यह प्रश्न अक्सर लोगों की जिज्ञासा का विषय होता है कि आखिर हिंदू धर्म छोड़ने के बाद डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने बौद्ध धम्म ही क्यों अपनाया? इसके बारे में कई तरह के भ्रम हैं. इस संदर्भ में अक्सर यह प्रश्न भी पूछा जाता है कि आखिर उन्होंने हिंदू धर्म क्यों छोड़ा और ईसाई या इस्लाम या सिख धर्म क्यों नहीं अपनाया?
इन प्रश्नों का मुकम्मल जवाब डॉ. आंबेडकर के लेख ‘बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य’ में मिलता है. इस लेख में उन्होंने बताया है कि क्यों बौद्ध धम्म उनकी नजरों में श्रेष्ठ है और क्यों यह संपूर्ण मनुष्य जाति के लिए कल्याणकारी है. मूलरूप में यह लेख अंग्रेजी में बुद्धा एंड दि फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन (Buddha and the Future of his Religion) नाम से यह कलकत्ता की महाबोधि सोसाइटी की मासिक पत्रिका में 1950 में प्रकाशित हुआ था. यह लेख डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर राटिंग्स एंड स्पीचेज के खंड 17 के भाग- 2 में संकलित है. इस लेख में उन्होंने विश्व में सर्वाधिक प्रचलित चार धर्मों बौद्ध धम्म, हिंदू धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम की तुलना की है. वे इन चारों धर्मों को अपनी विभिन्न कसौटियों पर कसते हैं.
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बुद्ध का मानवीय रूप बाबा साहेब को पसंद आया
सबसे पहले वे इन चारों धर्मों के संस्थापकों, पैगंबरों और अवतारों की तुलना करते हैं. वे लिखते हैं कि ‘ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह खुद को ईश्वर का बेटा घोषित करते हैं और अनुयायियों से कहते हैं कि जो लोग ईश्वर के दरबार में प्रवेश करना चाहते हैं उन्हें उनको ईश्वर का बेटा स्वीकार करना होगा. इस्लाम के संस्थापक मुहम्मद खुद को खुदा का पैगम्बर (संदेशवाहक) घोषित करते हुए घोषणा करते हैं कि मुक्ति चाहने वालों को न केवल उन्हें खुदा का पैगम्बर मानना होगा, बल्कि यह भी स्वीकार करना होगा कि वह अन्तिम पैगम्बर हैं.’ इसके बाद डॉ. आंबेडकर हिंदू धर्म की बात करते हैं. हिंदू धर्म के बारे में वे कहते हैं कि ‘इसके अवतारी पुरुष ने तो ईसा मसीह और मुहम्मद से भी आगे बढ़कर खुद को ईश्वर का अवतार यानी परमपिता परमेश्वर घोषित किया है.’
बुद्ध ने कभी नहीं किया मुक्तिदाता होने का दावा
इन तीनों की तुलना गौतम बुद्ध से करते हुए डॉ. आंबेडकर लिखते हैं कि ‘उन्होंने ( बुद्ध) एक मानव के ही बेटे के तौर पर जन्म लिया, एक साधारण पुरुष बने रहने पर संतुष्ट रहे और वह एक साधारण व्यक्ति के रूप में अपने धर्म का प्रचार करते रहे. उन्होंने कभी किसी अलौकिक शक्ति का दावा नहीं किया और न ही अपनी किसी अलौकिक शक्ति को सिद्ध करने के लिए चमत्कार दिखाए. बुद्ध ने मार्ग-दाता और मुक्ति-दाता में स्पष्ट भेद किया.’
ईसा, पैगंबर मुहम्मद और कृष्ण ने अपने को मोक्ष-दाता होने का दावा किया, जबकि बुद्ध केवल मार्ग-दाता होने पर ही संतुष्ट थे. डॉ. आंबेडकर ऐसा कोई भी धर्म स्वीकार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे, जिसमें ईश्वर या ईश्वर के बेटे, पैगम्बर या खुद ईश्वर के अवतार के लिए कोई जगह हो. उनके गौतम बुद्ध एक मानव हैं और बौद्ध धर्म एक मानव धर्म, जिसमें ईश्वर के लिए कोई जगह नहीं है.
