नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार के अनुरोध को खारिज करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को तमिलनाडु में रैलियां करने की अनुमति दे दी.
राज्य सरकार ने आरएसएस को राज्य में मार्च निकालने की अनुमति देने वाले मद्रास उच्च न्यायालय के फरवरी के आदेश को चुनौती देते हुए कोर्ट में कानून और व्यवस्था की चिंताओं का हवाला दिया था. कोर्ट में यह कहते हुए अनुमति दी कि किसी भी संगठन को मार्च निकालने से सिर्फ इसलिए नहीं रोका जा सकता है क्योंकि उसकी विचारधारा अलग है. कोर्ट ने कहा कि राज्य में प्रत्येक संगठन या विचारधारा एक-दूसरे के लिए स्वीकार्य होनी चाहिए.
उच्च न्यायालय के आदेश को कायम रखते हुए शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार द्वारा खारिज की गई मुख्य आपत्ति यह थी कि किसी अन्य संगठन पर प्रतिबंध लगाने के आदेश के बाद, कानून और व्यवस्था की समस्याएं कुछ क्षेत्रों में सामने आईं. जिसमें कहा गया था कि इसके चलते कई मामले दर्ज किए गए.
हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा, ‘लेकिन राज्य सरकार द्वारा दिए गए चार्ट से पता चलता है कि प्रतिवादी संगठन के सदस्य उन कई मामलों में पीड़ित थे और वे अपराधी नहीं थे.’
आरएसएस ने 2 अक्टूबर 2022 को स्वतंत्रता के 75वें वर्ष, भारत रत्न डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की जन्म शताब्दी और विजयादशमी को लेकर तमिलनाडु पुलिस से इजाजत मांगी थी. हालांकि, 49 याचिकाओं का एक बैच मद्रास एचसी के समक्ष दायर किया गया था, जब अभ्यावेदन पर कोई निर्णय नहीं लिया गया था.
मद्रास हाईकोर्ट का आदेश
पिछले साल 22 सितंबर को हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने राज्य के अधिकारियों को बारह शर्तों के साथ मार्च की अनुमति देने का निर्देश दिया था. आदेश में शामिल था कि कार्यक्रम के दौरान, ‘कोई भी व्यक्ति, किसी भी जाति, धर्म आदि के बारे में न तो गीत गाएगा और न ही कुछ बुरा बोलेगा’ और यह कि ‘जुलूस करने वाले किसी भी तरह से किसी भी धार्मिक, भाषाई, सांस्कृतिक और अन्य प्रकार की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाएंगे’.
इस आदेश को चुनौती देते हुए राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में एक समीक्षा आवेदन दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि आरएसएस 2 अक्टूबर को मार्च निकालना चाहता है, जो कि रविवार है. इसमें जोर देकर कहा गया था कि रविवार को ईसाई बड़ी संख्या में गिरजाघरों में प्रार्थना करने जाएंगे. साथ ही यह भी तर्क दिया गया था कि आरएसएस द्वारा चुने गए अधिकांश मार्ग मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में थे जहां मस्जिदें स्थित हैं और इसलिए धर्म और जाति के आधार पर सांप्रदायिक टकराव की संभावना हो सकती है. हालांकि, एचसी ने पिछले साल 2 नवंबर को राज्य की समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया था.
आरएसएस के पदाधिकारियों ने 22 सितंबर के आदेश का पालन न करने की शिकायत करते हुए अवमानना याचिका के साथ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने कहा कि आदेश के बावजूद अधिकारियों ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया. जवाब में, राज्य के अधिकारियों ने हाई कोर्ट में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर केंद्र के प्रतिबंध का हवाला देते हुए कहा कि इसे लेकर विभिन्न हलकों से धमकियां मिल रही हैं जिसके कारण सुरक्षा व्यवस्था बिगड़ने की संभावना है.
2 नवंबर को, राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय को सूचित किया गया था कि जिन 50 स्थानों पर जुलूस आयोजित किया जाना था, उनमें से संगठन को केवल तीन स्थानों के लिए अनुमति दी गई थी और बाकि 23 स्थानों पर कार्यक्रम को घर में आयोजित करना था. 24 अन्य स्थानों पर जुलूस निकालने की अनुमति मांगने वाले आवेदनों को कानून और व्यवस्था की समस्याओं का हवाला देते हुए या अधिकारियों द्वारा कथित रूप से प्राप्त एक खुफिया रिपोर्ट के आधार पर खारिज कर दिया गया था.
4 नवंबर को हाईकोर्ट ने RSS को 6 नवंबर को पूरे तमिलनाडु में 50 में से 44 स्थानों पर जुलूस और जनसभाएं आयोजित करने की अनुमति दी, जिसके लिए उसने अनुमति की अपील की थी. हालांकि आदेश में कुछ शर्त शामिल थे जिसमें था कि बैठक ‘मैदान या स्टेडियम जैसे परिसर में’ आयोजित की जाए.
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पारित आदेश में ‘न्यायसंगत’
आरएसएस ने इस आदेश को दो जजों की बेंच के सामने चुनौती दी थी. इस साल 10 फरवरी को हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने आरएसएस मार्च पर शर्तें लगाने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया. ऐसा करते हुए, पीठ ने कहा कि ‘भले ही राज्य को प्रतिबंध लगाने का अधिकार है लेकिन उन्हें पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं कर सकता, बल्कि केवल उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है.’
कोर्ट ने कहा था, ‘चूंकि संगठन के पास सार्वजनिक स्थान पर शांतिपूर्ण जुलूस और बैठकें आयोजित करने का अधिकार है, इसलिए राज्य नए खुफिया इनपुट की आड़ में ऐसी कोई शर्त नहीं लगा सकता है, जिसका प्रभाव संगठन के मौलिक अधिकारों पर स्थायी रूप से प्रतिबंध लगाने या उल्लंघन करने का हो.’
कोर्ट आरएसएस को मार्च आयोजित करने के लिए अपनी पसंद की तीन अलग-अलग तारीखों के साथ राज्य के अधिकारियों से संपर्क करने का निर्देश दिया था, और राज्य के अधिकारियों को उन तारीखों में से एक के लिए अनुमति देने के लिए कहा था.
कोर्ट ने कहा था, ‘संगठन यह सुनिश्चित करेगा कि मार्च के दौरान सख्त अनुशासन का पालन किया जाए और उनकी ओर से कोई उकसावे की बात न हो. दूसरी ओर राज्य सरकार को पर्याप्त सुरक्षा उपाय करने होंगे और यह सुनिश्चित करनी होगी कि यातायात व्यवस्था ठीक रहे तथा जुलूस और सभा शांतिपूर्वक चले.’
इसके बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
और सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि खंडपीठ का फरवरी का आदेश पारित करना और एकल न्यायाधीश के नवंबर के आदेश को रद्द करना ‘उचित’ था.
(संपादन: ऋषभ राज)
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