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Saturday, 20 April, 2024
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पश्चिम बंगाल को चाहिए असली बदलाव, ममता बनर्जी का ‘पोरिबर्तन’ नहीं

पश्चिम बंगाल को बदलाव की सख्त जरूरत है. वहां के लोग इतने सालों के कुशासन के बाद अब नरेंद्र मोदी सरकार पर भरोसा दिखा रहे हैं.

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पश्चिम बंगाल इस चुनाव में बदलाव चाहता है. उसे वो ‘पोरिबर्तन’ नहीं चाहिए जिसे तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने साल 2011 में सत्ता में आने के बाद लाने का वादा किया था.

पिछले कुछ दशकों से राजनीतिक हिंसा, गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण ने पश्चिम बंगाल को आगे बढ़ने नहीं दिया. कांग्रेस और वामदल से लेकर तृणमूल कांग्रेस तक किसी ने उनकी समस्याओं का हल नहीं निकाला बल्कि अपना ध्यान केवल सत्ता का सुख भोगने में लगाया. लगातार हिंसा का यह दौर, भ्रष्टाचार और चंद लोगों के हाथ में सत्ता का यह दौर अब खत्म होना चाहिए. ये रहे वो पांच कारण जो बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में बदलाव की क्यों जरूरत है.

राजनीतिक हिंसा की संस्कृति

34 साल के लेफ्ट के शासन के बाद पश्चिम बंगाल की जनता ने साल 2011 में ममता बनर्जी को वोट दिया था. उन्हें उम्मीद थी कि कोई पोरिबर्तन (बदलाव) होगा. लेकिन आज वही लोग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं क्योंकि यह बदलाव उनके लिए दुखस्वपन साबित हुआ. मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में किसी अन्य विचारधारा के पनपने के लिए कोई जगह नहीं दिखाई देती है.

पुरुलिया के त्रिलोचन महतो और बलरामपुर के दुलाल कुमार की हत्या हो गई थी. इसके पीछे कि संभावना जताई जा रही है कि वो भाजपा के कार्यकर्ता थे.

पिछले साल हुए पंचायत चुनाव में लगभग 34 प्रतिशत सीटों पर कोई चुनाव नहीं हुआ था और तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी निर्विरोध चुनाव जीत गए थे. जो भाजपा के प्रत्याशी पंचायत चुनाव जीते थे, वे अपनी मौत के डर से अस्थाई तौर पर कहीं और शिफ्ट हो गए थे.

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इस तरह की राजनीतिक हिंसा का इतिहास पुराना है. थोड़ा पीछे जाएं तो इसकी शुरुआत 1970 से हो गई थी. एक अनुमान के मुताबिक पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के शासन में 1977 से 2009 के बीच लगभग 55 हजार राजनीतिक हत्याएं हुई थी.

घोटाले की भूमि बंगाल

यह अपने आप में कितना विरोधाभास है कि एक तरफ तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी साफ-सुथरी छवि को प्रोजेक्ट करने में लगी हैं, वहीं उनकी पार्टी के कई नेता पर लाखों-करोड़ो की पोंजी योजनाओं के घोटाले के आरोप लगे थे. शारदा और रोज वैली घोटाले भी उसमें शामिल हैं.

शारदा ग्रुप ने घोटालों के खुलासे के पहले कई चिट फंड योजनाओं से लगभग 17 लाख निवशकों से 3,500 करोड़ रुपये इकट्ठा कर लिए थे. तृणमूल कांग्रेस के पूर्व सांसद कुणाल घोष और श्रीनजॉय बोस शारदा चिटफंड घोटाले के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं. ममता सरकार में परिवहन मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मदन मित्रा भी शारदा घोटाले में गिरफ्तार हो चुके हैं.

इसी तरह रोज वैली ग्रुप जिससे जुड़े कई होटल और रिजॉर्ट्स हैं उसने भी चिटफंड घोटाले के तहत लाखों निवेशकों के पैसे डुबो दिए. तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय और तपस पाल को भी सीबीआई ने इसी केस में गिरफ्तार किया था.

कई गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों ने अपने जीवन भर की कमाई चिट फंड योजनाओं में लगाई थी. इस उम्मीद में कि उन्हें अच्छा रिटर्न मिलेगा. कई एजेंट्स जिन्होंने इस योजना के तहत लोगों से पैसे लिए थे, उन्होंने आत्महत्या कर लिया.

