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Friday, 15 November, 2024
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5 सालों में 654 आत्महत्याएं और 50,000 इस्तीफे – भारत के CAPF पर मंडरा रहा है संकट

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल उच्च आत्महत्या दर और बढ़ती क्षरण का सामना कर रहे हैं. वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य मुख्य मुद्दा है, लेकिन कर्मियों की सहायता के लिए कदम उठाए जा रहे हैं.

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नई दिल्ली: माओवाद प्रभावित आदिवासी गढ़ में, अगस्त में सिर्फ दो दिन के अंतराल पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के दो जवानों की गोली लगने से मौत हो गई. दोनों ने चोटें ख़ुद की अपनी सर्विस हथियारों का उपयोग करके पहुंचाई थीं. सीआरपीएफ अधिकारियों ने दोनों आत्महत्याओं के लिए “पारिवारिक मुद्दों” को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन ये मौतें एक बड़ी समस्या की गंभीरता को दर्शाती हैं.

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में आत्महत्या दर, जिसमें सीआरपीएफ, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी), और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी), असम राइफल्स और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) शामिल हैं, समान जनसांख्यिकीय में पुरुषों की तुलना में असाधारण रूप से ज्यादा है.

2021 के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के लैंसेट विश्लेषण के अनुसार, शिक्षित पुरुषों (स्नातक या उससे ऊपर) के बीच आत्महत्या की दर 8.9 थी. हालांकि, 2023 की शुरुआत में कार्यरत सैनिकों की संख्या और 2022 में कुल आत्महत्याओं के आधार पर, सीएपीएफ कर्मियों के लिए आत्महत्या की दर 13 है. आत्महत्या दर किसी दी गई जनसंख्या में प्रति 100,000 लोगों पर आत्महत्या करने वालों की संख्या है.

गृह मंत्रालय (एमएचए) के आंकड़ों के अनुसार, 2018 और 2022 के बीच 654 सीएपीएफ कर्मियों ने आत्महत्या की. इसका मतलब है कि, पिछले पांच वर्षों में औसतन हर तीन दिन में सीएपीएफ के एक सदस्य की आत्महत्या से मृत्यु हो गई.

इस अवधि में सीएपीएफ में आत्महत्याओं की सबसे अधिक संख्या सीआरपीएफ में 230 दर्ज की गई, इसके बाद बीएसएफ में 174 और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में 89 आत्महत्याएं हुईं.

2018 से 2022 के बीच 654 CAPF कर्मियों ने आत्महत्या की है | ग्राफ़िक: रमनदीप कौर | दिप्रिंट

एक और समस्या है क्षरण यानी संख्या, आकार में कमी आना. इसी पांच साल की अवधि में 50,155 सीएपीएफ कर्मियों ने अपनी नौकरी छोड़ दी. इस मोर्चे पर, बीएसएफ की कुल संख्या सबसे अधिक 23,553 थी, इसके बाद सीआरपीएफ की 13,640 और सीआईएसएफ की 5,876 थी.

सीआरपीएफ सहित विभिन्न सीएपीएफ के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि इन कर्मियों को लगातार तनाव का सामना करना पड़ता है, जिसमें जोखिम भरे क्षेत्रों में विस्तारित तैनाती, कठोर परिस्थितियां, पारिवारिक अलगाव और अपर्याप्त छुट्टियां शामिल हैं.

जब इसे व्यक्तिगत मुद्दों, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर स्टिग्मा और आग्नेयास्त्रों तक पहुंच के साथ जोड़ दिया जाता है, तो यह एक अस्थिर मिश्रण बन जाता है.

सीआरपीएफ के एक अधिकारी ने बताया कि सेना के विपरीत, अर्धसैनिक बलों के कर्मियों को अक्सर मांग वाले कार्यों के बीच आराम करने का समय नहीं मिलता है.

अधिकारी ने कहा, “स्थिति सेना से बिल्कुल अलग है, जहां उन्हें नियंत्रण रेखा (एलओसी) जैसी चुनौतीपूर्ण पोस्टिंग पर सेवा देने के बाद शांति की जगह पर पोस्टिंग मिलती है.”

चिंताजनक आत्महत्या और क्षरण के आंकड़ों ने सरकार के हाई लेवल का ध्यान अपनी ओर खींचा है. इस साल 15 मार्च को राज्यसभा में पेश की गई गृह मामलों की स्थायी समिति की एक रिपोर्ट में कई सीएपीएफ कर्मियों के लिए “दुर्गम” कामकाजी परिस्थितियों को स्वीकार किया गया है.

