नई दिल्ली: साल 2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद एक अध्यादेश लाई थी, जिसमें किसी सजा के बाद दोषी सांसदों, विधायकों आदि को तत्काल सदन की सदस्यता से अयोग्य साबित करने से रोका जा सकता था, लेकिन उस वक्त अमेठी के तत्कालीन कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस अध्यादेश का विरोध किया था और उसे फाड़ दिया था. अपनी ही सरकार के खिलाफ जाने का राहुल का फैसला आज उन्हीं पर भारी पड़ा. अगर यह अध्यादेश कानून बन गया होता तो आज राहुल की संसद सदस्यता बच सकती थी.
आज कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई. वायनाड से सांसद की सदस्यता लोकसभा सचिवालय की ओर से जारी एक अधिसूचना के बाद रद्द की गई. राहुल की सदस्यता सूरत की एक कोर्ट द्वारा 2 साल की सजा सुनाए जाने के दो दिनों बाद रद्द की गई है.
बता दें कि सूरत की एक कोर्ट ने मानहानि केस मामले में राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई थी जिसके बाद से ही राहुल की सदस्या खत्म होने के आसार लगाए जा रहे थे. साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक में एक सभा को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा था कि ‘सारे मोदी चोर हैं’. इसके बाद गुजरात के भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था. राहुल को इसी मामले में सजा मिली थी.
कई बड़े नेताओं की जा चुकी है सदस्यता
हालांकि लोकसभा की सदस्यता गंवाने वाले राहुल पहले नेता नहीं हैं. इसी साल बीते 13 जनवरी को लक्षद्वीप से सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. मोहम्मद फैजल की सदस्यता हत्या के एक मामले में सजा मिलने के बाद सदस्यता रद्द की गई थी. बीते साल अक्टूबर में रामपुर से सपा सांसद आजम खान की भी सदस्यता रद्द की गई थी. हेट-स्पीच केस में दोषी पाए जाने के बाद आजम खान को तीन साल की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद उनकी सदस्यता रद्द की गई थी.
दिसंबर 2005 में 10 लोकसभा और 1 राज्यसभा सांसद की सदस्यता की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. इन सांसदों पर आरोप था कि इन्होंने संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लिए थे.
संसद की सदस्यता गंवाने वाले बड़े नामों में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का नाम शामिल है. साल 2013 में सीबीआई द्वारा चारा घोटाले केस में दोषी पाए जाने के बाद सारण से सांसद लालू प्रसाद यादव की संसद सदस्यता खत्म कर दी गई थी. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता साल 1977 में जनता पार्टी सरकार द्वारा लोकसभा में एक प्रस्ताव पास कर वापस ले ली गई थी. हालांकि एक महीने बाद इंदिरा की सदस्यता वापस लौटा दी गई थी.
साल 1976 में इमरजेंसी के दौरान तत्कालीन जनसंघ नेता सुब्रमण्यम स्वामी की भी राज्यसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी. उस वक्त स्वामी पर देश-विरोधी प्रोपेगेंडा में शामिल होने और संसद और देश के महत्वपूर्ण संस्थानों को बदनाम करने का आरोप लगाया गया था.
आय से अधिक संपत्ति के मामले में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को चार साल की सजा सुनाई गई थी जिसके बाद उनकी भी विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी.
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क्या कहते हैं नियम
संविधान के अनुच्छेद 102 (1) के प्रावधानों और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8 के मुताबिक किसी भी सांसद या विधायक को अगर किसी मामले में दो या दो साल से अधिक की सजा सुनाई जाती है तो उनकी सदस्यता रद्द की जा सकती है. इसके साथ ही उन्हें 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक भी लगाया जा सकता है.
2013 के अध्यादेश में क्या था?
साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘लिली थॉमस बनाम भारत संघ’ मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि कोई भी सांसद, विधायक या एमएलसी, जो किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और उसे कम से कम 2 साल की सजा सुनाई जाती है तो उसकी सदस्यता तुरंत रद्द की जाएगी. इस फैसले के विरोध में केंद्र की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश लाने की कोशिश की थी, लेकिन राहुल गांधी ने अपनी ही सरकार का विरोध करते हुए अध्यादेश को फाड़ दिया था. राहुल ने उस वक्त कहा था, ‘यह अध्यादेश बिल्कुल बकवास है और यह मेरा निजी विचार है.’
बता दें कि राहुल गांधी के विरोध के कारण यह पूरा नहीं हो पाया था. अगर यह अध्यादेश कानून बन जाता तो साल 2013 में सारण के तत्कालीन सांसद लालू प्रसाद यादव को सीबीआई द्वारा चारा घोटाले में सजा सुनाए जाने के बाद तुरंत रद्द की गई सदस्यता भी बच सकती थी.
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