विकास की धीमी रफ्तार और रोजगार की कमी

लेफ्ट शासित सरकार और उसकी खतरनाक योजनाओं ने इंडस्ट्रियों का सफाया कर दिया था. जिससे की पश्चिम बंगाल में रोजगार की संभावनाओं का संकट गहरा गया था. लगभग हर विभाग में एक योजनाबद्ध तरीके से भ्रष्टाचार देखने को मिला था. इससे पार्टी कैडर हर महत्वपूर्ण योजनाओं पर अपना प्रभाव डाल रहे थे. ऐसा कहा जाता है कि लेफ्ट कैडर का ऐसा प्रभाव था कि किसी को अपना राशन कार्ड लेने के लिए पहले लेफ्ट कार्यकर्ताओं से मुहर लगवानी पड़ती थी.

पश्चिम बंगाल की वर्तमान सरकार पर भी इसी स्टाइल को अपनाने का आरोप लग रहा है. प्रतिभावान और शिक्षित युवाओं का रोजगार की तलाश में बंगाल से दूसरे राज्यों में पलायन करने की बात सबके संज्ञान में है. हर पांच में से एक बंगाली बोलने वाला पश्चिम बंगाल के बाहर रहता है.

बहुत सारे लोगों का यह भी मानना है कि लेफ्ट पार्टियों के असहयोग के कारण पश्चिम बंगाल उदारीकरण का फायदा नहीं उठा पाया. और यह स्थिति वर्तमान सरकार में भी बदलती दिखाई नहीं दी. पश्चिम बंगाल कर्जे में डूबा देश का सबसे बड़ा राज्य है.

कोई राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं

ऐसा लगता है कि बंगाल आजादी के बाद अपनी दूसरी लड़ाई लड़ रहा है.

पिछले कुछ दशकों में लगातार सरकारों ने अपनी राजनीतिक और वैचारिक स्वतंत्रता अपने दम पर हासिल की है.

हाल ही में, उत्तर प्रदेश में एक लोकप्रिय सरकार का नेतृत्व करने वाले योगी आदित्यनाथ ने स्थानीय प्रशासन द्वारा उनके हेलीकॉप्टर को उतरने की अनुमति नहीं देने के बाद फोन पर बालूरघाट में एक रैली की थी. इसी तरह, अमित शाह के हेलीकॉप्टर को भी मालदा एयरपोर्ट पर हवाई अड्डे के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी. सितंबर 2017 में, एक राज्य सरकार द्वारा संचालित सभागार, जहां आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत भाषण देने के लिए जाने वाले थे उसकी बुकिंग स्थगित करा दी गई.

ऐसी परिस्थितियों में,  भाजपा कार्यकर्ता हर दिन किस तरह से लोहा ले रहे हैं उसे मैं समझ सकता हूं.

2012 में, जादवपुर विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का एक कार्टून फॉरवर्ड कर दिया था.

तुष्टीकरण की राजनीति

बंगाल का सामाजिक तानाबाना एक के बाद एक, लगभग हर सरकार ने बिगाड़ा है. मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति कांग्रेस द्वारा शुरू की गई थी और उसके बाद ये वोट बैंक की राजनीति के चक्कर में तृणमूल कांग्रेस समेत वहां कि कई क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा अपना ली गई.

हालांकि ममता बनर्जी द्वारा अपनाई गई वोट बैंक की राजनीति का खुलासा हो चुका है. पिछले दिनों उन्होंने एनआरसी के मुद्दे पर कहा था कि ये बंगाल में खूनखराबा लाएगा. यह देश को गृह युद्ध की स्थिति में ढकेल देगा. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने ममता बनर्जी को याद दिलाया कि 2005 में उन्होंने इसका ठीक उलटा कहा था. ममता बनर्जी ने तब कहा था कि ‘बाहरी घुसपैठियों के बंगाल में घुसने से एक खतरनाक स्थिति उत्पन्न होगी.’

बड़े पैमाने पर अवैध प्रवासन ने स्थानीय लोगों में भय की भावना पैदा कर दी है. पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा अब एक वास्तविकता है.

पश्चिम बंगाल को बदलाव की सख्त जरूरत है. वर्षों के कुशासन के बाद,  बंगाल के लोगों ने बड़ी संख्या में नरेंद्र मोदी की रैली के लिए बड़ी संख्या में हिस्सा लेकर उनके नेतृत्व क्षमता पर अपना भरोसा दिखाया है. वे ये सोच सकते हैं कि वास्तविक परिवर्तन अब आने वाला है.

(लेखक भाजपा युवा मोर्चा के कार्यकारी सदस्य हैं और ये उनके विचार हैं.) 

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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