रिपोर्ट, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, में कहा गया है, “कर्मचारियों को बल में बने रहने के लिए प्रेरित करने के लिए कामकाजी परिस्थितियों में उल्लेखनीय सुधार लाने के लिए तत्काल उपाय किए जा सकते हैं.”


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सीआरपीएफ में ‘सतत तनाव’

18 अगस्त को, सीआरपीएफ की विशिष्ट कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन (सीओबीआरए) के एक इंस्पेक्टर सफी अख्तर ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर में अपनी जान ले ली. उन्होंने इसके लिए अपनी सर्विस राइफल का इस्तेमाल किया. अगले ही दिन, झारखंड के माओवाद प्रभावित लोहरदगा जिले के केकरांग सीआरपीएफ कैंप में तैनात जगदीश मीना ने भी यही कदम उठाया.

ये कोई अलग घटनाएं नहीं थीं. इस साल अकेले सीआरपीएफ के 34 जवानों ने आत्महत्या के कारण अपनी जान गंवा दी. सीआरपीएफ सूत्रों के मुताबिक, उनमें से दस की मौत 12 अगस्त से 4 सितंबर के बीच हुई.

गृह मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 2018 में सीआरपीएफ में 36 आत्महत्याएं हुईं, जो 2019 में बढ़कर 40, 2020 में 54 और 2021 में 57 हो गईं. 2022 में यह संख्या घटकर 43 हो गई.

भारत के सबसे बड़े अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ का मुख्य मिशन नक्सली क्षेत्रों में उग्रवाद से निपटने सहित आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में मदद करना है. कानून-व्यवस्था बनाए रखने में मदद के लिए उन्हें जम्मू-कश्मीर में भी बड़ी संख्या में तैनात किया गया है.

इसके अलावा, सीआरपीएफ राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाते हैं. हालांकि, उनकी जिम्मेदारियां इन मूल कर्तव्यों से कहीं आगे तक जाती हैं.

पहले उद्धृत सीआरपीएफ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि कई राज्य पुलिस बलों में कानून प्रवर्तन संकटों को प्रभावी ढंग से संभालने के लिए संसाधनों, प्रशिक्षण और जनशक्ति की कमी है, जिसके परिणामस्वरूप सीआरपीएफ को सहायता के लिए बुलाया जा रहा है. अधिकारी ने कहा कि सीआरपीएफ कर्मियों को महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी और ओडिशा में रथ यात्रा सहित मेलों और त्योहारों जैसे नियमित कार्यक्रमों में व्यवस्था बनाए रखने के लिए भी तैनात किया जाता है.

कन्नूर स्टेशन पर सीआरपीएफ के जवान। अनन्या भारद्वाज/दिप्रिंट

अधिकारी ने कहा, इसका मतलब है कि कर्मियों को शायद ही कभी छुट्टी मिलती है और वे “निरंतर तनाव” की स्थिति में रहते हैं.

सीआरपीएफ के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने भी यही बात दोहराई. उन्होंने कहा कि ड्यूटी की प्रकृति ऐसी थी कि सैनिकों के प्रयाप्त टाइम नहीं था. उन्होंने कहा कि तनाव के लंबे चरण सीआरपीएफ कर्मियों के लिए एक “पेशेवर खतरा” बन गए हैं, खासकर जब से वे अक्सर अपने परिवारों से अलग-थलग रहते हैं.

प्रमोशन और प्रतिष्ठा से जुड़े मुद्दे

सीआरपीएफ में आत्महत्या सिर्फ एक गंभीर समस्या नहीं है. 2018 से 2022 के बीच बीएसएफ में 174, सीआईएसएफ में 89, एसएसबी में 64, आईटीबीपी में 54 और असम राइफल्स में 43 आत्महत्याएं हुईं हैं. एनएसजी ने बेहतर प्रदर्शन किया और इस पांच साल की अवधि में तीन आत्महत्याएं दर्ज कीं.

बीएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि न केवल काम करने की परिस्थितियां कठिन हैं, बल्कि पदोन्नति की गुंजाइश भी सीमित है, जिससे मनोबल प्रभावित होता है.

