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Friday, 22 November, 2024
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चीन से मुकाबले के लिए इंफ्रा डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में मोदी सरकार अरुणाचल को सबसे ज्यादा अहमियत दे रही

पिछले माह ही पूर्वोत्तर के लिए घोषित कुल 1.6 लाख करोड़ रुपये की राजमार्ग परियोजनाओं में अरुणाचल को एक बड़ा हिस्सा मिला है. वहीं, बीआरओ के परिव्यय में भी इस वर्ष काफी महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है.

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नई दिल्ली: अब जबकि महत्वाकांक्षी अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो रहा है, पूर्वोत्तर में कुछ अन्य प्रमुख परियोजनाएं—खासकर अरुणाचल प्रदेश में—पूरी होने वाली हैं. वहीं, ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे से गुजरने वाली प्रस्तावित सुरंग जैसी कुछ अन्य परियोजनाएं निर्णायक स्तर पर आखिरी चरण में हैं.

चीनी आक्रामकता के आशंका से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास सड़क संपर्क मजबूत करने को लेकर काफी सावधानी बरतने की अपनी दशकों पुरानी नीति से पीछे हटते हुए भारत अब बड़े पैमाने पर बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर दे रहा है.

पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ जारी गतिरोध को देखते हुए सरकार ने सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण की गति तेज कर दी है.

एक आधिकारिक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘एलएसी के साथ, खासकर पूर्वोत्तर में बुनियादी ढांचे के विकास पर विशेष जोर दिया जा रहा है. असल में विचार यह है कि यहां परियोजनाओं को तेजी से पूरा किया जाए और नए प्रोजेक्ट शुरू किए जाएं. इसी बात को ध्यान में रखकर सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के बजट में महत्वपूर्ण वृद्धि की गई है.’

संयोग से, इस माह के शुरू में केंद्र सरकार की तरफ से पूर्वोत्तर के लिए घोषित कुल 1.6 लाख करोड़ रुपये की राजमार्ग परियोजनाओं में सबसे बड़ा हिस्सा अरुणाचल प्रदेश को ही मिला, जहां राजमार्ग परियोजनाओं के कार्य पर करीब 44,000 करोड़ रुपये की राशि खर्च की जाएगी.

सीमा के बुनियादी ढांचे को विकसित करने पर जोर दिया जाना तो पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के समय ही शुरू हुआ था लेकिन इस काम को सही मायने में गति देने वाली मोदी सरकार ही रही है.

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, यूपीए सरकार (2009-14) के दौरान एक दिन में औसतन केवल 0.6 किमी राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण होता था, जबकि एनडीए शासन के दौरान यह आंकड़ा दोगुने से अधिक हो गया. और सड़क निर्माण का यह कार्य अब तक के उच्चतम स्तर को छू रहा है जो 2014 से मार्च 2019 के बीच एक दिन में 1.5 किलोमीटर पर पहुंच गया है.

2014 और 2019 के बीच भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और बीआरओ सहित विभिन्न केंद्रीय सरकारी एजेंसियों ने मिलकर आठ पूर्वोत्तर राज्यों में 2,731 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया है.

केंद्रीय बजट 2022-23 में बीआरओ का पूंजी परिव्यय वित्त वर्ष 2021-22 में 2,500 करोड़ रुपये की तुलना में रिकॉर्ड 40 प्रतिशत बढ़कर 3,500 करोड़ रुपये किया गया है.

2021 में बीआरओ ने पश्चिमोत्तर और पूर्वी राज्यों में विभिन्न स्थानों पर 102 सड़कों और पुलों का निर्माण कार्य पूरा किया, जिसमें 19,024 फीट ऊंचाई पर स्थित उमलिंग ला में दुनिया की सबसे ऊंची मोटर वाहनों के उपयोग लायक सड़क का निर्माण भी शामिल है.

