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Tuesday, 17 December, 2024
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हरियाणा अपनी कोचिंग इंडस्ट्री पर नकेल कस रहा है, क्या नया ऐक्ट स्ट्रेस और झूठे वादों से निपट पाएगा?

यह अधिनियम गलत तौर-तरीके अपनाने वाले, रात-रात भर चलने वाले कोचिंग सेंटरों और बढ़ती छात्र आत्महत्याओं से ग्रस्त क्षेत्र में एक स्वागत योग्य और बहुत जरूरी कदम है.

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करनाल: हरियाणा के करनाल के सेक्टर 12 में बाजार की एक व्यस्त सड़क पर, अपने नोट्स को हाथों में लिए हुए और मॉक टेस्ट के बारे में चर्चा करते हुए छात्र सफलता की गारंटी देने वाले होर्डिंग वाले कोचिंग क्लासेज़, करियर काउंसिलिंग सेंटर्स और विदेश में पढ़ाई के लिए कंसल्टेंसी के नीचे एकत्र हैं. एक बिलबोर्ड पर लिखा है, ‘अपनी मंजिल का दरवाजा खोलो’, अपनी जगह बनाने की जद्दोजहद में दूसरा बिलबोर्ड उन्हें डॉक्टर बनाने का वादा कर रहा है- ‘आपकी तैयारी आपका परिणाम निर्धारित करती है…डॉक्टर बनने की दिशा में पहला कदम उठाएं,’. अब, हरियाणा सरकार कोचिंग उद्योग क्षेत्र को रेग्युलेट करना चाहती है, गलत तौर-तरीकों पर रोक लगाना चाहती है, झूठे वादों पर लगाम लगाना चाहती है और उन छात्रों के तनाव को कम करना चाहती है जो काल्पनिक सपनों का पीछा करने में अपनी जिंदगी के सालों और लाखों रुपये बर्बाद कर देते हैं.

28 फरवरी को राज्य विधानसभा में पारित किया गया नया हरियाणा पंजीकरण और निजी कोचिंग संस्थानों का विनियमन अधिनियम 2024, सरकार को छात्रों और अभिभावकों से अपना वादा पूरा करने का अधिकार देगा. कोचिंग संस्थानों को अब असंभव सपनों को बेचने की इजाज़त नहीं दी जाएगी.

हालांकि, हरियाणा ऐसी पहल करने वाला पहला राज्य नहीं है. उत्तर प्रदेश, मणिपुर और बिहार में भी निजी कोचिंग संस्थानों को विनियमित करने के लिए अधिनियम हैं. राजस्थान ने भी राज्य के कोचिंग उद्योग को नियंत्रण में रखने के लिए एक विधेयक पेश किया, लेकिन यह अभी भी ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है.

विधेयक के मसौदे में उच्च शिक्षा मंत्री मूलचंद शर्मा ने कहा, ”ऐसा महसूस किया गया है कि हरियाणा में निजी कोचिंग संस्थानों के पंजीकरण और विनियमन के लिए एक कानून लाने की जरूरत है ताकि छात्रों और उनके अभिभावकों के हितों की रक्षा की जा सके.”

A coaching centre in Karnal, Haryana | Almina Khatoon, ThePrint
करनाल, हरियाणा में एक कोचिंग सेंटर | अलमीना खातून, दिप्रिंट

एक बार यह अधिनियम कानून बन जाता है, तो निजी कोचिंग संस्थानों को अपनी फीस संरचना, जिन छात्रों का एडमिशन किया गया है उनकी डीटेल्स देनी होंगी और लड़कों व लड़कियों के लिए अलग-अलग वॉशरूम सहित उचित बुनियादी सुविधाएं प्रदान करनी होंगी और मानसिक स्वास्थ्य जैसी जरूरतों के मद्देनज़र कम से कम एक पूर्णकालिक परामर्शदाता नियुक्त करना होगा. जो संस्थान इसका पालन करने में विफल रहेंगे, उन्हें पहली बार इसका उल्लंघन करने पर 25,000 रुपये और बाद में 1 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा.