उन्होंने कहा, “कार्मिकों को कुछ मामलों में 10 साल तक एक ही पद पर काम करना पड़ता है.”

अधिकारी ने बताया कि प्रमोशन विभिन्न स्तरों पर खाली पड़े पदों पर आधारित होती है. उच्च रैंक पर पदों की संख्या स्वीकृत संख्या के आधार पर सीमित है, और परिणामस्वरूप, प्रमोशन के लिए पात्र लोगों की संख्या और रिक्तियों की उपलब्धता के बीच एक बेमेल है.

BSF troops on foot patrol along border with Pakistan | Urjita Bhardwaj | ThePrint
पाकिस्तान से लगी सीमा पर बीएसएफ के जवान पैदल गश्त पर | उर्जिता भारद्वाज | दिप्रिंट

एक अन्य बीएसएफ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि उप महानिरीक्षक (डीआईजी) से ऊपर के पद भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय सेना के अधिकारियों के लिए आरक्षित हैं. इसका मतलब यह है कि जिन बीएसएफ कर्मियों ने अपने युवा वर्ष दूरदराज के सीमावर्ती इलाकों में बिताए हैं, वे बल में प्रमोशन के मामले में “छूटने” से निराश महसूस करते हैं.

एक तीसरे बीएसएफ अधिकारी ने बताया कि बीएसएफ के सैनिक सीमा क्षेत्रों में सेना के समान ही कठोर पोस्टिंग पर काम करते हैं, लेकिन उनके परिवारों को समान स्तर की सेवाएं और सुरक्षा नहीं मिलती है.

उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा, सेना के जवानों को अपने परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य और इलाज के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हर प्रमुख शहर में सेना के अस्पताल हैं. इसके अलावा, सेना के कैंटीन स्टोर ड्यूटी पर तैनात सैनिकों के परिवारों को जो उत्पाद दिए जाते हैं, वे बीएसएफ कर्मियों के लिए उपलब्ध उत्पादों की तुलना में कहीं अधिक व्यापक हैं.

इस अधिकारी ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि घर से लंबे समय तक अनुपस्थित रहने के कारण कर्मियों के परिवार अक्सर विवादों में पड़ जाते हैं, खासकर भूमि स्वामित्व से संबंधित.

उन्होंने दावा किया कि जब कर्मी स्थानीय स्तर पर इन विवादों को सुलझाने की कोशिश करते हैं, तो पुलिस अधिकारी अक्सर उन्हें बताते हैं कि वे केवल सेना, नौसेना और वायु सेना को ही “वास्तविक” बलों के रूप में पहचानते हैं. अधिकारी ने कहा, इससे सैनिकों में और निराशा पैदा होती है.

पेंशन योजना एक और बड़ी दुखती रग है. दूसरे बीएसएफ अधिकारी ने कहा कि सीएपीएफ में काम करने वाले सैनिक नई पेंशन योजना (एनपीएस) के तहत पेंशन के लिए पात्र हैं, जिसके लाभार्थियों ने बहुत कम मासिक भुगतान होने की शिकायत की है. दूसरी ओर, सशस्त्र बल कर्मियों को पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) के तहत पेंशन मिलती है.

खासतौर से, 7 जुलाई को, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें सभी सीएपीएफ के लिए पुरानी पेंशन योजना को मंजूरी दी गई थी क्योंकि वे “संघ के सशस्त्र बल” हैं.

रणनीतिक बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सीआईएसएफ के मामले में चुनौतियां थोड़ी अलग हैं.

सीआईएसएफ के प्रवक्ता श्रीकांत किशोर के अनुसार, व्यक्तिगत, वित्तीय और पारिवारिक मुद्दे सीआईएसएफ जवानों के बीच आत्महत्या के प्राथमिक कारण हैं.

किशोर ने कहा कि बल द्वारा किए गए आंतरिक अध्ययनों से पता चला है कि कुछ कर्मी जुए और जल्दी अमीर बनने की योजनाओं में फंस जाते हैं और जब वित्तीय घाटा बढ़ जाता है तो निराशा की स्थिति में पहुंच जाते हैं. उन्होंने कहा कि परिवार से संबंधित तनाव सीआईएसएफ कर्मियों के बीच भी आत्महत्या का एक प्रमुख कारक है.

हाई लेवल पर अलर्ट

सीएपीएफ कर्मियों के बीच आत्महत्या का मुद्दा नीति निर्माताओं के लिए लंबे समय से चिंता का विषय रहा है.

