नई दिल्ली: वैसे तो मतदाताओं को लुभाने के लिए रैलियों और भाषणों का आयोजन एक आम बात है, लेकिन आजकल मध्य प्रदेश के नेता कुछ अलग ही तरीका अपनाते नजर आ रहे हैं. राज्य में चाहे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता हों या विपक्षी दल कांग्रेस के, दोनों को कथा-भागवत और भंडारे जैसे आयोजनों के जरिये मतदाताओं के बीच पैठ बनाना ज्यादा सहज लग रहा है.
राज्य में अगले साल प्रस्तावित विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के नेताओं ने भी जनता से जुड़ने के लिए भव्य धार्मिक कार्यक्रमों की मेजबानी शुरू कर दी है. ऐसे आयोजन कई-कई दिनों तक चलते हैं और लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाले हैं. आमतौर पर भंडारों के लिए भी प्रावधान किए जाते हैं जिसमें एक बार में 50,000 से अधिक लोगों के खाने का इंतजाम होता है.
शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कई मंत्री पहले ही भागवत या राम कथा (क्रमशः भगवान कृष्ण और राम से जुड़े धार्मिक ग्रंथों का पाठ) का आयोजन कर चुके हैं. इनमें गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, शहरी विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह, लोक निर्माण विभाग मंत्री गोपाल भार्गव और परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत शामिल हैं.
सूत्रों के मुताबिक, प्रदीप मिश्रा, जया किशोरी, धीरेंद्र शास्त्री और अवधेशानंद गिरि जैसे शीर्ष धार्मिक गुरुओं और कथा वाचकों के कैलेंडर दिसंबर से मार्च तक बुक हैं. सूत्रों ने कहा कि निकट भविष्य में कथा की मेजबानी करने वाले प्रमुख नेताओं में पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री कमलनाथ, कांग्रेस विधायक अजय टंडन और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल हैं.
यह पूछे जाने पर कि राजनेताओं के इस तरह धार्मिक आयोजनों में शामिल होने की बाढ़ आने का क्या मतलब है, राज्य के नेताओं ने दो प्रमुख कारण बताए—एक संस्कारों को बढ़ावा देना और दूसरा चुनावों से पहले मतदाता समर्थन हासिल करना.
उदाहरण के तौर पर, राज्य मंत्री रामकिशोर कावरे ने संकेत दिया कि धार्मिक कार्यक्रम राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि ‘नैतिक मूल्यों को जगाने’ के लिए आयोजित किए जाते हैं.
कावरे ने कहा, ‘ऐसे गुरुओं के प्रवचन सुनने के बाद लोग उन बातो पर अमल करने के लिए प्रेरित होते हैं जो उन्होंने वहां सुनी हैं. लोगों को संस्कारी बनाना हमारी जिम्मेदारी है.’
हालांकि, चौहान कैबिनेट के एक अन्य मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर स्वीकारा कि राजनीतिक बैठकों की तुलना में धार्मिक आयोजनों में भीड़ को आकर्षित करने की ताकत अधिक होती है.
उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक बैठकों में, हम एक लाख से अधिक लोगों को नहीं जुटा सकते हैं, लेकिन ऐसे आयोजनों में हम पांच लाख लोगों तक को बड़ी आसानी से इकट्ठा कर सकते हैं. अंतत: ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से हमारे कार्यकर्ता और मतदाता लामबंद होते हैं. यह गुजरात में एक बड़ी सफलता थी और इसे गंभीर चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले की तैयारी गतिविधियां माना जा सकता है.’
गौरतलब है कि गुजरात चुनाव से महीनों पहले कई भाजपा नेताओं ने धार्मिक कार्यक्रमों की मेजबानी की थी, जिसे विपक्षी दल कांग्रेस ने ‘सरोगेट अभियान’ बताकर इसकी आलोचना की थी. अब, गुजरात चुनावों में जीतने वाली पार्टी मध्य प्रदेश में भी कथा-भागवत फॉर्मूला अपनाती दिख रही है. वहीं, कांग्रेस के कुछ नेता भी इसी तरह के आयोजन करते नजर आ रहे हैं.
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‘स्टार-स्टड’ कथाओं का आयोजन और कुछ विवाद
राज्य के शहरी विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने 9 से 15 दिसंबर तक सागर जिले के खुरई में इस चुनाव पूर्व सीजन की सबसे भव्य भागवत कथा में से एक की मेजबानी की. लोकप्रिय वाचक संत कमल किशोर की मौजूदगी वाले कार्यक्रम में लाखों लोगों ने हिस्सा लिया और तमाम समितियों के जरिये भोजन-पानी, रोशनी, सुरक्षा, प्रचार आदि का प्रबंध किया गया.
रिपोर्टों के मुताबिक, यह आयोजन सफल रहा, लेकिन उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) द्वारा कार्यक्रम में उपस्थिति को सुविधाजनक बनाने के लिए स्कूल का समय बदलने का आदेश देने को लेकर यह विवादों में भी घिर गया. मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग ने कथित तौर पर मामले को संज्ञान में लिया है.