परिवारों के लिए, जिनमें से कई लोग फीस का भुगतान करने के लिए ऋण लेते हैं, यह अधिनियम गलत तौर-तरीकों का इस्तेमाल करने वाले, रात-रात भर चलने वाले कोचिंग सेंटरों और बढ़ती छात्र आत्महत्याओं से ग्रस्त क्षेत्र में एक स्वागत योग्य और बहुत जरूरी कदम है.

कई प्रतियोगी परीक्षाओं में से एक के लिए अध्ययन कर रहे एक छात्र के पिता आशुतोष गुप्ता ने कहा, “माता-पिता इन कोचिंग सेंटरों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता के बारे में भी नहीं जानते हैं.”

“कोचिंग सेंटर हमारे साथ सब कुछ साझा नहीं करते हैं. अगर सरकार इन पर नजर रखे तो यहां शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और कोचिंग सेंटरों की मनमानी भी खत्म हो जाएगी.’


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प्रतिस्पर्धा और तनाव

करनाल के सेक्टर 6 में शांत और लगभग सुनसान मुख्य बाजार की सड़क पर जैसे ही छात्र अपने दोपहर के भोजन के अवकाश के लिए कोचिंग संस्थानों से बाहर निकलते हैं वैसे ही काफी शोरगुल वाला माहौल हो जाता है. उनमें से अधिकांश नए अधिनियम पर चर्चा करने के लिए मॉक टेस्ट की तैयारी में बहुत व्यस्त हैं और इसका उनके लिए क्या अर्थ होगा.

17 साल की ख़ुशी अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को लेकर अधिक चिंतित है. जब वह पिछले साल NEET (राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा) में सफल नहीं हो पाई तो उन्होंने अपने माता-पिता को काफी निराश कर दिया अब वह फिर से कोशिश में जुटी हुई हैं. छात्रों के लिए, यह अपने करियर, माता-पिता और नंबरों की चिंता से जूझने जैसा है. सभी को इस बात की चिंता रहती है कि अगर वे दोबारा फेल हुए तो उनके माता-पिता क्या कहेंगे.

17 वर्षीय पार्थ शर्मा, जो डॉक्टर बनना चाहते हैं, कहते हैं, “प्रतियोगिता हमें पढ़ाई से ज़्यादा तनाव देती है. हमारे माता-पिता हमारी शिक्षा के लिए काफी खर्च करते हैं, इसलिए जब भी मैं अपने परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता, तो यह मेरे लिए तनावपूर्ण हो जाता है,”

यह करियर है उसके लिए उसके माता-पिता ने चुना है; वह संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) परीक्षा देना चाहता है. उनका कहना है, “मेरे पिता ने मुझे NEET देने के लिए मजबूर किया है. मैं इस परीक्षा में दो बार असफल हो चुका हूं.”

हर साल, लाखों छात्र जो निजी मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज की फीस का भुगतान नहीं कर सकते, वे जेईई (संयुक्त प्रवेश परीक्षा) और एनईईटी जैसी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में बैठते हैं. अन्य लोग भारत की सिविल सेवाओं में शामिल होने के लिए यूपीएससी की तैयारी में वर्षों बिताते हैं. अकेले 2023 में, लगभग 13 लाख उम्मीदवार यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा में शामिल हुए. यह सभी 1,255 पदों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे. इसके अलावा कुछ बड़ी परीक्षाएं हैं- CLAT (कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट) / लॉ CUET (कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट), BBA (बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन), SSC (कर्मचारी चयन आयोग), और CTET (सेंट्रल टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट) हैं.

