29-वर्षीय के अन्नामलाई ने तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए कई उपलब्धियां हासिल की हैं. उन्होंने इसे राज्य की राजनीति में समाचार चर्चा का हिस्सा बना दिया, गौंडर समुदाय के बीच जनाधार बनाया और भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) को बैकफुट पर धकेल दिया, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, एक बात जो महत्वाकांक्षी नेता नहीं कर पाए, वो है धैर्य रखना सीखना.
मार्च 2023 में इरोड उपचुनाव के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बंद बैठक के दौरान, भाजपा के तमिलनाडु अध्यक्ष ने कथित तौर पर कहा था कि वो अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) के साथ गठबंधन जारी रखने के केंद्रीय भाजपा के फैसले का समर्थन करने के बजाय इस्तीफा देना पसंद करेंगे. अन्नामलाई ने बाद में कहा कि वो “स्वच्छ राजनीति” करने के इच्छुक हैं और कैश-फॉर-वोट-आधारित राजनीति के खिलाफ हैं, जिसका आरोप उन्होंने इरोड उपचुनाव में लगाया था.
अन्नाद्रमुक-भाजपा विभाजन के साथ, उनकी इच्छा पूरी हो गई है – द्रविड़ पार्टी के नेताओं ने अन्नामलाई को उस कारक के रूप में बताया है जिसने उन्हें पार्टी छोड़ने के लिए उकसाया था और यही कारण है कि तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई दिप्रिंट के सप्ताह के न्यूज़मेकर हैं.
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शीर्ष पर आक्रामक राजनीति
अन्नाद्रमुक नेताओं ने कहा है कि यह सीएन अन्नादुराई और जे जयललिता जैसे पार्टी आइकनों के खिलाफ अन्नामलाई की टिप्पणी थी जिसने विभाजन को प्रेरित किया.
एआईएडीएमके के प्रवक्ता कोवई सथ्यन ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, “अन्नामलाई सभी सहयोगियों के लिए एक समस्या हैं, और उनकी टिप्पणियां (और) गतिविधियां भाजपा के हित के खिलाफ भी हैं. वो सहयोगियों की पवित्रता को नहीं समझते हैं. अगर आप अपनी पार्टी को बढ़ाना चाहते हैं, तो आप ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए, बीजेपी को हमारी ज़रूरत है.” उन्होंने अन्नामलाई को “उपद्रवी भड़काने वाला” और “राजनीतिक नौसिखिया” भी कहा जो राजनीति को नहीं समझता है.
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक जेवीसी श्रीराम का तर्क है कि भाजपा नेता सिर्फ एक बहाना है. उन्होंने कहा, “अन्नामलाई एक सुविधाजनक बलि का बकरा या बहाना है जो अन्नाद्रमुक ने गठबंधन तोड़ने के लिए दिया है.”
‘सिंघम’ से प्रदेश अध्यक्ष तक
पश्चिमी तमिलनाडु के करूर के मूल निवासी अन्नामलाई ने 2011 और 2019 के बीच कर्नाटक कैडर में एक आईपीएस अधिकारी के रूप में मीडिया का ध्यान आकर्षित किया. वे एक साल बाद भाजपा में शामिल हो गए और 2021 में उन्हें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर पदोन्नत किया गया.
भाजपा के भीतर नेता उनके प्रति मिली-जुली भावना रखते हैं, जहां कुछ लोग उनकी “आक्रामक राजनीति” का समर्थन करते हैं, वहीं अन्य का दावा है कि उन्होंने भाजपा में अधिकांश वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर दिया है.
भाजपा प्रवक्ता अमर प्रसाद रेड्डी ने कहा, “हमारी पार्टी अधिक मुखर हो गई है और अन्नामलाई एक ईमानदार आईपीएस अधिकारी थे, जिन्होंने सीधे लोगों की भलाई के लिए सेवा छोड़ दी. कुछ लोग उनका विरोध करते हैं क्योंकि वे उनकी तरक्की से डरते हैं.”
मार्च 2023 में अन्नामलाई ने अपने और पूर्व मुख्यमंत्रियों एम करुणानिधि और जयललिता के बीच तुलना करते हुए कहा कि वो पार्टी के कल्याण के लिए आक्रामक बने रहेंगे. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि जब तक वो भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं, पार्टी राष्ट्रीय दलों की “प्रबंधकीय शैली” में काम नहीं करेगी.
पिछले दो वर्षों में अन्नामलाई तमिलनाडु की राजनीति में भाजपा को मुख्यधारा में लाने में सफल रहे हैं, भले ही कई सदस्यों ने पार्टी छोड़ दी हो. भाजपा के पूर्व आईटी विंग प्रमुख सीटीआर निर्मल कुमार ने मार्च 2023 के अपने त्याग पत्र में अन्नामलाई पर “वन-मैन शो चलाने” का आरोप लगाया था.
