेंटिसिटी’ और गरबा
2023 में गरबा को यूनेस्को की Representative List of the Intangible Cultural Heritage of Humanity में शामिल किया गया था. इसके बाद यह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया. अब तो यह गरबा के घूमते हुए चक्कर से भी तेज़ी से फैल रहा है, खासकर दिल्ली-एनसीआर में.
मार्केटिंग प्रोफेशनल उदय भानु गर्ग, जो डांडिया इवेंट्स का विज्ञापन संभालते हैं, कहते हैं कि मध्यमवर्ग में गरबा की बढ़ती दिलचस्पी की एक बड़ी वजह है—सीरियल तारक मेहता का उल्टा चश्मा की लगातार लोकप्रियता. 2008 में सब टीवी पर शुरू हुआ यह शो कई बार गरबा उत्सव को समर्पित एपिसोड दिखा चुका है.
दूसरी अहम वजह संजय लीला भंसाली की फिल्में हैं, जिनमें गुजराती संस्कृति—कपड़े, गाने, वास्तुकला और नृत्य—को गहराई से दिखाया गया है. चाहे हम दिल दे चुके सनम (1999) हो, गोलियों की रासलीला राम-लीला (2013) या हाल की गंगूबाई काठियावाड़ी (2022). खासकर आलिया भट्ट वाली फिल्म ने पूरी तरह सफेद चनिया-चोली को लोकप्रिय बना दिया, जिसे मुख्य किरदार गंगू ने पहना था. इस आग में घी डालने का काम सोशल मीडिया रील्स कर रही हैं, जो गुजरात के गरबा उत्सव को दिखाती हैं.

लेकिन हर आयोजक डांडिया इवेंट्स के फैलाव से खुश नहीं है. उनका मानना है कि इसमें मूल परंपराओं का ‘सम्मान’ नहीं हो रहा. परंपरागत रूप से यह भक्ति नृत्य मिट्टी के छिद्रदार घड़े (जिसमें तेल का दीपक रखा होता है) या मां अंबा की तस्वीर के चारों ओर किया जाता है. मगर दिल्ली में डांडिया और गरबा के आयोजन इन बातों का सख्ती से पालन नहीं करते.
ग्रेटर कैलाश-1 के महावीर मंदिर कॉम्प्लेक्स में गरबा-डांडिया नाइट कराने वाले ओम नव चेतन्य मंडल के एक सदस्य ने कहा, “डांडिया और गरबा अब बस इसलिए हो रहे हैं क्योंकि लोग क्लब की बजाय खुले में डांस करना चाहते हैं. मार्केटिंग एजेंसियों ने इसे एक गिमिक बना दिया है. यह भीड़-मानसिकता है कि अब हर कोई दिल्ली-एनसीआर में डांडिया या गरबा जाना चाहता है, बिना इसके आध्यात्मिक या सांस्कृतिक अनुभव को समझे.”
सुंदर नर्सरी में आयोजित ग्लोबल गरबा फेस्टिवल गुजरात टूरिज़्म के साथ साझेदारी और ग्लोबल टूरिज़्म फोरम के समर्थन से होता है, ताकि भारत की सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक मंच पर दिखाया जा सके. तीन दिन का यह कार्यक्रम पूरी तरह ‘ऑथेंटिसिटी’ पर केंद्रित होगा—ना डीजे, ना रीमिक्स.
फेस्टिवल का आयोजन करने वाले, फ्यूज़न स्फेयर मीडिया एंड कॉन्सेप्ट्स लिमिटेड की डायरेक्टर शिवानी दत्ता ने कहा, “मेरे पति गुजराती हैं और उन्हें गरबा बेहद पसंद है. गुजरात नवरात्रि के 9 दिनों में जिस तरह बदल जाता है, हम उसे दिल्ली में भी जितना हो सके उतना नज़दीक लाना चाहते हैं, खासकर उन गुजराती परिवारों के लिए जो यहां रहते हैं और हर बार वहां नहीं जा पाते.”
हर शाम लोकप्रिय गुजराती गायिका गीता झाला गरबा का नेतृत्व करेंगी. 27 सितंबर को म्यूज़िक डायरेक्टर जोड़ी सलीम–सुलेमान और 28 सितंबर को पद्मश्री अवार्डी लोकगायक अनवर खान मांगनियार विशेष प्रस्तुति देंगे.
यह उन चंद आयोजनों में से है—जैसे गुजरात भवन का उत्सव और ग्रेटर कैलाश-1 के शिव मंदिर में होने वाला गरबा, जहां त्योहार पारंपरिक, धार्मिक रूप में होता है. इसमें नंगे पांव नृत्य किया जाता है और माता की पूजा होती है.
ग्रेटर कैलाश गरबा नाइट के आयोजक ने कहा, “हम कोशिश करते हैं कि इस उत्सव को हिंदू, सिख और जैन समुदाय तक सीमित रखें, क्योंकि इन सभी में देवी-पूजा की साझा परंपरा है.”
फिलहाल, ओम नव चेतन्य मंडल की District by Zomato से खींचतान चल रही है, जिसने इवेंट को सिर्फ चुनिंदा समुदायों तक सीमित करने की मांग मानने से इनकार कर दिया है.
उन्होंने कहा, “हम दूसरे धर्मों का भी स्वागत करते हैं, लेकिन तभी जब वे भक्ति गतिविधियों में हिस्सा लें. मुस्लिम भी बड़ी संख्या में आते हैं, लेकिन उन्हें तभी एंट्री दी जाती है जब वे तिलक लगाने या पवित्र जल ग्रहण करने के लिए तैयार हों.”
हालांकि, शहर के ज़्यादातर आयोजन सबके लिए खुले होते हैं. बस शर्त यह है कि लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर आएं. दरअसल, आयोजक खुशी से चाहते हैं कि हर धर्म और समुदाय से लोग इसमें हिस्सा लें.
पिछले कुछ सालों में गुजरात और मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में मुस्लिमों को गरबा से दूर रखा गया. मगर दिल्ली-एनसीआर में यह अब भी सार्वभौमिक उत्सव है.
ओम नव चेतन्य मंडल से जुड़े आयोजक ने कहा, “आयुर्वेद की तरह ही डांडिया इवेंट्स भी अब एक नया वायरल ट्रेंड बन रहे हैं. यह चलेगा या धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा—यह तो वक्त ही बताएगा.”
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