जगन्नाथ शाह ने 1985 में जब अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए कोलकाता में ट्राम कंडक्टर की नौकरी के लिए बिहार छोड़ा, तब वह महज 20 साल के थे. उन दिनों, ‘सिटी ऑफ जॉय’ कोलकाता में भीड़भाड़ वाले बाज़ारों और राहगीरों के बीच से रोज़ाना लगभग 200 से 300 से ट्राम गुज़रती थीं. आज, महज दस ट्राम ऑपरेशनल हैं.
कोलकाता निवासी 57 वर्षीय जगन्नाथ शाह कहते हैं, ‘बेलीगंज से टॉलीगंज और गरियाहाट से एस्प्लेनेड के बीच के ट्राम रूट को छोड़कर सभी रूट बंद कर दिए गए हैं.’ शाह की सात घंटे की शिफ्ट गरियाहाट डिपो से शुरू होती है और उन्हें दिन भर में छह चक्कर लगाने होते हैं.
वे कहते हैं, ‘मैं 1985 से सुनता आ रहा हूं कि ट्राम चलनी बंद हो जाएगी. बावजूद इसके, यहां हम एक ट्राम में सफर कर रहे हैं. आने वाले समय में, अगर सिर्फ दो ट्राम होंगी, तो भी कैलकटा ट्रामवेज कंपनी अपना सफर जारी रखेगी. हालांकि, मैं अगले दो-ढाई साल में रिटायर हो जाऊंगा.’
शाह की उम्मीदें कोलकाता में भारत की आखिरी ट्राम को बचाने के लिए जारी आंदोलन पर टिकी हैं. फिल्मकारों से लेकर नीति शोधकर्ताओं तक, कॉलेज छात्रों से लेकर ट्राम-वे कर्मचारियों तक, अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े लोगों का समूह इस उद्देश्य के लिए साथ आया है. वे सड़कों पर प्रदर्शन करते हैं, सोशल मीडिया पर अभियान चलाते हैं और हर उस व्यक्ति के जरिये अपनी बात लोगों के बीच फैलाते हैं, जिन्हें ट्राम की परवाह है. कोलकाता में, जहां ट्राम कईं पीढ़ियों से जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रही है, वहां ऐसे कई लोग हैं जो इस विरासत को बचाए रखने की परवाह करते हैं. हालांकि, कुछ लोगों ने आज के दौर में ट्राम की व्यवहार्यता पर सवाल उठाना भी शुरू कर दिया है.
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बिना लड़े ट्राम बंद नहीं होने देंगे
ट्राम में सफर के शौकीन रहे 66 वर्षीय वैज्ञानिक देबाशीष भट्टाचार्य को भी कोलकाता में इन्हें बंद होने के कगार पर पहुंचते देख अच्छा नहीं लग रहा है. बचपन में भट्टाचार्य डबल डेकर बसों और ट्राम से काफी प्रभावित थे. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, जहां तेज़ और कम ईंधन की खपत करने वाली किफायती इलेक्ट्रिक बसों ने डबल डेकर बसों की जगह ले ली है, वहीं ट्राम भी यात्रा के लिए लोगों की प्राथमिकता सूची से बाहर होती जा रही है.
61 यात्रियों के बैठने की क्षमता वाले दो छोटे-छोटे डिब्बों से लैस ट्राम की जड़ें कोलकाता की ऐतिहासिक संस्कृति में समाई हुई हैं. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान ट्राम चेन्नई, मुंबई, दिल्ली और कानपुर में भी चलती थी, लेकिन सिर्फ कोलकाता में ही समय की कसौटी पर यह खरी उतरी कोलकाता 1902 में इलेक्ट्रिक ट्राम ऑपरेट करने वाला एशिया का पहला शहर बना था. ट्राम के डिब्बों को अपग्रेड करते हुए उनमें पंखे और एयर कंडीशनर (एसी) की व्यवस्था की गई और कोलकाता की सड़कों से गुज़रते-गुज़रते ट्राम जल्द ही शहर की लाइफलाइन बन गई.
लेकिन अब, ट्राम धीरे-धीरे परिचालन से बाहर होती जा रही हैं.
कैलकटा ट्राम यूजर्स एसोसिएशन (सीटीयूए) के अध्यक्ष भट्टाचार्य कहते हैं, ‘कोलकाता में ट्राम बंद करने की रूपरेखा पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के शासन के दौरान ही तैयार हो गई थी. ट्राम में भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम थी, इसलिए सरकार और नेताओं ने उसमें कम दिलचस्पी दिखाई.’ सीटीयूए ही कोलकाता में किफायती और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन (ट्राम) को बचाने के अभियान की अगुवाई कर रही है.
