चंडीगढ़: मोदी सरकार के अपने विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने के एक साल बाद किसान यूनियनों का गठबंधन ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ (एसकेएम) बिखरता नज़र आने लगा है. इसमें शामिल संगठनों में दरार आने की खबरें लगातार आ रही हैं. मोर्चा ने कृषि कानूनों के खिलाफ व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया था.
फिलहाल मोर्चा से जुड़ी यूनियनों में गुटबाज़ी और बगावत ऐसे समय में सामने आई हैं जब एसकेएम का नेतृत्व इसे भारत में सबसे प्रमुख किसान निकाय के रूप में आकार देने में लगा हुआ है.
हाल-फिलहाल की घटना में एसकेएम के एक प्रमुख सदस्य ‘भारतीय किसान यूनियन (एकता दकौंडा)’ में आई दरार है. एसकेएम में फिलहाल पंजाब के 32 और हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के कुछ मुट्ठी भर किसान यूनियन शामिल हैं.
मंगलवार को वरिष्ठ उपाध्यक्ष मंजीत सिंह धनेर के नेतृत्व वाले एक विद्रोही बीकेयू (एकता दकौंडा) गुट ने अध्यक्ष बूटा सिंह बुर्जगिल और महासचिव जगमोहन सिंह पटियाला को ‘निष्कासित’ कर दिया. उन पर वित्तीय अनियमितताओं और संघ के हितों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था.
‘निष्कासन’ बठिंडा के एक गुरुद्वारे में बुलाई गई एक आम सभा की बैठक में किया गया था. विद्रोही गुट ने दोनों नेताओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ 2020-21 के आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया.
उनकी जगह पर धनेर को अध्यक्ष और हरनेक सिंह महमा को महासचिव घोषित किया गया.
लेकिन बुर्जगिल ने आरोपों को खारिज किया और कहा कि धनेर और उनके छह सहयोगियों को पिछले सप्ताह संघ से पहले ही निष्कासित किया जा चुका था. इसलिए बैठक और उसमें लिए गए निर्णय मान्य नहीं हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें और पटियाला को अभी भी यूनियन के ज्यादातर सदस्यों का समर्थन प्राप्त है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘‘भले ही हम मान लें कि बठिंडा में की गई सभा, संघ की आम सभा थी. फिर भी उन्हें हमारे संगठन के संविधान के तहत पदाधिकारियों को हटाने का कोई अधिकार नहीं है. उसके लिए नामित प्रतिनिधियों की एक विशेष बैठक बुलाई जानी चाहिए थी.’’
बुर्जगिल ने कहा कि धनेर और उनका गुट अपने संगठन को बीकेयू (दकौंडा) के अलावा किसी भी अन्य नाम से पुकारने के लिए स्वतंत्र हैं.
साफतौर पर सामने आए इस विभाजन के कुछ दिन पहले संघ ने कौमी इंसाफ मोर्चा का समर्थन किया था. यह धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों का एक समूह है, जो ‘बंदी सिंह’ यानी सिख कैदियों की रिहाई की मांग कर रहा है. ये कैदी पंजाब में उग्रवाद के दिनों में विभिन्न अपराधों के लिए गिरफ्तार किए गए थे और जेल में 20 साल से अधिक समय से बंद हैं.
विद्रोह के बाद से बुर्जगिल और धनेर दोनों ने अपने-अपने गुटों से संघ को समर्थन देने के लिए कहा है.
दो सप्ताह में एसकेएम में इस तरह की यह दूसरी घटना है. अभी पिछले हफ्ते बीकेयू (एकता उग्राहन) भी दो हिस्सों में बंट गया था. राज्य के सबसे प्रभावशाली किसान नेताओं में से एक जोगिंदर सिंह उग्राहन के नेतृत्व वाले इस संघ का मालवा क्षेत्र में खासा दबदबा है.
बीकेयू (एकता उग्राहन) राज्य की सबसे बड़ी किसान यूनियनों में से एक है.
किसान संघ में हुआ ये विभाजन पिछले हफ्ते आधिकारिक हो गया जब इसके राज्य उपाध्यक्ष जसविंदर सिंह लोंगोवाल ने एक नए संघ ‘बीकेयू (एकता आज़ाद)’ की स्थापना कर दी. लोंगोवाल को संगठन विरोधी गतिविधियों के लिए पिछले महीने निष्कासित कर दिया गया था.
इसके विभाजन से पहले उग्राहन ने भी मोहाली में कौमी इंसाफ मोर्चा को समर्थन दिया था.
जहां बीकेयू डकौंडा एसकेएम का एक प्रमुख सदस्य है, वहीं उग्राहन ने बाहर से गठबंधन को समर्थन दिया हुआ है.
