नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री राजकुमार रंजन सिंह के घर में आग लगने के एक दिन बाद, भीड़ ने शुक्रवार और शनिवार की दरमियानी रात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रदेश अध्यक्ष ए. शारदा देवी और भाजपा विधायक विश्वजीत सिंह के आवास को निशाना बनाने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उनकी कोशिशों को नाकाम कर दिया.
भीड़ ने इंफाल में सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यालय में भी तोड़फोड़ करने की कोशिश की और एक सेवानिवृत्त आदिवासी आईएएस अधिकारी के गोदाम को आग लगा दी.
भाजपा नेताओं पर हमलों ने पार्टी को चिंतित कर दिया है क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) के अध्यक्ष हिमंत बिस्वा सरमा के कानून और व्यवस्था को बहाल करने के प्रयासों के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ है.
इस बीच नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने कहा कि अगर मणिपुर में स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो वह बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के साथ अपने समर्थन पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होगी.
शुक्रवार और शनिवार की दरमियानी रात में आरएएफ ने भाजपा विधायक बिस्वजीत सिंह के आवास पर हमला करने के लिए जमा हुई भीड़ को तितर-बितर करने में कामयाबी हासिल की. इसी तरह सेना ने सिंगामेई में भाजपा कार्यालय और इंफाल पश्चिम में शारदा देवी के घर में तोड़फोड़ करने की भीड़ की योजना को विफल कर दिया.
शारदा ने दिप्रिंट को बताया, “वे (भीड़) निवास तक नहीं पहुंच सके और बल उन्हें तितर-बितर करने में सक्षम थे. उन्होंने भाजपा कार्यालय पर भी धावा बोलने की कोशिश की…कस्बे में स्थिति तनावपूर्ण है; मैं सो नहीं पा रही थी. यह दुर्भाग्य की बात है. राज्य शांति बहाल करने के लिए अपना काम कर रहा है, लेकिन मेरा दोनों समुदायों से यही अनुरोध है कि अलग-अलग तरीके हो सकते हैं लेकिन हमारा लक्ष्य राज्य का विकास है. सरकार अवैध अप्रवासियों के खिलाफ है किसी एक समुदाय के खिलाफ नहीं. हर समुदाय ने मणिपुर के लिए लड़ाई लड़ी है. पार्टी चिंतित है लेकिन हम आशावादी हैं कि सरकार शांति सुनिश्चित करेगी.”
भीड़ ने गुरुवार की रात सिंह के इंफाल घर और इंफाल पश्चिम जिले के लाम्फेल इलाके में मणिपुर के मंत्री नेमचा किपजेन के आधिकारिक आवास को आग लगा दी थी.
4 मई को मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह के साथ एक बैठक से लौटते समय भीड़ के हमले में तीन बार के भाजपा विधायक वुंगज़ागिन वाल्टे लगभग मारे गए थे. कुकी विधायक गंभीर रूप से घायल हो गए और उनकी हालत अभी भी गंभीर बताई जा रही है.
विदेश राज्य मंत्री सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “केंद्रीय बलों की मौजूदगी के बावजूद मणिपुर में कानून और व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह विफल रही है. मौजूदा सरकार केंद्र से सहायता के बावजूद कानून और व्यवस्था बनाए नहीं रख सकी. मुझे नहीं पता कि राज्य सरकार का तंत्र क्यों विफल रहा है. हमले के वक्त हम वहां नहीं थे, वरना हमारी जान को गंभीर खतरा हो सकता था. केंद्रीय गृह मंत्री ने मुझे फोन किया और मैंने पूरी घटना बताई.”
उन्होंने कहा, “ मैं चौंक गया था. मुझे अपने साथी नागरिकों से इस तरह के रवैये की उम्मीद नहीं थी…मैंने तुरंत सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह को फोन किया और उन्होंने अतिरिक्त बल भेजे और हमें पहले (25 मई को) बचा लिया गया था, लेकिन इस बार मैं उस वक्त बाहर था जब भीड़ ने धावा बोल दिया और घर को आग के हवाले कर दिया. मुझे नहीं पता कि वे मुझ पर हमला क्यों कर रहे हैं. मैंने प्रधानमंत्री से राज्य में शांति लाने का आग्रह किया है. मैं भी शांति लाने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन समुदायों के बीच भारी अविश्वास है और राज्य सरकार स्थिति को सामान्य करने में सक्षम नहीं है.”
