1970 के दशक में हरियाणा में एक नए आईएएस अधिकारी को ‘सजा’ के तौर पर महेंद्रगढ़-नारनौल में भेज दिया जाता था. किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ में पूर्व आईएएस राम वर्मा जिक्र करते हैं कि जब हिसार से बस में बैठकर वो नारनौल तक पहुंचे तो उन्हें गोद में बच्चे लिए पानी भरने जाती औरतें और कच्ची सड़कें दिखीं. इस किताब में वो कई बार लिखते हैं कि चंडीगढ़ से रोहतक, हिसार, भिवानी और फिर नारनौल पहुंचते-पहुंचते दृश्य बदल जाता था. 1970 के आस-पास ही तात्कालिक मुख्यमंत्री बंसीलाल ने राज्य में नहरों का जाल बिछा दिया था. घर-घर तक बिजली पहुंचा दी थी. हर गांव तक सड़क पंहुचाने का दावा किया था.
पर आज भी नारनौल के कुछ हिस्सों में कमोबेश स्थिति 40 साल पुरानी ही है. 2019 के लोकसभा चुनावों में नारनौल में भाजपा के प्रवक्ता यहां के गांवों को हिसार के गांव जैसा बनाने का वादा कर रहे हैं. बंसीलाल द्वारा ‘नहरों के जाल’ बिछाने के 40-50 साल बाद 2019 में भी देश की राजधानी दिल्ली से महज 150 किलोमीटर दूर नारनौल में पानी भरती महिलाओं की तस्वीर क्यों नहीं बदली है? नारनौल के गांव हिसार जिले के गांव जैसे क्यों नहीं बन सके?
इसका जवाब हरियाणा की राजनीति में छुपा है.
अहीरवाल क्षेत्र: रोहतक-हिसार के यादव बेटियों को ब्याहने से कतराते हैं
हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र में गुड़गांव, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जिले आते हैं. इन जिलों में अहीरों (यादवों) का प्रभाव है. संख्या में भी और राजनीति में भी. इसके अलावा दक्षिण हरियाणा के झज्जर और भिवानी में भी अहीर कुछ संख्या में हैं. जाटों और दलितों के बाद हरियाणा में यादव लगभग 12 प्रतिशत हैं. हरियाणा विधानसभा में तकरीबन 20 सीटें दक्षिण हरियाणा से आती हैं. विधानसभा चुनावों में अहीरवाल क्षेत्र की भी अपनी खास भूमिका है.
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अहीरवाल इलाका राजस्थान के सबसे करीब है. मध्य हरियाणा के लोग इस इलाके को रेत की टिब्बों से जानते हैं. नहरों में पानी ना आने की वजह से यहां का मुख्य मुद्दा पानी रहा है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से नौकरियों के सवाल से इतर सेना में अहीर रेजिमेंट की मांग भी उठ रही है. यहां के लोग फौज में जाते हैं या किसानी करते हैं. इसलिए ज्यादातर मुद्दे इन्हीं दो व्यवसायों के इर्द-गिर्द रहते हैं. यहां पर कई गांव ऐसे हैं जहां घर की औरतें पानी सिर पर ढोकर लाती हैं. इस वजह से बहुत सारे लोग नारनौल इत्यादि इलाकों में अपनी बेटियों को ब्याहने से कतराते हैं.
क्या है अहीरवाल क्षेत्र की पॉलिटिक्स
इस इलाके को 1857 की क्रांति के महानायक कहे जाने वाले राव तुलाराम के वंशज राव इंद्रजीत का गढ़ माना जाता है. राव तुलाराम का जन्म 1825 में रेवाड़ी जिले के रामपुरा गांव में हुआ. हरियाणा 1857 की क्रांति में उनके बलिदान को 23 सितबंर के दिन वीर शहीद दिवस के रूप में मनाकर याद करता है. गौरतलब है कि 23 सितंबर 1863 को ही राव तुला राम की मृत्यु हुई थी. 2001 में भारत सरकार ने राव तुलाराम के नाम पर डाक टिकट भी जारी किया था. 1857 की क्रांति में जो स्थान रानी लक्ष्मीबाई का रहा है, अहीर समुदाय वही स्थान राव तुलाराम का मानता है. यही वजह है कि उनके पोतों और पड़पोतों के लिए ये क्षेत्र कृतज्ञ महसूस करता है.
