नई दिल्ली: मनीष तनेजा ने सोचा था कि जब उनकी बेटी ने एलन करियर इंस्टीट्यूट छोड़ दिया, तो बची हुई फीस उन्हें वापस मिल जाएगी. बेटी ने सिर्फ 40 दिन क्लास की थी, लेकिन उन्होंने पूरे साल की फीस — 1.46 लाख रुपये — पहले ही दे दी थी. संस्थान ने साफ मना कर दिया और कहा कि उनकी पॉलिसी में रिफंड नहीं है, सिर्फ एडमिशन के एक महीने के अंदर छोड़ने पर ही पैसे लौटाए जाते हैं.
एक आईटी कंपनी में काम करने वाले तनेजा ने कहा, “संस्थान ने कहा कि उनकी पॉलिसी फीस वापसी की अनुमति नहीं देती. वे केवल तभी पैसे वापसी पर विचार करते हैं जब आप एडमिशन के एक महीने के भीतर एडमिशन वापस ले लें.”
तनेजा और उनकी पत्नी पिछले चार महीने से बची हुई फीस के लिए चक्कर लगा रहे हैं. सरकारी नियम दिखाने पर भी फायदा नहीं हुआ, अब वे कानूनी नोटिस भेजने की तैयारी में हैं.
58,000 करोड़ रुपये की कोचिंग इंडस्ट्री ज़्यादातर अपने बनाए नियमों से चलती है, चाहे वे सरकारी आदेश के खिलाफ हों. शिक्षा मंत्रालय ने पिछले साल कहा था कि जो दिन पढ़ाई हुई है उसका पैसा काटकर बाकी फीस लौटानी चाहिए, लेकिन एलन, फिज़िक्स वाला और दृष्टि IAS जैसे बड़े नाम भी इस नियम का पालन नहीं करते. पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों को पूरी फीस भरनी पड़ती है.
पिछले कुछ सालों में ऐसी शिकायतें तेज़ी से बढ़ी हैं. 2023-24 में राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन को 16,276 शिकायतें मिलीं, ज्यादातर रिफंड को लेकर. फरवरी 2025 तक सरकार ने 600 से ज्यादा छात्रों को 1.56 करोड़ रुपये वापस दिलाए. अदालतें भी कई बार छात्रों के पक्ष में फैसला देती हैं, लेकिन निगरानी कमज़ोर है और ज्यादातर अभिभावक कानूनी लड़ाई से बचते हैं.
इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि बड़ी कोचिंग कंपनियों में यह समस्या ज़्यादा गंभीर है.
कोचिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष केशव अग्रवाल का कहना है कि बड़े संस्थान एडमिशन के समय ही ‘नो-रिफंड’ पर दस्तखत करवा लेते हैं, लेकिन अदालतें कई बार कह चुकी हैं कि यह उपभोक्ता अधिकारों के खिलाफ है. हर बैच में करीब 10% छात्र अलग-अलग कारणों से पढ़ाई छोड़ते हैं, फिर भी रिफंड नहीं मिलता. इन कंपनियों के पास बड़ी कानूनी टीमें होती हैं और अभिभावक केस करने से डर जाते हैं.
दिप्रिंट ने एलन और फ़िज़िक्स वाला से उनकी रिफंड पॉलिसी और सरकारी नियमों के पालन पर सवाल भेजे हैं। जवाब मिलने पर रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.
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रिफंड के लिए बार-बार चक्कर
एलन में नीट कोर्स जॉइन करने के सिर्फ एक हफ्ते बाद, 15 साल की देवेशी तनेजा ने अपने माता-पिता से कहा कि उन्हें कुछ ठीक नहीं लग रहा है. पिता मनीष तनेजा ने सोचा कि यह बस थोड़े दिन की बात होगी, लेकिन 45 क्लास लेने के बाद भी देवेशी रोज़ रोने लगीं और डर महसूस करने लगी. तब परिवार ने एडमिशन वापस लेने का फैसला किया और यहीं से मुश्किलें शुरू हुईं.
पिछले चार महीनों में तनेजा दंपत्ति ने ईमेल भेजे. सेंटर जाकर बात की, यहां तक कि अदालत के आदेश भी दिखाए, जिनमें कोचिंग संस्थानों को रिफंड देने का निर्देश था.

तनेजा ने संस्थान के आधिकारिक पते पर भेजे अपने पहले ईमेल में कहा, “हमने अपनी बेटी के स्कूल के साथ एलन के कार्यभार को संभालने की कोशिश की है, लेकिन यह हमारे लिए कारगर नहीं हो रहा है. हमने फैसला किया है कि हम उसका नामांकन वापस ले लेंगे. हमने कोर्स की शुरुआत में पूरी फीस जमा कर दी थी और अभी दो महीने ही हुए हैं, इसलिए हम पैसे वापस करने का अनुरोध करना चाहते हैं.”
लेकिन एलन से जवाब वही आया 30 दिन से ज़्यादा हो गए, अब रिफंड संभव नहीं है.
इंस्टिट्यूट से आए मेल में लिखा था, “बैच शुरू होने की तारीख से 30 दिनों के बाद, हम उस अनुरोध को स्वीकार नहीं कर सकते, जिसका उल्लेख हमारे प्रवेश फॉर्म और शुल्क रसीदों में भी है.”

