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Friday, 22 November, 2024
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Budget 2023 में भी बुनियादी ढांचे पर रहेगा मोदी सरकार का जोर, लेकिन पुराने प्रोजेक्ट पीछे चल रहे

कई प्रोजेक्ट में धीमी प्रगति के बावजूद विशेषज्ञ आशावादी हैं. उनका कहना है कि भारत ने बुनियादी ढांचे के मामले में महज न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के बजाये भविष्य को ध्यान रखकर और नेक्स्ट लेवल के इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस करना शुरू किया है, जिसमें समय लगता ही है.

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नई दिल्ली: केंद्रीय बजट 2023-24 में बुनियादी ढांचे, खासकर रेलवे और राजमार्ग निर्माण, के विकास पर केंद्र सरकार का जोर दिया जाना जारी रहने की उम्मीद है. हालांकि, आधिकारिक डेटा दर्शाता है कि जमीनी स्तर पर पिछले साल के बजट में घोषित कई प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर निर्माण कार्य लक्ष्य से पीछे चल रहा है.

सड़क एवं राजमार्ग क्षेत्र को उम्मीद है कि 2023-24 के बजट में उसका आवंटन बढ़ेगा, जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट पेश करेंगी. सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक, इस क्षेत्र का आवंटन 2022-23 में 1.99 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2023-24 में 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक किए जाने के आसार हैं.

एक अधिकारी ने कहा, ‘वित्त वर्ष 2022-23 में हमें जो बजट आवंटित किया गया था, वह फरवरी तक खत्म हो जाएगा.’

रेल मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि 2023-24 में इस क्षेत्र के लिए आवंटन लगभग 1.8 लाख करोड़ रुपये होने की संभावना है, जो 2022-23 में 1.4 लाख करोड़ रुपये था.

रेल मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने बजट में अपेक्षित कई घोषणाओं की सूची भी तैयार की है. इनमें नई पटरियां बिछाना, रेलवे बेड़े में सेमी-हाई-स्पीड वंदे भारत ट्रेनों को शामिल करना और हाइड्रोजन-चालित ट्रेनों की शुरुआत के साथ-साथ अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए आवंटन बढ़ाना शामिल है.


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बुनियादी सड़क और रेल ढांचा

बुनियादी ढांचे को निरंतर बढ़ावा दिए जाने के अभियान के बावजूद 2022-23 के बजट में घोषित कई परियोजनाएं निर्धारित समय से पीछे चल रही हैं.

उदाहरण के तौर पर, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में 12,200 किलोमीटर राजमार्ग बनाने का लक्ष्य रखा था. लेकिन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर तक इसमें से केवल 5,300 किमी से थोड़ा अधिक निर्माण ही किया जा सका है.

बाकी बचा काम 31 मार्च तक पूरा हो पाना मुश्किल ही लगता है. हालांकि, सड़क मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष के शेष दो महीनों में निर्माण की गति तेज हो जाएगी.

दिसंबर में संसद में दिए एक जवाब में धीमी निर्माण गति के लिए राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने मानसून को जिम्मेदार ठहराया.

गडकरी ने संसद को बताया, ‘मंत्रालय ने अपने आकलन में पाया कि इस वर्ष मानसून के दौरान औसत से अधिक बारिश के कारण निर्माण कार्यों की प्रगति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. इस वित्तीय वर्ष के दौरान नवंबर तक निर्मित 4/6/8 लेन एनएच की कुल लंबाई 2,038 किमी है, जो पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान इसी अवधि के लिए निर्मित 1,806 किमी से अधिक है. हालांकि, इस वित्त वर्ष के दौरान नवंबर तक निर्मित सभी श्रेणियों के एनएच की कुल लंबाई 4,766 किलोमीटर है, जो पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान इसी अवधि के लिए बनाए गए 5,118 किलोमीटर से कम है.’

सड़क मंत्रालय से जुड़े दूसरे अधिकारी ने कहा कि वित्त वर्ष 2027-28 तक 9,860 किलोमीटर की कुल लंबाई के साथ पांच ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे और 22 एक्सेस-कंट्रोल्ड कॉरिडोर बनाने की मंत्रालय की महत्वाकांक्षी परियोजना भी पीछे चल रही है.

रेलवे क्षेत्र की बात करें तो मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल (एमएएचएसआर) परियोजना भी निर्धारित समयसीमा से पीछे चल रही है और इसकी वजह भूमि अधिग्रहण से जुड़े मुद्दे हैं.

रेल मंत्रालय की तरफ से संसद में पेश जानकारी के मुताबिक, 31 दिसंबर, 2022 तक प्रस्तावित 508.09 किलोमीटर कॉरिडोर के निर्माण के कुल मिलाकर केवल 24.73 प्रतिशत प्रगति हुई है.

