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Friday, 22 November, 2024
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जाने क्यों हो रहा है बच्चों का गाया डोगरी गीत सोशल मीडिया पर वायरल

इस गीत को स्कूल के ही अध्यापक सुभाष ब्राह्मणू ने लिखा है. यूट्यूब पर इसे दो दिन में लगभग 2 लाख लोग देख चुके हैं.

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किसी महंगे और बड़े स्कूल के किसी कार्यक्रम में अंग्रेज़ी धुन पर ‘ग्रीन डे’ या ‘एन्वायरमेंट डे’ मनाते हुए बच्चों को डांस करते और कोई गीत गाते देखना भले ही आज के दौर में एक आम बात हो पर दूर कहीं देवदार के वृक्षों से लदे-भरे पर्वतों के बीच बच्चों द्वारा अपनी मातृ भाषा में वनों व पर्यावरण की रक्षा को लेकर कोई प्रस्तुति कम ही देखने को मिलती है. अगर कभी ऐसा कुछ देखने-सुनने को मिल जाए तो यह अपने आप में एक सुखद अनुभूति है.

ऐसी ही सुखद अनुभूति उस समय देखने को मिली जब एक दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र के मिडिल स्कूल के बच्चों द्वारा पेड़-पौधों के प्रति मनुष्य के कर्तव्य को उजागर करता एक गीत सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. एक सरकारी स्कूल के बच्चों द्वारा सीमित साधनों से किया गया यह प्रयास अनूठा है. बिना किसी मंच और साजों सामान के तैयार किया गया यह गीत शहरी चकाचौंध से दूर मुश्किल भरे हालात में रहने वाले पर्वतीय इलाकों के बच्चों के बुलंद इरादों की एक ठोस झलक भी हैं. यह विडियो सरकारी स्कूलों को लेकर देशभर में बन चुकी राय को भी चुनौति देता है और सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे कुछ अध्यापकों में आज भी कुछ नया कर गुज़रने का ज़ज्बा ज़िन्दा है.


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देश-विदेश से मिल रही सराहना

जम्मू कश्मीर के उधमपुर जिले के ख़ूबसूरत पर्वतीय क्षेत्र डुडू-बसंतगढ़ के धरमाल गांव के एक सरकारी मिडिल स्कूल के बच्चों ने इस ढंग से एक ख़ूबसूरत डोगरी गीत द्वारा पेड़-पौधों के महत्व को उजागर किया कि आज इन ग्रामीण बच्चों को देश-विदेश से सराहना मिल रही है और इनका विडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है.

वाद्ययंत्र के नाम पर मात्र एक ढोलक और एक स्टेनलेस स्टील की प्लेट, न कोई मंच, न कोई माइक-स्पीकर, मगर 14 बच्चों की टोली और एक अध्यापक ने पेड़-पौधों को बचाने के लिए जिस ख़ूबसूरत गीत की रचना की वह सोशल मीडिया पर एकाएक खूब चर्चित होने लगा है. इस गीत को स्कूल के ही अध्यापक सुभाष ब्राह्मणू ने लिख़ा है. सुभाष ने ही स्कूल के बच्चों को अभ्यास कराया और विडियो बनाई व बाद में सोशल मीडिया पर शेयर कर दी. बच्चों द्वारा गाये गए इस मीठे डोगरी गीत को अभी तक यूट्यूब पर ही दो दिनों के भीतर दो लाख के करीब लोग देख चुके है. जबकि फ़ेसबुक, इस्टांग्राम और ट्विटर जैसे मंचो से भी दुनिया भर में लोग इसे साझा कर रहे हैं. अध्यापक सुभाष ब्राह्मणू को कई फ़ोन आ रहे हैं और लोग उन्हें बधाई दे रहे हैं.

इस वीडियो में एक समूह में डोगरी गीत को गाने में मुख्य स्वर कुलबीर सिंह, पुरुषोत्तम कुमार, अनीत ठाकुर, यश पाल, रमेश कुमार, सलूजा देवी, सृष्टा, पूजा, काजल, सोनी कुमारी ने दिया जबकि डांस अंबिका ठाकुर, भाषा देवी और सृष्टा ने किया. ढोलक पर थाप पड़ोस के हायर सकेंडरी स्कूल के 10वीं के छात्र राकेश कुमार ने दी. कक्षा चार से लेकर आठ तक के बच्चों ने इतने अलग और अनोखे ढंग से गीत को गाया है कि जो लोग डोगरी भाषा नहीं भी समझते वो भी गीत और उसकी प्रस्तुति को पसंद कर रहे हैं व बच्चों के प्रयास की तारीफ़ कर रहे हैं. धरमाल गांव के स्कूली बच्चों का इस गीत को गाने का अंदाज़ मासूमियत भरा है, जिस तरह से बच्चों ने गीत गाया है वह अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है.