सरकार दर सरकार कोलकाता की धरोहर ट्राम की अनदेखी क्यों की गई, इस पर भट्टाचार्य कहते हैं, ‘कोई बसों से डीजल निकाल सकता है, लेकिन ट्राम बिजली से चलती हैं, जिसे आप कहीं स्टोर करके नहीं रख सकते. साथ ही, बसों के टिकट की कीमत 20 से 50 रुपये तक है, जबकि ट्राम के टिकट छह से सात रुपये में बिकते हैं. आप देखिए, बसें चलाकर जेब भरने की गुंजाइश ट्राम से कहीं ज्यादा है.’
भट्टाचार्य के मुताबिक, ‘शहर में बड़े क्षेत्रों में फैले ट्राम डिपो, सरकार के लिए सोने की खान थे. अधिकांश ट्राम डिपो को बस डिपो में बदला गया है. ट्राम कारों की उपेक्षा की गई है और उचित रखरखाव के अभाव में वे बर्बाद हो गईं.’ भट्टाचार्य ट्राम चलना जारी रखने को लेकर सरकार की उदासीनता को उजागर करने के लिए भर्तियां न किए जाने की तरफ इशारा करते हैं. वह कहते हैं, ‘ट्राम चलाने में शामिल ज्यादातर लोग रिटायर होने वाले हैं, लेकिन किसी नए कर्मचारी की भर्ती नहीं की जा रही है. लेकिन, सीटीयूए ट्राम और उससे जुड़ी यादों को अतीत के पन्नों में दफन नहीं होने देगा.’
सीटीयूए के कोर कमेटी सदस्य अर्घ्यदीप हतुआ (24) कहते हैं, ‘हमारे पास दुनियाभर में 4,000 से अधिक सदस्य हैं, जो इस उद्देश्य का समर्थन करते हैं और जमीनी स्तर पर 30 सदस्य ट्राम को बचाने के उपायों पर चर्चा करने के लिए महीने में एक बार जरूर मिलते हैं.’ ट्राम में सफर के शौकीन रहे हतुआ पश्चिम बंगाल राज्य परिवहन निगम (डब्ल्यूएसटीसी) में इंटर्न थे. वह 2018 में सीटीयूए से जुड़े और शहरी नीति से जुड़े अपने ज्ञान का इस्तेमाल इस मिशन में कर रहे हैं.
हतुआ कहते हैं, ‘हमारा नज़रिया ट्राम को परिवहन के एक स्थायी साधन के तौर पर पुनर्जीवित करने का है. हमने शोध में पाया है कि कैसे सौर ऊर्जा चालित ट्राम कोलकाता के पुराने बेड़े का उपयुक्त अपग्रेड होंगी. हम मीडिया एडवोकेसी, सूचना का अधिकार (आरटीआई), जनहित याचिका (पीआईएल), सोशल मीडिया आदि के जरिए अपनी आवाज़ कोलकाता के लोगों तक पहुंचा रहे हैं.’
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ट्राम वर्ल्ड जमीनी हकीकत से काफी अलग
राज्य सरकार ट्राम के धीरे-धीरे बंद होने क मुद्दे को स्वीकारती है लेकिन ग्लोबल ट्रांसपोर्टेशन मॉडल को लेकर उसका तर्क है कि ‘भारत में हमेशा सब कुछ उसी तरह नहीं अपनाया जा सकता.’ राज्य के परिवहन मंत्री स्नेहाशीष चक्रवर्ती ने कहा, ‘वाहनों की संख्या बढ़ने से कोलकाता की सड़कें छोटी पड़ने लगी हैं. लेकिन ट्राम सड़क से नहीं हटेंगी. मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) लगातार विकास की दिशा में काम कर रही हैं और हम अगले साल कोलकाता में ट्रामवेज के 150 साल पूरे होने का जश्न मनाएंगे. हम जल्द ही कुछ और मार्गों पर दोबारा से इसकी बहाली की उम्मीद कर रहे हैं.’