इस माह एक और हाई-प्रोफाइल सप्ताह भर चलने वाली भागवत कथा की मेजबानी राज्य के कृषि मंत्री कमल पटेल ने अपने निर्वाचन क्षेत्र हरदा में की. उपस्थित लोगों में सीएम शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय शामिल थे. विजयवर्गीय के भजन गाते और पटेल के जोश में नाचते वीडियो को राज्य में व्यापक स्तर पर शेयर भी किया गया.
इस कार्यक्रम की वाचक 1996 में जन्मी जया किशोरी थीं. वह मध्यप्रदेश में काफी लोकप्रिय सबसे कम उम्र की आध्यात्मिक वक्ताओं में से एक हैं. कार्यक्रम के अंत में मुख्यमंत्री ने वंचित महिलाओं के लिए राज्य सरकार की एक योजना के तहत विवाह बंधन में बंधने वाले 133 जोड़ों को आशीर्वाद दिया.
ऐसे कई अन्य बड़े आयोजन या तो चल रहे हैं या आने वाले कुछ हफ्तों में प्रस्तावित हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराकर सुर्खियों में आए गुना से भाजपा सांसद और के.पी. यादव 19-25 दिसंबर तक भागवत कथा की मेजबानी कर रहे हैं, जहां कथा वाचक काफी डिमांड में रहने वाले प्रदीप मिश्रा हैं.
यह भी बताया जाता है कि कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम कमलनाथ ने भी प्रदीप मिश्रा को अपने निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा में कथा वाचन के लिए आमंत्रित किया है.
वहीं, सिंधिया के करीबी सूत्रों ने भी दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने भागवत कथा के आयोजन के लिए अवधेशानंद गिरि से समय मांगा है.
धर्म, संस्कृति, राजनीति
कथा वाचन का आयोजन कराने वाले भाजपा नेताओं में पूर्व महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस भी शामिल हैं, जो पिछला विधानसभा चुनाव बुरहानपुर से हार गई थीं.
उनके अनुसार, शिव महापुराण कथा के लिए व्यापक तैयारी चल रही है, जिसके 2 फरवरी से शुरू होने की उम्मीद है. इसमें वाचक प्रदीप मिश्रा के होने की उम्मीद है.
चिटनिस ने बताया, ‘भोजन, परिवहन, वित्तीय व्यवस्था आदि के लिए कई समितियां बनाई गई हैं. 100 महिलाएं भी हैं जो लोगों की भागीदारी के लिए गांवों में प्रभात फेरी निकाल रही हैं. यह एक जनसंपर्क अभियान है.’
उन्होंने दावा किया कि इस तरह के आयोजनों के दो प्राथमिक कारण हैं. उनके मुताबिक, ‘पहला कारण लोगो को एक आदर्श नागरिक बनाने में मदद करना है. जनप्रतिनिधियों के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम समाज को एक आदर्श स्थान बनाएं जिसमें धर्म और संस्कृति लोगों के जीवन का हिस्सा हो. इन कथाओं में लाखों लोग हिस्सा लेते हैं और उन्हें एक नैतिक दिशा मिलती है.’
चिटनिस ने कहा, दूसरा कारण सामाजिक स्तर पर विभाजन को खत्म करना है. उन्होंने कहा, ‘जब लोग एक कथा में शामिल होते हैं, तो अपने जातिगत पूर्वाग्रहों और शिकायतों को भूल जाते हैं. यह सामाजिक समरसता कायम करने में मदद करता है.’
यह पूछे जाने पर कि क्या इसका राजनीति से कोई लेना-देना है, चिटनिस ने कहा, ‘जब आप कोई अच्छा काम करते हैं, तो लोग आपका समर्थन करने को तैयार रहते हैं.’
एक अन्य पूर्व मंत्री जिन्होंने कहा कि वह फरवरी में कथा वाचन के एक कार्यक्रम की मेजबानी करेंगे, वे हैं राज्य के पूर्व कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन.
उनके मुताबिक कथा लोगों तक पहुंचने का एक जरिया है. उन्होंने कहा, ‘कथा-प्रवचन लोगों को खुश करता है और इससे उनका अपने स्थानीय प्रतिनिधि के साथ भावनात्मक जुड़ाव गहरा होता है. लोग किसी भी सार्वजनिक राजनीतिक बैठक से ज्यादा ऐसे आयोजनों को याद रखते हैं.’
हालांकि, भोपाल के राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर ने कहा कि धार्मिक कार्यक्रमों का प्राथमिक लाभ चुनाव से पहले कैडर को लामबंद करने में मिलता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘स्थानीय कार्यकर्ताओं का पूरा सेट-अप सक्रिय हो जाता है, समितियां बनती हैं, लोगों को इसमें हिस्सा लेना पड़ता है और कुछ महीनों के लिए काम करना पड़ता है.’
उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन एंटी-इनकंबेंसी को कम करने में भी मददगार हो सकते हैं, भले ही उनका चुनाव नतीजों पर सीधा असर न पड़ता हो.
उन्होंने कहा, ‘अंतत: तो यह सिर्फ बाबा पॉलिटिक्स का विस्तार है, जो इंदिरा गांधी ने अपने समय में देवराहा बाबा के दर्शन (चुनाव पूर्व आशीर्वाद लेने) से शुरू की थी. इसके बाद, अन्य दलों ने धार्मिक राजनीति को अगले स्तर पर पहुंचाया है.’
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(अनुवादः रावी द्विवेदी)
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