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Sunday, 26 January, 2025
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वर्कलाइफ-बैलेंस vs पीएम मोदी मॉडल — L&T चेयरमैन की 90 घंटे काम वाली टिप्पणी से RSS-BJP में छिड़ी बहस

इस महीने की शुरुआत में, एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने कर्मचारियों को हफ्ते में 90 घंटे काम करने की सलाह दी, यहां तक ​​कि रविवार को भी काम करने का सुझाव दिया. उन्होंने पूछा, ‘आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक निहार सकते हैं?’

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नई दिल्ली: इस महीने की शुरुआत में एलएंडटी के चेयरमैन एस.एन. सुब्रह्मण्यन ने हफ्ते में 90 घंटे काम करने के प्रस्ताव ने वर्क-लाइफ बैलेंस के सवाल पर भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ संगठनात्मक भूलभुलैया के भीतर विभाजन को उजागर कर दिया है.

आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) और दत्तोपंत ठेंगड़ी फाउंडेशन (डीटीएफ) ने सुब्रह्मण्यन के बयान की आलोचना की है और “श्रमिकों की कब्रगाह पर औद्योगिक किस्मत बनाने” की निंदा की है.

हालांकि, भाजपा-आरएसएस में कई लोग पीएम मोदी की “चार घंटे की नींद” का उदाहरण देते हैं, जो एक “काम के प्रति जुनूनी” राष्ट्र का समर्थन करते हैं, जो उनके अनुसार, तेज़ी से आर्थिक विकास हासिल कर सकता है.

इस साल 9 जनवरी को, सुब्रह्मण्यन ने कर्मचारियों को हर हफ्ते 90 घंटे काम करने की सलाह देते हुए कहा, “आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक निहार सकते हैं?”उनके सुझाव कि कर्मचारी रविवार को भी काम करें, ने एक तीखी बहस छेड़ दी है.

इससे पहले, इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने 70 घंटे के वर्कवीक का प्रस्ताव रखा था.

RSS से जुड़े लोगों ने क्या कहा

ऑर्गनाइज़र में एक लेख में सी.के. साजी नारायणन ने लिखा कि 90 घंटे का वर्किंगवीक “लाइफ की क्वालिटी और मानवीय गरिमा के सिद्धांत का खंडन करता है” और ‘वर्कहॉलिक’ की कैटेगरी में अत्यधिक काम करने को आदर्श बनाना एक “अस्वस्थ मानसिक जुनून है जिसे ओसीडी (ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर) कहा जाता है”.

नारायणन ने लिखा, “कुछ शीर्ष व्यवसाय प्रबंधक और सीईओ जुनूनी हो सकते हैं, लेकिन समस्या तब आती है जब वह दूसरों को भी असामान्यता का पालन करने के लिए मजबूर करते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) लंबे समय तक काम करने को एक व्यावसायिक जोखिम कारक मानते हैं जो बीमारियों या समय से पहले मृत्यु का कारण बनता है. व्यावसायिक नेताओं को श्रमिकों को इंसान समझना चाहिए, न कि बड़ी मशीन का दांत.”

2019 के गोदरेज इंटेरियो सर्वेक्षण का हवाला देते हुए, जिसमें दिखाया गया था कि भारत में 64 प्रतिशत प्रोफेशनल काम के दबाव के कारण अपने परिवार के साथ पर्याप्त समय नहीं बिता पाते हैं, नारायणन ने आगे लिखा, “मज़दूर अपनी आजीविका कमाने के लिए कड़ी मेहनत करता है और कंपनी उसके श्रम से मुनाफा कमाती है. कर्मचारी अपनी ज़िंदगी और अपने परिवार को बनाए रखना चाहते हैं. उनके पास अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सपने हैं.”

उन्होंने तर्क दिया कि जापान में G7 देशों में सबसे ज़्यादा काम के घंटे हैं, लेकिन प्रोडक्टिविटी के मामले में यह अमेरिका और यूरोप से पीछे है और चीन के 996 काम के घंटे — सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक, हफ्ते में 6 दिन — ने 2019 में आधुनिक दासता के खिलाफ सबसे बड़े ऑनलाइन विरोध प्रदर्शनों में से एक को जन्म दिया.

भारत ने “आठ घंटे काम करने के वैज्ञानिक विचार को कैसे बनाए रखा” इस पर उन्होंने कहा, “डॉ. अंबेडकर ने 1942 में आयोजित 7वें भारतीय श्रम सम्मेलन में भारत के लिए आठ घंटे काम करने की घोषणा की थी.”