2008 के परिसीमन के बाद अहीरवाल क्षेत्र का बंटाधार कर दिया गया. पहले ये महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट थी. जिसमें गुड़गांव, रेवाड़ी, अटेली, नारनौल हलके शामिल थे. 2008 के बाद गुड़गांव को अलग लोकसभा सीट बना दिया गया. इसमें रेवाड़ी और नूह शामिल हैं. महेंद्रगढ़ और भिवानी को मिलाकर महेंद्रगढ़-भिवानी सीट बना दी गई. जिसमें 9 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. इनमें से पांच जाट बहुल मतदाता वाले क्षेत्र आते हैं और 4 यादव बहुल मतदाता वाले. इससे पहले जाट बहुल भिवानी क्षेत्र हिसार लोकसभा सीट में शामिल था.
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महेंद्रगढ़ के अनिरुद्ध मडलाना बताते हैं, ‘ये परिसीमन एक राजनीतिक साजिश थी. राव इंद्रजीत सिंह की राजनीतिक ताकत तोड़ने के लिए इस तरह की समीकरण बनाई गई थी. इस क्षेत्र के लोग राव इंद्रजीत सिंह को मुख्यमंत्री बनते हुए देखना चाहते थे ताकि यहां का विकास भी उसी तरह हो जैसा रोहतक का हुआ. मुख्यमंत्रियों ने दूसरों की उपेक्षा कर सिर्फ अपने ही क्षेत्र चमकाए. ’
वहीं, गांव सिसोठ से वेद पाल सिंह इस इलाके के पिछड़ेपन का एक और कारण अहीर नेताओं की आपसी प्रतिस्पर्धा को बताते हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘महेंद्रगढ़ के राव दान सिंह और रेवाड़ी के कैप्टन अजय यादव, दोनों ही राव इंद्रजीत के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. भूपिंदर सिंह हुड्डा और राव इंद्रजीत का छत्तीस का आंकडा रहा है. राव इंद्रजीत का इस क्षेत्र से प्रभाव कम करने के लिए हुड्डा ने राव दान सिंह और कैप्टन अजय यादव को चढ़ाया.’ लेकिन हाल-फिलहाल में कैप्टन अजय यादव अपनी पार्टी कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंद्र हुड्डा पर हमलावर रहे हैं. नाराज होकर एक बार उन्होंने पार्टी भी छोड़ दी थी. कैप्टन अजय यादव के बेटे चिरंजीव से लालू प्रसाद यादव की बेटी की शादी हुई है. कैप्टन के पिताजी भी अपने वक्त की विधानसभा के सदस्य थे.
राव बिरेंदर, आर्मी अफसर जो हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री बने
राव तुलाराम की तीसरी पीढ़ी में 1921 में जन्मे राव बिरेंदर ने सेंट स्टिफेंस (1942) से पढ़ाई की. बाद में आर्मी में ऑफिसर (1942-1947) बन गए. 1949-50 के बैच में आईपीएस में भी सलेक्शन हुआ. 1952 में फिर कमीशन्ड अधिकारी बने. बाद में सक्रिय राजनीति में आ गए और अपनी एक क्षेत्रीय पार्टी बना ली. 1954 में विधान परिषद पहुंचे. इसी दौरान वो कांग्रेस में शामिल हो गए.
1956 में प्रताप सिंह कैरों की सरकार में उप मंत्री बन गए. कुछ महीनों बाद विधान सभा में कैबिनेट के मंत्री भी बनाए गए. 1961 में प्रताप सिंह कैरों के साथ हुए राजनीतिक मतभेदों के चलते राव बिरेंदर को हटा दिया गया लेकिन 1962 चीन युद्ध के दौरान उन्हें पंजाब सरकार का डिफेंस सलाहकार बनाया गया. राव बिरेंदर ने फौजियों की पेंशन दिलाने और सैनिक स्कूल खोलने में अहम भूमिका निभाई.
