नई दिल्ली : केंद्र सरकार यह रास्ता खोजने की कड़ी मेहनत कर रही है कि रूस, भारत के साथ अपने व्यापार के कारण जमा होने वाले सरप्लस रुपये का उपयोग कैसे कर सके, दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि कई विकल्प हैं, जिनमें भारत में संभावित व्यापारिक सौदे, रूसियों द्वारा बुनियादी ढांचे में निवेश, सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश और एक संभावित प्रणाली शामिल है, जहां भारतीय निर्यातकों को सीधे रुपये में भुगतान किया जा सकता है.
यदि दोनों सरकारें कोई स्थायी समाधान खोजने में विफल रहती हैं, तो रूस से भारत का बड़ी मात्रा में गैर-तेल आयात, जिसकी कीमत लगभग 1 लाख करोड़ रुपये है, संभावित रूप से खतरे में पड़ सकता है.
जबकि सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भारत रुपये जमा होने की समस्या को लेकर रूस के साथ बिगड़ते व्यापार संबंधों के बारे में वाकई में चिंतित नहीं है, उस देश के कुछ निर्यातक इस मुद्दे पर जरूर पेरशान थे.
यह परेशानी तब शुरू हुई, जब पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद अमेरिका और अन्य पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए.
इन प्रतिबंधों का एक मतलब अमेरिकी नेतृत्व वाले SWIFT भुगतान नेटवर्क से रूसी व्यवसायों को काटना भी है, जिसका मतलब यह भी है कि ये व्यवसाय अब अमेरिकी डॉलर में सौदा नहीं कर सकते- जो अंतरराष्ट्रीय लेन-देन का आमतौर पर स्वीकृत माध्यम है.
युद्ध की शुरुआत के बाद से रूस से भारत के तेल और गैर-तेल आयात में बढ़ोत्तरी के साथ, हम उनके लिए भुगतान कैसे करें, यह मुद्दा तब से सबसे ऊपर रहा है.
तथ्य यह है कि भारत रूस को लगभग पर्याप्त निर्यात नहीं करता है, इसका मतलब है कि रुपया जल्द ही आयात के भुगतान के लिए एक अनउपयुक्त मुद्रा बन गया है – रूस रुपये जमा कर रहा था और उसे कहीं खर्च करता नजर नहीं आ रहा था.
मई में, दिप्रिंट ने बताया कि भारत, रूसी आयात के भुगतान के लिए रुपये के अलावा संयुक्त अरब अमीरात की मुद्रा दिरहम का इस्तेमाल कर रहा था.
उस समय, रूस के उपप्रधान मंत्री और उद्योग व व्यापार मंत्री डेनिस वैलेंटाइनोविच मंटुरोव ने कहा था कि “भारत से आयात की कमी की वजह से रुपये का इस्तेमाल करना पर्याप्त नहीं है.”
उपलब्ध ताजा सरकारी आंकड़ों के अनुसार, रूस से भारत का कच्चे तेल का आयात जनवरी-अगस्त 2023 की अवधि में बढ़कर लगभग 30 बिलियन डॉलर हो गया, जो 2022 की समान अवधि में 9 बिलियन डॉलर था, यह युद्ध-पूर्व के स्तरों से कहीं अधिक था.
इसी समय, इसी अवधि में भारत का गैर-कच्चे तेल का आयात भी लगभग 8 बिलियन डॉलर से बढ़कर 11.3 बिलियन डॉलर हो गया है.
इसकी तुलना में, भारत ने 2023 के पहले 8 महीनों में रूस को केवल 2.6 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात किया.
जुलाई में, दिप्रिंट ने बताया कि भारत- अपने स्वयं की रोक बावजूद – चीनी मुद्रा युआन का इस्तेमाल करके रूस से अपने आयात का 10 प्रतिशत भुगतान कर रहा था.
जबकि रुपये का भुगतान और, एक हद तक, रूस को दिरहम भुगतान जारी है, भारत सरकार ने युआन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है, जिसका मतलब है कि रूस में रुपये की बढ़ती मात्रा “फंसती” जा रही है.
