scorecardresearch
Sunday, 6 October, 2024
होमदेशबंदरों को खाना देना पशु कल्याण नहीं, इससे मानव के साथ संघर्ष बढ़ता है : दिल्ली उच्च न्यायालय

बंदरों को खाना देना पशु कल्याण नहीं, इससे मानव के साथ संघर्ष बढ़ता है : दिल्ली उच्च न्यायालय

Text Size:

नयी दिल्ली, चार अक्टूबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने नगर निकायों को कहा कि उन्हें जन जागरूकता अभियान चला कर लोगों को बताना चाहिए कि शहर में बंदरों को खाना खिलाने से कैसे उन्हें लाभ नहीं होगा बल्कि बंदरों का लोगों से संघर्ष होगा।

अदालत ने 30 सितंबर को दिये आदेश में अधिकारियों को बंदरों की समस्या का समाधान करने के लिए कार्यक्रम तैयार कर उसे लागू करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि लोगों को खुले में खाना छोड़ने के नतीजों के बारे में जागरूक करना चाहिए क्योंकि यह बंदरों को आकर्षित करता है।

अदालत ने टिप्पणी की कि जंगलों में बंदर पेड़ों पर रहते हैं और जामुन, फल ​​और डंठल खाते हैं। अदालत ने कहा कि उसका मानना ​​है कि दिल्ली के नागरिकों में अपना व्यवहार बदलने का ‘‘सहज विवेक’’ है अगर यह अहसास हो जाए कि ‘‘जंगली जानवरों को खाना खिलाना न केवल जानवरों के कल्याण के लिए बल्कि मानव कल्याण के लिए भी हानिकारक है।’’

मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने आदेश में कहा, ‘‘आश्चर्य होता है कि आखिर बंदरों को सड़कों और फुटपाथों पर क्यों आना पड़ा? इसका जवाब है मनुष्य। हम ही हैं जिन्होंने बंदरों को खाना खिलाकर उन्हें उनके प्राकृतिक आवास से बाहर निकाला है। बंदरों को ब्रेड, रोटी और केले देने से उन्हें नुकसान पहुंचता है और वे लोगों के साथ संघर्ष में शामिल हो जाते हैं।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘इस स्थिति को सुधारने के लिए, नगर निकायों को एक साल तक जन जागरूकता अभियान चलाना चाहिए, ताकि लोगों को बताया जा सके कि उनके भोजन देने से बंदरों को कोई लाभ नहीं हो रहा है। वास्तव में, भोजन से बंदरों को विभिन्न तरीकों से नुकसान पहुंचता है, क्योंकि इससे उनकी मनुष्यों पर निर्भरता बढ़ती है और जंगली जानवरों और मनुष्यों के बीच प्राकृतिक दूरी कम हो जाती है।’’

अदालत ने रेखांकित किया कि अगर दिल्ली की जनता सुरक्षित रहना चाहती है तो उसे कचरा प्रबंधन अंगीकार करना होगा और इधर-उधर खाना नहीं फेंकना होगा।

पीठ ने कहा, ‘‘ सार्वजनिक उद्यानों में, खाने-पीने की दुकानों, ढाबा और कैंटीन के पास खुले में कचरा फेंकने से बंदरों की आबादी आकर्षित होती है, मानव-पशु संघर्ष बढ़ता है…इस पहलु को जन जागरूकता अभियान के दौरान उजागर करने की जरूरत है।’’

आदेश में अदालत ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और नयी दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि बंदरों को सार्वजनिक उद्यानों, अस्पतालों, सरकारी कार्यालयों और आवासीय क्षेत्रों से हटाकर असोला-भाटी वन्यजीव अभयारण्य में पुनर्वासित किया जाए।

भाषा धीरज अविनाश

अविनाश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments