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Thursday, 10 October, 2024
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DMK के स्थापित पुत्र: ‘मदुरै के राजा’ से कैसे अपने खेतों की देखभाल करने लगे अलागिरी

अपने भाई स्टालिन के बारे में ‘बुरा बोलने’ के कारण 2014 में द्रमुक से निष्कासित किए गए पूर्व केंद्रीय मंत्री अब सार्वजनिक कार्यक्रमों में कम ही देखे जाते हैं. सहयोगियों का कहना है कि अब वो राजनीति में नहीं रहना चाहते.

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चेन्नई: एम.के. अलागिरी के आसपास की सड़कें, मदुरै के टीवीएस नगर में घर उनके पोस्टरों से भरे पड़े हैं. उनमें से कुछ जोड़ों की शादियां हो गई हैं, जो उनके समर्थक हैं, जबकि अन्य उन्हें अंजा नेनजान कहते हैं, जिसका अर्थ है बहादुर — उनके प्रशंसकों ने उन्हें ये उपनाम दिया है.

कई बंगलों से सुसज्जित यह क्षेत्र उस समय राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था, जब अलागिरी दिवंगत द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) प्रमुख एम. करुणानिधि “कलैगनार” (कलाकार) के शक्तिशाली पुत्र थे.

लेकिन अब टीवीएस नगर शांत हो गया है. एकमात्र बार इसकी कुछ चर्चा जनवरी में देखी गई थी जब तमिलनाडु के खेल और युवा कल्याण मंत्री उदयनिधि स्टालिन अपने चाचा से मिलने गए थे.

इस साल जुलाई में दोनों भाई फिर से सुर्खियों में आए जब वो अपनी मां दयालु अम्माल के 90वें जन्मदिन पर चेन्नई में करुणानिधि के गोपालपुरम आवास पर मिले.

राजनीतिक विश्लेषक एस अन्नामलाई ने कहा, “मुझे लगता है कि अलागिरी के कार्यों को दबा दिया गया है और उन्होंने स्टालिन के साथ यथास्थिति में खुद को समेट लिया है, लेकिन जैसा कि लोग कहते हैं, वो पूर्णकालिक राजनीति में नहीं लौट सकते हैं और पुनर्वास की कोई बात नहीं है, यानी, पार्टी में वापस आने या डीएमके में कुछ पद हासिल करने की बात है.”

अपने निष्कासन के बाद के वर्षों में अलागिरी — जिन्हें कभी दक्षिणी तमिलनाडु में द्रमुक के मजबूत नेता के रूप में देखा जाता था ने विभिन्न राजनीतिक कदमों का संकेत दिया था, लेकिन कोई भी अमल में नहीं आया.

2019 में, जब अभिनेता रजनीकांत ने कहा कि राज्य में एक राजनीतिक शून्य है, तो अलागिरी ने कथित तौर पर कहा, “रजनी इस शून्य को भर देंगे.”

ऐसी अटकलें थीं कि अगर अलागिरी ने रजनी की पार्टी लॉन्च की तो वो उसमें भी शामिल हो सकते हैं, क्योंकि दोनों अच्छे दोस्त बताए जाते हैं.

फिर 2020 में 2021 के राज्य विधानसभा चुनावों से पहले अलागिरी ने कथित तौर पर कहा कि वो अपने समर्थकों के साथ यह तय करने के लिए चर्चा कर रहे थे कि एक नई पार्टी बनानी है या किसी मौजूदा पार्टी का समर्थन करना है.

एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक सुमंत सी. रमन ने कहा, “10 साल पहले उनके पास पार्टी बनाने की कुछ संभावनाएं रही होंगी और उन्होंने खुद भी इस संभावना का संकेत दिया था, लेकिन अब मुझे ऐसा होता नहीं दिख रहा है.”

राजनीतिक हलकों में ऐसी अफवाहें भी थीं कि अलागिरी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समर्थन कर सकते हैं, जिसका उन्होंने बाद में मदुरै में संवाददाताओं के सामने खंडन किया.