सितंबर में, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने बताया था कि भारत सरकार ने उनसे कहा था कि वह “उन आशाजनक क्षेत्रों का प्रस्ताव देगी, जिनमें (रुपये) का निवेश किया जा सकता है.”, उन्होंने कहा कि “हमारी सरकारें आपसी लाभ के लिए उनका इस्तेमाल और निवेश करने के बारे में बात कर रही हैं.”
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि भारत और रूस की सरकारें निवेश प्रस्तावों समेत रूस के पास रुपये के जमा होने के मुद्दे को देखने और विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही हैं.
अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “हम रूसी संस्थाओं को उनके सरप्लस रुपये के इस्तेमाल करने में मदद करने के विभिन्न तरीकों पर विचार कर रहे हैं.” “उनके लिए एक तरीका व्यापारिक सौदों और बुनियादी ढांचे में निवेश करने का है, दूसरा तरीका सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश का है.”
अधिकारी ने कहा, “तीसरा तरीका यह है कि वे हमारे निर्यात के लिए सीधे रुपये में भुगतान कर सकते हैं (डॉलर या किसी अन्य मुद्रा के बजाय), लेकिन हम इसमें कुछ बाधाओं का सामना कर रहे हैं.” “हम इन्हें दूर करने के लिए उनके साथ काम कर रहे हैं.”
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व्यापारिक सौदे और इन्फ्रा प्रोजेक्ट
अक्टूबर के अंत में रूसी मीडिया ने बताया कि भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की जहाज निर्माण कंपनी गोवा शिपयार्ड लिमिटेड ने रूसी संस्थाओं के लिए 24 मालवाहक जहाजों के निर्माण का सौदा किया था.
दिप्रिंट ने गोवा शिपयार्ड के साथ सौदे के बारे में पुष्टि की है, कंपनी के अधिकारियों ने कहा है कि सौदे की रूपरेखा सभी संबंधित पक्षों को स्वीकार्य थी और “फाइनल ब्लैक एंड व्हाइट कॉन्ट्रैक्ट” पर एक महीने के भीतर हस्ताक्षर किए जाएंगे. उन्होंने कहा कि अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद ही वे आधिकारिक तौर पर कोई टिप्पणी कर पाएंगे.
यूरोप और यूरेशिया सेंटर, मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान में एसोसिएट फेलो स्वस्ति राव के अनुसार, इस तरह के व्यापारिक सौदे अतिरिक्त रुपये की समस्या के समाधानों में से एक हैं, जिसे भारत सरकार रूसी सरकार के साथ मिलकर हल करने की कोशिश कर रही है, लेकिन यह एक पर्याप्त सौदा नहीं है.
राव ने दिप्रिंट को बताया, ”मुझे लगता है कि इस तरह के कदम बहुत पहले उठाए जाने चाहिए थे, लेकिन शायद रूस अपना पैसा उस युद्ध पर केंद्रित करना चाहता है, जो कि वह लड़ रहा है.”
उन्होंने कहा, “तो, इस तरह का सौदा निश्चित रूप से सही दिशा में है और ऐसे अन्य व्यापारिक सौदों के लिए एक मिसाल कायम करता है, जहां रूस अपने सरप्लस रुपये का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन यह सौदा अपने आप में गेम-चेंजर नहीं है.”
उन्होंने कहा, “रूस के पास फंसे रुपयों की मात्रा पर असर पड़ने से पहले ऐसे कई सौदे करने पड़ेंगे.”
दरअसल, कुछ अन्य परियोजनाओं पर भी काम चल रहा है, सितम्बर में केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने सुदूर पूर्व और आर्कटिक के विकास के लिए रूसी मंत्री ए.ओ. चेकुनकोव से मुलाकात की थी.
सरकार की एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, अन्य बातों के अलावा, दोनों मंत्रियों ने पूर्वी समुद्री गलियारे के निर्माण में तेजी लाने के तरीकों पर चर्चा की, जो चेन्नई को रूस में व्लादिवोस्तोक से जोड़ेगा.
