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Friday, 29 March, 2024
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सीआरपीएफ के जवानों के लिए जन्नत में खुला ‘हेवन’, जल्द ही आमलोग भी ले सकेंगे मजा

आम लोगों के लिए फिलहाल ‘हेवन’ के दरवाज़े नहीं खोले गए हैं मगर कश्मीर के विशेषकर दक्षिण कश्मीर के हालात को देखते हुए एक सिनेमाघर का खुलना व फ़िल्मों का प्रदर्शित होना एक बड़ी बात है.

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हाल ही के तनाव भरे माहौल के बाद कश्मीर से जो पहली अच्छी ख़बर आई है वो काफी ख़ुशनुमा है हालांकि बड़े अख़बारों व टीवी चैनलों पर इस ख़बर को ख़ास तवज्जो नहीं मिल सकी मगर हमारे यहां ऐसा अक्सर सकारात्मक ख़बरों के साथ होता भी है.

ख़बर है कि आतंकवाद के गढ़ कहे जाने वाले दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में 28 साल बाद एक सिनेमाघर खुला है.
हालांकि ‘हेवन’ नाम के इस सिनेमाघर को अभी सिर्फ केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) के जवानों व अधिकारियों के लिए ही खोला गया है.

आम लोगों के लिए फिलहाल ‘हेवन’ के दरवाज़े नहीं खोले गए हैं मगर कश्मीर के विशेषकर दक्षिण कश्मीर के हालात को देखते हुए एक सिनेमाघर का खुलना व फ़िल्मों का प्रदर्शित होना एक बड़ी बात है. केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) के जवानों व अधिकारियों के लिए ‘पलटन’ फ़िल्म दिखाई गई. आशा की जा सकती है कि जल्द ही आम लोगों के लिए भी ‘हेवन’ में फ़िल्म देख पाना मुमकिन हो पाएगा.

बंद पड़े हैं घाटी के सिनेमाघर

यहां यह उल्लेखनीय है कि आतंकवादियों की धमकियों के कारण कश्मीर में सभी सिनेमाघर बंद पड़े हुए हैं. 1989 में जब कश्मीर में आतंकवाद आया तो सबसे पहले सिनेमाघर, शराब की दुकानों और ब्यूटी पार्लर को निशाना बनाया गया. ‘अल्लाह टाइगर’ नाम के आतंकवादी संगठन ने तमाम सिनेमाघरों, शराब की दुकानों और ब्यूटी पार्लरों के बंद करने का हुक्म दे डाला. संगठन ने इन सबको इस्लाम विरोधी बता कर बंद करवा दिया.

आतंकवादियों ने सिर्फ धमकियां ही नहीं दी बल्कि सिनेमाघरों को अपना निशाना भी बनाया.

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श्रीनगर के लाल चौक में किसी समय अपनी विशेष पहचान के लिए जाने जाने वाले ‘पलेडियम’ सिनेमाघर को 1993 में जला दिया गया. आज ‘पलेडियम’ की इमारत के अवशेष ही बचे हैं. ‘पलेडियम’ को श्रीनगर के खूबसूरत व बेहतरीन सिनेमाघरों में गिना जाता था. हिन्दी फ़िल्मों के साथ-साथ ‘पलेडियम’ में अंग्रेज़ी फ़िल्में भी दिखाई जाती थीं.

आज ‘पलेडियम’ के बचे अवशेषों के बीच केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल(सीआरपीएफ) का शिविर है. जबकि ‘नीलम’, ‘शाह’ और ‘शिराज़’ में भी सुरक्षा बलों के शिविर हैं. श्रीनगर के कुछ अन्य सिनेमाघरों में छोटे-छोटे माल व मार्केट बन गए हैं.
इसी तरह से श्रीनगर के ‘खय्याम’ सिनेमाघर में अब ‘खैबर’ नाम से एक अस्पताल खुल चुका है.

कईं सिनेमाघर थे कश्मीर में

आतंकवाद के आने से पहले पूरी कश्मीर घाटी में कईं सिनेमाघर थे जिनमें श्रीनगर का ‘पलेडियम’, ‘ब्राडवे’, ‘रीगल’, ‘नीलम’, ‘शिराज़’, ‘खय्याम’, ‘शाह’, ‘फिरदौस’ और ‘नाज़’ प्रमुख थे.