बहुत कोशिशों के बाद भी जब पैसे नहीं लौटे, तो परिवार ने चेतावनी दी कि यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 का उल्लंघन है और वे कानूनी कार्रवाई करेंगे.
शिल्पी तनेजा के एक ईमेल में कहा गया, “मुझे लगता है कि आपकी मौजूदा रिफंड नीति एकतरफा है और पूरी फीस एकमुश्त चुकाने वाले छात्रों के लिए नुकसानदेह है. मैंने अपनी कानूनी टीम से इस बारे में बात की है और हम अपनी चिंता उपभोक्ता अदालत में ले जा सकते हैं.”
इसके बाद उन्हें कोई जवाब नहीं मिला और अब वे केस करने की तैयारी में हैं. फिलहाल, उन्होंने तय किया है कि बेटी का दाखिला किसी भी कोचिंग में नहीं कराएंगे.
मैंने कई कोचिंग संस्थानों में काम किया है, लेकिन कोई भी पैसा वापस नहीं करता. यह ऐसे ही चलता है
—महिंदर कुमार, फिजिक्स टीचर
राजस्थान, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, गुजरात तक — रिफंड न मिलने की शिकायतें पूरे देश से आती हैं.
लखनऊ के 16 साल के मोहम्मद इरफान ने अप्रैल 2024 में एलन में नीट की तैयारी शुरू की, लेकिन पढ़ाई की गुणवत्ता से नाखुश होकर तीन महीने बाद कोर्स छोड़ दिया. उन्होंने 1,21,000 रुपये वापस मांगे, लेकिन उन्हें भी वही जवाब मिला — रिफंड की अवधि खत्म हो चुकी है.
इरफान ने कानून का हवाला देते हुए लिखा कि अगर पढ़ाई वादे के मुताबिक नहीं है, तो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत रिफंड का अधिकार है.
इरफान ने भी संस्थान को भेजे एक ईमेल में कानून का हवाला दिया.

उन्होंने लिखा, “संस्थागत नीतियां भारतीय कानून के तहत किसी छात्र के वैधानिक अधिकारों का हनन नहीं कर सकतीं. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(11) के अनुसार, सेवा में कोई भी कमी, जिसमें अपर्याप्त शैक्षणिक प्रदर्शन या वादा किए गए मानकों से विचलन शामिल है, उपभोक्ता को रिफंड या उचित निवारण की मांग करने का अधिकार देती है.”
फिर भी, उन्हें पैसे नहीं लौटे और उन्होंने नीट की तैयारी रोक दी.
ऐसे मामले कई कोचिंग्स में होते हैं. दिल्ली की 18 साल की सुप्रिया शिखा ने 2024 में फिज़िक्स वाला का ऑनलाइन नीट कोर्स छोड़ा, 20,000 रुपये का नुकसान उठाया और अदालत में न जाने का फैसला किया.
ज़्यादातर कोचिंग्स अपनी वेबसाइट और एडमिशन फॉर्म में ‘नो रिफंड’ नियम लिखती हैं, जिनमें कड़ी समय सीमा होती है और आनुपातिक रिफंड (यानी जितने दिन पढ़ाई हुई, उसके हिसाब से पैसे काटना) का कोई ज़िक्र नहीं होता. कोचिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष केशव अग्रवाल ने कहा, “अगर सरकार ने आनुपातिक रिफंड का निर्देश दिया है, तो ये संस्थान मानते क्यों नहीं? यह पूरी तरह अवैध और अनैतिक है.”
तर्क
कोचिंग संस्थान अपनी सख्त नो-रिफंड नीति का बचाव यह कहकर करते हैं कि अगर छात्र बीच में पढ़ाई छोड़ देता है, तो उसकी सीट खाली हो जाती है. कभी पूरे साल के लिए, तो कभी पूरे कोर्स की अवधि के लिए, लेकिन उपभोक्ता अदालतें हमेशा इस तर्क को सही नहीं मानतीं.
2022 में चंडीगढ़ के एक मामले में, जिला उपभोक्ता आयोग ने फिटजी के इस दावे को खारिज कर दिया कि खाली सीट नहीं भरी जा सकती और इसलिए रिफंड नहीं दिया जाएगा. अदालत ने कहा कि शैक्षिक सेवाएं कोई जमीन-जायदाद नहीं हैं और जिन क्लासों में छात्र ने भाग ही नहीं लिया, उनका पैसा लेना “सेवा में कमी” और “गलत व्यापार तरीका” है. फिटजी को मामूली रजिस्ट्रेशन फीस काटकर 1.28 लाख रुपये लौटाने का आदेश दिया गया.

