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Wednesday, 20 November, 2024
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डाक टिकटों से पहले भी रहा है रामायण का गहरा नाता, समय के साथ ऐसे हुए हैं बदलाव

यह पहला मौका नहीं है कि जब डाक टिकट पर राम की छाप दिखी है. रामायण और भारतीय डाक का सम्बन्ध काफ़ी पुराना है

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भारतीय डाक ने श्री राम जन्मभूमि मंदिर पर 18 जनवरी को छह डाक टिकट जारी किये. इनमें अयोध्या में बन रहे मंदिर, गणेश, हनुमान, जटायु तथा रामायण के केवट एवं शबरी प्रसंग को दिखाया गया. मिनिएचर शीट पर रामचरितमानस की बहुप्रसिद्ध चौपाई “मंगल भवन अमंगल हारी| द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी||” उद्धृत है. इन डाकटिकटों के साथ एक बुकलेट भी जारी हुई जिसमें 20 देशों के रामायण पर आधारित डाक टिकटों का विवरण है.

यह पहला मौका नहीं है कि जब डाक टिकट पर राम की छाप दिखी है. रामायण और भारतीय डाक का सम्बन्ध काफ़ी पुराना है.

लिफाफे और पोस्टकार्ड पर भी दिखे राम और हनुमान

उन्नीसवीं शताब्दी में जब भारत में छापेखाने का व्यापक प्रसार हुआ तो रामकथा को लोगों तक पहुंचाने का एक नया माध्यम मिल गया. गीता प्रेस, श्रीवेंकटेश्वर प्रेस और इंडियन प्रेस आदि प्रतिष्ठानों ने आधुनिक भारतीय भाषाओं में रामायण और अन्य प्राचीन ग्रंथों को करोड़ों घरों तक पहुंचाया. लेकिन यह सब एक सुदृढ़ डाक व्यवस्था के कारण ही संभव हो सका जिसने बम्बई (वर्तमान मुम्बई) और गोरखपुर जैसे नगरों को देश के हर कोने से जोड़ दिया.

इस दौरान राम और हनुमान से जुड़े राजप्रतीक और आदर्श वाक्य रियासतों के सरकारी लिफाफों और पोस्टकार्ड पर देखने को मिले. व्यापारी और आम लोग पत्राचार की शुरुआत राम-राम के साथ करते और लिफ़ाफ़ों एवं पोस्टकार्ड पर रामायण से प्रेरित चित्र छपने लगे. रामायण की डाक यात्रा में एक नया अध्याय 1935 में जुड़ा जब जॉर्ज पंचम के शासन की रजत जयंती के अवसर पर रामेश्वरम मंदिर समेत भारत के स्मारकों पर सात टिकट जारी हुए.

भक्तकालीन कवियों को भी मिली जगह

आज़ादी के बाद पहले गणतंत्र दिवस (1950) पर सरकार ने चार स्मारक डाक टिकट जारी किये. इनमें से एक पर गांधी जी के प्रिय भजन की एक पंक्ति “रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम” उद्धृत है. हाल ही में 75वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर “भारत-लोकतंत्र की जननी” के सन्देश को लोगों तक पहुंचाने के लिये तीन डाक टिकट जारी हुए. इन टिकटों के प्रथम दिवस आवरण पर पुष्पक विमान पर सवार राम, लक्ष्मण और देवी सीता के अयोध्या लौटने के दृश्य को दिखाया गया है. यह चित्र भारतीय संविधान की मूल प्रति में मौलिक अधिकार के अध्याय से लिया गया है.

वाल्मीकि रामायण को समकालीन परिवेश में ढाल कर कहने सुनने की बड़ी पुरानी और व्यापक परम्परा रही है. आज़ादी के बाद डाक विभाग ने इस समृद्ध परंपरा पर अनेक टिकट जारी किये. सर्वप्रथम 1952 में भारतीय डाक ने छह संतों और कवियों को डाक टिकट जारी कर सम्मानित किया. भारत में पहली बार फोटोग्राव्योर तकनीक से छपे इन टिकटों में तुलसीदास के साथ मीराबाई, सूरदास, कबीर, ग़ालिब और टैगोर शामिल थे. इस टिकट श्रृंखला की विवरणिका में रामचरितमानस की एक बहुत ही सुन्दर चौपाई जो सियाराम के प्रति प्रेम और आदर का बड़ा ही सजीव चित्रण करती है को उद्धृत किया.

