अगर लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा ने धर्म के आधार पर एक साहसिक ध्रुवीकरण प्रक्रिया की शुरुआत की, तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा एक ‘प्रति-ध्रुवीकरण’ की शुरुआत कर रही है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व भारतीय जनता पार्टी विरोधियों को साथ लाकर एक नया राजनीतिक ढांचा तैयार करने की कोशिश कर रही है.
यह एक जोखिम भरा राजनीतिक खेल है क्योंकि भाजपा ने इसे 80 के दशक में शुरू किया था और अब वह इस रास्ते पर इतना आगे निकल आए हैं कि उन्होंने समुदायों के ध्रुवीकरण की कला में महारत हासिल कर ली है.
पूरी यात्रा के दौरान, राहुल ने धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर अतिवादी रुख अपनाए रखा. उन्होंने आरएसएस-बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चरम सांप्रदायिकतावादी के रूप में चित्रित किया जो पहले से कहीं अधिक कठोर था. 30 जनवरी को श्रीनगर में अपने अंतिम भाषण में, हिंसा के कारण अपने परिवार की पीड़ा के बारे में बोलते हुए, उन्होंने कहा: “जो हिंसा करवाते हैं, जैसे कि मोदी जी हैं, [गृह मंत्री] अमित शाह जी हैं, [राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार] अजीत डोभाल जी हैं, आरएसएस है, वो इस बात को समझ नहीं सकते.”
यह यात्रा राहुल गांधी को उनकी ‘छवि’ सुधारने, कांग्रेस नेताओं की लगभग लाइलाज सुस्ती में ऊर्जा डालने और सबसे बढ़कर, विविध क्षेत्रीय दलों को यह साबित करने के लिए की गई थी कि कांग्रेस ही भाजपा की प्रमुख विपक्षी पार्टी है. और राहुल रोज मोदी को ललकारते रहेंगे.
सितंबर 2022 में शुरू होने के बाद से 135 दिनों में 14 राज्यों में 75 जिलों को पार करने वाली कठिन यात्रा के प्रति प्रतिबद्धता दिखाते हुए राहुल गांधी ने अपनी पहली उल्लेखनीय राजनीतिक सफलता के लिए कड़ी मेहनत की है.
‘नेता’ के रूप में उभरना
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान, राहुल गांधी के साथ अलग-अलग कल्चर और भाषा बोलने वाले हजारों लोग जुड़े. प्रशांत चारी और सवियो जोसेफ द्वारा स्थापित ब्रांड मैनेजमेंट कंपनी ‘तीन बंदर’ द्वारा महिलाओं, बच्चों और गरीबों के साथ उनकी गर्मजोशी भरी बातचीत को शानदार ढंग से पेश किया गया था. एक अंदाज़ के मुताबिक़ यात्रा की कुल लागत करीब 100 करोड़ रुपये आंकी गई है.
2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस सदस्यों ने पार्टी को फिर से स्थापित करने के बारे में सोचा. कर्नाटक के सांसद जयराम रमेश ने कथित तौर पर सुझाव दिया था कि राहुल गांधी ऐसी यात्रा शुरू करें. हाल ही में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी यही सुझाव दिया था. राहुल ने खुद दावा किया है कि इस विचार को क्रियान्वित करने से पहले उन्होंने कुछ समय तक इस पर काफी सोचा.
वह भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से एक ऐसे नेता वाले छवि के रूप में उभरे जो भाजपा की राजनीति के आगे झुकने वाले नहीं हैं. “डरो मत” उन्होंने एक हजार बार कहा, “बीजेपी से डरो मत.” इस यात्रा के बाद प्रवर्तन निदेशालय के किसी भी नोटिस या केंद्रीय जांच ब्यूरो के समन से राहुल की हासिल की गई राजनीतिक जमीन कम नहीं होगी.
. कुछ भी हो, वह सहानुभूति हासिल करेंगे. उन्होंने भाजपा पर सबसे कड़ा प्रहार तब किया जब उन्होंने कहा: “मैं नफरत के बाजार में प्यार, मोहब्बत की दुकान खोलने आया हूं.”
अब, आम जनता द्वारा और अधिक स्वीकृति मिलने के बाद पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़ और भी मजबूत हुई है.
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यात्रा से हासिल
भारत जोड़ो यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं में भाजपा और ‘मोदी मैजिक’ के खिलाफ खड़े होने का आत्मविश्वास विकसित हुआ है. एक राजनीतिक काडर की ऊर्जा चुनाव जीतने में उतनी ही मदद करती है जितनी नेतृत्व करता है. यह बिल्कुल स्पष्ट है कि राहुल गांधी 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे.
यात्रा में वास्तव में जो देखकर खुशी हुई वह यह था कि भारत के भावनात्मक रूप से आवेशित लोगों ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया. एक नेता लोगों के इर्द-गिर्द घूमकर खुद को स्थापित कर सकता है. राहुल गांधी की पदयात्रा में शामिल होने वाले लाखों लोगों ने सिर्फ सेल्फी में उनके साथ खड़े होकर उनकी छवि बदलने में मदद की है.
राहुल के सह-यात्री राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने कहा, “पप्पू का पोस्टर फट चुका है.”
यू-ट्यूब, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर यात्रा पर भाजपा की शैली में कार्पेट बॉम्बिंग की गई. कन्याकुमारी से लेकर श्रीनगर तक भारतीयों के साथ राहुल के मिलने-जुलने की दैनिक फुटेज को विक्ट्री के रूप में दिखाया गया.