1966 में पंजाब दो भागों में बंट गया. 1967 में हरियाणा विधान सभा के चुनाव हुए. राव बिरेंदर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री पंडित भगवत दयाल शर्मा के साथ मतभेद होने पर कांग्रेस छोड़ दी. उसके बाद हरियाणा के वरिष्ठ नेताओं के साथ मिलकर संयुक्त विधायक दल बना ली. मार्च 1967 में पहले वक्ता बने और फिर मार्च से लेकर नंवबर 1967 में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने. संयुक्त विधायक दल के विघटन के बाद हरियाणा विकास पार्टी बना ली.
हरियाणा की राजनीति के दो स्तम्भ
भीम एस दहिया अपनी किताब ‘पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं कि 1916 में चौधरी छोटूराम ने ‘जाट गजट’ की शुरुआत की. इसके जवाब में 1923 में पंडित श्रीराम शर्मा ने हरियाणा तिलक लॉन्च कर दिया. हरियाणा की राजनीति इन्हीं दो ध्रुवों के इर्द-गिर्द घुमती रही. पंडित शर्मा कांग्रेस में शामिल हो गए और चौधरी छोटूराम यूनियनिस्ट पार्टी बना ली. किसान समुदाय चौधरी छोटूराम की तरफ चले गए और बाकी वर्ग श्रीराम शर्मा की तरफ.
भीम एस दहिया राव बिरेंदर के मुख्यमंत्री बनने का जिक्र करते हुए लिखते हैं, ‘पंडित भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिराने में जाट नेताओं का अहम रोल था. जाट किसी दूसरे समुदाय की लीडरशिप स्वीकार ना करने के लिए जाने जाते हैं. पंडित भगवत दयाल का विरोध करने वालों में से जाट विधायक संख्या में ज्यादा थे. लेकिन वे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए एकमत नहीं सके. हर कोई दूसरे से खुद को बेहतर समझ रहा था. ऐसे में सबसे धनी और प्रभावशाली नेता इस पद का दावा कर सकता था. राव तुलाराम के वंशज होने और बाकी विधायकों से ज्यादा पैठ होने की वजह से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी राव बिरेंदर सिंह के पाले में चली गई.’ और राव बिरेंदर कुछ महीनों तक ही सही, हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री बने.
रावी-ब्यास नहर लिंक समझौता करवाने निभाई अहम भूमिका
1970 में राव बिरेंदर केंद्र की राजनीति में शामिल हो गए. 1978 में विशाल हरियाणा पार्टी को कांग्रेस में मिला लिया. 1980 और 1984 में लोकसभा के चुनाव जीते. थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन दो बार केंद्र में कैबिनेट मंत्री मंडल में शामिल हुए. संघ में सिंचाई मंत्री रहते हुए 1981 में रावी-ब्यास नहर लिंक समझौता करवाया.
उसके बाद राजीव गांधी से मतभेदों के चलते वो जनता दल में चले गए. 1989 में हुए लोकसभा चुनाव जीतकर मंत्री बने. 2009 में 80 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया.
राव बिरेंदर के बेटे राव इंद्रजीत 1998 और 2004 में कांग्रेस की टिकट पर अहीरवाल क्षेत्र से जीत चुके हैं. 2008 के बाद जब महेंद्रगढ़ और भिवानी मिलाकर अलग लोकसभा सीट बना दी गई, तब से यहां 2009 में श्रुति चौधरी और 2014 में धर्मबीर सांसद हैं.
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वहीं, गुड़गांव लोकसभा सीट पर 2009 से राव इंद्रजीत सांसद रहे हैं. राव इंद्रजीत शूटिंग में अवॉर्ड जीत चुके हैं. उनकी बेटी आरती राव भी शूटर हैं और अब तुलाराम की विरासत से निकलने वाली भावी नेता भी. कयास लगाए जा रहे हैं कि राव इंद्रजीत अपनी बेटी के लिए टिकट की बातचीत करने में लगे हैं. कहा जा रहा है कि बेटी की टिकट की वजह से ही भाजपा अब राव इंद्रजीत को काबू में करने में लगी है.
