धांगरी/राजौरी: पहले कुछ सेकंड के लिए आतिशबाज़ी की तरह तेज़ आवाज़ सुनाई दी, लेकिन जैसे-जैसे आवाज़ें करीब आने लगीं, तो 42-वर्षीय दुकानदार बाल कृष्ण ने सहजता से काम लिया और जम्मू के राजौरी शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर धांगरी नामक गांव में अपने घर में धूल फांक रही प्वाईंट 303 राइफल को थाम लिया.
रविवार को जैसे ही रात घिरने लगी, बाल कृष्ण ने 24 साल में पहली बार पुरानी राइफल से फायर किया. सशस्त्र नागरिकों का एक समूह, अब निष्क्रिय ग्राम रक्षा समिति (वीडीसी) के पूर्व सदस्य के रूप में, उनका पुरानी ट्रैनिंग अब काम आ गई. जब उसने दो आदमियों को एक पड़ोसी के घर से हथियारों के साथ निकलते देखा, तो उसने उनकी दिशा में बंदूक चलाने की कोशिश की.
शोक में डूबे कृष्ण ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने उनकी ओर फायरिंग की और वे भाग गए.’ गांव के बाकी लोगों की तरह वह भी मातम में थे.
माना जाता है कि आतंकवादियों ने पास के जंगलों से शाम करीब 7 बजे धांगरी में घुसपैठ की थी. 1 जनवरी की रात को एक पिता और पुत्र सहित चार लोगों की हत्या कर दी और कई अन्य घायल हो गए. अगर बालकृष्ण ने साहस न दिखाया होता तो शायद नरसंहार और भी बुरा हो सकता था.
ग्रामीणों ने कहा कि आतंकवादी हिंदू परिवारों को निशाना बनाने के मिशन पर जुटे थे. वह एक-एक करके चारों घरों में गए. आतंकियों ने गोलीबारी से पहले एक पुरुष निवासी का आधार कार्ड भी चैक किया. अगर उन्हें नहीं खदेड़ा गया होता तो ग्रामीणों का दावा था कि उग्रवादी 70-80 लोगों को मौत के घाट उतार सकते थे.
फिर भी, नरसंहार वहां समाप्त नहीं हुआ. 2 जनवरी को, एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईआडी) जिसे उग्रवादियों ने एक घर में लगाया था, उसमें विस्फोट हो गया. इस दौरान दो नाबालिग लड़कियों की मौत हो गई और 10 अन्य घायल हो गए, लेकिन यहां भी ‘भाग्य’ का ही हाथ था.
स्थानीय लोगों ने कहा कि विस्फोट में 100-200 लोगों की जान जा सकती थी, अगर मातम मनाने वाले पीड़ित गोलीबारी में जान गंवाने वाले लोगों के शवों को घर लाते. विस्फोट के वक्त मृतकों के परिजन और अन्य ग्रामीण शवों को उस घर से करीब 800 मीटर दूर धांगरी चौक ले गए थे, जहां आईईडी लगाया गया था. वे घटना और कथित सुरक्षा चूक के विरोध में वहां गए थे.
राजौरी के सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. महमूद बजर ने बताया, ‘दो घटनाओं में, चार लोगों को मृत लाया गया और दो अन्य की इलाज के दौरान मौत हो गई. कुल 21 लोग घायल हुए हैं.’
उन्होंने कहा, ‘सभी घायल अब स्थिर हैं. हमने सबसे अच्छा इलाज किया है और कुछ लोगों को जम्मू जीएमसी में भी स्थानांतरित कर दिया गया है.’
हालांकि, धांगरी में गोलियों के निशान अब भी ताज़ा हैं और एक के बाद एक दो आतंकी घटनाओं के जख्मों को भरने में काफी वक्त लगेगा.
दिप्रिंट ने इस हफ्ते राजौरी का दौरा किया तो पाया कि लोगों में डर मौजूद था, लेकिन गुस्सा भी था. गांव के सरपंच (मुखिया) धीरज शर्मा ने कहा कि स्थानीय लोग इस बात से नाराज़ हैं कि गोलीबारी के एक घंटे चालीस मिनट बाद ही सुरक्षा एजेंसियां मौके पर पहुंच गईं.
