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Sunday, 24 November, 2024
होमफीचरबिहार में आनंद मोहन को ही नहीं मुस्लिम, यादव, पासवान जैसे 26 हत्यारों, बलात्कारियों को रिहा किया गया

बिहार में आनंद मोहन को ही नहीं मुस्लिम, यादव, पासवान जैसे 26 हत्यारों, बलात्कारियों को रिहा किया गया

जेल से छूटने के बाद अशोक यादव को लगा जैसे वह दूसरी शादी कर रहा है. अब उसे उसके गांव में वीआईपी की तरह ट्रीट किया जा रहा है.

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भोजपुर/पटना/लखीसराय: बिहार के लखीसराय में इंग्लिश मोहल्ले का भटका हुआ बेटा 17 साल बाद घर लौटा है. हत्या के आरोप में जेल की सजा काटने के बाद 48 वर्षीय अशोक यादव को रिहा होते देखने के लिए भारी भीड़ जमा हो गई. यादव उन 27 कैदियों में से एक हैं, जिसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले सप्ताह रिहा करने में मदद की थी, उनमें से सबसे प्रमुख गैंगस्टर से राजनेता बने आनंद मोहन सिंह हैं.

पूर्व दोषियों की एक झलक पाने के लिए भीड़ में कई लोग गेंदे की माला लिए इंतजार कर रहे थे. यह बताना मुश्किल था कि उनमें से कुछ को भयानक हत्याओं, बलात्कारों और अपहरणों के लिए दोषी ठहराया गया था.

आनंद मोहन सिंह की रिहाई ने देश भर में मीडिया, राजनेताओं और आईएएस अधिकारियों के आक्रोश का केवल सामना ही नहीं किया बल्कि पूरे देश का ध्यान भी आकर्षित किया. इनमें से कुछ और भी हैं जिन्हें बिहार सरकार ने उसी दिन रिहा कराया था, लेकिन वो लोगों की नजरों बच गए थे.

रिहा होने के तुरंत बाद अशोक यादव तीन अलग-अलग मंदिरों में गए. एक पुष्पांजलि जो उनके घर के प्रवेश द्वार के लिए बनाई गई थी, अभी भी वहां है. लोग उनसे मिलने और बधाई देने के लिए हर दिन पहुंचते हैं. अब जब वह जेल से छूट चुका है, तो उसे शर्मिंदा होने या नीचा महसूस करने की जरूरत भी नहीं रही है बल्कि अब उसे किसी वीआईपी से कम नहीं ट्रीट किया जा रहा है.

अपने पक्के सफेद घर में बैठे लखीसराय मंडल जेल से रिहा होने के आठ दिन बाद यादव ने कहा, “मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं फिर से शादी कर रहा हूं.”

जबकि आनंद मोहन की रिहाई ने कई पर्यवेक्षकों को आश्चर्यचकित किया और बिहार के राजद-जद (यू) खेमे में एक नए राजपूत-समावेशी राजनीतिक गठबंधन को आकार लेने का संकेत दिया, अन्य जो मुक्त हुए, वे इन क्षेत्रीय दलों के मूल आधार का हिस्सा हैं. रिहा किए गए व्यक्तियों में से 13 यादव और मुस्लिम समुदायों से आते हैं और इनमें से तीन दलित हैं. इनके अपराधों में डकैती से लेकर हत्या तक शामिल है.

बाहुबली की वापसी

यादव को स्थानीय लोगों द्वारा “छोटे मोटे बाहुबली” के रूप में जाना जाता है. लखीसराय हाल के दशकों में अपराध के लिए बदनाम हुआ है. पहले लोगों के घरों में एके-47 मिलना कोई बड़ी बात नहीं होती थी.

जैसे ही यादव गांव पहुंचे, उनके परिवार ने बच्चों में लगभग 200 किलोग्राम बर्फी, लड्डू और कैंडी बांटी. माहौल उत्सव और जश्न का था.

Ashok Yadav with his wife | Nootan Sharma, ThePrint
अशोक यादव अपनी पत्नी के साथ | नूतन शर्मा, दिप्रिंट

यादव के पड़ोसी महादेव यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘पड़ोस में हर कोई, बच्चों से लेकर दादा-दादी तक, यह देखने के लिए उत्सुक था कि इतने लंबे समय तक बंद रहने के बाद वह कैसे निकला.’

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, उसके खिलाफ 20 से ज्यादा मामले दर्ज थे. उसे 2003 में दो लोगों की हत्या के जुर्म में सजा मिली थी. लेकिन यादव को उसके खिलाफ चल रहे मुकदमों को लेकर कोई चिंता उसके चेहरे पर दिखाई नहीं दे रही है. यादव ने कहा, ‘मैंने उन दो-चार छोटे मामलों से प्रभावित होने के लिए जेल में बहुत अधिक समय बिताया है जो मेरे खिलाफ लंबित हैं.’

चमकता नया भूरे रंग का सूट, पीली शर्ट और नई चप्पल पहने, यादव की त्वचा दमक रही है, उनके बाल काले रंग में रंगे हुए हैं. “अब हमारा सबसे बड़ा उद्देश्य अपनी बेटी की शादी करना है.”

