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Wednesday, 20 November, 2024
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‘बीरेन पर विश्वास नहीं,’ कूकी विधायकों ने शाह से कहा- मणिपुर संकट को खत्म करने का एकमात्र रास्ता अलग प्रशासन

10 कुकी विधायकों के साथ 8 बीजेपी एमएलए के एक समूह ने केंद्रीय गृह मंत्री से अनुरोध किया कि कुकी और मैतेई के प्रशासनिक अलगाव के लिए एक उपयुक्त तंत्र पर 'गंभीरता से विचार' करें.

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नई दिल्ली: मणिपुर अब “जनसंख्या स्थानांतरण” के माध्यम से “विभाजित” हो गया है, 10 कुकी विधायकों ने एन बीरेन सिंह पर आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार और उनकी पुलिस सांप्रदायिक है और कूकी आदिवासियों की तबाही की वजह भी यही है.

भाजपा के आठ विधायकों सहित, कूकी विधायकों ने भी सीएम बीरेन सिंह पर कट्टरपंथियों को “संरक्षण” देने का आरोप लगाया है और कहा है कि अब “इम्फाल घाटी में फिर से बसने की हिम्मत नहीं कर सकते हैं” जहां “उनका जीवन अब सुरक्षित नहीं है”.

विधायकों के समूह, जिसमें बीरेन सिंह सरकार में एकमात्र कूकी मंत्री, लेप्टाओ हाओकिप भी शामिल थे. दिप्रिंट को पता चला है कि विधायकों के इस समूह ने शाह को बताया कि आगे बढ़ने का एकमात्र तार्किक तरीका कुकी-आबादी वाली पहाड़ियों के लिए एक अलग प्रशासन स्थापित करना है.

विधायकों ने शाह को तीन पन्नों का एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें उन्होंने कहा है कि हाल ही में बहुसंख्यक मैतई समुदाय द्वारा जातीय कूकी-चिन-मिजो-जोमी-हमार अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ किए गए संस्थागत जातीय सफाए और अत्याचार ने सभी को हैरान कर दिया है.

एक सूत्र के अनुसार, कुकियों और मैतेई लोगों के बीच छिड़ी जातीय झड़पों के बाद की स्थिति पर चर्चा करने के लिए, रविवार को कूकी नेताओं से मुलाकात के बाद शाह ने सोमवार को मणिपुर के मुख्यमंत्री और उनके चार कैबिनेट सहयोगियों के अलावा भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष ए. शारदा देवी और राज्यसभा सांसद संजाओबा लीशेम्बा संजाओबा, मणिपुर के राजा से मुलाकात की.

कूकी विधायकों ने गृह मंत्री से दो समुदायों के प्रशासनिक अलगाव के लिए एक उपयुक्त तंत्र पर “गंभीरता से विचार” करने का अनुरोध किया.

हालांकि आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच कुछ समय से तनाव बना हुआ है, 3 मई को ऑल-ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर द्वारा गैर-आदिवासी मैतई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग का विरोध करने के लिए बुलाए गई एकजुटता मार्च के बाद हिंसा भड़क उठी. अब तक, चिन, कुकी, ज़ोमी, मिज़ो, हमार और नागा सहित आदिवासी समूहों को मणिपुर में एसटी का दर्जा प्राप्त है.

तब जबकि मरने वालों की संख्या 60 को पार कर गई है, मणिपुर कर्फ्यू के अधीन है, हालांकि अधिकारी कुछ जिलों में छूट दे रहे हैं. राज्य सरकार ने इंटरनेट सेवाओं पर रोक 20 मई तक बढ़ा दी है.

गृह मंत्री जमीनी स्थिति से खुद को अवगत कराना चाहते थे. उन्होंने दोनों पार्टियों के विधायकों, सीएम और उनके चार कैबिनेट सहयोगियों और कुकी विधायकों से कहा कि वे राज्य में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए मिलकर काम करें.’