जब से किसान आंदोलन खत्म हुआ है, उसके बाद से एसकेएम ने अपने पंजाब क्षेत्र में कई किसान यूनियनों को टूटते देखा है. एसकेएम की कोर कमेटी के सदस्यों में से एक दर्शन पाल ने दिप्रिंट को बताया कि ताज़ा संकट (बीकेयू डकौंडा में) का एसकेएम के कामकाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
दर्शन पाल क्रांतिकारी किसान यूनियन के प्रमुख हैं, जिन्होंने दिल्ली आंदोलन से पहले एसकेएम के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘‘दिल्ली मोर्चा हटाए जाने के बाद पंजाब चुनाव के मुद्दे पर एसकेएम में संकट पैदा हो गया था. इसे लेकर नेता बंटे हुए थे, लेकिन एसकेएम को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है. एक निकाय के रूप में यह पिछले सालो से मजबूत हुआ है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘एसकेएम भारत के कई राज्यों में किसानों को लामबंद कर रहा है. हम देश भर में सभाएं कर रहे हैं और लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. पंजाब में कुछ संगठनों में हुए विभाजन से एसकेएम पर कोई असर नहीं पड़ा है.’’
कृषि अर्थशास्त्री सुच्चा सिंह गिल उनकी इस बात से सहमत हैं. उन्होंने कहा कि पंजाब की किसान यूनियन हमेशा से विभाजित होती आई हैं, लेकिन समय आने पर वो एकजुट हो जाती हैं.
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शुरुआत चढूनी से हुई
हाल में आए इस संकट से पहले भी एसकेएम इस तरह की परेशानियों से दो-चार होता रहा है. कृषि कानूनों के विरोध प्रदर्शन के दौरान भी इस तरह की दरार की खबरें सामने आईं थीं.
पहला विभाजन बीकेयू हरियाणा के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी के साथ सामने आया था, जहां एक तरफ एसकेएम के नेता विरोध को गैर-राजनीतिक रखने पर जोर दे रहे थे, वहीं चढूनी ने इससे असहमति जताई और कहा कि आंदोलन से पैदा हुई जन भावना को एक राजनीतिक आंदोलन में बदल देना चाहिए.
चढूनी के बगावती तेवर के चलते उन्हें एसकेएम से अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया था, लेकिन वे अपनी बात पर अडिग रहे.
एसकेएम का विरोध-प्रदर्शन अभी भी सिंघु बॉर्डर पर चल रहा था, लेकिन चढूनी 2022 के राज्य विधानसभा चुनावों पर अपनी नज़रें गड़ाए हुए थे. उन्होंने अगस्त 2021 में पूरे पंजाब में राजनीतिक समर्थन जुटाने के लिए एक अभियान शुरू किया.
दिसंबर 2021 में — केंद्र सरकार द्वारा कानूनों को वापस लेने की घोषणा के कुछ ही दिनों बाद —चढूनी एक राजनीतिक संगठन ‘संयुक्त संघर्ष पार्टी (एसएसपी)’ के साथ अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को लेकर खुलकर सामने आ गए. उन्होंने ऐलान किया कि उनकी पार्टी पंजाब चुनाव में सभी विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारेगी.
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राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ती चली गई
चढूनी के इस ऐलान के महीनों बाद एसकेएम में एक और विभाजन सामने आ गया. पंजाब के 22 किसान यूनियनों ने बलबीर सिंह राजेवाल, बीकेयू (राजेवाल) के प्रमुख और एक कोर कमेटी के सदस्य के नेतृत्व में घोषणा की कि वे विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं.
उनकी गठित पार्टी को संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम) कहा गया और राजेवाल को इसका मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया.
लेकिन कुछ पंजाब किसान यूनियनों, जैसे कि बीकेयू (एकता दकौंदा), बीकेयू (एकता सिद्धूपुर) और बीकेयू (एकता उग्राहन) ने इस कदम को खारिज कर दिया था. राजेवाल और चढूनी दोनों को एसकेएम की कोर कमेटी से बाहर कर दिया गया.
इस बीच राजेवाल के एसएसएम ने चढूनी के एसएसपी के साथ हाथ मिलाया और पंजाब विधानसभा की 117 सीटों में से 100 से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए, लेकिन उनकी राजनीति में कदम रखने का ये कदम विफल साबित हुआ. इन चुनावों में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल पाई. यहां तक कि मुख्यमंत्री पद के चेहरे राजेवाल की ज़मानत भी जब्त हो गई.
राजनीतिक पराजय का असर
चुनावों के बाद एसकेएम साफतौर पर उन लोगों के बीच बंट गया जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं थीं और जो अराजनैतिक बने रहना चाहते थे.
पिछले साल के विधानसभा चुनावों के बाद मनमुटाव रखने वाले दो समूहों ने एक साथ मंच साझा करने से इनकार करते हुए अलग-अलग बैठकें कीं.
जुलाई की शुरुआत में एसकेएम को एकजुट करने का प्रयास किया गया था. राष्ट्रव्यापी सड़क नाकाबंदी करने से पहले गठबंधन ने अपनी लंबित मांगों को आगे बढ़ाने की घोषणा की थी. उनके इस कदम के बाद 15 यूनियनों फिर से इसमें शामिल हो गईं.
हालांकि, कोर कमेटी के दो सदस्यों, बीकेयू (एकता सिद्धूपुर) के जगजीत सिंह डल्लेवाल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोगी राष्ट्रीय किसान संघ के पूर्व नेता शिव कुमार कक्काजी ने इसे स्वीकार नहीं किया. अगस्त में वे दोनों एसकेएम (गैर-राजनीतिक) बनाने के लिए अलग हो गए. उन्होंने आंदोलन का राजनीतिक लाभ उठा रहे किसान नेताओं के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया.