बौद्ध धर्म विश्वास नहीं, तर्क और अनुभव पर आधारित
इन चारों धर्मों की तुलना डॉ. आंबेडकर ईश्वरीय वाणी के संदर्भ में करते हैं. वे लिखते हैं कि ‘इन चार धर्म प्रवर्तकों के बीच एक और भेद भी है. ईसा और मुहम्मद दोनों ने दावा किया कि उनकी शिक्षा ईश्वर या अल्लाह की वाणी है और ईश्वर वाणी होने के कारण इसमें कोई त्रुटि नहीं हो सकती और यह संदेह से परे है. कृष्ण अपनी स्वयं की ही धारण की हुई उपाधि के अनुसार विराट रूप परमेश्वर थे और उनकी शिक्षा चूंकि परमेश्वर के मुंह से निकली हुई ईश्वर वाणी थी, इसलिए इसमें किसी प्रकार की कोई गलती होने का प्रश्न ही नहीं उठता.’
इन तीनों की तुलना बुद्ध से करते हुए आंबेडकर लिखते हैं कि ‘बुद्ध ने अपनी शिक्षा में इस तरह के अंतिम सत्य होने का दावा नहीं किया. ‘महापरिनिर्वाण-सूत्र’ में उन्होंने आनन्द को बताया कि उनका धर्म तर्क और अनुभव पर आधारित है.’ बुद्ध ने यह भी कहा है कि उनके अनुयायियों को उनकी शिक्षा को केवल इसीलिए सही और जरूरी नहीं मान लेना चाहिए कि यह उनकी (बुद्ध की) दी हुई है. यदि किसी विशेष समय और विशेष स्थिति में इस शिक्षा में से कोई बात सटीक न मालूम होती हो तो इसमें उनके अनुयायी सुधार कर सकते हैं और कुछ चीजों का त्याग कर सकते हैं.
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बौद्ध धर्म में सुधार, संशोधन और विकास की संभावना
आंबेडकर लिखते हैं कि ‘वे (बुद्ध) चाहते थे कि उनके धर्म पर भूतकाल के मुर्दा बोझ न लादे जायें. उनका धर्म सदाबहार रहे और सभी वक्त के लिए उपयोगी भी हो.’ यही कारण था कि उन्होंने अपने अनुयायियों को जरूरत पड़ने पर धर्म को संवारने-सुधारने की स्वतंत्रता दी. वे लिखते हैं कि ‘किसी भी अन्य धर्म-उपदेशक ने ऐसा करने का साहस नहीं दिखाया.’
‘बुद्ध एंड फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन’ शीर्षक के अपने इसी लेख में डॉ. आंबेडकर का कहना है कि धर्म को विज्ञान और तर्क की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए. वे लिखते हैं कि ‘धर्म को यदि वास्तव में कार्य करना है तो उसे बुद्धि या तर्क पर आधारित होना चाहिए, जिसका दूसरा नाम विज्ञान है.’ फिर वे धर्म को स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की कसौटी पर कसते हुए लिखते हैं कि ‘किसी धर्म के लिए इतना पर्याप्त नहीं है कि उसमें नैतिकता हो. उस नैतिकता को जीवन के मूलभूत सिद्धान्तों- स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व को मानना चाहिए.’
इन तुलनाओं के बाद डॉ. आंबेडकर बुद्ध की उन अन्य विशेषताओं को रेखांकित करते हैं, जिनके चलते उन्हें बौद्ध धम्म अन्य धर्मों से श्रेष्ठ लगा. वे लिखते हैं कि ‘यह तमाम बातें शायद बहुत आश्चर्यजनक प्रतीत हों. यह इसलिए कि जिन लोगों ने बुद्ध के सम्बन्ध में लिखा है, उनमें से एक बड़ी संख्या ने यह सिद्ध करने पर जोर लगाया कि बुद्ध ने केवल एक ही बात की शिक्षा दी और वह है अहिंसा.’
वे लिखते हैं कि ऐसा मानना बहुत बड़ी गलती थी. वे आगे लिखते हैं कि ‘यह सच है कि बुद्ध ने अहिंसा की शिक्षा दी. मैं इसके महत्व को कम नहीं करना चाहता, क्योंकि यह एक ऐसा महान सिद्धान्त है कि यदि संसार इस पर आचरण नहीं करता तो उसे बचाया नहीं जा सकेगा. मैं जिस बात पर बल देना चाहता हूं, वह यह है कि बुद्ध ने अहिंसा के साथ ही समानता की शिक्षा दी. न केवल पुरुष और पुरुष के बीच समानता, बल्कि पुरुष और स्त्री के बीच समानता की भी.’