अदालत ने यह भी कहा कि एडमिशन फॉर्म पर “बहुत छोटे अक्षरों” में लिखे गए एकतरफा नियमों पर अभिभावक मजबूरी में ही साइन करते हैं और ये नियम छात्रों व परिवारों को कोई असली सुरक्षा नहीं देते.
सीएफआई के केशव अग्रवाल ने कहा, “कोचिंग संस्थान अक्सर अभिभावकों को यह कहकर बेवकूफ बनाते हैं कि एक बार सीट खाली हो गई तो वह सालों तक बेकार पड़ी रहती है, लेकिन हकीकत में, ये ज़रूरत से ज़्यादा बैच बनाते हैं, एक साथ कई बैच चलाते हैं और बैच के साइज पर कोई सख्ती नहीं होती. इनका बिज़नेस मॉडल ऐसा है कि ड्रॉपआउट छात्रों के बाद भी इन्हें कोई असली नुकसान नहीं होता. पैसे न लौटाना लॉजिस्टिक्स का मुद्दा नहीं, बल्कि मुनाफा कमाने का तरीका है.”
फिजिक्स वाला, फिटजी, एलन और विद्या मंदिर में पढ़ा चुके महिंदर कुमार बताते हैं कि हर बैच में रिफंड के अनुरोध आते हैं, लेकिन बहुत कम संस्थान आनुपातिक रिफंड (यानी जितनी क्लास ली, उसके हिसाब से पैसा काटना) देते हैं.
कुमार ने कहा, “मैंने कई कोचिंग में पढ़ाया है, लेकिन कोई भी पैसे नहीं लौटाता. यह ऐसे ही काम करते हैं.”
विद्या मंदिर एक अपवाद है, जो नीट और जेईई की तैयारी कराता है और ज्यादातर मामलों में ली गई क्लासों का पैसा काटकर बाकी फीस लौटा देता है.

विद्या मंदिर के फिजिक्स टीचर जितेंद्र कुमार ने कहा, “अगर समस्या मेडिकल, स्ट्रीम बदलने या ट्रांसफर की है, तो हम रिफंड देते हैं. मुझे नहीं लगता कोई और संस्थान ऐसा करता है.”
जनवरी 2024 में, शिक्षा मंत्रालय ने कोचिंग सेंटर्स में पारदर्शिता और जिम्मेदारी लाने के लिए नए नियम बनाए. इनमें शामिल थे 16 साल से कम या जिन छात्रों ने बोर्ड परीक्षा पास नहीं की, उन्हें एडमिशन न देना, गारंटीड रैंक जैसे झूठे वादों पर रोक, कोर्स डिटेल्स, टीचर्स के क्वालिफिकेशन, बिल्डिंग और सुविधाओं की जानकारी, रिफंड के नियम और आसान निकासी नीति को वेबसाइट और ब्रोशर पर साफ-साफ छापना.
इस साल, सिविल सर्विस, इंजीनियरिंग और अन्य कोर्स के 600 से ज़्यादा छात्रों ने नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन से रिफंड की शिकायत की. इसके बाद उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने फिर कहा कि “वैध रिफंड मांग को नकारने की गलत प्रथा बर्दाश्त नहीं होगी” और संस्थानों को उपभोक्ता अधिकारों का पालन करना चाहिए.
लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि असली समस्या नियमों की नहीं, बल्कि उन्हें लागू करने की है. जब तक रिफंड के नियम कानूनन ज़रूरी नहीं बनते और सिर्फ सलाह ही रहते हैं, तब तक छात्र निजी कोचिंग के रहमो-करम पर रहेंगे.
अग्रवाल ने कहा, “भारत की कोचिंग इंडस्ट्री बिना पक्की नीति के फल-फूल रही है. नियम हैं, लेकिन कोई उन्हें लागू नहीं कराता. ये सेंटर छात्रों को ग्राहक मानते हैं, लेकिन उन्हें ग्राहक जैसे अधिकार नहीं देते.”
दिल्ली की सुप्रिया शिखा आज भी उस पैसे के नुकसान से दुखी हैं, जो उनकी अकेली मां ने बचत और छोटे कर्ज़ से जोड़ा था.
उन्होंने कहा, “ये लोग बड़े-बड़े पीआर वीडियो बनाते हैं, गरीब बच्चों के घर जाते हैं, पढ़ाई का खर्च उठाते दिखते हैं, लेकिन सरकारी नियमों के मुताबिक रिफंड नहीं देते.”
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