दिसंबर 2021 में, सीएपीएफ की देखरेख के लिए जिम्मेदार गृह मंत्रालय ने इस मामले को देखने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया. टास्क फोर्स, जिसमें सभी सीएपीएफ के उच्च-स्तरीय अधिकारी शामिल थे, को व्यक्तिगत स्तर पर जोखिम और सुरक्षात्मक कारकों की पहचान करने, रोकथाम रणनीतियों का अध्ययन करने और डोमेन विशेषज्ञों के सहयोग से अनुसंधान करने का आदेश दिया गया था.

पहले सीआरपीएफ के तत्कालीन महानिदेशक कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में और बाद में गृह मंत्रालय में आंतरिक सुरक्षा के पूर्व विशेष सचिव वी एस के कौमुदी की अध्यक्षता में, टास्क फोर्स ने इस साल की शुरुआत में अपना मसौदा प्रस्ताव प्रस्तुत किया था.

यह दस्तावेज़, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट ने देखी है, ने सीएपीएफ में आत्महत्या में योगदान देने वाले तीन व्यापक जोखिम क्षेत्रों को रेखांकित किया है – काम करने की स्थिति, सेवा की स्थिति और व्यक्तिगत मुद्दे.

कार्य स्थितियों पर, टास्क फोर्स ने विशेष रूप से सीआरपीएफ, आईटीबीपी, बीएसएफ, एसएसबी और असम राइफल्स कर्मियों के लिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में विस्तारित तैनाती पर प्रकाश डाला. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सैनिक प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में लंबे समय तक ड्यूटी के कारण अपने परिवारों से लंबे समय तक नहीं मिल पाए साथ-साथ थकान और अवसाद से जूझ रहे थे.

सेवा शर्तों के बीच, टास्क फोर्स ने आईटीबीपी, सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी और असम राइफल्स में छुट्टी से संबंधित समस्याओं पर रोशनी डाली. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और असम राइफल्स के जवानों को आराम और मनोरंजन के लिए अपर्याप्त समय का सामना करना पड़ा.

इसमें कहा गया है कि नौकरी से संतुष्टि की कमी, खासकर जब अन्य क्षेत्रों में समकक्षों की तुलना में, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ और असम राइफल्स कर्मियों के बीच आत्महत्या में भूमिका निभाती है.

इसके अलावा, रिपोर्ट में बताया गया है कि आईटीबीपी और एसएसबी में कंपनी कमांडरों के लगातार स्थानांतरण से सैनिकों के साथ संचार बाधित हो गया, जो इन बलों के लिए एक और चुनौती के रूप में काम कर रहा है.

व्यक्तिगत मोर्चे पर, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकार सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी और असम राइफल्स कर्मियों को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों के रूप में उभरे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू मुद्दे और भूमि संबंधी विवाद बीएसएफ, सीआरपीएफ, एसएसबी और असम राइफल्स के कर्मियों के लिए उल्लेखनीय तनाव थे.

गौरतलब है कि इस टास्क फोर्स के गठन से पहले भी संसदीय समिति स्तर पर आत्महत्याओं को लेकर चिंताएं सामने आई थीं.

2021 में, गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने पाया कि कठोर जलवायु परिस्थितियों में उनकी ड्यूटी की चुनौतीपूर्ण प्रकृति को देखते हुए, सीएपीएफ कर्मियों के लिए उचित अंतराल पर छुट्टियां एक “आवश्यकता” हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, “सीएपीएफ बहुत दबाव में काम करते हैं, उनकी ड्यूटी की प्रकृति को देखते हुए उन्हें कठोर जलवायु परिस्थितियों में पोस्टिंग की आवश्यकता होती है. इसलिए, उनकी मानसिक स्थिति को ठीक करने और तनाव को कम करने के लिए, उचित अंतराल पर छुट्टियां जरूरी हैं, ताकि वे अपने परिवार के साथ समय बिता सकें.”

समिति ने यह भी कहा कि गृह मंत्रालय सीएपीएफ कर्मियों के लिए छुट्टियां बढ़ाने की संभावना पर विचार-विमर्श कर रहा था, और सिफारिश की कि इसे “सीएपीएफ के मनोबल को बढ़ाने” के लिए “जल्द से जल्द अंतिम रूप दिया जाना चाहिए.”


