नई दिल्ली/बेंगलुरु: इस सप्ताह कर्नाटक के कोलार, भाल्की और हुमनाबाद में दो दिनों के भीतर दिए गये अपने तीन से अधिक भाषणों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पिछड़े वर्गों पर केंद्रित एक नई राजनीतिक रणनीति की रूपरेखा तैयार करने की मांग उठाई. यह कदम भाजपा के ‘कमंडल’ या हिंदुत्व के मुद्दे का मुकाबला करने के लिए देश के मुख्य विपक्षी दल द्वारा ‘मंडल’ – जाति आधारित राजनीति का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक शब्द – वाले मुद्दे का फिर से ईजाद करने का एक प्रयास प्रतीत होता है.
राहुल गांधी ने रविवार को कोलार में बोलते हुए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर साल 2011 में की गई सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना के आंकड़ों को ‘छिपाने’ का आरोप लगाया, और यह मांग की कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षणा का कोटा ‘उनकी जनसंख्या के अनुपात में’ होना चाहिए. साथ ही, उन्होने आरक्षण की उच्चतम सीमा पर लगी 50 फीसदी की रोक को हटाने की भी मांग की. उन्होंने इस बात पर भी गुस्सा प्रकट किया कि सचिव स्तर के केवल 7 प्रतिशत सिविल सेवक ही ओबीसी/एससी/एसटी समुदायों से आते हैं.
हालांकि, यह कोई पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना के बारे में बात की है. पिछले साल, उन्होंने तेलंगाना के कोथुर में भी इसी तरह की मांग की थी, जिसमें कहा गया था कि देश के लोगों को ‘भारतीय आबादी की बुनावट’ को समझने की जरूरत है.
जातिगत जनगणना का मामला पिछले साल उदयपुर में आयोजित कांग्रेस के ‘नव संकल्प शिविर’ में भी चर्चा का विषय रहा था. इसके बाद, फरवरी 2023 में हुई रायपुर प्लेनरी (पूर्ण अधिवेशन) में भी इसकी पुष्टि की गई. फिलहाल जो बात अलग दिखती है वह यह है कि कांग्रेस पार्टी, जो जातिगत जनगणना के मुद्दे को कभी-कभार उठा कर बिना बात के हंगामे के दौर से गुजरती दिख रही थी, अब इस मांग में 50 प्रतिशत की अधिकतम (आरक्षण) सीमा को हटाने, और आनुपातिक आरक्षण जैसे नए तत्वों को शामिल करते हुए इस बारे में और दृढ़ता से लगातार आगे बढ़ा रही है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है, और ‘अप-टू-डेट जातिगत जनगणना’ की मांग को ‘अधिकारिक तौर पर’ सामने रखा है.
तो फिर, कांग्रेस आख़िर कर क्या कर रही है?
कर्नाटक BJP और मोदी सरनेम विवाद का मुकाबला करने की कोशिश
तात्कालिक संदर्भ में, यह कदम बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार द्वारा इस साल के शुरू में पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए निर्धारित आरक्षण श्रेणियों और सीमाओं में हेरफेर करने के फैसले का मुकाबला करने का प्रयास प्रतीत होता है.
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वोक्कालिगाओं का समर्थन हासिल करने और लिंगायतों के भीतर आंदोलनकारी कुछ उप-संप्रदायों के समर्थन को और मजबूत करने के इरादे से बोम्मई ने दो नई आरक्षण श्रेणियां – 2सी और 2डी – बनाईं, और प्रत्येक को 2 प्रतिशत आरक्षण दे दिया. इस तरह से उन्होने आरक्षण में वोक्कालिगाओं की हिस्सेदारी को 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत कर दिया, और लिंगायतों का आरक्षण 5 प्रतिशत से 7 प्रतिशत हो गया. यह मुसलमानों को पिछड़े वर्ग की सूची से हटाने के बाद किया गया था.
मगर, लिंगायतों के सबसे बड़े उप-संप्रदाय ‘पंचमसाली’ ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. क्योंकि इसके नेताओं का साफ-साफ कहना था कि वे किसी एक समुदाय के लाभ के लिए किसी भी दूसरे से कुछ भी छीनने में विश्वास नहीं करते हैं.
संयोग से, कर्नाटक में, कांग्रेस ने साल 2013 और 2018 के बीच खुद सत्ता में रहने, और फिर जद (एस) के साथ गठबंधन में एक अतिरिक्त वर्ष का समय होने के बावजूद, साल 2015 के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण (जातिगत जनगणना) के निष्कर्षों को जारी नहीं किया था.
राहुल गांधी का ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों पर ध्यान केंद्रित करने का एक और तात्कालिक कारण यह है कि भाजपा ने ‘मोदी’ उपनाम के बारे में की गई उनकी विवादास्पद टिप्पणी को समूचे ओबीसी समुदाय के अपमान के रूप में पेश करने की कोशिश की है. कथित रूप से की गई इसी अपमानजनक टिप्पणी के कारण उन्हें एक अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था, और फिर बाद में उन्हें लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य भी घोषित कर दिया गया था.