अधिकारियों ने बताया कि बीआरओ ने प्रोजेक्ट पूरे करने में तेजी लाने के लिए अन्य उपकरणों के अलावा हैवी एक्सकेवेटर्स, स्पाइडर एक्सकेवेटर्स और हल्के क्रॉलर रॉक ड्रिल आदि खरीदे हैं.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बीआरओ ने पिछले पांच सालों के दौरान एलएसी के पास 2,089 किलोमीटर सड़कें बनाई हैं.

सूत्रों ने बताया कि सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास पर मोदी सरकार कितना ज्यादा जोर दे रही, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2014 में सत्ता में आते ही उसने सबसे पहले राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) की स्थापना कर दी थी.

इस नए संगठन को पूर्वोत्तर और हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में राजमार्ग बनाने का काम सौंपा गया था, जो पहले मुख्य तौर पर एनएचएआई और बीआरओ की तरफ से ही किया जाता था.

पूर्व में सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया था, पूर्वोत्तर पर फोकस करते हुए सड़क मंत्रालय की एक अलग शाखा एनएचआईडीसीएल बनने से परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने में मदद मिली है.


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कहां-कहां निर्माण कार्य प्रगति पर है

संसदीय दस्तावेजों से पता चलता है कि केंद्र सरकार ने ‘अरुणाचल प्रदेश सड़क निर्माण पैकेज’ के तहत 2,319 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाने की मंजूरी दी है. इसमें 1,191 किलोमीटर सड़कों के निर्माण का ठेका दिया जा चुका है और 1,150 किलोमीटर का निर्माण भी पूरा हो चुका है.

इस साल फरवरी तक, अरुणाचल प्रदेश में 14,032 करोड़ रुपये की लागत के 35 निर्माण कार्य प्रगति पर थे.

एक शो-पीस प्रोजेक्ट मानी जाने वाली अरुणाचल प्रदेश की सेला सुरंग परियोजना भी पूरी होने वाली है.

इस सुरंग का निर्माण 2018 में शुरू किया गया था और अगले साल अप्रैल में यह पूरी तरह तैयार हो जाएगी. सेला टनल को 13,000 फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी बाई-लेन सुरंग माना जाता है.

Work ongoing at the under-construction Sela Tunnel in Arunachal Pradesh. | Photo: Nirmal Poddar/ThePrint
2021 में अरुणाचल प्रदेश के सेला टनल में कार्य जारी है | फोटो: निर्मल पोद्दार/दिप्रिंट

अरुणाचल के पश्चिम कामेंग और तवांग जिलों तक पहुंचाने वाली 317 किलोमीटर लंबी बालीपारा-चारद्वार-तवांग (बीसीटी) सड़क पर नेचिपु सुरंग के साथ यह रणनीतिक परियोजना यह सुनिश्चित करेगी कि रक्षा और निजी दोनों ही तरह की वाहनों में साल भर आवाजाही बनी रहे.

980 मीटर की एक छोटी सुरंग और लगभग 1.2 किमी सड़क के अलावा, 1,555 मीटर लंबी मेन और एस्केप टनल वाली इस परियोजना से यह सुनिश्चित होगा कि चीनी इस क्षेत्र में यातायात पर नजर रखने में सक्षम न हो पाए.

The Nechiphu tunnel, 2021. The Modi government is strongly pushing infrastructure build up in the Northeast, especially in Arunachal Pradesh | Credit: Snehesh Alex Philip, ThePrint
2021 का नेचिफू टनल. मोदी सरकार नॉर्थ ईस्ट खासकर अरुणाचल प्रदेश में इन्फ्रास्ट्र्क्चर बनाने पर काफी जोर दे रही है | क्रेडिट: स्नेहेश एलेक्स फिलिप, दिप्रिंट

सेला दर्रा 13,700 फीट की ऊंचाई पर है और यहां नजर रखना चीन के लिए आसान काम है.

आधिकारिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इस सबके अलावा, एलएसी के साथ सभी पुलों को नए मानकों के मुताबिक अपग्रेड किया जा रहा है.