श्रीराम कहते हैं, “अन्नामलाई चीज़ों को बहुत जल्दी समझ लेते हैं. वे दृढ़निश्चयी हैं और (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी की रणनीति से अपने पत्ते खेलते हैं.” साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कर्नाटक के पूर्व ‘सिंघम’ में कुछ नकारात्मक बातें भी हैं. “वे ऐसी प्रतिबद्धताएं करते हैं जिन्हें वो पूरा नहीं करते हैं. उन्होंने कहा था कि वो पार्टी के लिए घर-घर जाकर प्रचार करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है. वो कहते हैं कि उन्हें अपने लोगों पर भरोसा है लेकिन यह भी सच नहीं है. उनकी (आईपीएस) पृष्ठभूमि ने उन्हें ऐसी स्थिति में छोड़ दिया है जहां उन्हें लोगों पर भरोसा करने में समय लगता है.”
पार्टी प्रमुख का अन्य दलों के प्रति कीचड़ उछालना ही शायद मतदाताओं को भाजपा का समर्थन करने से रोक रहा है.
अन्नामलाई ने अप्रैल 2023 में कहा,“बीजेपी का यहां कोई दोस्त नहीं है. यहां हर कोई हमारा दुश्मन है. भाजपा उन सभी पार्टियों को बेनकाब करेगी जिन्होंने राज्य पर शासन किया और भ्रष्टाचार में लिप्त रहे.”
सथ्यन ने कहा, “हमारी पार्टी, हमारे पूर्व नेता पर उनकी टिप्पणी से पार्टी (भाजपा) के लिए कार्यकर्ताओं को वोट देने के लिए मनाना मुश्किल हो गया है, क्योंकि वे हमारे पूर्व नेताओं, हमारे महासचिव के बारे में गलत बोलते हैं. अन्नामलाई का रवैया अन्नाद्रमुक और उसके कैडरों के खिलाफ है.”
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एआईएडीएमके बनाम अन्नामलाई
1999 में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सत्ता में आने के ठीक 13 महीने बाद, एआईएडीएमके ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके कारण अटल बिहारी वाजपेई सरकार का पतन हो गया. इसके तुरंत बाद, जयललिता ने एक सार्वजनिक रैली में कहा, “मैंने आपसे वादा किया था, मैंने गलती की, मैंने भाजपा के साथ गठबंधन किया. मुझमें अपनी गलती स्वीकार करने का साहस और साहस है. भूल सुधार के तौर पर मैंने भाजपा सरकार को भंग कर दिया है. भविष्य में कभी भी अन्नाद्रमुक का भाजपा के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा.”
लेकिन अगले चुनाव में एआईएडीएमके ने फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया. गठबंधन तमिलनाडु में कोई भी सीट जीतने में विफल रहा. बाद के वर्षों में अन्नाद्रमुक ने भाजपा से अपनी दूरी बनाए रखी. 2014 के अभियान के दौरान, दिलचस्प बात यह है कि, अन्नाद्रमुक ने नारा दिया था: “गुजरातिन मोदिया, इल्ला तमिल नातिन इंथा लेडी आह (क्या यह गुजरात की मोदी होगी या तमिलनाडु की महिला?).”
दिसंबर 2016 में जयललिता की मृत्यु के साथ, जिससे एआईएडीएमके के भीतर दो गुटों के सामने आने से एक महत्वपूर्ण उथल-पुथल मच गई, भाजपा को तमिलनाडु की राजनीति में अपनी ज़मीन बनाने का मौका मिला. हालांकि, इसने कुछ लोकप्रियता हासिल की, लेकिन अन्नामलाई के शामिल होने के बाद ही पार्टी ने सीखा कि सुर्खियों में कैसे आना है. मानो एक संकेत के रूप में अन्नामलाई ने भी खुद को विपक्ष के चेहरे के रूप में पेश किया.
श्रीराम ने कहा, “द्रमुक विरोधी राजनीति ही वो चीज़ है जिस पर अन्नाद्रमुक फली-फूली है और अब, अन्नामलाई, एक नेता जो विकल्प पेश करने में सक्षम हैं, अन्नाद्रमुक के मूल वोट आधार में सेंध लगा रहे हैं.”