ज्ञापन में विधायकों ने लिखा है कि अब यह जमीनी हकीकत है कि मणिपुर का बंटवारा हो गया है. “कूकी-चिन-मिज़ो-ज़ोमी-हमार द्वारा बसाई गई घाटी और पहाड़ियों के बीच भारी आबादी का स्थानांतरण हुआ था. इंफाल घाटी में कोई आदिवासी नहीं बचा है. पहाड़ियों में कोई मैती नहीं बचा है. ज्ञापन में कहा गया है कि मणिपुर सरकार और उसकी पुलिस मशीनरी को सांप्रदायिक बना कर कुकी आदिवासियों के खिलाफ तबाही में इस्तेमाल किया गया है.


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‘साफ साफ विभाजन’

विधायकों ने आगे इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे इंफाल शहर में कूकी कॉलोनियों और घरों को चिन्हित किया गया और फिर हमला किया गया. मेमोरेंडम में कहा गया है कि “सर्वेक्षण और मैपिंग कुछ साल पहले कट्टरपंथी मैतेई स्ट्रोमट्रूपर्स द्वारा किया गया था, जो अब अरामबाई तेंगगोल और मैतई लेपुन के रूप में प्रकट हुए हैं. ज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह और मैतई महाराजा और संसद सदस्य लीशेम्बा सनाजाओबा द्वारा इस तरह की रेजीमेंटों का संरक्षण किए जाने के सबूत-फोटो हैं.

कूकी विधायकों ने कहा कि भीड़ की हिंसा पूर्व नियोजित थी. विधायकों ने लिखा ,“डीजी/अतिरिक्त डीजीपी/संयुक्त डीजी से लेकर कांस्टेबल तक सभी कूकी पुलिस अधिकारियों से उनकी सभी शक्तियां छीन ली गईं, 3 मई से बहुत पहले उन्हें निहत्था और निष्क्रिय कर दिया गया, जबकि मैतई पुलिस को शहर के कूकी निवासियों पर भी छोड़ दिया गया पहाड़ी क्षेत्रों में प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप, सभी मैतई पुलिस कर्मचारियों ने सभी हिल स्टेशनों में अपना पद छोड़ दिया है. ”

कूकी, जो पहाड़ी क्षेत्रों में प्रभावी हैं, आरक्षित वन में अफीम की खेती करने वाले अतिक्रमणकारियों को बेदखल करने के लिए फरवरी से सरकार की कार्रवाई का भी विरोध कर रहे थे. राज्य सरकार की कार्रवाई को आदिवासी कुकी-ज़ोमी समूहों ने अपने खिलाफ टार्गेट के रूप में देखा.

कुकी विधायकों ने यह भी कहा कि आदिवासी/कुकी पहाड़ियों और मैतई बहुल इंफाल घाटी के बीच एक “स्पष्ट विभाजन” देखा जा रहा है. ज्ञापन में कहा गया है, “हमारे लोगों ने मणिपुर सरकार में विश्वास खो दिया है और अब घाटी में फिर से बसने की कल्पना नहीं कर सकते हैं जहां उनका जीवन अब सुरक्षित नहीं है. मेइती हमसे नफरत करते हैं और हमारा सम्मान नहीं करते हैं. ”

उन्होंने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में, अब पहाड़ियों के लिए अलग प्रशासन की स्थापना के माध्यम से अलगाव की औपचारिकता की आवश्यकता है.उन्होंने कहा, “हम अब साथ नहीं रह सकते. आगे बढ़ने का एकमात्र तार्किक तरीका अलग-अलग रहना है और समय के साथ शायद शांति और समान शर्तों पर एक-दूसरे के लिए आपसी सम्मान और सम्मान वापस आ सकता है. ”

विधायकों के इसी समूह, जिसमें बीजेपी के सहयोगी, कूकी पीपुल्स अलायंस के दो सदस्य भी शामिल हैं, ने भी पिछले शुक्रवार को एक प्रेस बयान जारी कर केंद्र सरकार से “भारत के संविधान के तहत मणिपुर राज्य में एक अलग प्रशासन और पड़ोसियों के साथ शांति से रहने” की मांग की थी. ”


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