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Saturday, 20 April, 2024
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भजनलाल: वो हरियाणवी मुख्यमंत्री जो ‘रिश्वत’ के तौर पर घी के पीपे भिजवाता था

भजनलाल ने जनता पार्टी में डेयरी मंत्री रहते हुए चौधरी देवीलाल की सरकार गिराकर अपनी सरकार बना ली थी और बाद में पूरी सरकार के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए.

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नई दिल्ली: देश को हरियाणा के भजनलाल की असाधारण राजनीतिक क्षमताओं के बारे में तब पता चला जब 1979 में उन्होंने चौधरी देवीलाल की सरकार में डेयरी मंत्री रहते हुए तख्तापलट कर खुद की सरकार बना ली थी. वो भी तब जब खतरे की आशंका के बाद चौधरी देवीलाल ने करीब 42 विधायकों को तेजाखेड़ा के अपने किलेनुमा घर में बंदूक की नोक पर बंद करके रखा था. इनको बाहर आने-जाने की मनाही थी.

विधायकों को अपने पक्ष में लाने के लिए तमाम तिकड़म की

इन्हीं में से एक विधायक राव निहाल सिंह ने तेजाखेड़ा से छुट्टी ली और अपनी बेटी की शादी के लिए घर पहुंच गए. लेकिन देवीलाल से रहा नहीं गया और वो पीछेपीछे बिना बुलाए मेहमान के तौर पर वहां पहुंच गए. जब देवीलाल वहां पहुंचे तो एक और बिना बुलाए मेहमान से मिले. वो मेहमान थे भजनलाल


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घर में बंद लोकदल के एक और विधायक ने तेजाखेड़ा से बाहर जाने की अनुमति मांगी. दरअसल उस वक्त उनके चाचा गंभीर रूप से बीमार थे. चौधरी देवीलाल ने उनके लिए सारे इंतज़ाम करवाए. लेकिन चौधरी देवीलाल से पहले ही भजनलाल ने अंतिम संस्कार तक की तैयारियां करवा दी थी.  

कुछ विधायकों से उनके बच्चे और बीवियां मिलने आते और चुपके से ज़्यादा ऑफर आने की बातें बता जाते. रातभर विधायक टहलते रहते और ऑफर्स के बारे में सोचते रहते. वो समझ नहीं पा रहे थे कि किस लाल के खेमे में जाएं. बाद में विधायक भजनलाल के खेमे में चले गए. इस प्रकार जनता पार्टी के चौधरी देवीलाल की सरकार गिराकर भजनलाल 1979 में जनता पार्टी से ही हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए.

आगे चलकर आरोप लगे कि खरीदे गए इन विधायकों, कुछ जजों और सरकारी अधिकारियों को दिल्ली, चंडीगढ़ और पंचकुला में प्लॉट बांटे गए. ‘आया रामगया राम’ जुमले को प्रसिद्ध कराने वाले विधायक गया लाल को दो प्लॉट दिए जाने के आरोप थे. गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदल ली थी.

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तीसरी आंख के दम पर भजनलाल ने लोगों की नब्ज़ पकड़ ली, नेताओं को कभी घी दिया- कभी ऊंट

कुछ लोगों का मानना है कि वो एक अच्छे वक्ता नहीं थे और ना ही आम लोगों के बीच उनकी देवीलाल जितनी प्रसिद्धि थी. लेकिन कहते हैं कि भजनलाल के पास वो तीसरी आंख थी जिससे वो किसी से मिलकर ये जान लेते थे कि उसे सरकारी नौकरी चाहिए या कोई प्लॉट. कहते हैं कि गया लाल को वापस अपने खेमे में लाने के लिए उन्होंने बीस लाख रुपये कैश का ऑफर दिया था

6 अक्टूबर 1930 को भजनलाल का जन्म हुआ था. बाद में वो हिसार आकर बसे थे. उनके बचपन के बारे में कहा जाता है कि वो गांव से पैदल आदमपुर की मंडी में घूमने जाते थे. घी बेचा करते थे. मंडी के एक दुकानदार ने भजनलाल की कुशलता को भांप लिया और उनको अपनी दुकानदारी में हिस्सेदारी पर रख लिया. आगे चलकर इसी कुशलता के दम पर भजनलाल ने विधायक जुटाए और अपनी सरकार बनाई. टाइम्स ऑफ इंडिया को भजनलाल के करीबी रामेश्वर दास ने बताया था कि पंचायती स्तर से शुरू कर वो 8 साल के राजनैतिक सफर में ही मुख्यमंत्री बन गए थे.