राजौरी में दोबारा से उग्रवाद के पैर पसारने की भी चिंता है. शहर ने 1990 और 2000 के दशक में कई घातक हमले देखे हैं. पीर पंजाल रेंज के साथ इस क्षेत्र की दूरदर्शिता को देखते हुए, खतरे से निपटने में मदद करने के लिए वीडीसी को मजबूत करने के लिए मांग बढ़ रही है.
1990 के दशक में जम्मू और कश्मीर में उग्रवाद के चरम के दौरान स्थानीय निवासियों और सेवानिवृत्त सुरक्षाकर्मियों वाले इन असैन्य प्रतिवाद समूहों का गठन पहली बार जम्मू क्षेत्र में किया गया था. सुरक्षा बलों द्वारा प्रशिक्षित, वीडीसी सदस्यों ने इस मुद्दे से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि, वीडीसी के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन सहित कई आरोप लगाए गए हैं.
जैसे-जैसे उग्रवाद कम होने लगा, कई वीडीसी को भंग कर दिया गया और कुछ के हथियार भी प्रशासन द्वारा वापस ले लिए गए. केंद्र सरकार ने पिछले साल ग्राम रक्षा समूह को दोबारा लाया, जिसके बारे में निवासियों ने दावा किया कि राजौरी और पुंछ के सीमावर्ती जिलों में इस योजना को ठीक से लागू किया जाना बाकी है.
वीडीसी के सदस्य रहे रंजीत तारा ने कहा, ‘अगर बाल कृष्ण ने गोली नहीं चलाई होती, तो पूरे धांगरी का सफाया हो जाता. हम चाहते हैं कि सरकार अब वीडीसी को मजबूत करे.’
यह भी पढ़ेंः ‘धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से टकराए’- सिख आइकन बंदा सिंह बहादुर को अपना क्यों बनाना चाहती है BJP
‘सुरक्षा बलों ने हमें विफल किया’
यहां के एक निवासी राकेश रैना ने कहा, ‘रविवार के हमले से पहले तक, धांगरी निवासी आधी रात के बाद भी अपने घरों से बाहर निकलने में सुरक्षित महसूस किया करते थे. लेकिन अब, शाम 5 बजे के बाद सन्नाटा पसर जाता है. यह पहली बार है कि धांगरी में ऐसी भयानक घटना हुई है. लोग डरे हुए हैं.’
इस डर को दो प्रमुख कारक बढ़ा रहे हैं. एक हमले की लक्षित प्रकृति है, जो पहले जम्मू की तुलना में कश्मीर घाटी में अधिक आमतौर पर हुई है. उन्होंने कहा कि यहां रहने वाले हिंदू परिवार विशेष रूप से कमजोर महसूस करते हैं, क्योंकि वे अल्पसंख्यक हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, राजौरी की आबादी में मुसलमानों की संख्या 62.71 प्रतिशत है.
दूसरा मुद्दा सुरक्षा तंत्र की कथित विफलता है, खासकर विस्फोट के मद्देनजर. निवासियों ने आरोप लगाया कि सुरक्षा बल रविवार के हमले के बाद क्षेत्र को ठीक से सैनिटाइज नहीं कर पाए, जिससे आईईडी का पता नहीं चल पाया.
धांगरी के एक अन्य निवासी हरीश भारतीय ने आरोप लगाया, ‘यह सुरक्षा और खुफिया बलों की विफलता है. रात में हुए आतंकी हमले में चार लोगों की मौत हो गई, लेकिन सुबह मारे गए दो बच्चों की हत्या की गई. कोई तलाशी नहीं ली गई, जो सुरक्षा विफलता को दर्शाता है.
विस्फोट पीड़ितों में से एक के पिता यह समझने में असमर्थ थे कि आखिर हुआ क्या था.
नाम न छापने की शर्त पर एक व्याकुल व्यक्ति ने कहा, ‘विस्फोट में मेरी बेटी और एक भतीजी की मौत हो गई. जब यह सब हुआ, हम (वह और अन्य ग्रामीण) शवों (गोलीबारी पीड़ितों के) के साथ थे. हमें मुश्किल से यह सोचने का समय मिला कि प्रशासन मदद के लिए क्या कर रहा है.’