रेल मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, बुलेट ट्रेन परियोजना की लागत अनुमानत: 1.08 लाख करोड़ रुपये से अधिक होने की संभावना है. 2022-23 में इस परियोजना की कार्यान्वयन एजेंसी नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरिडोर लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) को 19,102 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. सूत्रों ने कहा कि अतिरिक्त बजटीय संसाधनों के जरिये परियोजना के लिए 5,000 करोड़ रुपये के निवेश की अनुमति देने का प्रावधान भी किया गया था.

2022-23 के बजट में घोषणा की गई थी कि अगले तीन सालों में 400 वंदे भारत ट्रेनों का निर्माण किया जाएगा. चालू वित्त वर्ष समाप्त होने में ढाई महीने शेष रह जाने के बीच ऐसी केवल आठ ट्रेनें चल रही हैं.

यातायात, रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य वीनू एन. माथुर ने कहा कि अच्छी बात यह है कि भारतीय रेलवे वंदे भारत ट्रेनों जैसे नए उत्पादों के साथ आगे आ रही है, जो स्वदेश निर्मित हैं. उन्होंने कहा, ‘लेकिन यात्रियों को वास्तविक लाभ तब होगा जब रेलवे ट्रेनों की गति बढ़ा सके और यात्रा में लगने वाले समय को कम से कम कर सके. अभी, वंदे भारत ट्रेनों की गति किसी अन्य राजधानी या शताब्दी की तरह ही है.’

2022-23 के बजट में घोषित अन्य इंफ्रा लक्ष्यों को पूरा नहीं किया गया है. सीतारमण ने कहा था कि 2022-23 में 60 किलोमीटर लंबी आठ रोपवे परियोजनाओं के अनुबंध दिए जाएंगे. लेकिन अब तक, वाराणसी में 3.85 किमी शहरी रोपवे के लिए केवल एक अनुबंध दिया गया है. उत्तराखंड के माणा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोपवे परियोजना का शिलान्यास किया था, लेकिन इसके लिए कोई ठेका नहीं दिया गया है.

इसी तरह, सीतारमण ने अगले तीन वर्षों में मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स सुविधाओं के लिए 100 पीएम गति शक्ति कार्गो टर्मिनल के विकास की घोषणा की थी. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पिछले महीने संसद को सूचित किया था कि दिसंबर के पहले सप्ताह तक रेलवे ने इसमें से केवल 22 ऐसे टर्मिनल चालू किए हैं, जबकि 79 अन्य को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी गई है.


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‘बेहतरीन बुनियादी ढांचे पर केंद्रित किया जा रहा ध्यान’

इंफ्रास्ट्रक्चर कंसल्टेंसी फर्म फीडबैक इंफ्रा के चेयरमैन परवेश मिनोचा को पूरी उम्मीद है कि सरकार इस क्षेत्र को प्राथमिकता देना जारी रखेगी.

मिनोचा ने दिप्रिंट को बताया, ‘इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में पिछले 10 साल का कामकाज देखने की जरूरत है. तिमाही या वार्षिक लक्ष्यों में उतार-चढ़ाव दिखेगा. अब सारा फोकस बुनियादी ढांचे से आगे बढ़कर नेक्स्ट लेवल के इंफ्रास्ट्रक्चर पर है. सिर्फ दो-लेन या चार-लेन राजमार्ग का निर्माण नहीं हो रहा बल्कि एक्सेस-कंट्रोल राजमार्ग और एक्सप्रेसवे भी बन रहे हैं. यह एक नया अनुभव है.’

मिनोचा के अनुसार, निजी पूंजीगत खर्च अभी शुरू हो रहा है. उन्होंने यह भी कहा, ‘हम अब एक दुष्चक्र से बाहर आ रहे हैं. हम केवल न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के लिए नहीं बल्कि भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए निर्माण कर रहे हैं. जब आप भविष्य की जरूरतों के हिसाब से बुनियादी ढांचे का निर्माण करते हैं, तो गति अलग होती है.’

चुनौती तब उत्पन्न होती है जब केंद्र सरकार को राज्यों के सहयोग से काम करना होता है. मिनोचा ने कहा, ‘केंद्र-राज्य के टकराव के कारण देरी हो रही है. इसके अलावा, पर्यावरण का मुद्दा भी एक बड़ी चुनौती है. हमें पहले की तुलना में पर्यावरण के प्रति अधिक संवेदनशील होना होगा.’

माथुर ने कहा कि सीमित क्षमताओं वाले रेलवे क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना लंबे समय से अपेक्षित था. उन्होंने कहा, ‘लेकिन जब आप नई लाइनें बना रहे हों तो माल और यात्री क्षमता के बीच संतुलन होना चाहिए. हमें माल ढुलाई के मोर्चे पर क्षमता बढ़ानी होगी. लाइन और टर्मिनल क्षमता पर ध्यान देने की जरूरत है. अतिरिक्त फ्रेट कॉरिडोर भी बनाने की जरूरत है.’

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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