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Saturday, 20 April, 2024
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ममता-मोदी के ऐतिहासिक लड़ाई के लिए उत्तरी बंगाल तैयार

जिस तरह से भाजपा पश्चिम बंगाल में तेजी से बढ़ रही है, उस हिसाब से प्रदेश के उत्तरी क्षेत्र में लड़ाई दीदी और दादा के बीच होने जा रही है.

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कूचबिहार, अलीपुर द्वार, सिलीगुड़ी: जिस तरह से भाजपा पश्चिम बंगाल में तेजी से बढ़ रही है, उस हिसाब से प्रदेश के उत्तरी क्षेत्र में लड़ाई दीदी और दादा के बीच होने जा रही है. उत्तरी बंगाल की आठ लोकसभा सीटों में भाजपा की नजर कूच बिहार, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी और दार्जलिंग पर है. पिछले 10 दिनों में पार्टी ने क्षेत्र में दो हाई प्रोफाइल रैलियां की हैं. जहां 3 अप्रैल को सिलीगुड़ी की जनता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया वहीं 29 मार्च को अलीपुर द्वार में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनावी रैली की.

पिछले कई सालों मेंं जो माहौल भाजपा ने बनाया था अब वो उसे भुनाने की फिराक में है. यहां की फिजा में जिस तरह का माहौल है उससे लगता है कि यह चुनाव मोदी की भाजपा और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तृणमूल  कांग्रेस के बीच होने जा रहा.

चाहे वो कूच बिहार में पुराने बांग्लादेशियों का शरणस्थल हो या फिर अलीपुर द्वार के चाय बेचने वाले हो या जलपाईगुड़ी में मौजूद आलू उगाने वाले मजदूर, इन सभी का एक ही मत है कि लहर दोनों के लिए है. दीदी (बंगाली में बड़ी बहन को  कहा जाता है, जोकि यहां ममता बनर्जी के लिए प्रयोग किया गया है) का भी और दादा (बड़े भाई को बंगाली में बोला जाता है, यहां मोदी के लिए) का भी.

कूच बिहार के मशालदंगा एनक्लेव में रहने वाले स्थानीय नागरिक मानो बर्मन कहते हैं ‘दीदी की छवि साफ-सुथरी है. वो तो तृणमूल के कार्यकर्ता हैं जोकि पार्टी और उनका नाम खराब कर रहे हैं.’

वे आगे कहते हैंं,’इस क्षेत्र में जो भी राज्य सरकार द्वारा विकास कार्य शुरू किए गए हैं वो 2015 में इसका भारत का हिस्सा बनने के बाद से हुए हैं क्योंकि मोदी सरकार ने उसी के बाद से फंड देना शुरू किया.

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2014 लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र की तीन सीटों पर तीसरे स्थान पर आने वाली भाजपा के लिए भले बंगाल के चुनावी दौड़ में प्रमुख रूप से शामिल होना उसके लिए एक उपलब्धि है, लेकिन उसे यहां अभी कड़ी मेहनत करनी है. अगर त्रिमुल से टक्कर लेनी है तो कम से कम इन दो क्षेत्रों में भाजपा को कड़ी मेहनत करनी होगी.

2014 में भाजपा ने दार्जलिंग सीट जीता और अलीपुरद्वार में तीसरे स्थान पर रहते हुए भी 27.41 फीसदी वोट पाकर सम्मानजनक प्रदर्शन किया. अलीपुरद्वार में जीत दर्ज करने वाली त्रिमुल कांग्रेस को 29.58 फीसदी वोट मिले थे.

टीएमसी ने बाकी दो सीटें आराम से जीतीं, कूच बिहार में जहां उसे 39.5 प्रतिशत वोट मिले वहीं जलपाईगुड़ी में 37.93 प्रतिशत मतदाताओं ने उसका साथा दिया. दूसरी ओर भाजपा को कूचबिहार में 16.33 प्रतिशत और जलपाईगुड़ी में 16.99 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए. ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (एआईएफबी), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) और सीपीआई (एम) जैसे वामदलों के गठबंध ने यहां के तीनों क्षेत्रों में दूसरा स्थान हासिल किया.