समानता को आंबेडकर किसी धर्म का सबसे मूलभूत सिद्धांत मानते थे. वे लिखते हैं कि ‘हिन्दू धर्म का असली सिद्धान्त असमानता है. चातुर्वण्य का सिद्धान्त इस असमानता के सिद्धान्त का ठोस और जीता-जागता साकार रूप है.’ बुद्ध चातुर्वण्य के कट्टर विरोधी थे. उन्होंने न केवल इसके विरुद्ध प्रचार किया और इसके विरुद्ध लड़ाई लड़ी, बल्कि इसको जड़ से उखाड़ने के लिए सब कुछ किया.
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हिन्दू धर्म के अनुसार न शूद्र और न नारी धर्म के उपदेशक हो सकते थे. न ही वह संन्यास ले सकते थे और न ईश्वर तक पहुंच सकते थे. दूसरी ओर बुद्ध ने शूद्रों को भिक्षु संघ में प्रविष्ट किया. उन्होंने नारी के भिक्षुणी बनने के अधिकार को स्वीकार किया (बुद्धा एंड दी फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन).
आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा 1936 में ही अपने भाषण जातिभेद का उच्छेद यानी एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में कर दी थी लेकिन उन्होंने धर्म परिवर्तन 1956 में जाकर किया. इस बीच उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया और फिर अपने हिसाब से श्रेष्ठ धर्म का चयन किया. अच्छे और कल्याणकारी धर्म की उनकी खोज उन्हें बौद्ध धम्म तक ले गई. इसलिए उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म ग्रहण किया.
(लेखक हिंदी साहित्य में पीएचडी हैं और फ़ॉरवर्ड प्रेस हिंदी के संपादक हैं.)
Hindu dharm me bahut sare nari aur shudr v sanyash liye hain aur mauksh ko prapt kiye hain.avi v bahut sare upadeshak nari hai
बुद्ध ही शुद्ध है कृपया निराकरण करें की धम्म के अनुसार किसी सुपर पॉवर का ध्यान का क्या महत्त्व है
अफसोस! विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ अम्बेडकर जी ने गीता का सही अनुशीलन नहीं किया। उपनिषद या गीता की बातें एक श्लोक से नहीं समझी जा सकती हैं। खैर, ऐसा शायद इसलिये हुआ होगा क्योंकि उस समय पोंगापंथियों का बोलबाला था। तिलक जी आदि का गीता भाष्य सर्वसुलभ नहीं था। वस्तुतः महात्मा बुद्ध ने महर्षि पतञ्जलि प्रणीत अष्टांग योग दर्शन के प्रथम अंग यम के पाँच प्रतिपाद्य विषयों सत्य, अहिँसा, ब्रम्हचर्य, अस्तेय व अपरिग्रह को अंगीकृत किया है। स्वयं बुद्ध ने अपने नाम पर किसी धर्म के प्रवर्तन की इच्छा नहीं जाहिर की। उनके अनुयायियों ने ऐसा किया। महायान शाखा जो वैष्णव धर्म से प्रभावित थी उसने बुद्ध की प्रतिमा बनाकर बुद्ध के सभी उपदेशों का बंटाधार कर दिया। सच कहूँ तो इसी के बाद हिन्दू धर्म में भी मूर्तिपूजा जोर पकड़ने लगी।
डॉ.बाबासाहब आंबेडकर जी ने बुद्ध धर्म अपनाके भारत देशपर एक और बहोत बडा उपकार किया है|
सोचो अगर बाबासाहबने मुस्लिम या इसाई धर्म अपणाया होता तो आज इस देश का हाल क्या होता?
लेकिन डॉ बाबासाहेब आंबेडकर एक सच्चे देशभक्त थे इसलीये उन्होने इसी भारतवर्ष मे स्थापित समानता, भाईचारा और वैज्ञानिक कसोटी पर खरा उतरनेवला बुद्धधम्म अपणाया |
Jay bhim namo buddhay bada saheb gayani purush the is liye unho ne bodh dham apnaya
India ka sabse jayda pada likha or yogya durdristita wadi person Dr. Bhimrov Ambedkar ko saadar naman.
Yanha ke netao itni samajh hoti to Olampic jaise khelo me aaj bhi hume 1 ya 2 gold medal ? par khush na hote.
Viksit desho ke loktantra me pratibha dekhi jaati hai. Or Yanha jaati dekhi jatii hai..
Jay bheem Namo Budhdhay
जय भीम नमो बुद्धाय
Jai bhim namo budhai
Jai bhim namo budhai…mahan they aur hnn
Sabse pehle baba sahib ji sikh dharam apnane ke liye tyar huye the par kisi karan varsh nhi apna sake…hamare desh mein budh or sikh dharam hi aise dharam hain jo tark or vigyan ki ksoti par khare utrte hain…