सितंबर में एक अन्य कोर सदस्य ‘स्वराज इंडिया’ के योगेंद्र यादव ने भी एसकेएम समन्वय समिति से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि वह राजनीतिक रूप से विपक्ष का समर्थन करना चाहते हैं.
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दो साल, कोई संयुक्त कार्यक्रम नहीं
आज तक एसकेएम एक विभाजित घर बना हुआ है. उसके घर में पड़ी दरारें पिछले नवंबर में पूरी तरह से सामने आने लगी थीं. यह वो समय था जब गठबंधन और विभिन्न किसान यूनियनों ने दिल्ली की सीमाओं पर दो साल के आंदोलन को चिह्नित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए.
चार कोर कमेटी के सदस्यों का साथ छोड़ दिया गया. मूल एसकेएम ने 26 नवंबर को विभिन्न राज्यों में अपनी लंबित मांगों को सामने लाने के लिए राजभवन, या गवर्नर हाउस तक रैलियों और मार्च की घोषणा की.
राजेवाल और उनका समर्थन करने वाली पांच यूनियनों ने इसमें शामिल होने का बजाय पंजाब के गंभीर जल संकट पर विरोध की योजना बनाई थी, लेकिन इस कार्यक्रम को आखिर में स्थगित करना पड़ा क्योंकि वो पंजाब के फिरोजपुर जिले के मंसूरवाल गांव में एक शराब कारखाने के खिलाफ जीरा इंसाफ मोर्चा के विरोध में शामिल हो गए थे.
राजेवाल के साथ पांच संगठनों में से एक अखिल भारतीय किसान संघ के प्रमुख प्रेम सिंह भंगू ने दिप्रिंट को बताया था, ‘‘हमने कौमी इंसाफ मोर्चा के कारण अपना आंदोलन फिर से स्थगित कर दिया है. हम एक ही स्थान पर किसी अन्य मुद्दे पर समानांतर विरोध नहीं करना चाहते हैं.’’
उधर किसान संघों के बारे में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की टिप्पणियों के विरोध में एसकेएम के एक अन्य पूर्व नेता दल्लेवाल ने 19 नवंबर को एक सप्ताह का उपवास शुरू किया था, लेकिन एसकेएम के अन्य सदस्यों में से किसी ने भी उनके अनशन में उनका समर्थन नहीं किया.
आगे क्या
एसकेएम कोर कमेटी के सदस्य दर्शन पाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘‘पंजाब यूनियन्स पहले भी स्थानीय मुद्दों पर विभाजित होती रही हैं, लेकिन हम उन्हें साथ ले आए. फिर हमने अन्य राज्यों के किसान निकायों के साथ हाथ मिलाया और एक अखिल भारतीय निकाय का गठन किया, जिसने दिल्ली की सीमाओं पर एक लंबी मुश्किल लड़ाई लड़ी.’
उन्होंने कहा, गठबंधन अपनी लंबित मांगों के लिए एक और लड़ाई की तैयारी और अधिक संरचनात्मक परिवर्तन लाने पर विचार कर रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले साल हमने एक नई संरचना और मुख्य दिशानिर्देशों का सुझाव देने के लिए 11 सदस्यीय मसौदा समिति का गठन किया था. मसौदा समिति ने अपनी रिपोर्ट दी और हमने 9 फरवरी को कुरुक्षेत्र में अपनी पिछली बैठक के दौरान इसे अपनाया.’’
वह आगे बताते हैं, ‘‘मसौदा समिति की ओर से दिए गए नौ सुझावों में से एक एसकेएम की 31 सदस्यीय समन्वय समिति का निर्माण है. साथ ही यह भी साफ कर दिया गया है कि एसकेएम गैर-राजनीतिक रूप से कार्य करता रहेगा. चुनावी राजनीति में भाग लेने वाला कोई भी नेता एसकेएम का हिस्सा नहीं होगा.’’
कृषि अर्थशास्त्री गिल ने कहा कि हालांकि वे फिलहाल बंटे हुए हैं, लेकिन समय आने पर ये सभी यूनियनें साथ आ जाएंगी.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘‘दिल्ली आंदोलन की समाप्ति के बाद, वे अपने सामान्य स्थिति में वापस जा रहे हैं. नेताओं के बीच अहंकार के मुद्दे और एक सामान्य बड़े कारण की कमी दो मुख्य वजहें हैं जो पंजाब में किसान यूनियनों को एक नहीं होने देतीं. इन संघों में भ्रष्टाचार और वित्तीय गड़बड़ी के आरोप भी लगते रहते हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन मुझे इस बात को लेकर ज़रा भी संदेह नहीं है कि जरूरत पड़ने पर ये विभाजित संघ एक आम लड़ाई के लिए फिर से एक साथ वापस आ जाएंगे, जैसा कि उन्होंने पहले किया था और यह उम्मीद से पहले हो सकता है.’’
(अनुवादः संघप्रिया | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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