कूचबिहार में एआईएफबी ने 32.96 फीसदी वोट हासिल किए, जबकि आरएसपी ने अलीपुरद्वार में 27.84 फीसदी वोट हासिल किए. जलपाईगुड़ी में, सीपीएम को 32.6 प्रतिशत वोट मिले थे. इस बार, कूचबिहार और अलीपुरद्वार 11 अप्रैल को चुनाव होंगे, जबकि जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग में 18 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे.

धार्मिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण

इन क्षेत्र में भाजपा का उदय होना उसके द्वारा ध्रुवीकरण की नीति अपनाना है. ऐसा मानने वालों में सीपीएम नेता और सिलीगुड़ी के मेयर अशोक भट्टाचार्य हैं, जो कहते हैं कि यह हिंदुत्व और भाजपा का राष्ट्रवादी विमर्श है जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम विभाजन हुआ है.

हालांकि, उन्होंने आगे कहा कि इसके लिए ममता बनर्जी को भी थोड़ा बहुत जिम्मेदार माना जा सकता है. भट्टाचार्य कहते हैं, ‘अल्पसंख्यक समुदाय के साथ की जाने वाली उनकी तुष्टिकरण की राजनीति. वो चाहे इमाम भत्ता देना हो (इमामों के लिए मासिक वेतन) या फिर 2014 का चुनावी पोस्टर, जिसमें वो नमाज पढ़ते हुए नजर आ रही है. इसने भाजपा को हिंदुत्व कार्ड खेलने के लिए जमीन तैयार कर दी.’

बीजेपी इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा. भाजपा अध्यक्ष शाह ने 29 मार्च को अलीपुरद्वार में अपनी रैली के दौरान कहा कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो वह पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लागू कर सभी ‘घुसपैठियों’ को बाहर का रास्ता दिखा देगी.

उन्होंने कहा कि हम सुनिश्चित करेंगे कि हिंदू शरणार्थियों को छुआ नहीं जाए.

यह बातें जमीन पर गूंजती हुई नजर आ रही है. जलपाईगुड़ी में मिठाई की दुकान चलाने वाले मृण्मय घोष कहते हैं, ‘मुस्लिमों के प्रति उनके (ममता के) तुष्टिकरण के कारण हिंदू तृणमूल से सावधान हो गए हैं. इससे भाजपा को समर्थन हासिल करने में मदद मिली है, जिसे हिंदुओं की रक्षा करने वाली पार्टी के रूप में माना जाता है.”

2011 की जनगणना के अनुसार, कूचबिहार में 28 लाख आबादी के साथ हिंदुओं की जनसंख्या 74.06 फीसदी है, जबकि मुसलमान 25.54 प्रतिशत हैं. अलीपुर द्वार में, 65,232 आबादी के साथ 97.59 प्रतिशत हिंदू हैं, वहीं मुस्लिमों की आबादी महज 1.68 फीसदी है.

जलपाईगुड़ी में, 38 लाख लोगों में, हिंदू 81.51 प्रतिशत हैं जबकि मुस्लिम 11.15 प्रतिशत हैं. दार्जिलिंग में, हिंदुओं की कुल 18.46 लाख आबादी में 74 प्रतिशत हैं जबकि मुसलमान 5.69 प्रतिशत हैं.

मोदी की लोकप्रियता

2014 में, पश्चिम बंगाल उन मुट्ठी भर राज्यों में से था, जहां मोदी लहर नाकाम रही थी. टीएमसी ने यहां 42 में से 34 सीटें जीती थीं. हालांकि, इस बार प्रधानमंत्री का प्रभाव दिखाई दे रहा है. बालाकोट हवाई हमलों ने उनकी छवि को फायदा पहुंचाया है.

नक्सलबाड़ी में एक निजी कंपनी में काम करने वाले 25 वर्षीय मनतोष दास कहते हैं, ‘पहली बार, हमारे पास एक नेता है जिसने पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है. वह निर्णय लेने में सक्षम है और भारत को आगे ले जाने में प्रतिबद्ध है.

इनमें से कई क्षेत्रों में मतदाता भाजपा उम्मीदवार को पहचान भले नहीं रहे हैं लेकिन कहते हैं कि वे मोदी के नाम पर वोट देंगे. अलीपुर द्वार के मझदेबरी चाय एस्टेट में एक प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका सुनीता बरई ने कहा, ‘हमने पिछले कुछ वर्षों में उनके द्वारा किए गए कार्यों को देखा है. और हमे अपना मन बनाने के लिए यह काफी है.’

