आसनसोल: पिछले कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल के दूसरे सबसे बड़े शहर आसनसोल में हुए सूक्ष्म बदलावों ने स्थानीय लोगों को भी चौंकाया है.
अपने महानगरीय चरित्र पर गर्व करने वाले शहर में अचानक हर तरफ पेड़ों के नीचे हनुमान देवता की मूर्तियां देखी जाने लगी हैं. हर मंगलवार को धार्मिक उत्साह खुलकर दिखता है, जब आस्थावान इन मूर्तियों की पूजा के लिए आगे आते हैं. धार्मिक मुद्दों पर चर्चा के संभावित नतीजे के डर से अपना नाम नहीं देते हुए एक स्थानीय निवासी ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि पहले आसनसोल में हनुमान मंदिर नहीं थे. पर ऐसे मंदिरों की संख्या अचानक से बढ़ गई है.’
पर ये स्थिति आसनसोल तक ही सीमित नहीं है. पुरुलिया, झारग्राम और बीरभूम जैसे पश्चिम बंगाल के अनेक जिलों और शहरों में हिंदू समुदाय के अपनी धार्मिकता के खुले प्रदर्शन का एक पैटर्न देखा जा सकता है. इसके पीछे विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों की भूमिका है और इसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समर्थन प्राप्त है.
यह भी पढ़ेंः ममता-मोदी के ऐतिहासिक लड़ाई के लिए उत्तरी बंगाल तैयार
तृणमूल का मुस्लिम ‘तुष्टिकरण’
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा के प्रभाव में वृद्धि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के मुस्लिम तुष्टिकरण के समानांतर, और शायद उसकी प्रतिक्रिया में हुई है. आसनसोल की आबादी में तीन चौथाई हिंदू हैं, जिनमें से आधे हिंदी भाषी गैर-बंगाली हैं. आज यहां रामनवमी का त्यौहार दुर्गा पूजा से अधिक नहीं तो उसके बराबर का महत्व ज़रूर रखने लगा है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार रामनवमी और हनुमान जयंती को लेकर इतना अधिक धार्मिक उत्साह बंगाल के लिए अभूतपूर्व है. भाजपा के आगे आने के बाद टीएमसी भी रामनवमी और हनुमान जयंती के आयोजन करने लगी है.
पश्चिमी बंगाल स्थित अर्थशास्त्री और राजनीतिक विश्लेषक शुभनील चौधरी के अनुसार रामनवमी के जुलूस, जिनमें तेज़ संगीत के बीच तलवार लिए युवक चलते हैं, आज हिंदू पहचान की अभिव्यक्ति के प्रतीक बन चुके हैं. उनके अनुसार यह टीएमसी की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति का सीधा नतीजा है.
मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने 2012 में मस्जिदों के इमामों को हर महीने 2,500 रुपये और मुअज़्ज़िनों को हर महीने 1,500 रुपये का मासिक भत्ता देने की घोषणा की थी. फिर 2017 में बनर्जी सरकार ने दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए पारंपरिक रूप से दिए जाने वाले समय को कम कर दिया था, क्योंकि उसी दिन मुहर्रम के मातमी जुलूस भी निकलने थे.
अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर आसनसोल के एक भाजपा नेता ने कहा, ‘इन सब कदमों ने सांप्रदायिक भावना को उभारने में योगदान दिया. उनकी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति ने हिंदू मतदाताओं को एकजुट कर दिया.’ चौधरी के अनुसार सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के आरोपियों को गिरफ्तार करने में टीएमसी सरकार की विफलता ने आक्रोश को बढ़ाने का ही काम किया है. उनके अनुसार, ‘यही बंगाल में धार्मिक ध्रुवीकरण का कारण बना. सांप्रदायिक रंग वाले चुनाव अभियान से टीएमसी के मुकाबले भाजपा को ज़्यादा फायदा होगा.’
ऊपर उल्लिखित भाजपा नेता ने इससे सहमति जताते हुए कहा, ‘आम मान्यता यही है कि, उदाहरण के लिए, कोई मुसलमान यदि ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करता हो तो पुलिस उस पर ध्यान नहीं देगी. पर यदि एक हिंदू वही गलती करेगा तो पुलिस उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी. इस तरह के रवैये ने हिंदुओं को आशंकित कर दिया है और वे भाजपा का साथ देने लगे हैं.’
हिंसक झड़पें
गत सप्ताह, आसनसोल के बाहरी इलाके में बंगाल-झारखंड सीमा के पास स्थित बराकर कस्बे में रामनवमी के जुलूस के दौरान हिंसक झड़पें हुईं. जिसके बाद 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया और प्रशासन को वहां निषेधाज्ञा लगानी पड़ी. गड़बड़ी की यह घटना आसनसोल में रामनवमी के दौरान हुए हिंदू-मुस्लिम संघर्ष के ठीक एक साल बाद हुई है. बीते साल की हिंसा में आसनसोल की नूरानी मस्जिद के इमाम के 16 वर्षीय बेटे की जान चली गई थी.