कांग्रेस के जिन वरिष्ठ नेताओं से दिप्रिंट ने बात की उनका कहना था कि यह संदेश देना महत्वपूर्ण है कि गांधी परिवार के इस वारिस ने ओबीसी समुदाय का अपमान नहीं किया. ख़ासकर अब के समय में पहले से कहीं अधिक अहम हो गया है.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता, जो साल 2024 के चुनावों तक पार्टी की रणनीति पर काम करने वालों में से एक हैं, ने कहा, ‘जेपीसी (अडानी मुद्दे पर) के गठन की हमारी मांग के जवाब में, वे ओबीसी वाले मुद्दे को ले लाए. इसलिए, यह उचित ही है कि हम उनसे यह पूछें कि जब वे इस समुदाय के बारे में इतने ही चिंतित हैं तो वे ओबीसी डेटा जारी क्यों नहीं कर रहे हैं? खासकर तब जब पीएम खुद दावा करते हैं कि वह इसी समुदाय से हैं.’
भाजपा के हिंदुत्व वाले मुद्दे में सेंध लगाने का प्रयास
हालांकि, इस सब का एक वृहतर संदर्भ भी है. इस महीने की शुरुआत में 20 विपक्षी दल तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन द्वारा आयोजित ‘सामाजिक न्याय’ सम्मेलन के लिए इकट्ठा हुए थे.
वहां जातिगत जनगणना, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए दिया गया कोटा और अन्य ऐसे मुद्दों के साथ ही कर्नाटक सरकार द्वारा कोटा में किया गया फेरबदल भी विचार-विमर्श के लिए आया था.
राहुल गांधी की पिछले दो दिनों में की गई टिप्पणियों को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है. पिछले हफ्ते ही उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिनकी सरकार इस वक्त अपने राज्य में जातिगत जनगणना करा रही है, से मुलाकात भी की थी.
अकादमिक और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. चंद्रचूड़ सिंह के अनुसार, राहुल के खिलाफ लगाए गये ओबीसी विरोधी ताने के अलावा, जाति आधारित जनगणना को आगे बढ़ाने की कांग्रेस की रणनीति के पीछे भाजपा के हिंदुत्व वाले विचार की ‘हवा निकालने’ की वजह भी है.
सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘कांग्रेस की इस रणनीति के संदर्भ में यहां दो चीजें उभर कर सामने आती हैं. सबसे पहले, यह एक तथ्य तो है ही कि अधिकांश भारतीय राज्यों में चुनाव जाति के आधार पर होते हैं. भाजपा जो करती है, वह यह है कि वह पूरी जाति व्यवस्था को हिंदू धर्म और राष्ट्रवाद के मुद्दे से समाहित करने की कोशिश करती है. इसलिए, जाति पर ध्यान केंद्रित करने से कांग्रेस को भाजपा के हिंदू धर्म के मुद्दे में सेंध लगाने में मदद मिल सकती है.’
उन्होंने आगे कहा: ‘दूसरी बात जो उभरती है वह यह है कि एक बार जाति आधारित संख्या ज्ञात हो जाने के बाद, कांग्रेस जातीय पहचान का कार्ड खेल सकती है, और पूछ सकती है कि भाजपा ने अपने हिंदू धर्म पर दिए जा रहे ज़ोर के बावजूद हाशिए पर रह रही जातियों के लिए क्या किया है.’
सिंह का कहना है कि यह काम करेगा या नहीं यह इस बात पर ज़्यादा निर्भर करेगा कि कांगेस क्या करती है, न कि इस बात पर कि वह क्या कहती है. उनका मानना है कि पार्टी को जाति समूहों की पहचान करनी होगी, उनके पास जाना होगा और ‘जाति जनगणना की मांग से परे भी कुछ ठोस कर दिखाने की जरूरत है’ के रूप में अतिरिक्त लाभ की पेशकश करनी होगी.
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सिंह ने कहा, ‘अतीत में भी कांग्रेस ने जाति पर बात की तो है, लेकिन कुछ किया नहीं. उदाहरण के तौर पर, मंडल आयोग का गठन इंदिरा गांधी द्वारा ही किया गया था, लेकिन इसकी रिपोर्ट वी.पी. सिंह सरकार द्वारा लागू की गई थी. कांग्रेस को इस पिच को बनाए रखने और इसके बारे में कुछ करने की जरूरत है.’
इस बीच भाजपा ने कांग्रेस की जातिगत जनगणना की मांग को एक ‘नौटंकी’ कहा है.