लेकिन जब कोई उनके करीबी सहयोगियों से बातचीत करता है, तो वो कहते हैं कि उन्हें पहले कभी भी राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी.

43 साल तक अलागिरी के करीबी दोस्त रहे के. एसाक्किमुथु ने कहा, जिन्हें उनके साथ ही डीएमके से निष्कासित कर दिया गया था, “हालांकि, जब वह राजनीति में आए, तो वह पार्टी के प्रति वफादार थे और उन्होंने पार्टी की सफलता सुनिश्चित करने के लिए काम किया.”

अब, पार्टी से निकाले जाने के बाद, अलागिरी ने फिर से राजनीति में रुचि खो दी है, एसाक्किमुथु ने कहा, “अलागिरी अब मदुरै में अपने खेतों की देखभाल में व्यस्त हैं.”

दिप्रिंट ने कई वरिष्ठ डीएमके नेताओं और पार्टी प्रवक्ताओं से टेलीफोन पर संपर्क किया, लेकिन सभी ने अलागिरी पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.


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मदुरै – अलागिरी का गढ़

अलागिरी करुणानिधि की दूसरी पत्नी दयालु अम्माल के सबसे बड़े बेटे हैं. उनकी प्रतिष्ठा एक गुस्सैल स्वभाव वाले ताकतवर व्यक्ति की है.

लेकिन अपने सहयोगियों के लिए वो एक “सुनहरे दिल वाले व्यक्ति” हैं जो अपने करीबी लोगों के लिए कुछ भी कर सकते हैं.

एसाक्कीमुथु ने याद करते हुए कहा, “जब उन्होंने सुना कि पिछले महीने मेरी एक छोटी सी दुर्घटना हो गई है तो वो मुझे देखने के लिए दौड़कर अस्पताल आए. मैंने उनसे कहा कि यह ज़रूरी नहीं है, लेकिन वो फिर भी आये थे.”

उन्होंने कहा, “जो कोई भी उनसे मिलने आता है, वो सबसे पहला सवाल यही पूछते हैं कि क्या उन्होंने कुछ खाया-पीया है. उनका स्वभाव बहुत मददगार है.”

उनके सहयोगियों का यह भी कहना है कि उन्हें जानने वाले लोग उन्हें गुस्सैल कहने के बजाय यह समझते हैं कि उनका दिल बच्चों जैसा है. मदुरै के अलागिरी के एक पूर्व वफादार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “वो जल्दी गुस्सा हो जाते हैं, लेकिन माफ भी कर देते हैं और उतनी ही तेज़ी से भूल भी जाते हैं.”

1980 के दशक में अलागिरी डीएमके के मुखपत्र मुरासोली का प्रबंधन करने के लिए मदुरै चले गए. अन्नामलाई ने कहा, “वो अपने लैम्बर्ट स्कूटर से मुरासोली कार्यालय और अपने घर आते-जाते थे. अक्सर अपनी वीडियो लेंडिंग लाइब्रेरी में समय बिताते थे.”

मदुरै में अलागिरी ने धीरे-धीरे एक आधार बनाया और अपने लिए कट्टर समर्थक ढूंढ लिए. अन्नामलाई के अनुसार, “उनके करीबी दोस्त उन्हें मिलनसार बताते हैं, हमेशा उनकी भलाई की परवाह करते हैं और ऐसे लोग भी थे जो तब कहते थे कि वे उनके लिए मर जाएंगे.”

विश्लेषक ने हालांकि, कहा कि उनका उदय कई वरिष्ठ नेताओं को पसंद नहीं आया, जिन्हें क्षेत्र में गुटीय युद्ध की आशंका थी.

कहा जाता है कि दोनों भाइयों — अलागिरी और स्टालिन के बीच हमेशा इस बात को लेकर मतभेद रहता था कि उनके पिता का उत्तराधिकारी कौन होगा. जबकि करुणानिधि ने स्टालिन को अगली कतार में तैयार करना शुरू कर दिया था, कहा जाता है कि बड़े बेटे को इस विकल्प से मतभेद था.

