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Saturday, 4 May, 2024
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शेख शाहजहां ने ED बनाम बंगाल पुलिस की लड़ाई शुरू की, लेकिन टीएमसी vs बीजेपी उनकी किस्मत का फैसला करेगी

ईडी अधिकारियों पर हमले के बाद संदेशखाली से शेख शाहजहां के भागने से टीएमसी बनाम बीजेपी युद्ध छिड़ गया. अब लगभग दो महीने बाद उनकी गिरफ्तारी ने हिरासत की लड़ाई शुरू कर दी है.

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नई दिल्ली: 55 दिनों तक फरार रहने के बाद पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कद्दावर नेता शेख शाहजहां की गिरफ्तारी संदेशखाली गाथा का अंत नहीं है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मुताबिक, शाहजहां को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को सौंपने के बजाय 10 दिनों की रिमांड देना उन्हें “कानूनी सुरक्षा” प्रदान करने का एक तरीका है.

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि ज़मीन हड़पने, जबरन वसूली और यौन हिंसा के आरोपी नेता टीएमसी के “धर्मनिरपेक्ष संरक्षण” से राज्य पुलिस के “कानूनी सुरक्षा” में चले गए हैं.

केंद्रीय एजेंसी, जिसके अधिकारियों पर जनवरी में एक घर पर छापेमारी के दौरान शाहजहां के समर्थकों ने हमला किया था, को यह भी डर है कि अगर टीएमसी नेता को लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रहने की अनुमति दी गई तो सबूतों से छेड़छाड़ की जाएगी. यही कारण है कि गिरफ्तारी के कुछ ही घंटों के भीतर ईडी ने कलकत्ता हाई कोर्ट का रुख किया और मामले को केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) को स्थानांतरित करने के लिए तत्काल सुनवाई का आग्रह किया.

उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली की दलित और आदिवासी महिलाओं द्वारा विरोध प्रदर्शन शुरू करने से लेकर, केंद्रीय एजेंसियों से बचने, लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी-टीएमसी के बीच खींचतान और अब एजेंसी-पुलिस कानूनी लड़ाई शुरू करने तक, शेख शाहजहां ने लगातार सुर्खियां बटोरी हैं और यही कारण है कि वे दिप्रिंट के इस हफ्ते के न्यूज़मेकर हैं.


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पुलिस बनाम ईडी

हालांकि, गिरफ्तारी से शाहजहां को ईडी से कुछ समय की राहत मिलती है, लेकिन पुलिस उन्हें लंबे समय तक बचा नहीं सकती है — 15 दिन की देरी अधिकतम होने की संभावना है.

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पुलिस ने 10 दिनों के लिए हिरासत सुरक्षित कर ली है और पांच दिन की हिरासत बढ़ाने का अनुरोध कर सकती है, लेकिन उसके बाद शाहजहां को ईडी का सामना करना होगा, जबकि ममता बनर्जी सरकार द्वारा ‘सामान्य सहमति’ वापस लेने के कारण सीबीआई छापेमारी और गिरफ्तारी के लिए पश्चिम बंगाल में प्रवेश नहीं कर सकती है, लेकिन ईडी को ऐसी सीमाओं का सामना नहीं करना पड़ता है.

ईडी के अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “आपराधिक मामले में पुलिस रिमांड केवल 15 दिनों तक ही बढ़ाया जा सकता है. यह स्पष्ट रूप से (पश्चिम बंगाल) पुलिस द्वारा समय निकालने और उसे सुरक्षित रखने की एक रणनीति है, लेकिन उनकी रिमांड खत्म होने के बाद, हम अदालत का रुख करेंगे और उनकी हिरासत लेंगे.”

लेकिन ईडी तब तक चैन से नहीं बैठ सकती जब तक उसे शाहजहां की हिरासत नहीं मिल जाती. ऐसा इसलिए क्योंकि पश्चिम बंगाल पुलिस एक नया मामला दर्ज कर सकती है और टीएमसी के मजबूत नेता को फिर से गिरफ्तार कर सकती है, जिससे 15 दिन की गिनती फिर से हो जाएगी. इस तरह, पुलिस संभावित रूप से राज्य में उनके लंबे समय तक रहने की व्यवस्था कर सकती है.