आरएसएस से जुड़े एक अन्य संगठन डीटीएफ ने सुब्रह्मण्यन और मूर्ति की लंबे समय तक काम करने की वकालत की निंदा की, जिससे श्रमिकों के कल्याण और वर्क-लाइफ बैलेंस पर चिंताएं बढ़ गईं.

डीटीएफ के एक बयान में कहा गया, “यह चिंताजनक है कि एक व्यक्ति जो कंपनी के औसत कर्मचारी से 500 गुना अधिक सैलरी लेता है, वे ऐसे उपायों का प्रस्ताव देगा जो वर्कफोर्स पर असंगत रूप से बोझ डालेंगे. आय और विशेषाधिकार में इस तरह की असमानता को न्यायसंगत और मानवीय कार्य स्थितियों को सुनिश्चित करने की दिशा में अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए, न कि इसके विपरीत.”

इसमें कहा गया, “अत्यधिक कार्य सप्ताह प्रस्तावों के बजाय, उद्योग के नेताओं को उत्पादकता, न्यायसंगत धन वितरण और सभी हितधारकों के लिए संतुलित जीवन की गुणवत्ता को बढ़ावा देने वाली नीतियों में नवाचारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.”

दिप्रिंट से बात करते हुए, डीटीएफ के विरजेश उपाध्याय ने कहा, “अगर ऐसी सलाह को शामिल किया जाता है, तो श्रमिक पालन-पोषण और मातृत्व की अपनी अन्य जिम्मेदारियों को कैसे पूरा करेंगे? एक इंसान एक व्यक्तिगत इकाई नहीं है. वह समाज का एक हिस्सा है. अगर किसी व्यक्ति के पास अपनी नौकरी के अलावा अन्य जिम्मेदारियों के लिए समय नहीं है तो समाज कैसे काम करेगा?”

उन्होंने कहा, “एक व्यक्ति अपने और अपने परिवार के कल्याण के लिए काम करता है. आरएसएस के हमारे पारिवारिक ढांचे में, हम हमेशा कुटुंब प्रबोधन की बात करते हैं. अगर काम के ज़्यादा घंटों के इस विचार को जगह दी जाती है, तो इससे परिवार और समाज की पूरी भलाई प्रभावित होगी.”

भाजपा नेताओं ने क्या कहा

आरएसएस के दृष्टिकोण के विपरीत, भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद और पंचजन्य के पूर्व संपादक तरुण विजय ने एलएंडटी के चेयरमैन का पक्ष लेते हुए मोदी को ‘कर्म योगी’ और सच्चा रोल मॉडल बताया है, जो अपने जीवन में एक भी दिन की छुट्टी नहीं लेने के बावजूद उदाहरण पेश कर रहे हैं.

तरुण विजय ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने छुट्टियों को “औपनिवेशिक हैंगओवर” बताया और कहा कि “छुट्टियों के भोगी” देश के लिए आदर्श नहीं हैं. दूसरी ओर, विजय ने कहा कि मोदी लंबी और थकाऊ उड़ानों में भी काम करते थे.

यह दावा करते हुए कि “भगवद गीता से लेकर संविधान तक, छुट्टियों को कभी भी अधिकार या देश की वर्क कल्चर का अनिवार्य हिस्सा नहीं माना गया है”, उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “अर्थव्यवस्था को उस स्तर तक बढ़ने दें जहां गरीबी पूरी तरह से खत्म हो जाए. काम के घंटे जीवन के मानकों के अनुसार समायोजित किए जाएंगे. तब तक ‘आराम हराम है’.”

हालांकि, भाजपा के कई नेताओं को नहीं लगता कि अत्यधिक काम के घंटे राष्ट्र निर्माण या देश के तेज़ विकास में मदद करेंगे.

पूर्व राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज, जिन्होंने कई वर्षों तक भाजपा के बौद्धिक प्रकोष्ठ का नेतृत्व किया और पार्टी की वैचारिक स्थिति को रेखांकित किया, ने दिप्रिंट से कहा, “काम और ज़िंदगी के बीच संतुलन होना चाहिए. एक ही तरह का फॉर्मूला काम नहीं कर सकता. अगर आप ज़्यादा घंटे काम करते हैं, तो आप ज़िंदगी के दूसरे पहलुओं से समझौता करेंगे. इससे नतीजे नहीं मिलते, बल्कि घटते प्रतिफल का नियम लागू होने लगता है.”

हालांकि, भाजपा ने हमेशा मोदी को बिना ब्रेक लिए काम करने वाले के रूप में पेश किया है और उनकी तुलना राहुल गांधी से की है.