अपनी खूबतूरती के लिए प्रसिद्ध ‘पलेडियम’ 1993 में आग में तबाह हो गया.अब यहां भी सुरक्षा बलों का शिविर है. / फोटो- बिलाल बहादुर

श्रीनगर के बाहर अनंतनाग शहर में ‘हेवन’ और ‘निशात’ थे जबकि कुपवाडा में ‘मरज़ाई’, बारामुला शहर मे ‘थिमेय्या’, सोपोर में समद टाकी और कपरा सिनेमाघर थे. इसी तरह से हंदवाडा में ‘हिमाल’ सिनेमाघर था.

‘सिनेमाघरों को खुलवाने की हुई थी नाकाम कोशिश’

आतंकवादी संगठनों की धमकियों के बाद से कश्मीर घाटी के तमाम सिनेमाघर बंद ही रहे हैं. हालांकि बीच में बंद पड़े सिनेमाघरों को खोलने की कुछ कोशिशे भी हुईं पर यह सभी कोशिशे नाकाम साबित ही हुईं.

1999 में तत्कालीन मुख्यमंत्री फ़ारूक अब्दुल्ला ने घाटी में फिर से सिनेमाघर खुलवाने का एक प्रयास किया था. उन्होंने कुछ सिनेमाघर मालिकों को सुरक्षा का पूरा भरोसा देकर श्रीनगर के तीन सिनेमाघरों को खोलने के लिए राजी कर लिया. कड़ी सुरक्षा के बीच ‘ब्राडवे’, ‘रीगल’ और ‘नीलम’ सिनेमाघरों को आम लोगों के लिए खोला भी गया.

मगर आतंकवादियों ने सरकार व सिनेमाघरों के मालिकों के प्रयास कुछ ही दिनों में विफल कर दिए. इन सिनेमाघर के खुलने के कुछ ही दिनों के अंदर ‘रीगल’ में हुए धमाके में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी व कईं अन्य घायल हो गए थे. ‘रीगल’ में हुए धमाके के बाद सिनेमा प्रेमी डर गए और ‘रीगल’ दोबारा बंद हो गया.

‘फिरदौस’ सिनेमाघर में आज सुरक्षा बलों का शिविर है. / फोटो- बिलाल बहादुर

आतंकवादियों के भय से दर्शकों की संख्या कम होती चली गई, जिस वजह से कुछ दिनों बाद ‘ब्राडवे’ के मालिकों ने उसे भी बंद करना ही मुनासिब समझा. 1999 में खोला गया तीसरा सिनेमाघर ‘नीलम’ खुलने के बाद 2005 तक फ़िल्मों को प्रदर्शित करता रहा. मगर 2005 में एक आतंकवादी हमला होने के बाद ‘नीलम’ भी बंद हो गया.

सितम्बर 2005 में आतंकवादियों और सुरक्षा बलो के बीच एक भीषण मुठभेड़ हुई. जिस समय आतंकवादी हमला हुआ उस समय ‘नीलम’ में ‘मंगल पांडे’ फ़िल्म का शो जारी था. कईं लोग आतंकवादी हमले के दौरान सिनेमाघर के भीतर फंस गए. आखिर ‘नीलम’ भी एक बार फिर से बंद हो गया.

‘फ़िल्मों को लेकर ज़बरदस्त दिवानगी’

1984 में श्रीनगर के खचाखच भरे ‘पलेडियम’ थियेटर में इन पंक्तियों का लेखक जब अमिताभ बच्चन अभीनीत ‘देशप्रेमी’ फ़िल्म देख रहा था तो सोचा भी नहीं था कि अगले कुछ ही सालों में न सिर्फ ‘पलेडियम’ उन्माद का शिकार हो जाएगा बल्कि ख़ूबसूरत कश्मीर घाटी में एक भी सिनेमाघर नहीं बचेगा और कश्मीर में कहीं भी सिनेमाघर में फ़िल्म देखना नामुमकिन हो जाएगा. मगर फ़िल्मों के लेकर कश्मीर के लोगों में जो दिवानगी 1984 में देखी थी वो आज भी कम नही हई है.

अच्छी तरह से याद है कि ‘पलेडियम’ में ‘देशप्रेमी’ फ़िल्म देखते हुए जब भी अमिताभ बच्चन पर्दे पर आते तो पूरा हाल जोश में तालियों और सीटियों से गूंज उठता. परीक्षित साहनी के आने पर भी हाल में उनके लिए तालियां बजने लगती. उल्लेखनीय है कि साहनी ने फ़िल्म में एक मुस्लिम का किरदार निभाया था.