इसका मतलब है कि सभी पुल क्लास 70 के होंगे, ताकि भारी वाहनों की आवाजाही को झेलने में सक्षम हों.

यही नहीं, सरकार विशेष 3डी-प्रिंटेड परमानेंट डिफेंस स्थापित करने की योजना के अलावा पूर्वोत्तर में बड़ी संख्या में भूमिगत युद्धक सामग्री डिपो का निर्माण भी कर रही है.

पूर्वी लद्दाख के गलवान में 2020 में भारत-चीन झड़प के बाद केंद्र सरकार ने सितंबर 2020 में स्वीकृत भारत-चीन सीमा सड़क परियोजना के दूसरे चरण के तहत एलएसी के पास 32 सड़कों के निर्माण को मंजूरी दी थी.


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सेना और नागरिकों के लिए कनेक्टिविटी में सुधार

दिप्रिंट ने जैसा पहले ही बता चुका है कि नरेंद्र मोदी सरकार की मंजूरी के तहत अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे पर काम शुरू हो गया है, जो देश की सबसे बड़ी और कठिन परियोजनाओं में से एक है.

2012 में सेना द्वारा परिकल्पित इस परियोजना के तहत मैकमोहन रेखा के साथ 2,000 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण होना है जो भूटान से सटे अरुणाचल प्रदेश में मागो से शुरू होगी और म्यांमार सीमा के पास विजयनगर में समाप्त होने से पहले तवांग, अपर सुबनसिरी, तूतिंग, मेचुका, अपर सियांग, देबांग घाटी, देसाली, चागलागम, किबिथू, डोंग से होकर गुजरेगी.

इस परियोजना के साथ, अरुणाचल प्रदेश को तीन राष्ट्रीय राजमार्ग मिलेंगे—फ्रंटियर हाईवे, ट्रांस-अरुणाचल हाईवे और ईस्ट-वेस्ट इंडस्ट्रियल कॉरिडोर हाईवे.

कुल 2,178 किमी के छह वर्टिकल और डायगोनल इंटर-हाईवे कॉरिडोर बनाए जाएंगे ताकि तीनों हाईवे के बीच इंटरकनेक्टिविटी की कमी को पूरा करने के साथ-साथ कम समय में ही सीमावर्ती क्षेत्रों तक पहुंचने की सुविधा मिल सके.

कॉरिडोर में 402 किलोमीटर लंबा थेलामारा-तवांग-नेलिया राजमार्ग, 391 किलोमीटर लंबा इटाखोला-पक्के-केसांग-सेप्पा-पारसी परलो राजमार्ग, 285 किलोमीटर लंबा गोगामुख-तलिहा-तातो राजमार्ग, 398 किलोमीटर लंबा अकाजन-जोर्जिंग-पैंगो हाईवे, 298 किलोमीटर लंबा पासीघाट-बिशिंग हाईवे और 404 किलोमीटर लंबा कानुबाड़ी-लोंगडिंग हाईवे शामिल हैं.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पूर्वोत्तर में शुरू की जा रही हर बुनियादी ढांचा परियोजना या भविष्य में बनाई जाने वाली योजनाओं का उद्देश्य नागरिकों और सेना दोनों को कनेक्टिविटी की बेहतर सुविधा मुहैया कराना ही है.

महत्वाकांक्षी अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो गया है, और एक अन्य बड़ी परियोजना को निर्णायक स्तर पर अंतिम रूप दिया जा रहा है जिसके तहत विशाल ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे 15.6 किलोमीटर लंबी ट्विन टनल का निर्माण किया जाना है जो असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच यात्रा में लगने वाले समय को घटा देगी.

सूत्रों ने कहा कि यद्यपि सुरंग के अलाइनमेंट पर अभी भी चर्चा जारी रही है लेकिन परियोजना को मोदी सरकार ने हरी झंडी दिखा दी है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः रावी द्विवेदी)


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