स्कूली बच्चों द्वारा मस्ती भरे हलके-फुलके अंदाज में जिस तरह से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया गया है वह गागर में सागर की तरह है, बच्चे बहुत थोडे़ में पेड़-पौधों और पर्यावरण के बारे में बहुत कुछ समझा जाते हैं. बच्चों ने इस गीत की प्रस्तुति इतनी ख़ूबसूरती से की है कि सब कुछ सहज-स्वाभाविक लगता है. कहीं से भी किसी भी तरह का कोई बनावटीपन कोई नाटकीयता नहीं झलकती.

सोशल मीडिया में वायरल हो रहे विडियो में प्रकृति की गोद में बसे डुडू-बसंतगढ़ क्षेत्र की ख़ूबसूरती को भी दर्शाया गया है. गीत की पृष्ठभूमि में डुडू-बसंतगढ़ क्षेत्र की प्राकृतिक ख़ूबसूरती को जिस तरह से दिख़ाया गया है उसने प्रस्तुति में चार चांद लगा दिए हैं.

डोगरी भाषा की मिठास से भी कराया परिचित

जाने-अनजाने धरमाल गांव के पहाड़ी बच्चों ने वक्त की मार झेल रही डोगरी भाषा की मिठास और ख़ूबसूरती से भी दुनिया को परिचित कराया है. इस ख़ूबसूरत गीत के माध्यम से उन लोगों को भी एक संदेश दिया गया है जो आधुनिकता की अंधी दौड़ में अंग्रेज़ी के पाछे भागते हुए अपनी भाषा-बोली को बोलने में शर्म महसूस करते हैं.

उल्लेखनीय है कि डोगरी भाषा आज गहरे संकट के दौर से गुज़र रही है. बड़े निजी व मंहगे स्कूलों में इसे पढ़ाना तो दूर उसके बोलने पर भी पाबंदी है, एक पूरी पीढ़ी डोगरी भाषा की ख़ूबसूरती से अनजान हो चुकी है और आगे भी कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही.

लेकिन, शहरी इलाकों की चकाचौंध से दूर दुर्गम ग्रामीण इलाकों में ज़रूर डोगरी भाषा आज भी कानों में रस घोल रही है. बच्चों द्वारा तैयार इस ख़ूबसूरत गीत को लेकर पत्रकार विशाल भारती कहते हैं कि बहुत दिनों बाद बच्चों के मुंह से डोगरी सुन कर बचपन याद आ गया. जब सभी लोग डोगरी भाषा में ही बातचीत किया करते थे, मगर अब जम्मू जैसे बड़े शहर में बच्चों के मुंह से डोगरी सुनना एक सपना ही हो गया है.


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बच्चों द्वारा गाए गीत का हिन्दी अनुवाद

‘ओ चारों तरफ पेड़-पौधे तू लगा ले मानव, उजड़ते वन को बचा ले तू मानव.

ओ पेड़-पौधे धरती का श्रृंगार हैं मानव, इसके बिना चलता नही संसार ओ मानव.

ख़ाली हो रही ज़मीन को तू बचा ले मानव, वहां पेड़-पौधे लगाकर उसे सज़ा ले मानव.

ओ अगर लेगा तू जंगल बचा मानव, यही होगी तेरी नेक कमाई ओ मानव,

ओ पेड़-पौधे तू संभाल ले मानव, तभी होगी चारों तरफ हरियाली मानव.

ओ पेड़-पौधे ही ज़िन्दा आदमी को बचाते हैं मानव, मृत को भी तो यही छुपाते हैं मानव.

ओ पेड़-पौधे बड़े ही अनमोल हैं मानव, लिखता यही बोल है ‘सुभाष’ मानव.

ओ चारों तरफ पेड़-पौधे तू लगा ले मानव, उजड़ते वन को बचा ले मानव.’

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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