पानीपत में आईसीएस कोचिंग सेंटर से बाहर निकलते हुए 19 वर्षीय पूजा कहती हैं, “मैंने सरकारी नौकरी के लिए दो परीक्षाएं दीं लेकिन असफल रही. अब मैं अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस संस्थान से जुड़ गई हूं. मैं इतिहास, अंग्रेजी और गणित का अध्ययन करने आई थी,”

पूजा को उम्मीद है कि जब वह तीसरी बार परीक्षा देंगी तो इससे उन्हें बढ़त मिलेगी.

Students continue to attend coaching classes despite repeated failure, often under parental pressure | Almina Khatoon, ThePrint
छात्र बार-बार असफल होने के बावजूद अक्सर माता-पिता के दबाव में कोचिंग कक्षाओं में भाग लेना जारी रखते हैं | अलमीना खातून, दिप्रिंट

छात्रों की आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या, विशेष रूप से भारत के कोचिंग केंद्र कोटा में और आग लगने की घटनाओं व खराब बुनियादी ढांचे की शिकायतों के साथ, यह क्षेत्र जांच के दायरे में आ गया है. इस साल जनवरी में, केंद्र सरकार ने कोचिंग सेंटरों को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए. कई उपायों के बीच, दिशानिर्देशों में कहा गया है कि संस्थान 16 वर्ष से कम उम्र के छात्रों का नामांकन नहीं कर सकते, झूठे वादे नहीं कर सकते या अच्छे अंकों की गारंटी नहीं दे सकते. दिशानिर्देश राज्य सरकारों पर कोचिंग इंडस्ट्री पर नियंत्रण रखने और उसे विनियमित करने की जिम्मेदारी भी डालते हैं.

31 जुलाई 2023 को लिखे एक पत्र में, आईएएस अधिकारी केके पाठक ने सभी जिला मजिस्ट्रेटों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि बिहार में कोचिंग संस्थान स्कूल के समय (सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक) के दौरान संचालित न हों, उन्होंने निजी कोचिंग संस्थानों को नियंत्रित और विनियमित करने के लिए बनाए गए राज्य कानून का हवाला दिया. उन्होंने कहा, “आप जानते हैं कि बिहार कोचिंग संस्थान (कोचिंग और विनियमन) अधिनियम, 2020 जैसा कानून मौजूद है. लेकिन अब तक इस कानून के तहत कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है.”

अनियमितताओं से लड़ना

अगर छात्र प्रतिस्पर्धा और माता-पिता की अपेक्षाओं से चिंतित हैं, तो माता-पिता फीस को लेकर चिंतित हैं. राज्य सरकार का कार्यक्रम यूपी मुख्यमंत्री अभ्युदय योजना जो कि नीट, जेईई व यूपीएससी वगैरह के लि मुफ्त गाइडेंस देता है उसके जिला समन्वयक दीपांशु सिंह ने कहा, “उच्च फीस हमेशा बच्चों और अभिभावकों के लिए एक बड़ी समस्या रही है. फीस भरना ही उनकी एकमात्र समस्या नहीं है; अधिकांश कोचिंग सेंटर केवल नकद में फीस स्वीकार करते हैं, जो इस इंडस्ट्री की सबसे बड़ी कमियों में से एक है. और अगर कोई बाहरी छात्र तैयारी के लिए आता है, तो ये पेइंग गेस्ट (पीजी) आवास भी उन्हें लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं”

Students line up for coaching classes in Karnal | Almina Khatoon, ThePrint
करनाल में कोचिंग कक्षाओं के लिए कतार में लगे छात्र | अलमिना खातून, दिप्रिंट

कोचिंग इंडस्ट्री के तीव्र विकास ने कई अनियमितताएं पैदा की हैं. शुरुआत में छात्रों को प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था के लिए तैयार करने के लिए डिज़ाइन किए गए कोचिंग सेंटरों ने आपस में प्रतिस्पर्धा करना शुरू कर दिया है. दिल्ली के राजेंद्र नगर में यूपीएससी कोचिंग सेंटर में पढ़ाने वाले रंगनाथन एसवीएन कोंडाला के अनुसार, इस आंतरिक प्रतिस्पर्धा ने छात्रों को वस्तुओं में बदल दिया है, अंततः उन्हें प्राप्त होने वाली शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ा है.