भाजपा और उसके समर्थकों का तर्क है कि भारत जोड़ो यात्रा 2024 में कांग्रेस के लिए वोट नहीं बटोर पाएगी. लेकिन, निकट भविष्य में अगर कांग्रेस किसी भी राज्य में जीतती है, तो इसका श्रेय अकेले राहुल को दिया जाएगा. छत्तीसगढ़, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी दोनों में कड़ी टक्कर होगी. नतीजे दिखाएंगे कि यात्रा कितनी प्रभावशाली रही.
कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने सोचा कि विभिन्न प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल की मूर्ख टिप्पणियों ने पार्टी की उम्मीदों को कम कर दिया है. दिसंबर 2022 के यांग्स्टी संघर्ष के बारे में गलत तरीके से बात करने पर उनकी छवि को एक और झटका लगा: “हमारे सैनिक पिट रहे हैं (चीनी द्वारा भारतीय सैनिकों को पीटा जा रहा है).” लेकिन अब राहुल पहले से बेहतर हैं.
भारत में मतदाता नेता नहीं बनाते हैं. वे केवल राजनीतिक दलों द्वारा पेश किए गए नेता का चयन करते हैं. और ये नेता अपनी ताकत और कमजोरियों के साथ आते हैं. मोदी के समर्थकों को लगता है कि वह सबसे अच्छे हैं. यहां तक कि जो लोग अलग तरह से सोचते हैं, वे जाति और धर्म जैसे अन्य विचारों के कारण या विशुद्ध रूप से उनकी बेहतरीन भाषण देने की कला के आधार पर उन्हें वोट दे सकते हैं. ग़ैर-बीजेपी खेमे मोदी से बेहतर नेताओं का चयन तब कर सकेंगे जब बीजेपी विरोधी मत इतनी प्रभावशाली संख्या में संगठित हो सके कि उन्हें गंभीरता से लिया जा सके.
जहां यात्रा कम पड़ गई
कांग्रेस के भीतर और बाहर राहुल गांधी के आलोचकों के अनुसार भारत जोड़ो यात्रा की सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि इसे कुशलता से अंजाम दिया गया लेकिन यह राजनीतिक संदेश देने में विफल रही.
भारत भर में लोग यात्रा की बात कर रहे हैं, लेकिन इसमें कोई जोश नहीं है.
राहुल अभी भी संवेदनशील मुद्दों पर अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं करना चाह रहे थे – अनुच्छेद 370 पर, उन्होंने सिर्फ यह कहा कि वह कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के प्रस्ताव का समर्थन करते हैं.
उनकी अपनी पार्टी के लोगों का कहना है कि कन्याकुमारी से श्रीनगर तक का मार्ग सामरिक रूप से बिल्कुल भी स्मार्ट नहीं था.
और आलोचक पूछते रहे: ‘उनका क्या अधिकार है सिवाय इसके कि उनका जन्म एक खास परिवार में हुआ है?’ ‘बिना जिम्मेदारियों के वे सत्ता का आनंद लेना कब बंद करेंगे?’
पार्टी को एक बड़ा राजनीतिक झटका लगा जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यात्रा की समाप्ति के लिए 23 दलों को श्रीनगर आमंत्रित किया लेकिन सिर्फ आठ ही दल पहुंचे.
इस पूरे खेल में एक और विफलता यह रही कि इस तरह की चर्चित यात्रा में कांग्रेस का एक भी नया नेता पैदा नहीं हुआ. आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की यात्राओं से प्रमोद महाजन, एम. वेंकैया नायडू, नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं का एक समूह उभरा था. आडवाणी अपने विचारों में पावरफुल, क्रिस्टल-क्लियर और दृढ़ थे.
राहुल की प्रेम बनाम भाजपा की नफरत वाली बात में गहराई की कमी थी. उनका यह बयान कि वह वोट बटोरने के लिए नहीं चल रहे हैं, अतार्किक लग रहा था. तेजी से बदलते भारत में अगर आप आगे से वोट नहीं मांगते हैं तो मतदाताओं का ध्यान खींचने में दशकों लग जाएंगे. क्या कांग्रेस लंबी दौड़ की योजना बना रही है?
भारतीयों ने साबित कर दिया है कि ज्यादातर मतदाता खाली पेट प्यार-मोहब्बत की भाषा नहीं बोलते हैं. विकास की बात करो, रोजगार पैदा करो, गरीबों को मुफ्त राशन और रहने योग्य घर दो, और ‘प्यार की बातें’ अपने आप हो जाएंगी.
राहुल इतना भी राजनीतिक प्रभाव नहीं पैदा कर सके कि उनके सहयोगी शरद पवार उनसे जुड़ते. यह गैर-बीजेपी नेताओं की ओर से एक मूक संकेत है कि उन्हें नहीं लगता कि 2024 में राहुल को मोदी के खिलाफ खड़ा करना एक अच्छा विचार है. एक तो तय है कि बीजेपी की तेज़-तर्रार मशीनरी इस यात्रा से सीख लेगी और अपनी रणनीति को अपडेट करेगी, जबकि कांग्रेस राहुल की ओर देखेगी और उनके आदेश का इंतज़ार करेगी.
सच तो यह है कि भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस की तुलना में राहुल की अधिक मदद की है. कांग्रेस की यात्रा तो अभी शुरू हुई है.
(शीला भट्ट दिल्ली-बेस्ड वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @sheela2010 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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