संवेदनशील कोंगु बेल्ट
अन्नामलाई अन्नाद्रमुक के वर्तमान प्रमुख एडाप्पादी के पलानीस्वामी की तरह ही गौंडर समुदाय से हैं. पूर्व सीएम और विपक्ष के वर्तमान नेता ईपीएस ने पार्टी के भीतर अपने लिए एक अच्छा जनादेश मजबूत किया था और ओ पन्नीरसेल्वम (ओपीएस) और टीटीवी दिनाकरन (टीटीवी) जैसे अपने नेतृत्व के लिए सभी खतरों को बाहर कर दिया था. अन्नाद्रमुक का कोंगु बेल्ट में एक मजबूत गढ़ रहा है, जिसमें नौ जिले शामिल हैं – कोयंबटूर, तिरुपुर, इरोड, धर्मपुरी, कृष्णागिरी, सलेम, नमक्कल, करूर और डिंडीगुल. गौंडर-प्रभुत्व वाले कोंगु बेल्ट में 2021 के विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक ने उन 54 सीटों में से 32 पर जीत हासिल की, जिन पर उसने चुनाव लड़ा था.
इस साल अगस्त में दिप्रिंट से बात करते हुए, अन्नामलाई ने आत्मविश्वास से कहा था कि दक्षिण तमिलनाडु और कोंगु बेल्ट में वोटिंग पैटर्न बदल जाएगा और एनडीए के पक्ष में अधिक वोट मिलेंगे.
लोकनीति-सीएसडीएस के चुनाव बाद सर्वेक्षण के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को तमिलनाडु में लगभग 2 प्रतिशत वोट मिले, जिनमें से ज्यादातर थेवर (21 प्रतिशत), गौंडर्स (20 प्रतिशत), ‘उच्च जाति’ (8.7 प्रतिशत), अनुसूचित जाति (13.2 प्रतिशत), और अनुसूचित जनजाति (2 प्रतिशत) से थे.
श्रीराम ने कहा, “अन्नाद्रमुक में युवा नेताओं की कोई दूसरी पंक्ति नहीं है जो करिश्माई, गतिशील या स्पष्टवादी हो. वरिष्ठ नेतृत्व युवा अन्नामलाई से चुनौती महसूस कर रहे हैं, जिनकी पहले से ही सोशल मीडिया पर अच्छी छवि है और वो दक्षिण में भाजपा को खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं.”
भाजपा की राजनीति विरोधाभासी है
कुछ विश्लेषक अन्नामलाई की सशक्त सोशल मीडिया छवि और ज़मीनी हकीकत के बीच अंतर बताते हैं. लेखक और राजनीतिक विश्लेषक आरएस नीलकांतन ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, “अगर उत्तर भारत को तमिलनाडु चुनाव में वोट मिलता है तो उनकी सोशल मीडिया छवि को वोट मिलेंगे.”
नीलकांतन ने कहा, “तमिलनाडु में भाजपा की समस्या यह है कि उसकी राजनीति और नीतिगत स्थिति तमिल हितों के विपरीत है. ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों में अपने मूल वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित करना है. जब कोई भारत की संसाधन आवंटन समस्याओं पर विचार करता है तो तमिलनाडु और सिंधु-गंगा के मैदान शून्य-राशि के खेल में शामिल होते हैं. उन्होंने कहा कि भाजपा या तो गंगा के मैदानी इलाकों में या तमिलनाडु में जीत हासिल कर सकती है.”
मई में दिप्रिंट से बात करते हुए अन्नामलाई ने कहा था कि बीजेपी आलाकमान ने उन्हें अगले पांच साल के लिए एक स्पष्ट रोडमैप दिया है.
इसलिए, भाजपा जल्द ही अन्नामलाई को जाने नहीं देगी. पिछले साल ही उन्हें केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जैसे वरिष्ठ नेताओं से प्रशंसा मिली है. श्रीराम ने कहा, “उन्हें पार्टी बनाने का काम दिया गया है. उन्होंने अतीत में किसी भी अन्य राज्य प्रमुखों की तुलना में पार्टी के लिए अधिक ध्यान आकर्षित किया है. अन्नाद्रमुक जो बंधक स्थिति पैदा कर रही है, उसके लिए भाजपा अन्नामलाई को किनारे क्यों करेगी?”
हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि यह कलह अस्थायी है, लेकिन अन्नामलाई, जिन्होंने बहुत सारी चीज़ें बहुत जल्दी हासिल कर ली हैं, को धैर्य रखना सीखना होगा. श्रीराम ने कहा, “उन्हें 2024 में लाभ के लिए डीएमके के साथ लड़ाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और फिर 2026 के बारे में सोचना चाहिए, लेकिन यहां, उन्होंने 2026 के बारे में सोचते हुए डीएमके और एआईएडीएमके दोनों के साथ अपनी लड़ाई शुरू कर दी है.”
(व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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