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आगे चलकर 1977 में जनता पार्टी में शामिल होने के लिए भजनलाल ने मोरारजी देसाई के घर 18 किलो घी के तीन पीपे भिजवाए थे. हरियाणा के कल्चर में किसी को अपने यहां से घी लाकर देना अच्छे और घनिष्ठ रिश्ते की निशानी माना जाता है. कह सकते हैं कि एक बार किसी का घी खा लिया तो आप पर उसके घी का कर्ज चढ़ गया समझो.

कांग्रेस में आने के लिए भी भजनलाल ने वैसी ही ट्रिक अपनाई जैसी जनता दल में जाने के लिए की थी. लेकिन इस बार घी की बजाय संजय गांधी के नवजात शिशु (वरुण गांधी) के लिए हरियाणवी अंदाज़ में सोने की पत्तर चढ़ा ऊंट भिजवाया.

भजनलाल के बारे में कहा जाता है कि वो भगवान को भी ठग सकते थे

1977 के चुनाव के बाद केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी. लेकिन आपसी मतभेद के चलते यह सरकार गिर गई. जब 1980 में केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार वापस आई तो भजनलाल ने देश को एक बार फिर चौंकाया. जनता पार्टी से मुख्यमंत्री बने भजनलाल अपने करीब 40 विधायकों समेत कांग्रेस में शामिल हो गए.

ऐसा ही एक किस्सा है जब कांग्रेस में आने के बाद भजनलाल ने राजीव गांधी से हरियाणा के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री बंसीलाल के साथ एक मीटिंग कराने की दरख्वास्त की. जब बंसीलाल और भजनलाल की मीटिंग खत्म हुई तब तक बंसीलाल की कई शिकायतें दूर हो गई थी. क्योंकि इस मीटिंग के बाद बंसीलाल के बेटे को मिनिस्टर बना दिया गया. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक भजनलाल के बारे में एक अधिकारी ने कहा था कि भजनलाल भगवान को भी मात दे सकते हैं और भगवान को पता भी नहीं चलेगा.

भीम एस दहिया अपनी किताब पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा में लिखते हैं कि शुरुआत में भजनलाल ने जाटों को खुश करने की कोशिश की. दहिया लिखते हैं कि चौधरी देवीलाल की सरकार को सत्ता से बाहर किया जाना जाटों ने खुद की बेइज्जती की तरह लिया. इस किताब में ज़िक्र है कि लोग बात करते थे कि हरियाणा के एक ज़िले हिसार में सिमटे बिश्नोई समुदाय के नेता ने चौधरी देवीलाल की सरकार गिरा दी. संख्या के हिसाब से बिश्नोई हरियाणा की राजनीति में खास महत्व नहीं रखते थे. जाट समुदाय द्वारा स्वीकार ना किये जाने पर भजनलाल ने विधायकों को खुश करना शुरू दिया. उन्हें बिना मांगे सब सुविधाएं दे दी गई कि उन्हें बाकी किसी चीज़ से फर्क नहीं पड़ा.

देवीलाल और भजनलाल की राजनीति के चलते हरियाणा में जाट और गैर जाट की भावना खूब बढ़ी. दोनों ही नेताओं को ये राजनीति खूब सूट करती थी. 1979 से लेकर 1999 तक भजनलाल सत्ता से हटते तो देवीलाल आते और देवीलाल हटते तो भजनलाल आते. बाद में पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंद्र सिंह हुड्डा ने एक रैली में दोनों नेताओं पर टिप्पणी करते हुए इसे पॉलिटिकल मैच फिक्सिंग कहा था.

भजनलाल सरकार में हुए दो कुख्यात सुशीला और रेणुका गैंग रेप केस और सिखों के साथ नाइंसाफी

भीम एस दहिया अपनी किताब में भजनलाल सरकार के दौरान हुए इन दो वीभत्स गैंग रेप की घटनाओं का भी ज़िक्र करते हैं. विधायकों और उनके रिश्तेदारों को मिले वीआईपी ट्रीटमेंट ने अलग माहौल बना दिया था. 1980 में हिसार के एक स्कूल में सुशीला नाम की एक टीचर ने किसी नेता के जानकार को नकल करने से रोक दिया. इसके बदले सुशीला को दो महीने तक बंदी बनाकर अलगअलग जगहों पर ले जाकर गैंग रेप किया गया. बाद में उनका निर्मम तरीके से कत्ल कर दिया गया. जिन कथित वीआईपी लड़कों ने इस घटना को अंजाम दिया वो पकड़े तो गए लेकिन उन्हें उस सज़ा से बचा लिया गया जो उन्हें मिलनी चाहिए थी.