यह भी पढ़ेंः पश्चिम बंगाल को चाहिए असली बदलाव, ममता बनर्जी का ‘पोरिबर्तन’ नहीं
तीखा ध्रुवीकरण
कोलकाता के सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र में राजनीतिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर मैदुल इस्लाम के अनुसार इस बार के लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में सर्वाधिक तीखा ध्रुवीकरण देखने को मिला है. उन्होंने कहा, ‘आज पहले के मुकाबले अधिक संख्या में धार्मिक त्यौहार खुलकर मनाए जा रहे हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री धर्मनिरपेक्षता के पुराने वामपंथी और उदारवादी मॉडल में यकीन नहीं करती हैं, जिसमें धर्म और राजनीति के बीच फासला रखने तथा धर्म के निषेध पर ज़ोर दिया जाता था.’
इस्लाम ने बताया, ‘टीएमसी ने ऐतिहासिक रेड रोड पर दुर्गा पूजा मेला आयोजन की शुरुआत कर दी. अब तक 1820 में निर्मित इस मुख्य मार्ग पर सिर्फ ईद की नमाज़ का आयोजन होता था. वह एक सांकेतिक संदेश देना चाहती थीं कि रेड रोड सिर्फ नमाज़ के आयोजन के लिए ही नहीं है. यह तुष्टीकरण के विपरीत संतुलन का एक प्रयास था.’
वैसे, टीएमसी सांसद सौगत राय ने दिप्रिंट से बातचीत में ‘तुष्टीकरण’ के आरोप को ही खारिज कर दिया. राय ने कहा, ‘इसके विपरीत, मुसलमानों को लेकर टीएमसी की नीतियां पुरानी गलती को सुधारने की कोशिश मात्र हैं. राज्य में किसी भी विकास कार्य के लिए मुसलमानों को साथ लेकर चलना होगा. उन्हें साथ लेकर चलना तुष्टीकरण नहीं है.’
उधर, मालदा में दिप्रिंट से बातचीत में पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रमुख दिलीप घोष ने हिंदुत्व को भाजपा की राष्ट्रीय विचारधारा बताते हुए कहा था कि इसे बंगाल में प्रचारित करने में कुछ भी गलत नहीं है. उनका कहना था, ‘हम हिंदुत्व की बात कर सकते हैं, इसमें कुछ भी गलत नहीं है. हम जो भी कर रहे हैं वो संवैधानिक हदों के भीतर है.’
हालांकि विशेषज्ञ टीएमसी और भाजपा के धार्मिक कार्ड खेलने को एक खतरनाक प्रवृति मानते हैं.
संभावित चुनावी परिणाम
स्पष्ट दिख रहे ध्रुवीकरण का पर्याप्त हिंदू आबादी वाली 14 लोकसभा सीटों पर असर पड़ सकता है. आसनसोल, बीरभूम, पुरुलिया, बर्दवान, हुगली, हावड़ा और बोलपुर में भाजपा को बढ़त मिलने की संभावना है. अच्छी-खासी मुस्लिम आबादी वाली मालदा, मुर्शिदाबाद और जंगीपुर जैसी सीटों पर ध्रुवीकरण के कारण परंपरागत समीकरणों में उलटफेर भी हो सकता है. जैसै, 50 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले मालदा में टीएमसी, कांग्रेस और भाजपा के बीच त्रिकोणीय संघर्ष है. इस जिले की दो सीटें परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ रही हैं, पर यदि मुसलमानों के वोट टीएमसी और कांग्रेस के बीच बंटते हैं, तो ऐसे में भाजपा को फायदा हो सकता है.
कांग्रेस पार्टी के एक नेता के अनुसार, ‘भाजपा को मालदा की दो सीटों पर सफलता तो नहीं मिलेगी, पर वह टीएमसी और कांग्रेस दोनों के ही वोटों में सेंध ज़रूर लगाएगी.’
यह भी पढ़ेंः लोकसभा चुनाव के बीच प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देने के प्रयास में मोदी सरकार
पिछली बार 2014 के चुनाव में, भाजपा को पश्चिम बंगाल की 42 में से मात्र दो सीटों पर जीत हाथ लगी थी, जबकि टीएमसी के खाते में 34 सीटें आई थीं. वैसे, ऊपर-ऊपर तो भाजपा राज्य में 22-23 सीटें जीतने के लक्ष्य की बात करती है, पर अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि अधिक यथार्थवादी आकलन में पार्टी के छह से आठ सीटें जीतने की ही संभावना दिखती है.
अपना नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘संभव है हम पहले नंबर पर नहीं रहें, पर हमारा प्रभाव क्षेत्र निश्चय ही बढ़ेगा. यह 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए हमें मज़बूत स्थिति में ला खड़ा करेगा.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)