वित्त मंत्रालय के अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “यह प्रोजेक्ट एक और बड़ा तरीका होगा, जिसमें रूस के पास मौजूद रुपयों का इस्तेमाल किया जा सकेगा.’
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता से ईमेल के ज़रिए संपर्क किया. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश को आसान बनाना
भारत ने पिछले महीने भारत से बाहर रहने वाले लोगों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों और ट्रेजरी बिलों में निवेश के संबंध में नियमों को आसान बनाने के लिए एक और कदम उठाया था.
16 अक्टूबर को, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन (ऋण उपकरण) विनियमन, 2019 में एक संशोधन को नोटिफाइड किया था, जिसके जरिए एक प्रावधान जोड़ा गया, जिसमें कहा गया: “भारत के बाहर के निवासी, जो रुपये का खाता रखते हैं… रिज़र्व बैंक द्वारा निर्दिष्ट नियमों और शर्तों के अनुसार सरकारी की तय प्रतिभूतियां/ट्रेजरी बिल बेच या खरीद सकते हैं.”
सरकारी प्रतिभूतियां, केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा जारी किए गए जरूरी उपकरण हैं, जिनके माध्यम से वे जनता और कंपनियों से पैसा उधार लेते हैं. ट्रेजरी बिल एक वर्ष से कम की मेच्योरिटी अवधि वाली अल्पकालिक प्रतिभूतियां होती हैं, जबकि डेटेड प्रतिभूतियां लंबी अवधि की.
वित्त मंत्रालय की अधिकारी ने बताया कि, पहले, यदि भारत में मौजूद न होने वाली संस्थाएं सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना चाहती थीं, तो उन्हें विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के रूप में पंजीकरण करना पड़ता था.
अधिकारी ने कहा, “अब, आरबीआई के नोटिफिकेशन के साथ, उन्हें एफपीआई के तौर पर रजिस्टर्ड होने की जरूरत नहीं है, जिससे उनके लिए अपने सरप्लस रुपये का इस्तेमाल करना आसान बनाता है.”
हालांकि, यहां भी कि, राव ने इस तरह के कदम के असर पड़ने को लेकर सवाल उठाया.
उन्होंने कहा, “रूस समेत अन्य देशों को सरकारी प्रतिभूतियों और ट्रेजरी बिलों में निवेश की अनुमति देना रूस के खातों में पड़े रुपये का इस्तेमाल करने का एक अच्छा तरीका है, जिसे रूस कहीं और इस्तेमाल नहीं कर सकता है.”
राव ने कहा, “लेकिन यह देखना बाकी है कि ये कम फायदे वाली प्रतिभूतियां रूसियों के लिए कितनी आकर्षक होंगी, जो युद्ध के दौरान इस्तेमाल के लिए अपने पैसे को तरल रखना चाहते हैं.”
वित्त मंत्रालय के एक दूसरे सीनियर अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि, हालांकि सरकार रुपये के भुगतान के मुद्दे पर रूस के साथ बिगड़ते व्यापार संबंधों को लेकर विशेष रूप से चिंतित नहीं थी, लेकिन कुछ रूसी निर्यातक परेशान हो रहे थे.
अधिकारी ने बताया, ”भारत और रूस के आर्थिक संबंध बहुत पुराने हैं.”
“जहां सरकार प्रत्यक्ष प्रभाव डाल सकती है, कंपनियां अभी रुपये में भुगतान के बजाय IOUs लेने को भी तैयार हैं. यह भोरसा है कि ये भुगतान कर दिए जाएंगे.”
अधिकारी ने कहा, “लेकिन रूस में ऐसी निजी कंपनियां हैं, जिन्हें व्यापार जारी रखने के लिए अपने निर्यात से आय की जरूरत है.” “वे रुपये के भुगतान से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं और यही वह क्षेत्र है, जो जोखिम भरा है.”
(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)
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