सिंह के अनुसार, ये कोचिंग सेंटर प्रवेश प्रक्रिया के दौरान बड़े, काल्पनिक वादे करते हैं. वे रिफंड जैसे महत्वपूर्ण डीटेल्स को छुपाते हुए छात्रों और अभिभावकों के अंदर अनावश्यक उम्मीद जताते हैं.

उन्होंने जोर देकर कहा, “मैं इस इंडस्ट्री से 10 साल से अधिक समय से जुड़ा हुआ हूं और ये कोचिंग संस्थान कभी भी रिफंड के लिए नियम और शर्तें स्पष्ट नहीं करते हैं. वे छात्रों को कभी भी किसी प्रकार का रिफंड नहीं देते हैं. यहां तक कि बड़े और प्रसिद्ध संस्थानों में भी नहीं.”

लेकिन हाई फी स्ट्रक्चर इस क्षेत्र की एकमात्र समस्या नहीं हैं. पढ़ाने का खराब तरीका और बुनियादी ढांचा भी समान रूप से समस्याग्रस्त हैं. सिंह ने कहा, कोचिंग सेंटर सरकार द्वारा जमीनी स्तर की जांच और निगरानी की कमी का फायदा उठाते हैं. हालांकि इनमें से कई केंद्रों में सरकारी नियमों के अनुरूप सलाहकार और काउंसलर हैं, लेकिन उनमें अक्सर उचित योग्यता का अभाव होता है.

Coaching centres often advertise their topper count, increasing performance pressure on aspirants | Almina Khatoon, ThePrint
कोचिंग सेंटर अक्सर अपने टॉपर्स के बारे में विज्ञापन देते हैं, जिससे उम्मीदवारों पर बेहतर परफॉर्म करने का दबाव बढ़ जाता है अलमिना खातून, दिप्रिंट

सिंह ने यह भी खुलासा किया कि कैसे कोचिंग सेंटर अक्सर अपने टॉपर्स की गिनती का विज्ञापन करते हैं, जिससे उम्मीदवारों पर प्रदर्शन का दबाव बढ़ जाता है. कुछ शीर्ष उपलब्धि हासिल करने वाले जो महत्वपूर्ण आधिकारिक पदों पर हैं, वे कोचिंग सेंटर के विज्ञापनों के लिए अपने नाम का उपयोग करने के लिए सरकारी डीओपीटी (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) से अनुमति लेते हैं.

अधिकांश केंद्र अच्छे बुनियादी ढांचे की पेशकश भी नहीं करते हैं. पैसे की तंगी के कारण छात्र छोटे कोचिंग संस्थानों का रुख करते हैं, जहां न तो बैठने की उचित जगह होती है और न ही वेंटिलेशन की. सिंह ने कहा, “ये संस्थान एक कमरे में 50 से 100 छात्रों को बैठाते हैं, जहां संकरी गलियों के अलावा उनके पास कोई आपातकालीन निकास (इमरजेंसी एक्ज़िट) भी नहीं है.”

माता-पिता अपने बच्चों के लिए ‘उज्ज्वल भविष्य’ सुनिश्चित करने के लिए कोचिंग कक्षाओं पर भरोसा करते रहते हैं. करनाल में जेईई अभ्यर्थी की मां मीनू व्यास का कहना है कि उनके जैसे माता-पिता के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है. “हर क्षेत्र में बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा है. हमारे जैसे कम पढ़े-लिखे माता-पिता कोचिंग सेंटरों का रुख करते हैं क्योंकि वे हमारे बच्चों को उनकी पढ़ाई में मदद कर सकते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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