तकरीबन उसी समय जब एक महान तर्कसंगत साक्षात्कार शूट हो रहा था आत्मबोधानंद ने जल त्यागने की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा कि गंगा के प्रति प्रधानमंत्री की उपेक्षा उन्हें मजबूर कर रही है कि वे अपने गुरु स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रो. जीडी अग्रवाल) की तरह ही प्राण त्याग दें.
अक्षय कुमार ने आदरणीय प्रधानमंत्री का इंटरव्यू उम्मीद के मुताबिक ही लिया. इसमें गंगा सहित किसी भी फिजूल विषय के लिए जगह नहीं थी यह पर्सनल टच के साथ प्रधानमंत्री के मन की बात का विजुअल वर्जन था. जिसमें उनके कुर्ते, खान-पान, उठने-जागने जैसी भविष्य के लिए संग्रहित किए जाने वाली बातें थीं.
अब भोले-भाले पर्यावरणवादी त्राहीमाम कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री कम से कम एक बार संतों की बात तो सुन लें, कि आखिर गंगा को लेकर उनकी ऐसी कौन सी चिंता है, जो जगमगाते हुए सफल कुंभ से भी दूर नहीं हो रही. पर्यावरणविद् इतनी सी बात नहीं समझते कि जब उन्होंने जीडी अग्रवाल के चार पत्रों का जवाब तो दूर पावती भी नहीं दी तो वे आत्मबोधानंद से क्या और क्यों बात करेंगे?
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ऐसा नहीं है कि सरकार ने आंखें एकदम बंद ही कर रखी हों. आत्मबोधानंद को 180 दिन से ज्यादा हो गए उपवास किए हुए लेकिन उनसे वार्ता करना तो दूर सरकार रवैया यूं था मानों मातृ सदन जैसी कोई चीज धरती पर है ही नहीं और आत्मबोधानंद का कोई अस्तित्व ही नहीं है. और गंगा की सभी समस्याओं का इलाज नित नए गढ़े जाने वाले नारों में समाहित है. लेकिन यह आशंका पैदा होते ही कि कहीं आत्मबोधानंद के जल त्यागने वाली बात राष्ट्रीय मुद्दा न बन जाए और वोटरों पर कोई नकारात्मक असर ना पड़े, नमामि के प्रमुख मातृ सदन पहुंच गए.
अब राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के मुखिया राजीव रंजन मिश्र का मातृ सदन जाने का हर्गिज यह मतलब नहीं कि सरकार आत्मबोधानंद से बात कर रही है. यदि ऐसा होता तो एनएमसीजी खुद मीडिया को यह बताती कि हमने आत्मबोधानंद से बात की और हम प्रस्तावित सभी और चार निर्माणाधीन बांधों को निरस्त करने जा रहे हैं. आखिर गंगा से जुड़ी हर छोटी बड़ी सरकारी बात प्रचारित करना ही नमामि गंगे का मुख्य काम है. उन्होने यह सब मौखिक रूप से आत्मबोधानंद से तो कहा लेकिन कुछ भी लिखित में नहीं दिया. अब आत्मबोधानंद ने जल त्यागने की समय सीमा दो मई तक बढ़ा दी.
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राजीव रंजन जी ने अपने मुंह से बोले गए शब्दों को कागज पर उतारने के लिए एक हफ्ते का समय मांगा है. लेकिन वास्तव में उनके मातृ सदन दौरे का एकमात्र उद्देश्य मामले को चुनाव तक टालना था कुल मिलाकर वे वहां टाइम बाए करने गए थे. बाकि महत्वपूर्ण मांगों जैसे खनन पर रोक, गंगा एक्ट, गंगा भक्तपरिषद पर उन्होंने कहा कि नई सरकार निर्णय लेगी. जबकि खनन पर रोक और प्रस्तावित बांधों को निरस्त करने का वादा सरकार ने जीडी अग्रवाल से भी किया था. इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जाना है सिर्फ कार्यवाई करनी है जिसे करने से चुनाव आयोग नहीं रोकता. लेकिन मिश्र ने यूं समझाया गोया गंगा जल छूने पर आचार संहिता का उल्लंघन हो जाएगा.
गंगा पर गिरते सरकारी नाले, चमड़ा शोधन का वेस्ट, सैकड़ों फैक्ट्रियों के केमिकल, सीवेज, एनटीपीसी का मछलियों को खत्म करता गरम पानी आदि को छोड़ दें तो गंगा साफ ही है. इस बारे में गंगा संरक्षण मंत्री की जानकारी अपने मंत्रालय से भी ज्यादा है. बानगी देखिए वे रैलियों में दावा कर रहे हैं कि गंगा नब्बे फीसद साफ हो गई वहीं नमामि गंगे की नोडल ऐजेंसी एनएमसीजी ने एक आरटीआई के जवाब में कहा है कि उसे नहीं मालूम कि गंगा कितनी साफ हुई है. मंत्री जी शायद एलईडी से चमकते घाटों को ही गंगा की निर्मलता समझते है.
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इसी तरह की बेहतरीन रोशनी में शूट हो रहे साक्षात्कार में प्रधानमंत्री भी अक्षय कुमार के साथ फिल्मी दुनिया में प्रवेश कर गए. पिछले कुछ समय से उन्हे यह दुनिया भा रही है. उन पर फिल्में और बेवसिरीज बन रही है, गाने लिखे जा रहे हैं और सब अच्छी बात यह ग्राफिक और तकनीक से सहयोग से आप जैसा चाहे वैसा देश दिखा सकते हैं, गंगा को भी खुबसूरत बना सकते है. अक्षय लगातार देशभक्ती वाली फिल्में बनाकर बेरोजगारी से जूझते लोगों के अंदर जोश भरने का काम कर रहे है.
हर दौर में सत्ता को यही भाता है. क्योंकि जोर से लगाया गया नारा आम आदमी के दुख भुलाने मे मददगार होता है. और जब प्रधानमंत्री और अक्षय कुमार खुद ही कह रहे हैं कि अच्छे दिन आ गए हैं तो शक की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. तो नारा लगाईए जिसकी जैसी श्रृद्धा हो वैसा नारा लगाइए – गरीबी हटाओ, जय जय श्री राम या घर–घर मोदी और हां फिल्में भी देखिए, दो ढ़ाई घंटे के लिए ही सही गर्व करने का मौका मिलता है.
(अभय मिश्रा लेखक और पत्रकार हैं.)