ऐसा ही मामला यमुनानगर में हुआ जहां एक स्कूली बच्ची का गैंग रेप कर मार दिया गया. बच्ची की लाश बोरी में बंद रेलवे ट्रैक के पास मिली. किसी वीआईपी के इस केस में संलिप्त होने की वजह से ये मामला भी सुशीला गैंग रेप केस की तरह ही रफादफा कर दिया गया था.

1982 में पंजाब में सिख उग्रवाद फैल रहा था तब भजनलाल ने दिल्ली के आलाकमान को खुश करने के लिए पंजाब से दिल्ली आने वाले हर सिख को रोककर तलाशी करवाई. इससे सिखों को अपमानित महसूस हुआ और हरियाणा के सिख भजनलाल के खिलाफ हो गए. यहां तक कि भजनलाल को धमकी भरे खत भेजे जाने लगे.

भजनलाल की पारिवारिक विरासत लंबी चौड़ी है

1991-1996 तक फिर भजनलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद सत्ता परिवर्तन हो गया. पहले बंसीलाल फिर चौधरी देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला वापस सत्ता में आ गए. बाद में कांग्रेस के ही भूपिंदर सिंह हुड्डा 2005 में मुख्यमंत्री बने. उस समय ही भजनलाल को एहसास हो गया था कि वो कांग्रेस लीडरशिप के खिलाफ बगावत नहीं कर सकते. गांधी परिवार ने भजनलाल को उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई और चांद राम को अच्छे पदों पर जगह का वादा किया था. लेकिन आगे चलकर राजनीतिक समीकरण बदले. भजनलाल ने 2007 में कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस बना ली थी.

भजनलाल को भारतीय चुनावी राजनीति का प्रोफेसर कहा जा सकता है. 78 साल की उम्र में भी 2009 के चुनावों से पहले उन्होंने कहा था कि चुनाव जीतने के लिए अभी तो मैं जवान हूं. उसी साल लोकसभा चुनाव में हरियाणा के दो बड़े नेताओें संपत सिंह और जय प्रकाश को हराकर सांसद बने. 2011 में 80 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया था. उनके देहांत पर देश के प्रमुख अखबारों ने छापा था कि अब गैरजाटों को लामबंद करने वाला नेता नहीं रहा और इसका फायदा जाट नेताओं को जाएगा. लेकिन इतिहास को देखें तो ये बात भी पता चलती है कि अपने रहते हुए भजनलाल ने किसी और गैर जाट नेता को आगे नहीं बढ़ने दिया. भजनलाल की खासियत थी कि वो दूसरे खेमे में खरीद लिए जाने वाले विधायकों की पहचान कर लेते थे. और राजनीति की इस पाक कला से उनके विरोधी उनसे नफरत भी करते और मन ही मन तारीफें भी.

भजनलाल के दो बेटे चंद्र मोहन बिश्नोई और कुलदीप बिश्नोई और एक बेटी रोशनी हैं. चंद्र मोहन कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में उप मुख्यमंत्री थे. लेकिन इन पर अनुपस्थिति के आरोप लगाकर 2008 में पद से हटा दिया गया था. इसके बाद चंद्र मोहन सीधे अपनी दूसरी पत्नी फिज़ा (अनुराधा बाली) के साथ सामने आए. दोनों ने इस्लाम कबूल कर शादी की थी. चंद्र मोहन से वो चांद मोहम्मद हो गए थे और अनुराधा बाली, फिज़ा हो गई थीं.

बाद में भजनलाल ने चंद्र मोहन को संपत्ति और राजनीतिक उत्तराधिकार से बेदखल कर दिया. भजनलाल ने संपत्ति चंद्र मोहन की पहली पत्नी और उनके बच्चों के नाम कर दी थी. चंद्र मोहन ने इसके एक साल बाद ही अनुराधा बाली उर्फ फिज़ा को छोड़ दिया और वापिस गए. 2012 में अनुराधा की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी. 2018 में चंद्र मोहन के फिर से राजनीतिक रूप से सक्रिय होेने की बात उठी पर उठ के रह गई.

कुलदीप बिश्नोई आदमपुर विधानसभा से तीसरी बार विधायक हैं. कुलदीप की पत्नी रेणुका बिश्नोई हांसी विधानसभा से विधायक हैं. दोनों के तीन बच्चे हैं. भव्य बिश्नोई भावी लीडर बनने की राह पर हैं. बेटी यूएसए में पढ़ाई कर रही हैं. एक और बेटा चैतन्य बिश्नोई चेन्नई सुपर किंग्स से आईपीएल खेल चुके हैंकुलदीप बिश्नोई ने 2016 में अपनी पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस को इंडियन नेशनल कांग्रेस में मिला ली2019 लोकसभा चुनावों में कुलदीप बिश्नोई के भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं. लेकिन उन्होंने ट्विटर पर इस बात का खंडन किया.

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