नीली साड़ी पहने, रंजू देवी ने कहा कि उनके पति की रिहाई एक सपने के साकार होने जैसा है. “मैं उनकी अनुपस्थिति में बच्चों की देख-भाल करती थी. मैंने उनकी रिहाई के लिए पिछले 17 सालों में हर देवता के आगे माथा टेका है. मैं हर दो-चार महीने में उनसे मिलने जाती थी. अब मैं आखिरकार उनके साथ रहूंगी.”

यादव ने रोड शो भी किया. लेकिन मीडिया का फोकस आनंद मोहन के रोड शो और भव्य पंचगछिया गांव स्वागत पर ज्यादा था.

रिहा हुए दोषियों की सूची में मुस्लिम और यादव के नाम भी शामिल हैं: मो. खुदबुद्दीन, अख्तर अंसारी, मो. दस्तगीर खान, अलाउद्दीन अंसारी, हलीम अंसारी, दस्तगीर खान, और अशोक यादव, शिवजी यादव, किरथ यादव, राजबल्लभ यादव, किशुनदेव राय, पतिराम राय, चंदेश्वरी यादव, और खेलावन यादव. कलेक्टर पासवान, रामधर राम और पंचानंद पासवान ये तीनों दलित हैं.

पतिराम राय नवंबर 2022 में 93 वर्ष के थे जब बक्सर सेंट्रल जेल में उनकी मृत्यु हो गई. 27 कैदियों में से सात को अगले दो साल तक महीने में एक बार स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होता है. इनमें अशोक यादव भी शामिल हैं.


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राजनीति और चुनावी एजेंडा

बिहार में विपक्षी नेता नीतीश कुमार पर दोषियों को रिहा करने के लिए इसे सीधे तौर पर चुनावी एजेंडा बता रहे हैं.

“अगर आनंद मोहन ने अपनी जेल की अवधि पूरी कर ली थी, जैसा कि सरकार अब दावा कर रही है, वो क्या था जिसने राज्य जेल नियमावली में संशोधन करने के लिए मजबूर किया ?” भाजपा नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा, “तथ्य यह है कि 26 खूंखार अपराधियों को मुक्त करने के लिए जेल मैनुअल को बदल दिया गया है.”

हालांकि जदयू के नेता राज्य सरकार के कदम को सही ठहरा रहे हैं.जद (यू) के विधायक संजीव कुमार ने कहा, “आनंद मोहन की रिहाई कानून के शासन के अनुसार की गई है. यह बिल्कुल सही हुआ है. इसपर उतना हंगामा क्यों हो रहा है? आनंद मोहन 15 साल से ज्यादा समय से जेल में हैं. सबकी राय लेने के बाद फैसला लिया गया है. परिहार बोर्ड ने 2017 के बाद से बिहार में 22 बार बैठक की है और 698 कैदियों को रिहा किया गया है. ”.

लेकिन पॉलिटिकल ऑप्टिक्स विपक्ष के लिए बिहार सरकार को घेरने का एक अवसर बन गया.

राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा, “नीतीश कुमार दलित और पिछड़ी जाति के लिए काम करने का दावा करते हैं लेकिन अब उन्होंने उन समुदायों के सामने खुद को बेनकाब कर दिया है. जब वह वोट देखते हैं, तो वह गरीबों, दलितों और सभी के बारे में भूल जाते हैं.”

आनंद मोहन सिंह को 2007 में 1994 में एक दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. इससे नाराज आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन ने निंदा का बयान जारी किया और मारे गए अधिकारी की पत्नी उमा देवी ने सुप्रीम कोर्ट में आनंद मोहन की जल्दी की गई रिहाई को लेकर भी एक याचिका दायर की है.

रिहा हुए कैदियों की सूची में अन्य के अपराध भी कम नहीं थे.

कोसी प्रमंडल के अवधेश मंडल पूर्व मंत्री और जदयू नेता बीमा भारती के पति हैं. ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाला मंडल सीमांचल क्षेत्र में कुख्यात फैजान गिरोह का संचालन करता था और स्थानीय मीडिया के मुताबिक उसके खिलाफ एक दर्जन से अधिक मामले दर्ज हैं. उन्हें लूट और हत्या के आरोप में 18 अप्रैल 2007 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

दूसरा उल्लेखनीय नाम पप्पू सिंह उर्फ राजीव रंजन का है. उसे 29 नवंबर 2010 को सजा सुनाई गई थी और उसके खिलाफ मोतिहारी में हत्या और अपहरण के कई मामले दर्ज हैं. उन्हें दो साल तक हर महीने स्थानीय थाने में उपस्थिति दर्ज कराने को कहा गया है.

सूची में एक और कुख्यात अपराधी देवनंदन नोनिया है. उन्हें 31 नवंबर 2013 को सजा सुनाई गई थी. उन्हें दो साल तक हर महीने मुफस्सिल थाने में हाजिर होने को भी कहा गया है.

पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास ने कहा, “नीतीश के अधीन बिहार ‘अंधेर नगरी, चौपट राजा’में बदल गया है. आनंद मोहन एक खूंखार माफिया डॉन है जिसे “आतंक” मोहन के नाम से जाना जाता है. लेकिन पलटू राम (नीतीश) ने उन्हें रिहा करने के लिए जेल मैनुअल में संशोधन करवाया. ”

वह आगे कहते हैं, “लोकसभा चुनाव 11 महीने दूर हैं. और नीतीश कुमार ने आनंद मोहन को राजपूत वोट बैंक देखते हुए रिहा कर दिया है! यह उस मुख्यमंत्री के लिए शर्मनाक है जो ‘सुशासन’ और ‘अंतरात्मा’ की बड़ी-बड़ी बातें करता है.

नया जीवन जीना सीखना

इस सूची में पासवान समुदाय के दो अपराधी शामिल हैं और इनमें से एक भोजपुर जिले के बेलौर गांव का कलेक्टर पासवान उर्फ घुरफेखान है. उसने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह जेल से बाहर आएंगे. 13 साल की उम्र में, पासवान को आरा मंडल जेल में स्थानांतरित करने से पहले अपने गांव के एक निवासी की हत्या के लिए जिले के किशोर गृह भेजा गया था. वह अब 30 साल का है और कैद के दौरान उसने पढ़ना-लिखना सीख लिया है. वह अपना नाम भी लिख सकता है.

पासवान के रिहा होने के बाद पत्रकारों और स्थानीय निवासियों सहित सैकड़ों लोग पासवान को देखने पहुंचे. उन्हें एक सरकारी वाहन में उनके घर तक छोड़ा गया जहां उनकी दृष्टिहीन और शारीरिक रूप से अक्षम मां मिट्टी के घर में उनकी प्रतीक्षा कर रही थी.

Collector Paswan with his family members | Nootan Sharma, ThePrint
कलेक्टर पासवान अपने परिजनों के साथ | नूतन शर्मा, दिप्रिंट

अपने छप्पर वाले घर के के नीचे बैठे पासवान ने कहा, “घर की हालत देखकर बहुत बुरा लगा. अगर मैं जेल नहीं गया होता, तो इसे ठीक से बनाया गया होता.”

रिहा होने के सात दिनों के बाद, उन्हें जेल की याद आने लगी और उन्हें नए माहौल में एडजस्ट करने में मुश्किल हो रही है. उसने आगे बताया, “इतने साल जेल में रहने के बाद, मुझे इसकी आदत हो गई है. अब मुझे यहां घर जैसा महसूस नहीं हो रहा है. “जेलर साहब ने हमें यह गमछा (तौलिया) पहनाया.”

पासवान के अच्छे व्यवहार के इनाम के तौर पर जेलर ने पासवान को एक शर्ट, एक जोड़ी जींस और एक तौलिया दिया. जब वह जेल से बाहर आया, तो उसने आरा जेल की रसोई में खाना पकाने के पैसे से एक सोने की घड़ी खरीदी.

उनके साथ चल रहे पांच सैनिकों और गले में 8-10 मालाओं के साथ, पासवान बेलौर के नए सितारे हैं. “जेलर ने मुझसे कहा कि किसी से ज्यादा बात मत करो, लेकिन लोग आते रहते हैं. पासवान ने कहा, यहां बैठने की भी जगह नहीं है.

पासवान अपनी उम्र से बड़े दिखते हैं. आजादी की ये मुस्कान उनके चेहरे से जा ही नहीं रही है. शादी करना उनकी प्राथमिकता है. पासवान ने कहा, “अब मैं शादी करूंगा, बच्चे पैदा करूंगा और अपना जीवन शांति से जीऊंगा. जेल भी अच्छी थी, लेकिन अब मुझे बाहर जीवन जीना सीखना होगा.’

पटना जिले के लमुआबाद गांव से करीब दो किलोमीटर दूर 45 वर्षीय शिवजी यादव अपने साले की शादी में शामिल हो रहे हैं. 15 साल जेल में बिताने के बाद यह उनकी पहली सार्वजनिक सभा है. उन्हें 2008 में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (NTPC) के लिए काम करने वाले एक मजदूर की हत्या के लिए सजा सुनाई गई थी.

27 अप्रैल को यादव की घर वापसी के लिए कोई जश्न नहीं था. उनका परिवार उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित था.

दूल्हे से ज्यादा मेहमान उससे बात करने में दिलचस्पी दिखा रहे थे. सुंदर सुंदर साड़ियों में महिलाएं शादी के हॉल में घूम रही हैं और उनकी एक झलक पाने की कोशिश में जुटी दिखाई देती हैं. लेकिन यादव के हावभाव शायद ही बदलते हैं. वह लोगों से बात करते हुए मुस्कुराते भी नहीं है.

उन्होंने कहा, “हम अब फिर से मुस्कुराना सीखेंगे क्योंकि हमें हमारी ज़िंदगी वापस मिल गई है.”

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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