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Friday, 22 November, 2024
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राजनीतिक लाभ या जमीनी स्तर तक शासन की पहुंच: क्यों भारत में 2020 के बाद से 50 नए जिले बनाए गए

राजस्थान, एमपी और असम ने नए जिले बनाए हैं. माना जा रहा है कि इससे शासन की पहुंच आसान होगी. हालांकि, इसको लेकर डेटा की कमी के चलते यह एक बड़ा प्रश्न बना हुआ है.

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नई दिल्ली: 13 अगस्त को मध्य प्रदेश में जिलों की संख्या 53 तक पहुंच गई. सरकार ने मऊगंज को रीवा से अलग कर एक नया जिला बना दिया. इसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कथित तौर पर घोषणा की कि कम से कम दो और जिले बनाने की प्रक्रिया चल रही है.

चुनावी राज्य में लिया गया यह फैसला दिखाता है कि यह देश के दूसरे हिस्सों में चल रहे पैटर्न के साथ चल रहा है. दिप्रिंट के एक विश्लेषण से पता चलता है कि 2020 और 2023 के बीच, पूरे भारत में 50 नए जिले बनाए गए. जो 2014 के बाद से बने 103 नए जिलों का 49 प्रतिशत है जो लगभग आधा है. राष्ट्रीय स्तर पर अब जिलों की कुल संख्या 783 है. यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आधिकारिक स्रोतों के हिसाब से है.

अधिक प्रशासनिक सुविधा से लेकर राजनीतिक सुविधा तक, और कुछ मामलों में, दोनों का मिश्रण- जिलों की संख्या में वृद्धि के पीछे कई कारण हो सकते हैं.

पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली, जो दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्यक्ष थे, का मानना ​​है कि ऐसे फैसलों को गलत नहीं ठहराया जा सकता, भले ही वे राजनीतिक उद्देश्यों के लिए लिया गया हो.

उन्होंने कहा, “प्रशासन को छोटे जिलों में जमीनी स्तर तक पहुंचकर काम करने में मदद मिलती है. आप जितने अधिक जिले बनाएंगे, उतना ही आप प्रशासन को जनता के करीब ले जाएंगे. यह बुनियादी तर्क है और यह एक अच्छा तर्क है.”

उन्होंने कहा, “ये कदम अक्सर लोगों की मांगों और आकांक्षाओं के हिसाब से काम करते हैं. और यही राजनीति है. राजनीति सिर्फ चुनावी मुकाबलों में पार्टियों को भिड़ना नहीं है. अब कमांडिंग सिद्धांत प्रशासन को लोगों के करीब ला रहा है.”

इस बीच, केंद्र और राज्यों में विभिन्न पदों पर काम कर चुकीं सेवानिवृत्त सिविल सेवक शैलजा चंद्रा के अनुसार नए जिलों का निर्माण तो होना ही था.

चंद्रा ने दिप्रिंट से कहा, “कुछ भारतीय राज्य क्षेत्रफल की दृष्टि से लगभग पश्चिमी यूरोप के कई देशों से बड़े हैं. लोग भी चाहते हैं कि उनके क्षेत्र पर ध्यान दिया जाए. किसी क्षेत्र को जिले का दर्जा मिलने के बाद वह नजर में आता है.”

नवगठित जिले

अप्रैल 2022 में आंध्र प्रदेश की जगन मोहन रेड्डी सरकार ने राज्य में जिलों की संख्या दोगुनी कर 13 से 26 कर दी.

पांच महीने बाद, सितंबर 2022 में छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने पांच नए जिले बनाए, जिसमें मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी, सारंगढ़-बिलाईगढ़, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर और सक्ती शामिल हैं.

इस साल 25 अगस्त को, असम कैबिनेट ने चार नए जिलों- बिस्वनाथ, होजाई, बजाली और तामुलपुर के निर्माण की घोषणा की. यह मध्य प्रदेश सरकार में चौहान सरकार द्वारा मऊगंज को एक जिले के रूप में बनाने की घोषणा करने के बाद आया. राजस्थान, जहां कुछ विधानसभा चुनाव करीब है, ने इस महीने की शुरुआत में 17 नए जिले बनाए थे.

इनके अलावा, 2020 और 2023 के बीच पंजाब (मलेरकोटला), कर्नाटक (विजयनगर), तमिलनाडु (मयिलादुथुराई) और अरुणाचल प्रदेश (ईटानगर) में एक-एक जिले का निर्माण हुआ. इस बीच, नागालैंड में पांच नए जिले बनाए गए- नोक्लाक, चुमौकेदिमा, निउलैंड, त्सेमिन्यु और शामतोर. यह राज्य सरकार द्वारा नए जिले बनाने का पहला फैसला था. इससे पहले 2003 में तीन जिलों को अधिसूचित किया गया था. जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है.


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राजनीतिक निहितार्थ

ऐसी घोषणाओं के चलते संबंधित राज्य सरकारों पर वोटों की खातिर “राजनीतिक नौटंकियों” करने के आरोप लगते रहे हैं. हालांकि, अगर मध्य प्रदेश में कांग्रेस बीजेपी पर यह आरोप लगा रही है, तो राजस्थान में बिल्कुल इसका उलटा है.

पिछले महीने सरकार के इस फैसले से पहले राजस्थान में आखिरी बार 2008 में एक नया जिला बनाया गया था, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर से प्रतापगढ़ को अलग कर दिया था.

अशोक गहलोत सरकार द्वारा जिलों के नवीनतम पुनर्गठन के साथ, दिप्रिंट के विश्लेषण से पता चलता है कि बनाए गए अधिकांश नए जिले उन क्षेत्रों में थे जहां कांग्रेस ने 2018 में अच्छा प्रदर्शन किया था. गहलोत का यह कदम पार्टी के लाभ को मजबूत करने का एक प्रयास के रूप में दिखता है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि परंपरागत रूप से बीजेपी का गढ़ रहे मेवाड़ को सिर्फ एक नया जिला मिला है.

