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Thursday, 11 September, 2025
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अरुणाचल की मागो चू घाटी में हिमनद पिघलने से बाढ़ का खतरा: अध्ययन

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(उत्पल बरुआ)

ईटानगर, 11 सितंबर (भाषा) एक नये अध्ययन में पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश की मागो चू घाटी में हिमनद के तेजी से पिघलने के कारण काफी ऊंचाई वाली हिमनद झीलों का दायरा बढ़ने और बाढ़ के खतरे में वृद्धि होने के सबूत मिले हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, मागो चू घाटी ब्रह्मपुत्र नदी के पारिस्थितिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण मुख्य जल क्षेत्रों में से एक है।

पृथ्वी विज्ञान एवं हिमालय अध्ययन केंद्र (सीईएसएचएस) के शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की, आईआईटी गुवाहाटी और अन्य सहयोगी संस्थानों के सहयोग से यह अध्ययन किया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि मागो चू घाटी में मौजूद हिमनद का दायरा 1988 से 2019 के बीच लगभग 28.5 प्रतिशत सिकुड़ गया, जो 15 वर्ग किलोमीटर से अधिक बर्फ के बराबर है।

उन्होंने कहा कि बड़े हिमनद टूटकर छोटे हिमनद में तब्दील हो गए हैं, खास तौर पर दक्षिण-पश्चिमी ढलानों पर, जहां बर्फ का नुकसान लगभग 50 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, 1988 से 2019 के बीच हिमनद की संतुलन रेखा ऊंचाई (ईएलए) लगभग 137 मीटर तक बढ़ गई, जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि हिमनद में खोई बर्फ की भरपाई नहीं हो रही है और उसका द्रव्यमान संतुलन नकारात्मक स्थिति में है।

ईएलए किसी हिमनद की वह ऊंचाई है, जहां बर्फ का वार्षिक जमाव गर्मियों में पिघलने वाली बर्फ की मात्रा के बराबर होता है। इसे हिमनद की सेहत बयां करने वाला एक अहम पैमाना माना जाता है। वहीं, द्रव्यमान संतुलन नकारात्मक स्थिति में होने का मतलब यह है कि हिमनद में जितनी बर्फ जमा हो रही है, उससे कहीं ज्यादा पिघल रही है, जिसके कारण उसका दायरा सिकुड़ रहा है।

सीईएसएचएस के निदेशक ताना तागे ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “मागो चू घाटी के हिमनद पश्चिमी हिमालय के कई हिस्सों में मौजूद हिमनद के मुकाबले तेजी से पिघल रहे हैं। ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि बड़े हिमनद छोटे और अस्थिर टुकड़ों में टूट रहे हैं, जिनके पिघलने तथा ढहने का खतरा अधिक है।”

तागे के अनुसार, हिमनद का पिघलना और उनका दायरा सिकुड़ना न केवल अरुणाचल प्रदेश, बल्कि भारत, भूटान और बांग्लादेश में समूचे ब्रह्मपुत्र घाटी क्षेत्र के लिए खतरे की घंटी है।

उन्होंने कहा, “हमारी वैज्ञानिक दक्षता, इंजीनियरिंग समाधान और समुदायों की आपदाओं एवं चुनौतियों से निपटने की क्षमता को मजबूत करना ही स्थानीय विरासत एवं आजीविका दोनों को सुरक्षित रखने का एकमात्र तरीका है।”

तागे ने कहा कि मागो चू घाटी में “मुख्यत: ऐसे हिमनद मौजूद हैं, जिनमें गर्मियों के मौसम में बर्फ का जमाव होता है। ये हिमनद बर्फ के जमाव के लिए मानसून पर निर्भर हैं, लेकिन क्षेत्र में बारिश के स्तर में भारी गिरावट आई है।”

उन्होंने बताया, “मागो चू घाटी में मानसूनी बारिश 1980 के दशक के मध्य में लगभग 2,100 मिलीमीटर से घटकर 2000 के बाद 1,500 मिलीमीटर से भी कम रह गई है और 2024 में महज 900 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई है। सर्दियों में न के बराबर बर्फबारी होने के कारण ये हिमनद अपनी प्राकृतिक पुनर्भरण प्रणाली गंवा रहे हैं।”

तागे के मुताबिक, हिमनद के बर्फ के आवरण में कमी के साथ-साथ हिमनद झीलों के दायरे में भी नाटकीय वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि 1988 में मागो चू घाटी में 15 हिमनद झीलें थीं, जिनका क्षेत्रफल 0.71 वर्ग किलोमीटर था, लेकिन 2017 तक हिमनद झीलों की संख्या लगभग दोगुनी होकर 29 पर पहुंच गई, जिनका संयुक्त क्षेत्रफल 2.11 वर्ग किलोमीटर दर्ज किया गया।

तागे के अनुसार, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने इनमें से चार हिमनद झीलों को अरुणाचल में “उच्च जोखिम” वाली जगहों के रूप में सूचीबद्ध किया है।

उन्होंने कहा, “अब हम ऐसी हिमनद झीलों की चुनौती से जूझ रहे हैं, जो कुछ दशक पहले तक अस्तित्व में भी नहीं थीं। कुछ हिमनद झीलें छोटे-छोटे गड्ढों से बढ़कर 0.8 वर्ग किलोमीटर से भी बड़े जलाशयों में तब्दील हो गई हैं। विस्तृत बाथिमेट्री (महासागरों, नदियों और झीलों में पानी के नीचे की सतह की गहराई एवं आकार का अध्ययन तथा मानचित्रण) और हिमोढ़ स्थिरता अध्ययनों के बिना, यह कहना मुश्किल है कि ये झीलें कब और कैसे बाढ़ का कारण बन सकती हैं।”

सीईएसएचएस के शोधकर्ताओं ने पिछली सर्दियों के दौरान खांगरी हिमनद पर लगभग एक मीटर बर्फ का नुकसान दर्ज किया, जबकि बर्फ का संचय न के बराबर रहा, जो हिमनद के तीव्र गति से पिघलने की ओर इशारा करता है। इससे निचले इलाकों में रहने वाले लोगों के अस्तित्व पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, हाइड्रोडायनामिक मॉडल दर्शाते हैं कि उच्च जोखिम वाली हिमनद झीलों में से किसी एक में बर्फीली चट्टानों के टूटने से 12,000 घन मीटर प्रति सेकंड से अधिक की बाढ़ की लहरें उठ सकती हैं, जिससे मागो, थिंगबू और चागजुम जैसे गांव जलमग्न हो सकते हैं और घाटी के साथ-साथ पन-बिजली ढांचों को भी नुकसान पहुंच सकता है।

तागे ने कहा, “केवल विज्ञान ही जीवन नहीं बचा सकता। हमें अपने आंकड़ों को सामुदायिक तैयारियों, निकासी अभ्यासों और पूर्व चेतावनी प्रणालियों के साथ एकीकृत करने की जरूरत है। तवांग और आसपास की घाटियों के लोग सदियों से इन प्राकृतिक परिस्थितियों के साये में रह रहे हैं और उनका ज्ञान तथा आपदाओं से निपटने की क्षमता समाधान का हिस्सा होना चाहिए।”

भाषा पारुल माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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