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Tuesday, 7 May, 2024
होमदेश‘धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से टकराए’- सिख आइकन बंदा सिंह बहादुर को अपना क्यों बनाना चाहती है BJP

‘धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से टकराए’- सिख आइकन बंदा सिंह बहादुर को अपना क्यों बनाना चाहती है BJP

दिल्ली और जम्मू में उनका महिमामंडन मुगलों का मुकाबला करने वाले एक सिख नेता के तौर पर किया जाता है और दक्षिणपंथियों की नजर में वह ‘हिंदू धर्म के रक्षक’ हैं. हरियाणा के मुख्यमंत्री ने इसी हफ्ते के शुरुआत में उनके स्मारक का शिलान्यास किया था.

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नई दिल्ली: हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने रविवार को यमुनानगर जिले के ऐतिहासिक शहर लौहगढ़ में बाबा बंदा सिंह बहादुर स्मारक की आधारशिला रखी.

2017 में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के 350वें प्रकाश पर्व के दौरान सिख आइकन के नाम पर एक ट्रस्ट की स्थापना के पांच साल बाद इस स्मारक की घोषणा पिछले साल जुलाई में की गई थी.

गुरु गोबिंद सिंह के संरक्षण में सिख धर्म ग्रहण करने वाले एक हिंदू और मुगलों के खिलाफ लड़ने वाले एक योद्धा बंदा सिंह बहादुर सालों से देश में राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बने हुए हैं, खासकर भाजपा नेताओं की तरफ से लगातार उनका हवाला दिया जाता है.

2018 में सिख समुदाय की तरफ से खट्टर पर आरोप लगाया गया था कि वह ‘उनके नायक को संघ परिवार का हिस्सा बनाने’ में लगे हैं. साथ ही उनका संदर्भ ‘बाबा बंदा सिंह बैरागी’ के तौर पर देने के लिए भी मुख्यमंत्री की आलोचना करते हुए इसे ‘इतिहास से छेड़छाड़’ की कोशिश करार दिया गया.

खट्टर ने रविवार के आधारशिला रखने के मौके पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘जब यह स्मारक बनाया जाएगा, तो इस क्षेत्र के लोग गर्व करेंगे कि यह वही मिट्टी है जहां 300 साल पहले एक संत-सैनिक ने मुगल सेना को नाकों चने चबवा दिए थे.’

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नाम न छापने की शर्त पर हरियाणा के एक इतिहासकार ने कहा कि कहीं न कहीं राज्य के महत्वपूर्ण सिख वोटबैंक को ध्यान में रखकर ही यह स्मारक बनाने का फैसला किया गया है.

पिछले साल जून में केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने दिल्ली में सिख योद्धा के सम्मान में एक प्रस्तावित स्मारक का पोस्टर जारी किया था और आश्वासन दिया था कि वह यह सुनिश्चत करेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रस्ताव को मंजूरी दे दें.

उसी वर्ष, मनोज सिन्हा जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में डेरा बाबा बंदा सिंह बहादुर—जो कि सिख योद्धा को समर्पित एक गुरुद्वारा है—का दौरा करने वाले इस केंद्र शासित प्रदेश के पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) बने. पिछले हफ्ते, भाजपा नेता ने घोषणा की कि जम्मू के भगवती नगर क्षेत्र में बाबा बंदा सिंह बहादुर की एक प्रतिमा स्थापित की जाएगी, जिसका अखिल जम्मू-कश्मीर सिख समन्वय समिति की तरफ से अनुरोध किया गया था.

2020 में पीएम ने बाबा बंदा सिंह बहादुर की 350वीं जयंती पर एक ट्वीट किया था. इसमें मोदी ने लिखा था, ‘वह लाखों लोगों के दिल में रहते हैं. उन्हें न्याय भावना के लिए याद किया जाता है. उन्होंने गरीबों को सशक्त बनाने के लिए कई प्रयास किए.’

यही नहीं, पिछले कुछ सालों में समय-समय पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों के कई नेता—जैसे डॉ. जितेंद्र सिंह और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रहे स्वर्गीय रामविलास पासवान—बाबा बंदा सिंह बहादुर को श्रद्धांजलि अर्पित करते रहे हैं.