दो पन्नों का एक बयान, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, में, विरोध कर रहे स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि सुरक्षाकर्मी क्षेत्र में आतंकवादी देखे जाने की रिपोर्ट पर कार्रवाई करने में विफल रहे हैं. उन्होंने 16 दिसंबर को राजौरी में सेना शिविर के अल्फा गेट के पास दो नागरिकों की गोली मारकर हत्या का भी जिक्र किया.
बयान में कहा गया है, ‘यह नरसंहार उन सुरक्षा अधिकारियों का परिणाम है जो तीस दिन पहले मुरादपुर इलाके में घूमते देखे गए आतंकवादियों को समाप्त करने में विफल रहे. इनमें ज्यादातर अल्फा गेट पर गोलीबारी में शामिल थे, जहां दो युवाओं की जान चली गई. इन क्षेत्रों में ओजीडब्ल्यू (जमीनी कार्यकर्ता) बहुत सक्रिय हैं और विभिन्न उग्रवादी संगठनों की मदद कर रहे हैं.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, सीआरपीएफ ने क्षेत्र की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए राजौरी-पुंछ जिलों में 18 और कंपनियां भेजी हैं.
जबकि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मामले की जांच शुरू कर दी है और राजौरी और पुंछ में तलाशी अभियान भी जारी है.
जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह ने राजौरी में हुई घटनाओं के बाद कहा था, ‘हमें उन्हें मुंहतोड़ जवाब देना होगा.’ आईईडी विस्फोट एक सुनियोजित हमला था जिसका लक्ष्य वरिष्ठ अधिकारियों (जो घटनास्थल पर पहुंचने वाले थे) को निशाना बनाना था. अधिकारी देर से मौके पर पहुंचे. घटना पहले ही हो चुकी थी.’
हमले के बाद लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने ‘नृशंस हमले‘ में मारे गए पीड़ितों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की. उन्होंने कहा, ‘गंभीर रूप से घायल’ लोगों को एक-एक लाख रुपये दिए जाएंगे.
सिन्हा ने सोमवार को भी प्रदर्शनकारी परिवारों से मुलाकात की. उनकी मांगों में वीडीसी को मजबूत करने, सीसीटीवी लगाने, खोज और बचाव कार्यों में शामिल अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने और अन्य चीजों के अलावा मुआवजा देने का आश्वासन शामिल था.
उपराज्यपाल ने कहा, ‘आतंकवादियों और आतंकी पारिस्थितिकी तंत्र को कुचलने का हमारा दृढ़ संकल्प है.’
यह भी पढ़ेंः क्या भारत जोड़ो यात्रा ने सांप्रदायिक नफरत को कम किया या यह बचपने से भरा मेरा कोरा आशावाद है?
‘दुर्भाग्य से, हमारे पास बंदूकें नहीं थीं’
इस बीच, बालकृष्ण धांगरी में एक स्थानीय हीरो बन गए हैं, जैसे उनकी प्वाईंट 303 राइफल है, एक हथियार जिसे सेना ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद रिटायर कर दिया था.
स्थानीय लोगों ने कहा कि वर्षों से उग्रवाद कम होने के साथ, अधिकारियों ने वीडीसी के कई सदस्यों के हथियार वापस ले लिए, जिनमें से कुछ धांगरी में भी शामिल हैं.
वीडीसी सदस्य रंजीत तारा ने दावा किया, ‘वीडीसी सदस्य की वजह से धांगरी को बचाया गया है. इसलिए, हम चाहते हैं कि सरकार वीडीसी को मजबूत करे. वीडीसी के कुछ सदस्यों की बंदूकें वापस ले लिए जाने से भी लोग नाराज़ हैं.’
यह यहां बार-बार दोहराया जाने वाला खंडन है.
राकेश रैना ने कहा, ‘वीडीसी सदस्य बालकृष्ण ने कई सालों बाद अपनी बंदूक को छुआ और गोली चला दी. उन्होंने हिम्मत दिखाई और करीब 60-70 लोगों की जान बचाई. जिस दिशा में आतंकवादी जा रहे थे, हालात और भी खराब हो सकते थे.’