2001 में अलागिरी को पहली बार पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था, जब उन पर स्टालिन द्वारा विरुदुनगर में आयोजित एक सम्मेलन का बहिष्कार करने के लिए कैडरों से कहने का आरोप लगाया गया था, जो तत्कालीन डीएमके युवा विंग के सचिव थे.

लेकिन उसी साल वो मदुरै निगम परिषद चुनावों में अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रहे. 72-सदस्यीय परिषद के चुनाव में उनके सात अनुयायियों ने स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में जीत हासिल की और उनका एक समर्थक डिप्टी मेयर बन गया.

2003 में जब पूर्व मंत्री और वरिष्ठ डीएमके नेता टी. किरुट्टिनन की एक गुटीय लड़ाई के बाद हत्या कर दी गई थी, तो अलागिरी और 12 अन्य लोगों को इस मामले में आरोपी बनाया गया था. कथित तौर पर अलागिरी को गिरफ्तार कर लिया गया और त्रिची सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया. हालांकि, विश्वसनीय सबूतों की कमी का हवाला देते हुए उन्हें और 12 अन्य को 2008 में एक जिला और सत्र अदालत ने बरी कर दिया था.

राजनीतिक टिप्पणीकारों ने कहा, अलागिरी की “कुख्याति” पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है और 2007 में उनके समर्थकों ने कथित तौर पर उनके चचेरे भाई कलानिधि मारन के स्वामित्व वाले दिनाकरन अखबार के कार्यालय में आग लगा दी थी, क्योंकि अखबार द्वारा किए गए एक सर्वे में स्टालिन को करुणानिधि के उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया गया था.

अन्नामलाई ने कहा, “उनके आसपास के लोगों ने राज्य को उत्तर और दक्षिण में विभाजित करने की कोशिश की और उन्हें दक्षिण का राजा बनाने की कोशिश की. यह वो केवल एक सीमित सीमा तक ही हासिल कर सके थे.”

विश्लेषकों ने यह भी कहा कि अलागिरी, जो राज्य के राजनीतिक मुख्यालय चेन्नई से बहुत दूर थे, का कभी भी राजनीतिक रुझान नहीं था, और वो अपने पिता की तरह नहीं थे एक अच्छे वक्ता नहीं थे. अन्नामलाई ने कहा, “लेकिन वो अधिक क्रूर आदमी हैं.”

2009 में अलागिरी “थिरुमंगलम फॉर्मूले” के लिए बदनाम हो गए, राजनीतिक विश्लेषक अन्नामलाई ने कथित वोट-खरीद का ज़िक्र करते हुए कहा कि माना जाता है कि इससे उस साल तिरुमंगलम निर्वाचन क्षेत्र में विधानसभा उपचुनाव में डीएमके को जीत हासिल करने में मदद मिली थी.

लेकिन एसाक्कीमुथु ने कहा, “मतदाता हमेशा चुनाव के दौरान कुछ न कुछ पाने के आदी रहे हैं. पहले, यह मतदान के बाद चाय या नाश्ते के लिए पैसा था और अब यह एक अलग प्रारूप में है. राज्य में कांग्रेस के शासन के समय से ही मतदाताओं को किसी न किसी रूप में सहायता दी जाती रही है.”

उन्होंने कहा, “अलागिरी पार्टी को जीत दिलाने के लिए कुछ भी करेंगे.”

पार्टी ने उन्हें दक्षिण क्षेत्र के आयोजन सचिव के रूप में डीएमके में उनकी पहली आधिकारिक पोस्टिंग से पुरस्कृत किया और इसके तुरंत बाद, उन्होंने मदुरै से अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. अलागिरी को 2009 से 2013 के बीच केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया था.