आज बेशक आतंकवादियों के ख़ौफ़ से कश्मीर में सिनेमाघर बंद हों मगर फ़िल्मों को लेकर कश्मीर में ज़बरदस्त दिवानगी रही है और तमाम तरह की पाबंदियों के बावजूद यह दिवानगी कम नहीं हुई है. 1990 में सिनेमाघर बंद होने पर कश्मीर के लोगों ने फ़िल्में देखने के लिए अन्य विकल्प तलाश लिए.

आतंकवादियों की धमकियों के बावजूद विडियो कैसेट व सीडी प्लेयर के दिनों में उनसे फ़िल्में देखना संभव बना रहा, पर पाबंदियों के कारण कश्मीर में विडियो कैसेट व सीडी आसानी से मिलते नहीं थे. ऐसे में कश्मीर के लोगों को जम्मू संभाग के शहरों व क़स्बों से कैसेट व सीडी मंगवाने पड़ते थे.

लेकिन बदलती तकनीक व ज़माने ने फ़िल्में देखना बेहद आसान बना दिया है. इंटरनेट की मदद से अब बड़ी आसानी से कश्मीर के घर-घर में फ़िल्में देखी जा रही हैं. मगर जो लोग सिनेमाघरों का विरोध कर रहे हैं उन्हें इंटरनेट व तकनीक की ताकत समझ नही आ रही और वह लोग अभी भी आंखे मूंद कर लगातार सिनेमाघरों के खुलने का विरोध कर रहे हैं.

‘बड़े पर्दे का आकर्षण खींच लाता है जम्मू’

बड़े पर्दे पर फ़िल्म देखने का लुत्फ़ उठाने के लिए कश्मीर के लोग जम्मू का भी रुख़ करते हैं. कश्मीर की कड़कड़ाती ठंड से बचने के लिए जब बड़ी संख्या में कश्मीर के लोग तीन-चार महीनों के लिए अपेक्षाकृत कम सर्द जम्मू चले आते हैं तो जम्मू के सिनेमाघर कश्मीर से आए लोगों से खचाखच भर जाते है.

जम्मू के एक सिनेमाघर के मैनेजर प्रदीप कुमार कहते हैं कि फ़िल्म कोई भी हो कैसी भी हो नवम्बर से लेकर जनवरी तक कश्मीरीयों की वजह से जम्मू के सभी सिनेमाघर हाउस फुल जाते हैं. फ़िल्मों को लेकर कश्मीर के लोगों की दिवानगी देखते ही बनती है.

जम्मू के एक सिनेमाघर में अपने परिवार के साथ ‘टोटल धमाल’ फ़िल्म देखने आए कश्मीर के बांड़ीपुर के रहने वाले अरशद रसूल पूछने पर बताते हैं कि बड़े पर्दे पर फ़िल्म देखने का अपना ही मज़ा है. अरशद बताते हैं कि वे गत एक महीने से जम्मू में हैं और अभी तक चार फ़िल्में देख चुके हैं. उनका कहना है कि जम्मू आने पर बच्चे सिर्फ और सिर्फ फ़िल्में देखने की ही जिद्द करते हैं.

कश्मीर घाटी और फ़िल्मों का एक अटूट रिश्ता रहा है. कईं प्रसिद्ध हिन्दी फ़िल्मों की सफलता में कश्मीर घाटी की खूबसूरत वादियों का विशेष योगदान रहा है. कश्मीर में हुई फ़िल्मों की शूटिंग के किस्से आज भी कश्मीर के आम आदमी के मुंह से सुनने को मिल जाते हैं. गुलमर्ग और पहलगाम जैसे विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में मशहूर फ़िल्म ‘बॉबी’ की बॉबी हट और ‘बेताब’ फ़िल्म की बेताब वैली आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं. कश्मीर के पर्यटक गाईड पर्यटकों को ऐसे कईं स्थान दिखाना नहीं भूलते यहां कभी कईं मशहूर फ़िल्मों की शूटिंग हो चुकी है.

आम आदमी की कामना

कश्मीर के रहने वाले एक दोस्त से जब कश्मीर के ताज़ा हालात के बारे में पूछा तो जवाब में उन्होंने मज़ाक़ में ही सही मगर एक बहुत बड़ी बात बोली, कि असल में कश्मीर में हालात उसी दिन सुधरेंगे जब सिनेमाघर, शराब की दुकानें, बार और ब्यूटी पार्लर आसानी से खुल पाएंगे. बड़ी बातों और बड़ी राजनीति से दूर आम आदमी की यही कामना है कि एक बार फिर से कश्मीर में ऐसे दिन लौट आएं कि लोग अपनी मर्ज़ी से जिन्दगी जी सके.

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं .लंबे समय तक जनसत्ता से जुड़े रहे अब स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं .)

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