हालांकि, कई लोग हैं, जो उनकी और उनकी पार्टी की राजनीति से सावधान हैं.

कूचबिहार विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए कर रहे सद्दाम हुसैन कहते हैं, ‘इससे पहले, हमने हिंदू-मुस्लिम के संदर्भ में कभी नहीं सोचा था. लेकिन बीजेपी ने इस सांप्रदायिक विभाजन को राजनीतिक प्रवचन में पेश किया जोकि एक बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति है और आगे विभाजन को बढ़ाएगा.’

अलग-थलग पड़े वामदल

उत्तर बंगाल के सभी क्षेत्रों में, वामपंथी दल अब नजर नहीं आ रहे.

2014 में एक सम्मानजनक प्रदर्शन के बावजूद, जहां फ्रंट तीन सीटों में दूसरे स्थान पर और दार्जिलिंग में तीसरे स्थान पर था, अब उसी कम्युनिस्ट पार्टियों को किनारे कर दिया गया है.

कूचबिहार और अलीपुर द्वार में कुछ जगहों को छोड़कर, वामदलों का किसी भी उत्सव या बैनर में शायद ही दिखाई दे रहे हो.

सीपीएम के एक स्थानीय कार्यकर्ता ने कहा, ‘ संगठन को बेमुरव्वत छोड़ते हुए, वाम मोर्चे के कई नेता या तो भाजपा या टीएमसी में शामिल हो गए हैं.’

‘वाम मोर्चा सरकार में मंत्री रहे एआईएफबी के वरिष्ठ नेता परेश प्रवेश पिछले साल टीएमसी में शामिल हुए थे और उन्हें कूचबिहार से टिकट दिया गया था. सभी स्तरों पर इस तरह के कई दलबदल हुए हैं.’

इसने इस क्षेत्र में एक भावना पैदा की है कि वाम मोर्चा के लिए मतदान एक निरर्थक कवायद है. जलपाईगुड़ी के एक टैक्सी ड्राइवर, रॉनी सेन कहते हैं, ‘पार्टियों में शायद ही कोई मौजूदगी है. उनके पास कोई नेता नहीं है. मैं अपना वोट  उनके लिए क्यों बर्बाद करूं?’

वामदलों के अलग थलग पड़ने पर, भाजपा और टीएमसी ने अपने अभियान चलाए हैं. मोदी ने 3 अप्रैल को सिलीगुड़ी में रैली की और 7 अप्रैल को कूचबिहार में एक और रैली की योजना है.

ममता ने कूचबिहार में रैलियों का आयोजन किया, उसी दिन जब मोदी सिलीगुड़ी में थे, 4 अप्रैल को कूच बिहार और 5 अप्रैल को नक्सलबाड़ी में एक रैली को संबोधित किया.

लेकिन दीदी की लोकप्रियता, स्थानीय लोगों का आरोप है कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा बाधा डाली जा रही है।

नक्सलबाड़ी के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक महादेव पाल कहते हैं, ‘तृणमूल कार्यकर्ता हिंसा में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में हिंसा करते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘आपने पिछले पंचायत चुनावों के दौरान जिस आतंक का भांडाफोड़ किया है, उसे आपने देखा होगा. पार्टी के कई नेता भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं.’

तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सांसद प्रोफेसर सौगत रॉय हालांकि आरोपों से इनकार करते हैं .हिंसा की भयावह घटनाएं हुई हैं लेकिन पश्चिम बंगाल एक बड़ा शांत राज्य है.’

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मुसलमानों के प्रति टीएमसी की नीतियां गलत करने के बारे में थीं.

कोलकत्ता में दम दम लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं रॉय ने कहा, ‘मुस्लिमों की आबादी पश्चिम बंगाल की 30 प्रतिशत है और वे पिछड़े हैं. यहां तक ​​कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी यह कहा गया है,  इसलिए राज्य में होने वाले किसी भी विकास को मुसलमानों को साथ लेना होगा. उन्हें साथ ले जाना तुष्टिकरण नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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