यही नहीं, सरकार उन जगहों और इलाकों का पता लगाने की भी कोशिश कर रही है, जहां उनके अनुयायियों ने शहादत दी थी. राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) के अध्यक्ष और भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद तरुण विजय ने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी में उनके 740 अनुयायियों को मार डाला गया था, जहां अब दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी स्थित है. उन्होंने आगे कहा, ‘इसके पीछे एक बगीचा है. हमने उस क्षेत्र का सर्वे किया है और शहादत स्मारक विकसित करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं.

एनएमए दिल्ली के इतिहास को ‘उपनिवेशकाल’ से बाहर लाने की कोशिश कर रहा है और बाबा बंदा सिंह बहादुर के महरौली स्थित शहीदी-स्थल का पुनरुद्धार भी उसकी इसी पहल का एक हिस्सा है.

तरुण विजय ने कहा, ‘दिल्ली के लोगों को केवल मुगल इतिहास के बारे में पढ़ाया गया है. मुगलों और अन्य आक्रमणकारियों के अत्याचारों का सामना करने वालों को आसानी से भुला दिया गया. बंदा सिंह बहादुर और गुरु तेग बहादुर (10 सिख गुरुओं में से नौवें) के बलिदान की अब चर्चा हो रही है क्योंकि पीएम मोदी ने इसमें विशेष रुचि ली है.’

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में प्रोफेसर और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम्स के प्रमुख सुरिंदर सिंह जोधका के मुताबिक, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मानना है कि सिख आइकन ‘बड़े हिंदू-सनातनी परिवार का हिस्सा हैं.’

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘आरएसएस और भाजपा ने मूलत: हमेशा सिख नायकों का महिमामंडन किया है क्योंकि वे सिखों को बड़े हिंदू-सनातनी परिवार के हिस्से के रूप में देखते हैं. गुरु गोबिंद सिंह और उनके परिवार का आरएसएस ने हमेशा स्वागत किया है. पहले आरएसएस और हिंदू दक्षिणपंथियों की तरफ से बंदा सिंह बहादुर को ‘बंदा बहादुर’ कहा जाता था, जो उन्हें मुस्लिम आक्रमणकारियों से मोर्चा लेने वाले नायक के तौर पर देखते हैं.’

हालांकि, जोधका को लगता है कि यह कोई हालिया घटना नहीं है. उन्होंने कहा, ‘भले ही दक्षिणपंथियों के कुछ वर्ग उनसे सहमत न हों, लेकिन यह उनकी मूल राजनीति का हिस्सा रहा है, और यह केवल कोई हालिया बदलाव नहीं है जो किसान आंदोलन के बाद उभरा है.’


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‘बैरागी’, योद्धा

हालांकि, बंदा सिंह बहादुर की जीवनी को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत रहे हैं. पंजाबी इतिहासकार गंडा सिंह की किताब, लाइफ ऑफ बंदा सिंह बहादुर के मुताबिक, सिख योद्धा का मूल नाम लक्ष्मण देव था और उनका जन्म 27 अक्टूबर 1670 को पश्चिमी कश्मीर के पुंछ जिले में एक राजपूत भारद्वाज वंश में हुआ था.

किताब में कहा गया है कि 15 वर्ष की आयु में ही उन्होंने संन्यासी जीवन अपना लिया, घर त्याग दिया और बैरागियों की परम्परा के मुताबिक उन्हें ‘माधो दास’ नाम मिला. यह भी कहा जाता है कि वह योग की बारीकियां और ‘तंत्र विज्ञान’ सीखने के लिए हिंदू संतों के साथ रहते थे.

बताया जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह के साथ उनकी पहली मुलाकात 1708 में महाराष्ट्र के नांदेड़ में हुई थी, जहां उन्होंने खुद को एक भक्त के रूप में गुरु को अर्पित कर दिया. माधो दास को तब अमृत छकाया गया और उनका नाम बदलकर बंदा सिंह बहादुर कर दिया गया.

कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग के डीन प्रोफेसर एस.के. चहल ने दिप्रिंट को बताया, ‘कुछ लोग कहते हैं कि वह एक सिख बैरागी थे, वहीं कुछ का दावा है कि वह या तो जाट या राजपूत थे. कुछ उन्हें हरियाणा में ‘बंदा बैरागी’ के रूप से जानते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि जब पंजाब हरियाणा से अलग हुआ, तो उसे अपने खुद के प्रतीकों की आवश्यकता थी जो उसकी राजनीति के अनुकूल हों, और बंदा सिंह बहादुर एक ऐसा ही नाम था जो सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के अनुयायी थे.