सीय राममय सब जग जानी| करउँ प्रणाम जोरी जुग पानी|| (बालकाण्ड, 7.2)
अर्थात्, सारे जगत को सीताराममय जानकर मैं दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम करता हूं.

1952 – तुलसीदास, 1961 – त्यागराज, 1966 – कम्बर, स्मारक डाक टिकट

साठ के दशक में कवि कालिदास (1960) पर जारी टिकट विवरणिका में उनकी कृति “रघुवंशम्” से दो श्लोक अंग्रेजी में अनुवाद के साथ उद्धृत किये गए. इसके बाद 1961 में महान संगीतज्ञ त्यागराज की 114वीं पुण्यतिथि पर जारी टिकट की विवरणिका में तेलुगु में उनकी रचित ‘रामकथा सुधा’ से कुछ पंक्तियां अंग्रेजी में अनुवाद के साथ उद्धृत की गईं. फिर चोलकालीन कवि कम्बर (1966) और महर्षि वाल्मीकि (1970) पर डाक टिकट निकाले गए. वाल्मीकि के टिकट पर राम, लक्ष्मण और देवी सीता के वनगमन का बड़ा सुन्दर चित्रण देखने को मिलता है.

सन् 1975 में तुलसीदास की रामचरितमानस पर जारी डाक टिकट के प्रथम दिवस आवरण पर मद्रास संग्रहालय के सौजन्य से पूर्व चोलकालीन (लगभग 1000 ई.) राम की मूर्ति चित्रित है. इस टिकट पर बालकाण्ड की एक चौपाई उद्धृत की गयी.

कीरति भनिति भूति भलि सोई| सुरसरि सम सब कहँ हित होई|| (बालकाण्ड, 13.9)
अर्थात्, कीर्ति, कविता और सम्पति वही उत्तम है, जो गंगाजी की तरह सबका हित करने वाली हो.

12वीं शताब्दी के कवि जयदेव की संस्कृत कृति गीत गोविन्द पर 2008 में ग्यारह टिकट जारी हुए. इनमें विष्णु के दशावतार के लघु चित्र श्लोक के साथ दिखाये गये. इनमें से एक पर राम और रावण के युद्ध का दृश्य और रामवतार की महिमा पर श्लोक उद्धृत है.

वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयं,
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम् |
केशव धृतरामशरीर, जय जगदीश हरे|| (7)
अर्थात्, राम के रूप में अवतार लेने वाले हे केशव! आपने युद्ध में रावण के दस रत्नजड़ित मुकुटधारी राक्षस सिरों का वध करके उन्हें दसों दिशाओं के दिग्पालों को रमणीय व वांछनीय उपहार स्वरूप प्रदान किया है. हे जगदीश! आपकी जय हो!

इसके बाद 2017 में विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय के समकालीन कवियित्री आतुकुरी मोल्ला पर डाक टिकट निकाला गया. मोल्ला पहली कवियित्री थीं जिन्होंने तेलुगु में रामायण का पुनःकथन किया. इस टिकट के प्रथम दिवस आवरण पर आन्ध्र प्रदेश की प्रसिद्ध कलमकारी शैली में राम कथा के मुख्य प्रसंग दिखाये गये हैं.

इनके अलावा अनेक प्रसिद्ध लेखक और कवि जैसे महावीर प्रसाद द्विवेदी (1966), चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (1973 और 1978), मैथलीशरण गुप्त (1974), सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (1976), हनुमान प्रसाद पोद्दार (1992), कृष्णनाथ सरमा (2001), संत एकनाथ (2003), कुवेम्पु (2017), कवि मुद्दण (2017), विश्वनाथ सत्यनारायण (2017) की टिकट विवरणिकाओं में रामकथा पर आधारित उनकी कृतियों का उल्लेख है. 18 जनवरी 2024 को भारतीय डाक द्वारा रामायण पर जारी बुकलेट में केवल तुलसीदास, कम्बर, महर्षि वाल्मीकि और आतुकुरी मोल्ला शामिल है लेकिन संत त्यागराज नहीं जिनकी संगीत साधना रामभक्ति से ही प्रेरित थी.