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हेल्पलाइन, परामर्श, ‘बडी सिस्टम’

विभिन्न सीएपीएफ बल कर्मियों पर दबाव कम करने में मदद के लिए रणनीतियों को लागू करने की प्रक्रिया में हैं.

सीआरपीएफ के पहले वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “नेतृत्व स्थिति के प्रति सचेत है और हम कर्मियों को तनाव से राहत देने के लिए कदम उठा रहे हैं.”

हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि व्यक्तिगत और पारिवारिक मुद्दों के लिए ऋण सहायता बदलती कामकाजी परिस्थितियों की तुलना में अधिक “प्रबंधनीय” थी.

उन्होंने कहा, ”सीआरपीएफ का आदेश सेना के विपरीत, सैनिकों को कड़ी ड्यूटी के बाद आराम की अवधि की अनुमति नहीं देता है.”

इसके बाद, उन्होंने कहा, सीआरपीएफ प्रशासन ने एक “बडी सिस्टम” स्थापित किया है जिसमें दो कर्मियों को एक-दूसरे की आदतों और दिनचर्या को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक साथ जोड़ा जाता है.

यह पहल एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य करती है, जो कंपनी कमांडरों और सहायक कमांडेंट स्तर के अधिकारियों को, जो आम तौर पर बटालियनों में तैनात होते हैं, अपने संबंधित “दोस्तों” की मानसिक भलाई के लिए सचेत करती है.

सीआरपीएफ के दूसरे अधिकारी ने कहा, छुट्टी मांगने के तंत्र में सुधार करने के भी प्रयास जारी हैं ताकि प्रक्रिया “अधिक आसान और त्वरित” हो जाए.

उन्होंने कहा, “सीआरपीएफ ने संभव ऐप पर एक ई-छुट्टी प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है जो कर्मियों को अपने मोबाइल फोन पर एक क्लिक से तुरंत छुट्टी के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है. छुट्टी स्वीकृत करने वाला प्राधिकारी ई-अवकाश पोर्टल पर छुट्टी स्वीकृत कर सकता है.”

इस अधिकारी ने यह भी कहा कि सभी कमांडरों और सहायक कमांडेंटों को अपने अधीनस्थों के साथ “औपचारिक सेटिंग” में एक-पर-एक आधार पर जुड़ने के लिए एक “स्पष्ट संदेश” भेजा गया है. इन बातचीतों में वैवाहिक स्थिति, उनके बच्चों और माता-पिता के स्वास्थ्य और घर पर समग्र कल्याण के बारे में पूछताछ शामिल है.

अधिकारी ने कहा, “अवसाद और मानसिक बीमारी के मामलों पर चौबीसों घंटे नजर रखी जाती है और परिवार के सदस्यों को ऐसे कर्मियों के साथ रहने की अनुमति देने और प्रोत्साहित करने के लिए अधिकतम प्रयास किए जाते हैं.”

सैनिकों की “भावनात्मक भलाई” में सुधार के लिए सीआरपीएफ द्वारा मानसिक स्वास्थ्य परामर्शदाताओं को भी शामिल किया गया है. अधिकारी ने कहा कि अब इन सेवाओं को दूर-दराज के इलाकों तक भी पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है.

सीआरपीएफ के दूसरे अधिकारी ने कहा, “सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, यह पता चला है कि बल में अधिकांश आत्महत्या के मामले पारिवारिक विवादों, वैवाहिक कलह, बीमारियों और अन्य व्यक्तिगत कारणों, बीमारी के अलावा कुछ मामलों में पेशेवर कारकों के कारण होते हैं.”

उन्होंने कहा, “बल में आत्महत्याओं को कम करने के लिए अनुकूल कार्य वातावरण और शिकायत निवारण सुनिश्चित करने के लिए गंभीर प्रयास किए गए हैं.”

अन्य सीएपीएफ बलों के अधिकारियों ने भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त कीं और कर्मियों की आत्महत्या के पीछे खराब मानसिक स्वास्थ्य को एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में पहचाना.

बीएसएफ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि एमएचए टास्क फोर्स की सिफारिशों के अनुरूप, सहायता की आवश्यकता वाले सैनिकों के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन स्थापित की गई है.