गुरुवार की रात सब कुछ सामान्य था और फिर अचानक भीड़ ने हमला किया, मणिपुर के एक सांसद ने कहा, अग्निशमन कर्मी क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सके क्योंकि लोगों ने सड़क को अवरुद्ध कर दिया था.
3 मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले जाने के बाद हिंसा के बाद स्थिति नियंत्रण से बाहर होने के बाद कुकी और मैतेई के बीच जातीय संघर्ष में कम से कम 100 लोगों की जान गई, 300 से अधिक घायल हुए और मणिपुर में अपने घरों से 50,000 से अधिक विस्थापित हुए. गैर-आदिवासी मैतेई को एसटी श्रेणी में शामिल करने की मांग का विरोध कर रहे हैं.
कांग्रेस ने मांग की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर संकट पर एक सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए, पार्टी महासचिव संगठन के.सी. वेणुगोपाल ने ट्वीट किया कि राज्य सरकार के सहयोगी भी शांति बहाल करने में अपनी विफलता पर धैर्य खो रहे हैं.
एनपीपी के उपाध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री युमनाम जॉयकुमार सिंह ने हिंसा को रोकने के लिए बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा किए गए प्रयासों पर निराशा व्यक्त की.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “ऐसा लगता है कि केंद्र और राज्य ने स्थिति पर पकड़ खो दी है. केंद्रीय गृह मंत्री ने आश्वासन दिया कि 15 दिनों के बाद महत्वपूर्ण विकास होगा. सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया था, लेकिन हमें स्थिति में कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं दिख रहा है. राज्य जल रहा है. हम कब तक प्रतीक्षा कर सकते हैं? एनपीपी को सरकार को समर्थन देने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.”
राज्य में, जहां एनपीपी के सात विधायक हैं, वहीं भाजपा आराम से बैठी है क्योंकि उसके पास 60 सदस्यीय विधानसभा में 32 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत है.
हालांकि, एनपीपी की धमकी से बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की स्थिरता में बाधा नहीं आ सकती है, लेकिन भाजपा के भीतर एक वर्ग को लगता है कि मुख्यमंत्री ने अपनी साख खो दी है और जब तक वे कुर्सी पर हैं तब तक जातीय हिंसा को रोका नहीं जा सकता है.
एक वरिष्ठ केंद्रीय भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, “हम एक कैच 22 स्थिति में हैं. यह स्पष्ट है कि बीरेन सिंह ने राज्य में सभी समुदायों का विश्वास खो दिया है. उन्हें हटाना एक विकल्प हो सकता है, लेकिन यह भी सच है कि दो समुदायों के बीच विभाजन इतने बड़े स्तर पर है कि कोई भी व्यक्ति तत्काल शांति नहीं ला सकता क्योंकि बलों, समुदायों और पुलिस में विभाजन है.”
कुकी विधायक पहले ही बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग कर चुके हैं, लेकिन केंद्र ने स्थिति की जटिलता को जानते हुए भी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया है.
बीजेपी कुकी विधायक पाओलीनलाल हाओकिप ने दिप्रिंट को बताया, “मणिपुर में भाजपा सरकार स्थिति के लिए जिम्मेदार है और बीरेन सिंह इसके लिए जिम्मेदार हैं. उनकी जगह लिए बिना राज्य में कोई समाधान नहीं हो सकता क्योंकि आदिवासियों को बीरेन सिंह सरकार पर भरोसा नहीं है.”
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: मणिपुर को धधकते हुए 6 हफ्ते से अधिक समय बीत गया, यह राज्य और केंद्र सरकार की विफलताओं की गाथा है