कला और संस्कृति

हमारे जीवन में रामकथा सिर्फ मंदिरों और साहित्य तक सीमित नहीं है. इस बात की झलक डाक टिकटों पर भी देखने को मिलती है. सन् 1974 में लोक नाटकों में प्रयोग किये जाने वाले मुखौटों पर चार टिकट जारी हुए, जिनमें से एक पर रामलीला में रावण के दशानन रूप का मुखौटा था. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की संस्थापक एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमलादेवी चट्टोपाध्याय (1991) पर जारी डाक टिकट में रावण कठपुतली के रूप मेंचित्रित है.

फिर 2000 में मधुबनी-मिथिला चित्रकला पर जारी चार डाक टिकटों में से एक बालि और सुग्रीव के युद्ध पर आधारित है . मंदिर स्थापत्य-कला शैली (2001) के अंतर्गत जारी चार टिकटों में से एक बहुप्रसिद्ध रामेश्वरम मंदिर पर है. 2008 में दीपावली और मैसूर एवं कोलकाता के दशहरों पर तीन डाक टिकट जारी हुए और उनके प्रथम दिवस आवरण पर दशानन का पुतला दिखाया गया.

उत्तर प्रदेश के रामपुर में प्रसिद्ध रज़ा लाईब्रेरी में अठारहवीं शताब्दी में सुमेर चंद द्वारा फारसी नस्तलिक लिपि में रची गयी सचित्र वाल्मीकि रामायण की एक प्रति है. 2009 में रामपुर रज़ा लाईब्रेरी पर जारी किये गए चार टिकटों में से एक टिकट पर जटायु और राम एवं लक्ष्मण के मिलने के प्रसंग को दर्शाया गया. फिर 2020 में घुमन्तु गायकों के छह वाद्ययन्त्रों पर बारह टिकट जारी हुए. इनमें से एक वाद्ययंत्र का नाम रावणहत्था है. हालांकि टिकट की विवरणिका में इस नाम का रावण से जुड़े होने का उल्लेख नहीं है. इसी तरह 2023 में परशुराम पर निकाले गए टिकट की विवरणिका में रामायण का ज़िक्र तो है किन्तु उन्हें मुख्यतः महाभारत के पात्र के रूप में चित्रित किया गया है. 18 जनवरी 2024 को जारी बुकलेट में ये दोनों टिकट सम्मिलित हैं.

बदलाव

वर्ष 2017 में रामायण के डाक जीवन में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला जब वाल्मीकि रामायण के मुख्य प्रसंगों पर आधारित ग्यारह टिकट और दो शानदार मिनिएचर शीट जारी हुए. गौरतलब है कि इन टिकटों पर रावण के सिवाय लगभग सभी महत्वपूर्ण पात्र चित्रित हुए. जबकि कथा के अनेक महत्वपूर्ण प्रसंग जैसे अंगद संवाद, सीता हरण के ज़रिये रावण एक लम्बे समय से आम पत्राचार में दिखाई देता रहा है.

अगले वर्ष 2018 में भारत और आसियान के सम्बन्ध की रजत जयंती के अवसर पर ग्यारह डाक टिकट जारी हुए जिनमें भारत के बाहर दक्षिण-पूर्व एशिया में रामकथा की समृद्ध परम्परा की झलक मिलती है. दीपावली इजराइल (2012) एवं कनाडा (2017) और अयोध्या कोरिया गणराज्य (2019) के साथ जारी सयुंक्त डाक टिकटों पर देखने को मिलते हैं. इस तरह से पिछले दस सालों में रामायण से जुड़े तीस से ज़्यादा डाक टिकट ज़ारी हुए. आज़ादी के बाद यह पहला मौका था जब एक वृहद स्तर पर डाक टिकटों में रामकथा का चित्रण हुआ. लेकिन साठ और सत्तर के दशक के टिकटों की तुलना में अब साहित्यिक और अध्यात्मिक पहलुओं पर जोर नहीं है.

{अंकिता पाण्डेय स्वतंत्र शोधकर्ता, अनुवादक एवं आसक्ति से विरक्ति तक: ओड़िआ महाभारत की चुनिंदा कहानियां (वाणी प्रकाशन) की लेखिका हैं.}

नोट : यहां दिखाई गई सभी डाक सामग्री लेखिका के संग्रह से हैं. केवल जनवरी 2024 में जारी टिकटों की इमेज भारतीय डाक से है.


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