एसाक्किमुथु ने कहा, “द्रमुक के इतिहास में अलागिरी मदुरै लोकसभा चुनाव जीतने वाले पहले द्रमुक नेता थे. द्रमुक के सहयोगी भले ही जीत गए हों, लेकिन द्रमुक कभी भी अपने दम पर जीतने में सक्षम नहीं रही. उस इतिहास को अलागिरी ने मदुरै में वर्षों से किए गए ज़मीनी काम के कारण बदल दिया था.”


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राजनीतिक परिदृश्य से लुप्त

अपने भाई स्टालिन को खुलेआम चुनौती देने और अपने पिता पर सवाल उठाने के लिए अलागिरी को 2014 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था.

2001 के विपरीत, इस बार उनका भाग्य तय हो गया था.

2018 में करुणानिधि की मृत्यु के बाद अलागिरी ने पार्टी में वापसी की कोशिश की और कथित तौर पर यहां तक ​​कहा था कि वो स्टालिन को डीएमके के नेता के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार थे, लेकिन तत्कालीन महासचिव के. अंबाजगन ने अलागिरी के भविष्य पर करुणानिधि के फैसले पर कायम रहने का फैसला किया.

इस बीच स्टालिन ने यह सुनिश्चित किया कि पार्टी प्रमुख के रूप में उनके पीछे खड़ी रहे.

स्टालिन के बेटे उदयनिधि के विपरीत, अलागिरी के बच्चे – बेटा दयानिधि अज़ागिरी, एक तमिल फिल्म निर्माता और वितरक, और बेटियां कयालविज़ी और अंजुगसेल्वी – सभी अधिकांश समय राजनीति से दूर रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषक प्रियन श्रीनिवासन ने कहा, 2008 और 2011 के बीच, कयालविझी डीएमके में सक्रिय थीं और 2011 में कई लोगों ने उन्हें कनिमोझी के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा, लेकिन इसके तुरंत बाद उन्होंने राजनीतिक परिदृश्य छोड़ दिया.

2021 के विधानसभा चुनावों में डीएमके की जीत के बाद अलागिरी ने कथित तौर पर स्टालिन को बधाई दी और यहां तक ​​कहा कि उन्हें “गर्व” है कि वो मुख्यमंत्री बने हैं.

एसाक्किमुथु ने कहा, 2021 से पूर्व केंद्रीय मंत्री अपने खेतों की देखभाल में लग गए हैं. उनके अधिकांश पूर्व करीबी सहयोगी स्टालिन के खेमे में शामिल हो गए हैं और उन्हें द्रमुक में वापस ले लिया गया है.

एसाक्किमुथु ने कहा, “ऐसे कई लोग थे जिन्होंने पैसा कमाने के लिए अलागिरी के नाम का इस्तेमाल किया था, लेकिन अब उन सभी ने पाला बदल लिया है.”

उनके सहयोगियों के मुताबिक, अलागिरी अब अपने करीबी राजनीतिक कार्यकर्ताओं के कार्यक्रमों में भी शामिल होने से बचते हैं और सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी बहुत कम ही नज़र आते हैं. एक अन्य करीबी सहयोगी ने कहा, वो अब राजनीति में नहीं रहना चाहते.

एसाक्किमुथु ने कहा, लेकिन उनके पुराने वफादारों के लिए उनके घर के दरवाजे खुले हैं. “हममें से कुछ लोग अक्सर उनसे मिलने जाते हैं. हम एक साथ घंटों बैठते हैं और बात करते हैं.”

लेकिन क्या अलागिरी राजनीति में वापसी करेंगे? राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि राजनीति में 10 साल का ब्रेक वापसी के लिए एक लंबा समय है जब तक कि स्टालिन उन्हें अपने साथ नहीं लेना चाहते.

सुमंत सी रमन ने कहा, “वो पहले से ही 70 साल की उम्र पार कर चुके हैं और जब तक स्टालिन नहीं चाहते कि उन्हें कोई भूमिका मिले, तब तक अलागिरी के लिए डीएमके के भीतर कुछ भी हासिल करने में सक्षम होना बेहद असंभव है, क्योंकि पार्टी पूरी तरह से स्टालिन के पीछे है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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