उन्होंने कहा, ‘अगर वीडीसी सक्रिय होता, तो वे गांव में प्रवेश भी नहीं कर पाते. दुर्भाग्य से हमारे पास बंदूकें नहीं थीं.’
पिछले साल मार्च में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सशस्त्र नागरिकों की मदद से उग्रवाद का मुकाबला करने में मदद के लिए ग्राम रक्षा गार्ड योजना के तहत जिला प्रशासन द्वारा चुने गए ग्राम रक्षा समूहों के रूप में जाने जाने वाले वीडीसी को वापस लाने के लिए अपनी मंजूरी दे दी थी. कुछ महीने बाद, अगस्त में, कथित तौर पर यह योजना लागू हो गई, लेकिन ग्रामीणों का दावा है कि धांगरी में अभी तक लाभ नहीं देखा गया है.
सरपंच धीरज के मुताबिक, वीडीसी पिछले कुछ समय से सक्रिय नहीं हैं.
उन्होंने कहा, ‘अगर हमारे पास स्वचालित हथियार होते, तो वे लोग भाग नहीं पाते’
वीडीसी के पुनरुद्धार के बारे में चिंताओं का जवाब देते हुए, जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने सोमवार को कहा था कि जो बंदूकें वापस ले ली गई थीं, उन्हें वापस कर दिया जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘जहां भी और बंदूकों की जरूरत होगी, उन्हें मुहैया कराया जाएगा.’
सेना और पुलिस कर्मियों के साथ-साथ धांगरी सरपंच और पीड़ितों के परिवारों के साथ सुरक्षा समीक्षा बैठक के बाद, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी जोर दिया कि प्रशासन वीडीसी को मजबूत करेगा.
विशेष रूप से, उग्रवाद का मुकाबला करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, वीडीसी कई बार विवादों से जुड़े रहे हैं.
वर्षों से, जम्मू के विभिन्न हिस्सों में हथियारों के दुरुपयोग की विभिन्न रिपोर्टें सामने आई हैं. पिछले साल पुंछ में, एक वीडीसी सदस्य के बेटे ने कथित तौर पर अपने पिता की राइफल से आत्महत्या कर ली थी. 2015 में एक अन्य घटना में, राजौरी जिले में समिति के एक सदस्य द्वारा एक महिला और उसके चार साल के बेटे की कथित तौर पर हत्या करने के बाद वीडीसी को भंग करने की मांग उठाई गई थी.
यह भी पढ़ेंः नए साल पर अलकायदा का संदेश- अयोध्या में राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने का लिया संकल्प
आतंकवाद का बढ़ता खतरा?
जम्मू में राजौरी और पुंछ के पहाड़ी सीमावर्ती जिले एक दशक से अधिक समय तक बड़े पैमाने पर उग्रवाद से मुक्त थे, पिछले कुछ वर्षों में इन घटनाओं में वृद्धि देखी गई है.
अकेले 2022 में, राजौरी जिले में आतंकवाद की कम से कम चार घटनाएं दर्ज की गईं.
पिछले साल मार्च-अप्रैल में राजौरी के कोटरंका शहर और शाहपुर में तीन विस्फोट हुए थे. अगस्त 2022 में, राजौरी जिले के परघल गांव में सेना के एक शिविर पर हमला करने के बाद दो फिदायीन मारे गए थे. इस घटना में चार जवानों की भी मौत हो गई.
पिछले महीने, राजौरी में एक आर्मी गेट के बाहर गोलीबारी में दो नागरिकों की मौत हो गई थी, हालांकि, आरोपों के बीच एक मजिस्ट्रियल जांच का आदेश दिया गया था कि सेना के एक संतरी ने गलत पहचान के एक मामले में गोली चला दी थी.
यहां तक कि 2019 में, नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास पुंछ जिले में पुलिस द्वारा हिज्बुल मुजाहिदीन ड्रग तस्करी के सांठगांठ का भंडाफोड़ करने के बाद, जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) ने कहा था कि क्षेत्र में स्लीपर सेल और ओवरग्राउंड वर्कर सक्रिय थे और ‘आतंकवाद को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे थे’.
(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः बेरोज़गारी बनी पलायन का कारण – पंजाब के बाद अब हरियाणा के युवक भाग रहे हैं अमेरिका