चहल ने कहा, ‘पंजाब और सिखों का इतिहास और पूरी राजनीति ही सिख गुरुओं के इर्द-गिर्द घूमती है. क्योंकि सिखों ने मुगलों के खिलाफ मोर्चा खोला था और मुगलों पर जीत को दर्शाने वाली हर चीज को महिमामंडित किया जाता है. बंदा सिंह बहादुर नांदेड़ में गुरु गोबिंद सिंह के अनुयायी रहे, फिर यहां लौट आए और सरहिंद शहर, जिसे अब अंबाला और यमुनानगर कहा जाता है, के कुछ मुगल शासित क्षेत्रों पर विजय हासिल की.’

पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के राजनीति विज्ञानी प्रो. रोंकी राम ने भी कहा कि बंदा सिंह बहादुर ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष में एक अहम भूमिका निभाई और पहले सिख शासन की स्थापना की.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन लोगों और विद्वानों के बीच इस बात पर विवाद है कि उन्होंने अमृत छका था या नहीं, क्या उन्होंने गुरु के मार्ग का पालन किया था.’

‘अपने समय के अत्याचारों’ के खिलाफ लड़ी जंग

दिल्ली और जम्मू में बंदा सिंह बहादुर को एक ऐसे सम्मानित सिख नेता के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने मुगल सेना का मुकाबला किया.

1710 में छप्पर चिरी की लड़ाई के दौरान बंदा सिंह बहादुर के नेतृत्व में सिख सेना ने सरहिंद के मुगल गवर्नर वजीर खान को हराया और मौत के घाट उतार दिया. वजीर खान गुरु गोबिंद सिंह के दो छोटे बेटों जोरावर सिंह और फतेह सिंह की शहादत के लिए जिम्मेदार था. बंदा सिंह बहादुर ने इसके बाद मुखलिसगढ़ गांव को विकसित किया और इसे अपनी राजधानी बनाया, जिसे बाद में लौहगढ़ कहा गया और मौजूदा समय में इसका नाम यमुनानगर है.

अंततः उन्हें मुगलों द्वारा पकड़ लिया गया और 1716 में उनकी हत्या कर दी गई.

माना जाता है कि बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों की मौत का बदला लिया था, लेकिन गंडा सिंह ने अपनी पुस्तक में स्पष्ट किया है कि इतिहासकारों ने इसे अक्सर गलत समझा है. किताब में कहा गया है, ‘कहा जाता है कि उन्हें गुरु गोबिंद सिंह की तरफ से अपने बेटों की हत्या का बदला लेने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जैसे यह भी कहा जाता है कि गुरु अपने शुरुआती दिनों में अपने पिता गुरु तेग बहादुर की मौत का बदला लेना चाहते थे. लेकिन पूरे इतिहास में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस निष्कर्ष की पुष्टि करे.’

किताब में आगे कहा गया है, ‘दरअसल, गुरु ने उन्हें अपने समय के दमन और अत्याचारों के खिलाफ जंग लड़ने का महान कार्य सौंपा था और इसी कर्तव्य को निभाते हुए बंदा सिंह ने निश्चित तौर पर जोरावर सिंह और फतेह सिंह की शहादत के लिए जिम्मेदार रहे लोगों को दंडित किया होगा.’

जम्मू यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर एलोरा पुरी ने दिप्रिंट को बताया कि बंदा सिंह बहादुर हमेशा ‘जम्मू क्षेत्र की सामूहिक स्मृति का हिस्सा रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘जम्मू ही नहीं, पूरे देश में कुछ नायकों को अमर बनाने में भाजपा की भूमिका रही है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘बंदा सिंह बहादुर का जन्म राजौरी में हुआ था, जो जम्मू संभाग का एक हिस्सा है, और जम्मू में एक बड़ी सिख आबादी बसी हुई है. उनके योगदान को इस क्षेत्र में कभी किसी ने कम करके नहीं आंका लेकिन भाजपा के लिए वे अधिक महत्व रखते हैं क्योंकि उन्हें मुगलों के खिलाफ धर्म के रक्षक के तौर पर देखा जाता है.