मार्च में गहलोत की घोषणा के बाद, राजे ने खर्च पर जोर देने की कोशिश की, आरोप लगाया कि सरकार के फैसले ने राज्य के वित्त को दांव पर लगा दिया है. लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए, यह अपनी राजनीतिक संभावनाओं को बढ़ावा देने का एक अवसर बनकर आया है, क्योंकि इनमें से कई जिलों की मांग लंबे समय से लंबित थी.

मोइली और चंद्रा दोनों के अनुसार, लागत “दीर्घकालिक लाभ” को ध्यान में रखते हुए ऐसे निर्णयों को रोक नहीं सकते हैं.

मोइली कहते हैं, “सिर्फ इसलिए कि एक नए जिले के निर्माण से प्रशासनिक लागत में वृद्धि होती है, आप लोगों को उनकी मांगों और अधिकारों से वंचित नहीं कर सकते. हमें याद रखना चाहिए कि कुछ लोगों ने कहा था कि भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन देश के विघटन का कारण बनेगा. लेकिन यह एक सफल प्रयोग था और इससे देश को एकीकृत करने में मदद मिली, क्योंकि शासन ने लोगों की जरूरतों को पूरा किया.”

चंद्रा ने जोर देकर कहा कि एक नए जिले का निर्माण वहां के लोगों में “स्वामित्व और गौरव की भावना” भी निहित करता है. हालांकि, तत्काल राजनीतिक लाभ या ऐसे निर्णय लेने वाली लॉबी का मुद्दा अलग है.

उन्होंने कहा, “राजस्थान के मामले में यह स्पष्ट रूप से तत्काल राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश के रूप में दिखता है.वे इसे पहले क्यों नहीं कर सके. लेकिन फिर भी इसे गलत निर्णय नहीं कहा जा सकता.”

उन्होंने आगे कहा, “जाहिर तौर पर यह एक सार्वजनिक मांग थी. अगर कोई मांग है और अधिकारियों को उसमें कुछ गुण नजर आते हैं, तो जो खर्च आएगा, वह सरकार चलाने में होने वाले कुल खर्च की तुलना में बहुत कम होगा.”

इसके अलावा, नए जिलों के निर्माण से व्यय में भी वृद्धि होती है, क्योंकि इसमें नए सरकारी पदों का निर्माण शामिल होता है, जैसे कि जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक आदि के कार्यालयों तथा उनके आवास का निर्माण. हालांकि, चंद्रा का मानना है कि नया जिले बनने से एक नया प्रशासनिक तंत्र एक्शन में आता है जिससे लोगों को लाभ मिलता है.

उनके अनुसार- क्योंकि एक जिले में सब कुछ अंततः कलेक्टर के इर्द-गिर्द घूमता है, भले ही स्थानीय सांसद या विधायक कितना भी मजबूत क्यों न हो – सभी सरकारी योजनाओं को लागू करने, विकास कार्य करने और कानून व्यवस्था बनाए रखने का कार्य काफी हद तक कलेक्टर के पास होता है.

शासन, विकास पर प्रभाव

क्या नए जिलों के निर्माण से शासन में सुधार होता है? हालांकि, इसका कोई स्पष्ट सबूत नहीं है.

सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि पिछले महीने से पहले, राजस्थान में जिलों का औसत आकार 10,370 वर्ग किमी था, जो राष्ट्रीय औसत 4,198 वर्ग किमी से दोगुने से भी अधिक है. नए जिलों के निर्माण के बाद, औसत आकार घटाकर 6,844 वर्ग किमी कर दिया गया है. इससे प्रशासन को कई लोगों तक पहुंचने में थोड़ी आसानी होगी, कम से कम कागजों पर तो जरूर.

इसके बावजूद, जनसंख्या वृद्धि के कारण राजस्थान में प्रति जिले औसत जनसंख्या में मामूली गिरावट आई है- 2011 में 18.9 लाख से बढ़कर 2023 में 18.2 लाख (अनुमानित).

आंध्र प्रदेश में नए जिलों के निर्माण से भी प्रति जिले का औसत क्षेत्रफल 12,323 वर्ग किमी – जो कि देश में सबसे अधिक था – आधे से घटाकर 6,161 वर्ग किमी पर पहुंचा. यह फैसला मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के द्वारा चुनाव से पहले किए गए वादे के चलते लिया गया था.

लेकिन इस संबंध में वाईएसआरसीपी सरकार के फैसले की काफी आलोचना भी हुई. विपक्षी दलों के साथ-साथ नागरिक समाज समूहों ने आरोप लगाया कि यह फैसला बिना किसी परामर्श के लिया गया था.

दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की अध्यक्ष यामिनी अय्यर का तर्क है कि डेटा के अभाव में, नए जिलों के निर्माण से शासन में सुधार में मदद मिलती है या नहीं, यह एक रहस्यमय प्रश्न बना हुआ है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “कागज़ पर, छोटे जिलों का निर्माण बहुत मायने रखता है. लेकिन आकार केवल एक पैरामीटर है जिसे हम देख रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि किसी को यह भी देखने की जरूरत है कि क्या यह क्षमता निर्माण और स्थानीय निकायों को मजबूत करने के साथ-साथ चलता है.

अय्यर ने कहा, “क्षमता निर्माण में मुख्य रूप से उच्च वित्त पोषण, अधिक प्रशिक्षित मानव संसाधनों और आम तौर पर उत्तरदायी तथा जवाबदेह प्रशासनिक संरचना स्थापित करने की आवश्यकता का उल्लेख कर रही हूं.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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