हालांकि, सीटीयूए के पिछले विरोध प्रदर्शन पुराने मार्गों को दोबारा से बहाल करने को लेकर रहे हैं, लेकिन सरकार नए मार्गों के प्रस्ताव के साथ आगे आ रही है. इस साल अप्रैल और फिर अक्टूबर में एस्प्लेनेड-किडरपुर मार्ग की बहाली की मांग को लेकर एसोसिएशन सड़कों पर उतरा था, जिसे मई 2020 में राज्य में चक्रवात ‘अम्फान’ के बाद बंद कर दिया गया था. सीटीयूए सदस्यों ने पटरियां साफ करने में मदद करने के लिए उसकी घास तक काटी, ताकि मार्ग फिर से खोला जा सके. हतुआ ने कहा, ‘हम तख्तियों के साथ ट्राम डिपो में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करते हैं. हम उन ट्राम चालकों को भी सम्मानित करते हैं जो गुमनाम नायक हैं. इनमें ज्यादातर काफी उम्रदराज़ हो चुके हैं. हमारे अभियान काफी असरदार रहे हैं और परिवहन मंत्री इस पर जवाब भी देते हैं. हम बंद मार्गों की दोबारा बहाली के लिए लड़ते रहेंगे.’
पश्चिम बंगाल राज्य परिवहन निगम कोलकाता के मध्य हिस्से में चल रहे मेट्रो निर्माण कार्य को ट्राम रूट में कमी की वजह मानता है. निगम के प्रबंध निदेशक राजनवीर सिंह कपूर ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि अगले साल मार्च तक कम से कम पांच और मार्ग शुरू हो जाएंगे. हमारी मेट्रो अधिकारियों के साथ बातचीत जारी है.’
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अधिक यात्रियों को आकर्षित करने के लिए पहल कर रही है.
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास एशिया की पहली लाइब्रेरी ऑन व्हील है. यह युवाओं को ट्राम के इस्तेमाल के लिए आकृष्ट करने की पहल थी. गरियाहाट डिपो में हमारे पास एक ‘ट्राम वर्ल्ड’ भी है जहां, ट्राम के शौकीन टहल सकते हैं. वातानुकूलित कोचों में मुफ्त वाई-फाई है और आसानी से समझने के लिए नक्शा मार्गों की कलर-कोडिंग की गई है और यह पथदिशा ऐप पर भी उपलब्ध है.
हालांकि, पश्चिम बंगाल परिवहन विभाग के एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘ट्राम के लिए कोई फंड नहीं है.’सूत्र ने यह भी कहा, ‘इसे (तब) कैसे पुनर्जीवित किया जा सकता है या बढ़ावा दिया जा सकता है? जब सब कुछ एक सीमित बजट के भीतर किया जाना हो.’
ट्राम एक्टिविस्ट भट्टाचार्य ने कहा कि राज्य सरकार के प्रयास निराशाजनक रहे हैं. भट्टाचार्य ने कहा, ‘एक तरफ तमाम देश जलवायु परिवर्तन पर फोकस कर रहे हैं और दूसरी तरफ ट्राम है जो परिवहन का सबसे स्वच्छ रूप है. लेकिन कोलकाता में यात्रियों के लिए ट्राम में चढ़ने के लिए कोई शेल्टर नहीं है. इसकी पटरियां सड़क के बीच हैं और उन पर चढ़ना-उतरना खतरनाक है. कोलकाता में पहले से ही एक मजबूत ट्राम नेटवर्क है, यह रेलवे स्टेशन को कॉलेजों और अस्पतालों से जोड़ता है, लेकिन ये ट्रैक खाली पड़े रहते हैं. यदि ट्राम को सड़क से हटा दिया जाए तो ‘ट्राम वर्ल्ड’ का कोई महत्व नहीं है. कोलकाता ट्राम यूनेस्को (विश्व विरासत) टैग के योग्य है लेकिन ऐसे प्रतिष्ठित सम्मान तब नहीं मिलते जब उनका भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा हो और इसे बचाने के बहुत ही कम प्रयास किए जा रहे हों. कोलकाता ट्राम में काफी संभावनाएं हैं, लेकिन कोई परवाह नहीं करता.’
दिप्रिंट से बातचीत के दौरान 65 वर्षीय शिशिर दत्ता ट्राम से सफर करते हुए पोस्ट ऑफिस जा रहे थे. उन्होंने कहा, ‘ट्राम सुविधाजनक है, सस्ती है और मुझे कोई जल्दी भी नहीं है.’
दत्ता ने बताया, ‘मैं अक्सर ट्राम से सफर करता हूं. मेरी जैसी उम्र में सार्वजनिक बसों या टैक्सियों के लिए धक्के खाना मुमकिन नहीं है. टैक्सी चालक छोटी दूरी के लिए जाना नहीं चाहते और मैं इन नए ऐप कैब को नहीं समझ पाता. ट्राम आरामदायक हैं.’
(अनुवादः रावी द्विवेदी | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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