लोगों का कहना है- ‘जाट लीडरशिप ने जानबूझकर रखा पिछड़ा’
अहीरवाल क्षेत्र के लोगों से बात करने पर दिप्रिंट को मिले-जुले बयान मिले. कुछ लोगोंं ने राव इंद्रजीत की राजनीति पर सवाल उठाए तो कुछ उनके पक्ष में खड़े मिले. राव बिरेंदर से लेकर राव इंद्रजीत की अहीरवाल राजनीति पर बात करते हुए महेंद्रगढ़ के कुलदीप सुरजनवास बताते हैं, ‘इस क्षेत्र में एक कहावत है कि भाजपा तो बामण-बानियों की पार्टी सै. लेकिन ये क्षेत्र कांग्रेस वफादार रहा है क्योंकि कांग्रेस की छवि ओबीसी के हकों के लिए आवाज उठाने की रही है. मगर राज्य की बागडोर ज्यादातर ‘जाट लीडर्स’ के हाथों रही. इस लीडरशिप ने इस इलाके के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कुछ खास नहीं किया. सत्ता का केंद्रीकरण हिसार, रोहतक या भिवानी तक ही सीमित होकर रह गया. महेंद्रगढ़-नारनौल में पानी की समस्या के लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया. राव बिरेंदर और अब राव इंद्रजीत को अनदेखा किया जाता रहा है.’
भाजपा का दावा, नांगल चौधरी के आखिरी गांव तक पानी पहुंचाया
वहीं, नारनौल बीजेपी के सह प्रवक्ता सत्यव्रत शास्त्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा से पहले की सरकारों ने इस क्षेत्र को अछूतों की तरह देखा है. जो सत्ता मे थे वो इस क्षेत्र को पिछड़ ही देखना चाहते थे.’ उनका कहना है कि अगले पांच साल ने खट्टर सरकार नारनौल के गांवों को हिसार के गांवों की तरह बना देगी. जो पहले की सरकारों ने नहीं किया. उन्होंने पहले की सरकारों पर जातिगत होने के आरोप भी लगाए.
गौरतलब है कि इस इलाके में भूमिगत पानी की किल्लत रही है. यहां खेती बारिश पर आश्रित है. महेंद्रगढ़ के गांव नांगल सिरोही के एक बुजुर्ग दिप्रिंट को बताते हैं, ‘बंसीलाल ने काम तो अच्छा किया लेकिन नहरों का जाल भिवानी तक आते-आते ही रह गया. यहां भी कुछ हद तक नहरें बनीं लेकिन पानी नहीं पंहुच पाया.’
सत्यव्रत शास्त्री इस बात का दावा करते हैं कि भाजपा के नेतृत्व में यहां ना सिर्फ कुछ नहरें बनीं, बल्कि पुरानी नहरों की मरम्मत भी करवाई गई. लिफ्ट सिस्टम से नहरों का पानी खेतों तक पंहुचाया गया. पीने के पानी की समस्या का भी समाधान किया गया.
इस बात की तस्दीक नारनौल के आस-पास के कुछ गांवों ने की. उन्होंने बताया कि भाजपा सरकार में कुछ हद तक काम हुआ है लेकिन पानी की समस्या बढ़ती ही जा रही है. वहीं, इस क्षेत्र में लोग पूर्व हुड्डा सरकार से नाराज दिखे.
पिछले कुछ सालों से बदले हैं हालात
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा खुलने के बाद से महेंद्रगढ़ जिले का नाम शहरी क्षेत्रों में आया. अब मनेठी गांव में एम्स की घोषणा से भी इलाके को लोग अच्छे भविष्य की ओर देख रहे हैं. वहीं, रेवाड़ी तक मेट्रो आने की बात पर बयानबाजी चलती रहती है. शिक्षा के क्षेत्र में अप्रत्याशित रूप से प्रगति हुई है. अब यहां के बच्चों को पढ़ाई की तरफ उन्मुख देखा जा सकता है. यूपीएससी और एसएससी में इस क्षेत्र से बहुत चयन हुए हैं. नारनौल से लगातार सिविल सर्विस में चयन हो रहा है. लेकिन इस क्षेत्र की स्थिति में बदलाव नहीं आ रहा है. मनोहर लाल खट्टर सरकार ने इस क्षेत्र के कुछ नेताओं को अपने मंत्रिमंडल में शामिल जरूर किया है. जनता में इस बात की खुशी है कि इस सरकार ने पहली बार नौकरियों में पारदर्शिता की है और इस वजह से नौकरियों में जाति-आधारित भेदभाव रुक गया है.
क्या अहीर क्षत्रिय होते हैं क्या यही चीज जानना चाहते हैं बस