भाजपा प्रवक्ता गुरु प्रकाश ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह कांग्रेस पार्टी की सिर्फ एक नौटंकी है. कांग्रेस ने ऐतिहासिक रूप से पिछड़े वर्गों और दलितों की उपेक्षा की है. चाहे यह काका कालेलकर समिति हो या मंडल आयोग की रिपोर्ट के दौरान, उन्होंने इन सबका विरोध किया.’
उन्होंने कहा: ‘राहुल गांधी के पिता, राजीव गांधी ने तो संसद के पटल पर मंडल आयोग की रिपोर्ट का विरोध किया था. चुनाव से पहले कांग्रेस ‘न्याय’ के विचार को सामने लेकर आती है, जो चुनाव के बाद यह लागू नहीं होता. राहुल गांधी केवल लोगों को गुमराह कर रहे हैं.’
‘इसका नतीजा नुकसान के रूप में भी सामने आ सकता है’
हालांकि, अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर बोलते हुए, कुछ कांग्रेसी नेताओं ने जातिगत जनगणना करने से जुड़ी ‘संसाधनात्मक कठिनाइयों’ की ओर भी इशारा किया. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, कुछ ऐसे जातियां हैं, जो कुछ राज्यों में आदिवासी हैं और दूसरों में ब्राह्मण में गिनी जाती हैं. कुछ अन्य जातियां हैं जो कुछ राज्यों में अनुसूचित जाति और अन्य में अनुसूचित जनजाति में आती हैं. जब जातिगत जनगणना की जाती है, तो इस तरह की विसंगतियां सामने आती हैं.’
अन्य नेताओं का कहना है कि यह उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे कुछ ऐसे राज्यों में कांग्रेस के लिए नुकसानदेह भी हो सकता है, जहां अगड़ी जातियां एक महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं. पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, यह बिहार में भूमिहारों को हमसे अलग-थलग कर सकता है, लेकिन हमें इस मुद्दे पर एक सैद्धांतिक रुख अपनाना होगा.’
दिप्रिंट के एक सवाल के जवाब में कि क्या 2024 में विपक्ष को एक साथ लाने के लिए जातिगत जनगणना एक साझा चुनावी मुद्दा हो सकता है, कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने कहा कि न केवल विपक्ष, बल्कि ‘भाजपा सहित सभी’ दलों को एक साथ आकर यह मांग करनी चाहिए कि जातिवार जनसंख्या के आंकड़े एकत्र किए जाएं और उन्हें सार्वजनिक किया जाए.
कुमार ने कहा, ‘यह सिर्फ़ विपक्षी एकता के बारे में नहीं है, बल्कि पूरे देश की एकता के बारे में है. हम चाहते हैं कि भाजपा भी हमारे साथ आए. भाजपा को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी चाहिए और देश को बताना चाहिए कि वह इस देश में लोगों की गिनती करना चाहती है या नहीं. हम सिर्फ विपक्ष को एकजुट नहीं करना चाहते हैं. प्रधानमंत्री जी अपनी रैलियों में 140 करोड़ की बात कहते रहते हैं, इसलिए हम जानना चाहते हैं कि हम वास्तव में 140 करोड़ हैं या नहीं.’
राजनीति में जाति की अहमियत
जहां तक कर्नाटक में आरक्षण की बात है तो एच.डी. देवेगौड़ा ने पहली बार साल 1995 में मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण के साथ पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल किया था. यह संभवत: पहली बार था जब किसी धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग को पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल किया गया था. इसका न तो विरोध किया गया था और न ही उनके उत्तराधिकारियों – जिसमें भाजपा के तीन मुख्यमंत्री भी शामिल रहे हैं – ने कभी इसे खत्म किया.
अलग-अलग दलों के नेताओं ने सफलता पाने के लिए खुद के अनूठे जातीय कॉम्बिनेशन को गढ़ने की कोशिश की है.
देवराज उर्स, जो कर्नाटक में सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले मुख्यमंत्री हैं और जिन्होंने अपने दो कार्यकालों में कुल सात वर्षों तक इस राज्य की सेवा की थी, ने भूमि सुधार सहित कई सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के साथ बिखरे हुए पिछड़े वर्गों को सफलतापूर्वक एकजुट किया, जिसका लाभ इन वर्गों ने भी महसूस किया.
साल 2008 में, बी.एस. येदियुरप्पा ने विशेष रूप से की गई सोशल इंजीनियरिंग द्वारा लिंगायतों और पिछड़े वर्गों को एक साथ जोड़ा, और एससी-लेफ्ट जैसे वर्ग जिसमें कुछ सबसे उत्पीड़ित कम्युनिटी शामिल है, का भी समर्थन प्राप्त किया.
साल 2013 में, कांग्रेस के सिद्धारमैया अहिन्दा (अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए कन्नड़ में दिया गया संक्षिप्त नाम) के समर्थन के साथ सत्ता में आए थे.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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