हालांकि, पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला में रिलीजियस स्टडी के प्रोफेसर गुरमीत सिंह सिद्धू का मानना है कि उन्हें मान्यता बहुत पहले ही मिल जानी चाहिए थी. उन्होंने कहा, ‘सिख समुदाय के बीच उनका कद महाराजा रणजीत सिंह से भी बड़ा है क्योंकि उन्होंने पहले सिख शासन की स्थापना की और गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों की मौत का बदला लिया. यह सिर्फ राजनीति प्रेरित नहीं है, क्योंकि वह वास्तव में इसके हकदार हैं.’


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‘हिंदुओं के रक्षक’

नाम न छापने की शर्त पर हरियाणा के एक इतिहासकार ने कहा कि दक्षिणपंथी खेमे के बीच बंदा सिंह बहादुर को हिंदुओं के रक्षक के तौर पर एक सम्मानित दर्जा हासिल है और गुरु गोबिंद सिंह के बाद उन्हीं को सबसे अहम माना जाता है.

इतिहासकार ने कहा, ‘उन्होंने खालसा अवधारणा को बढ़ावा दिया, जिसकी परिकल्पना मूल रूप से गुरु गोबिंद सिंह ने की थी. सिख इतिहासलेखन में, उन्हें गुरु गोबिंद सिंह के बाद एक प्रतीक के तौर पर स्थापित किया गया था, हालांकि वह एक बड़े शासक नहीं थे और अपने समय में बहुत लोकप्रिय नहीं थे. कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि उन्होंने ‘भूमि सुधार’ की दिशा में काम किए लेकिन ये आधुनिक शब्दावली का हिस्सा है.’

इतिहासकार ने दावा किया कि बंदा बहादुर भाजपा को इसलिए भी अपील करते हैं क्योंकि खालसा राज्य की अवधारणा मुगलों के खिलाफ लड़ाई से उत्पन्न हुई थी, साथ ही जोड़ा, ‘गुरु गोबिंद सिंह को कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के रक्षक के रूप में भी जाना जाता है, इसलिए मुसलमान ही यहां आम दुश्मन हैं. दक्षिणपंथी राजनेता सिख गुरुओं को सराहते हैं क्योंकि उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने हिंदुओं की रक्षा की. बंदा सिंह बहादुर भी उस नैरेटिव के अनुरूप हैं.’

हरियाणा में बन रहे बंदा सिंह बहादुर के स्मारक के संदर्भ में ऊपर उद्धृत शिक्षाविद् ने कहा कि राज्यों में सिखों का एक महत्वपूर्ण मतदाता वर्ग हैं. उन्होंने कहा, ‘हरियाणा में एक महत्वपूर्ण सिख वोटबैंक है और राज्य के सिख बंदा बहादुर सिंह को एक आइकन के रूप में मान्यता देने की मांग कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने इसी क्षेत्र में शासन किया था.’

हालांकि, एनएमए प्रमुख तरुण विजय ने कहा, ‘इसके पीछे कोई राजनीति नहीं है.’

पीएम मोदी को ‘सहजधारी सिख’ (एक ऐसा व्यक्ति जो सिख धर्म में विश्वास करता हो लेकिन जिसने आधिकारिक तौर पर सिख धर्म ग्रहण न किया हो) करार देते हुए तरुण विजय ने कहा, ‘जब वह अमृतसर गए तो लोगों ने ‘सरदार नरेंद्र मोदी’ कहकर उनका स्वागत किया. वह सिखों के साहस और वीरता की गौरवगाथा का बखान करते हैं. पिछले 400 सालों में वीर बाल दिवस (गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादों की स्मृति में मनाया जा रहा) के बारे में किसी ने नहीं सोचा था. यह पहल पीएम मोदी की सोच का नतीजा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘क्या इस तरह के कदमों से सिख उन्हें वोट देंगे? यह सवाल उठाना राजनीति प्रेरित प्रयास हैं, और विपक्ष की घटिया और सतही सोच को दर्शाते हैं क्यों वे इससे आगे सोच ही नहीं सकते. अगर कुछ है तो वो है भारत माता को खुश करने की कोशिश.’

(अनुवाद: रावी द्विवेदी / संपादन: आशा शाह)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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