चूंकि टास्क फोर्स ने भूमि विवादों को एक प्रमुख तनाव के रूप में उजागर किया था, बीएसएफ अधिकारियों ने कहा कि मुख्यालय ऐसे मामलों में स्थानीय अधिकारियों के साथ कर्मियों की ओर से जुड़ने की कोशिश कर रहा था.

जून में, बीएसएफ ने नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के साथ साझेदारी की, जिससे कर्मियों के लिए परामर्श सेवाओं के लिए इस वर्ष लगभग 20 लाख रुपये का बजट आवंटित किया गया.

बीएसएफ के दूसरे अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ”जमीन पर सैनिकों द्वारा इस पहल का अच्छा स्वागत किया जा रहा है.”

बीएसएफ की तरह, सीआईएसएफ ने भी अन्य उपायों के साथ-साथ कर्मियों के लिए एक हेल्पलाइन भी स्थापित की है.

सीआईएसएफ के प्रवक्ता श्रीकांत किशोर ने कहा, “सीआईएसएफ ने एक समर्पित हेल्पलाइन नंबर स्थापित किया है और अपनी इकाइयों के पर्यवेक्षकों के लिए मानसिक स्वास्थ्य चैम्पियनशिप कार्यक्रम के रूप में जाना जाने वाला एक विशेष प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम शुरू किया है.”

उन्होंने कहा,“इस नीति के तहत, पर्यवेक्षक एक पाठ्यक्रम से गुजरते हैं जहां वे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के संकेतों के बारे में सीखते हैं. इससे उन्हें अपने अधीनस्थों के बीच ऐसे किसी भी मुद्दे का पता लगाने में मदद मिल सकती है.”

किशोर ने कहा कि सीआईएसएफ ने सैनिकों की मानसिक भलाई में सुधार के लिए परामर्शदाताओं की विशेषज्ञता को सूचीबद्ध किया है. यह सेवा वर्तमान में केवल 27 इकाइयों में उपलब्ध है, लेकिन अंततः इसे बल की सभी 355 इकाइयों तक विस्तारित करने की योजना है.

भारी क्षरण

विभिन्न सीएपीएफ, जिन्हें सामूहिक रूप से चीन और पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा करने, उग्रवाद विरोधी अभियानों के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने का काम सौंपा गया है, और कानून एवं व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए राज्य पुलिस बलों का समर्थन करते हुए, पिछले पांच वर्षों में हर दिन औसतन 27 कर्मियों ने अपनी सेवा छोड़ी है.

2018 से 2022 के बीच 5 वर्षों के दौरान सीएपीएफ में नौकरी छोड़ने की संख्या 50,155 थी | ग्राफिक: रमनदीप कौर

बीएसएफ को इस मुद्दे का खामियाजा भुगतना पड़ा है, 2018 और 2022 के बीच 23,553 कर्मियों ने प्रस्थान किया है. 2021 और 2022 में नौकरी छोड़ने में बड़ी वृद्धि हुई, जिसमें 5,713 और 5,749 कर्मियों ने नौकरी छोड़ दी, जबकि 2020 में केवल 3,521 ने नौकरी छोड़ दी. वर्ष 2018 और 2019 में भी क्रमशः 4,283 और 4,287 कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ दी.

सीआरपीएफ के मामले में, जहां पिछले पांच वर्षों में 13,640 कर्मियों ने नौकरी छोड़ दी, वहां भी एक बड़ी वृद्धि हुई है। 2020 में, केवल 1,410 कर्मियों ने रैंक छोड़ी, लेकिन बाद के दो वर्षों में यह आंकड़ा दोगुना से अधिक हो गया, क्रमशः 3,633 और 3,101 तक पहुंच गया.

बीएसएफ और सीआरपीएफ के बाद, सीआईएसएफ और (सीआईएसएफ) और आईटीबीपी को पिछले पांच वर्षों में क्रमशः 5,876 और 2,915 के नुकसान के साथ महत्वपूर्ण नुकसान का सामना करना पड़ा.

स्थिति को “समस्याग्रस्त” बताते हुए, पहले बीएसएफ अधिकारी ने कहा कि विभिन्न कारक नौकरी छोड़ने में योगदान दे सकते हैं, जिसमें बेहतर वित्तीय संभावनाओं की तलाश करने वाले कर्मी भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ”वहां प्रतिस्पर्धी माहौल है.” “कोई भी दूसरों को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता अगर उन्हें विश्वास है कि बल के बाहर उनका जीवन कहीं बेहतर है.”

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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