पिछले साल कर्नाटक में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने एक रैली में कहा था, “पीएम मोदी शायद दुनिया के एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं, जो 23 साल तक मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहे और उन्होंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली. उन्होंने हमेशा भारत के लिए काम किया और एक भी छुट्टी नहीं ली. दूसरी ओर, राहुल बाबा गर्मी शुरू होते ही विदेश चले जाते हैं.”

प्रधानमंत्री ने इंटरव्यू में यह भी कहा है कि वे दिन में केवल तीन से चार घंटे सोते हैं और काम से छुट्टी नहीं लेते हैं.

मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान, तत्कालीन विदेश सचिव एस. जयशंकर ने देर रात काम के दौरान झपकी लेने के लिए साउथ ब्लॉक कार्यालय में एक दीवान स्थापित किया था और मोदी की आधिकारिक कोर टीम के साथ-साथ नौकरशाही ने पूरे वीकेंड काम करना शुरू कर दिया था.

2023 में थाईलैंड में भारतीय समुदाय के साथ बातचीत करते हुए, जयशंकर ने मोदी के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा, “अब, मंत्रियों के लिए वीकेंड पर भी कोई राहत नहीं है.”

मोदी के तहत काम करने की यह शैली एलएंडटी के चेयरमैन के बयान से मेल खाती है, लेकिन पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा कि सरकार का ध्यान “कार्यालयों में अधिक समय बिताने के बजाय प्रोडक्टिविटी और स्मार्ट वर्किंग पर ज्यादा है”.

मोदी सरकार के एक मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पीएम चाहते हैं कि मंत्री कार्यालय से काम करें, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है और उन्होंने घर से काम करने वालों की उपेक्षा नहीं की. उन्होंने कहा कि नितिन गडकरी से लेकर पीयूष गोयल और शिवराज सिंह चौहान जैसे कई वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ज़रूरत पड़ने पर घर से ही काम करते हैं.

मोदी और उनके प्रमुख मंत्री भी शायद ही कभी “छुट्टियों पर जाते हैं”, ज्यादातर खेल गतिविधि, योग, सामुदायिक सेवा और त्योहारों या पारिवारिक कार्यक्रमों में व्यस्त रहते हैं. हर साल, अमित शाह पतंगबाजी समारोह में भाग लेने के लिए गुजरात जाते हैं और मोदी नियमित योग करते हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के दौर में काम करने वाले पुराने लोगों ने याद किया कि अटल बिहारी वाजपेयी वर्क-लाइफ बैलेंस और छुट्टियों पर जाने के बारे में बहुत खास थे, जबकि उन्हें पता था कि इसे राजनीति के लिए बुरा माना जा सकता है.

उनके सहयोगी सुधींद्र कुलकर्णी, जो केरल के कुमारकोम में अपनी छुट्टियों के दौरान वाजपेयी के साथ थे, ने कहा, “यह एक नई सहस्राब्दी की शुरुआत थी. वाजपेयी ने शांत वेम्बनाड झील के किनारे कुमारकोम में पांच दिन बिताए.”

वाजपेयी के एक अन्य पूर्व सहयोगी ने कहा, “हर बार वाजपेयी गर्मियों की छुट्टियों के लिए मनाली के एक गांव में जाते थे और उन्हें ट्राउट मछली बहुत पसंद थी. छुट्टियों के दौरान, ग्रामीण लोग बिना किसी परेशानी के वाजपेयी से संपर्क कर सकते थे.”

आडवाणी को फुर्सत के पल बहुत पसंद थे. उनके एक पूर्व सहयोगी ने कहा, “कई नए और पुराने निर्देशक और निर्माता दिल्ली के महादेव ऑडिटोरियम में आडवाणी, उनके परिवार, उनके करीबी दोस्तों और पार्टी के सहयोगियों के लिए अपनी फिल्में दिखाते थे. प्रचार फिल्में नहीं, बल्कि व्यावसायिक स्वतंत्र फिल्में. आडवाणी शांत समय में किताबें पढ़ते भी थे.”

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गुरुप्रकाश ने कहा, “जो प्रचारक होते हैं, वे संगठनात्मक कार्यों में अधिक समय बिताते हैं, लेकिन जो लोग पारिवारिक जीवन से बंधे होते हैं, उन्हें वर्क-लाइफ बैलेंस बनाए रखने के लिए संगठनात्मक कार्य और पारिवारिक जीवन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को संतुलित करना पड़ता है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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