अधिकारी ने कहा, “अदालतों को हस्तक्षेप करना होगा. यह स्पष्ट रूप से राजनीतिक है और राज्य शाहजहां की रक्षा कर रहा है. हमने देखा है कि कैसे पुलिस ने उन्हें 55 दिनों तक गिरफ्तार नहीं किया. अब, अगर वे राज्य पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए हैं, तो उनके पास सभी सुविधाएं होंगी और हमें डर है कि वे सबूतों के साथ छेड़छाड़ करेंगे.” उन्होंने कहा, एजेंसी निश्चित है कि “पुलिस उन्हें वहां हिरासत में रखने की पूरी कोशिश करेगी, ताकि हमें उनकी रिमांड न मिले.”

5 जनवरी को ईडी की एक टीम राज्य के सार्वजनिक वितरण घोटाले में कथित अनियमितताओं की जांच के सिलसिले में शाहजहां के घर पर छापा मारने के लिए संदेशखाली गई थी, लेकिन शाहजहां के समर्थकों ने टीम पर हमला कर दिया, जिससे तीन अधिकारी घायल हो गए, जबकि शाहजहां को भागने में मदद मिली.

8 फरवरी को कद्दावर नेता और उनके सहयोगियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारियों, जिनमें ज्यादातर महिलाएं थीं, ने शेख और उनके दो सहयोगियों पर ज़मीन हड़पने और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए. इसके बाद टीएमसी और बीजेपी समर्थकों के बीच झड़प हो गई. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा पर “हिंसा भड़काने” और “आदिवासी बनाम अल्पसंख्यकों की लड़ाई” गढ़ने के लिए बाहर से लोगों को लाने का आरोप लगाया.

पुलिस बनाम अदालत

हिंसा और अपने खिलाफ आरोप के बावजूद, शाहजहां लगभग दो महीने तक गिरफ्तारी से बचते रहे. पिछले हफ्ते कलकत्ता हाई कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पुलिस को उसकी अक्षमता पर फटकार लगाई थी.

तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया कि अदालत के आदेश ने शेख की गिरफ्तारी में बाधा उत्पन्न की, लेकिन 27 फरवरी को मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणम की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि अदालत ने सीबीआई और पश्चिम बंगाल पुलिस की संयुक्त विशेष जांच टीम के गठन पर रोक लगा दी है, जिसे एकल पीठ ने ईडी अधिकारियों पर हमले की जांच करने का आदेश दिया था.

पीठ ने कहा, “उनकी गिरफ्तारी पर कोई रोक नहीं है. जांच पर रोक का मतलब गिरफ्तारी पर रोक नहीं है. एफआईआर दर्ज है, उन्हें आरोपी बताया गया है. उन्हें गिरफ्तार करना होगा.”

दिप्रिंट से बात करते हुए ईडी के एक अन्य अधिकारी ने भी नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पुलिस ने जानबूझकर गिरफ्तारी में देरी की. अधिकारी ने कहा, “पुलिस ने आसानी से मान लिया कि गिरफ्तारी पर रोक है. जब अदालत ने उन्हें फटकार लगाई, तो उन्होंने कुछ ही दिनों में शेख को पकड़ लिया. इससे पता चलता है कि वे जानते थे कि वो कहां था और वे उसकी रक्षा कर रहे थे.”अधिकारी ने कहा, गिरफ्तारी में देरी सरकार की मंशा को दर्शाती है.

अधिकारी ने कहा, “टीएमसी के तर्क के अनुसार, यह रोक ईडी अधिकारियों पर हमले के मामले के संबंध में थी, लेकिन पुलिस को अन्य मामलों में उन्हें गिरफ्तार करने से कौन रोक रहा था? वे सिर्फ उसे गिरफ्तार न करने के बहाने ढूंढ रहे थे.”

कहानी अभी भी आगे बढ़ रही है और राजनीतिक विचारों की परवाह किए बिना, पश्चिम बंगाल सरकार, जिसकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है, को कार्रवाई करनी चाहिए. इसकी विश्वसनीयता को बचाने के लिए निष्पक्ष कार्रवाई की ज़रूरत है.

(व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस न्यूज़मेकर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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