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Thursday, 19 December, 2024
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UP उपचुनाव में RLD-SP के खिलाफ उतरी BJP ने क्यों मुजफ्फरनगर दंगों का पुराना राग अलापना बंद किया

मुजफ्फरनगर के खतौली विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव में भाजपा ने 2013 के दंगों और जाट युवकों सचिन व गौरव की मौत को लेकर हमेशा से की जाने वाली अपनी चुनावी बयानबाजी को छोड़ दिया है.

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लखनऊ: गुजरात में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव और दिल्ली में नगर निगम के चुनाव भले ही देश में राजनीतिक चर्चा पर हावी हों, लेकिन मुजफ्फरनगर जिले के खतौली में विधानसभा उपचुनाव उत्तर प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है.

5 दिसंबर को निर्धारित चुनाव, मुजफ्फरनगर दंगों के एक मामले में दोषी ठहराए गए भाजपा विधायक विक्रम सिंह सैनी को अयोग्य घोषित करने के बाद किए जा रहे हैं. उनकी पत्नी राजकुमारी अब भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगी.

गौरतलब है कि 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बार-बार चुनावी संदर्भों ने भाजपा को पश्चिमी यूपी में अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद करने में भूमिका निभाई है. सालों से खासतौर पर दो नाम अक्सर भाजपा नेताओं के भाषणों में सुनने को मिलते रहे हैं. इनमें से एक नाम सचिन सिंह का है, तो दूसरा गौरव चौधरी का.

कथित तौर पर इन दो जाट युवाओं को 27 अगस्त, 2013 को मुसलमानों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था. वे दोनों खतौली के कवल गांव के निवासी शाह नवाज़ की कथित तौर पर एक छेड़खानी की घटना को लेकर हत्या करने के बाद भागने का प्रयास कर रहे थे. इसने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कई संघर्षों को जन्म दिया, जिसमें 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी.

हालांकि भाजपा नेताओं ने 2014 के आम चुनावों में इन दोनों जाट युवकों के नामों का बार-बार जाप किया था. उसके बाद 2017,2019 और 2022 के सभी विधानसभा और संसदीय चुनावों में भी ऐसा ही किया गया. लेकिन इस बार खतौली उपचुनाव के लिए प्रचार करते समय पार्टी नेता ऐसा करने से परहेज कर रहे है.

कारण ? गौरव की मां सुरेशवति देवी एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही हैं. उनका दावा है कि उनके बेटे के नाम का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए किया गया था, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला. गौरव के पिता रवींद्र कुमार ने कहा, ‘दंगों के बाद से एक भी चुनाव ऐसा नहीं रहा, जब भाजपा नेताओं ने अपने चुनावी भाषणों में सचिन और गौरव के नामों का इस्तेमाल न किया हो.’

इस महीने की शुरुआत में अपना नामांकन दाखिल करते हुए सुरेशवति देवी ने कहा था कि उनके बेटे को न्याय नहीं मिला और दो युवकों की पुण्यतिथि को छोड़कर, कोई भी नेता उनसे कभी मिलने नहीं आया.

रवींद्र कुमार ने आरोप लगाया, ‘हमने हर चुनाव में (भाजपा) उनके लिए प्रचार किया. वे हमारे बेटों के नाम का इस्तेमाल करते रहे, लेकिन उन्होंने हमारे परिवारों के बारे में कभी नहीं सोचा’ उन्होंने कहा कि वे इस साल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने के लिए तीन बार लखनऊ गए, लेकिन उन्हें एक बार भी मिलने नहीं दिया गया.

उन्होने आरोप लगाते हुए कहा, ‘कोई हमसे मिलने नहीं आता है. भाजपा की यूपी इकाई के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने वादा किया था कि मलिकपुर रोड (खतौली के जनसठ प्रखंड के मलिकपुर गांव को पड़ोसी गांवों से जोड़ने वाली) बनाई जाएगी. इसके लिए कुछ राशि आवंटित भी की गई. लेकिन सड़क का एक हिस्सा बनने के बाद उस काम को रोक दिया गया. राजनाथ सिंह ने वादा किया था कि हमारे परिवार (मुजफ्फरनगर दंगों के सिलसिले में) के खिलाफ चल रहे मामलों को लड़ने के लिए और भी मदद दी जाएगी, लेकिन हमें कभी कोई मदद नहीं मिली.’

रवींद्र ने बताया कि भाजपा ने ‘हर चुनाव में’ दो युवाओं के नामों का इस्तेमाल किया था. इसलिए परिवारों ने फैसला किया है कि वे ‘इस बार उन्हें इनका इस्तेमाल नहीं करने देंगे’.

खतौली जाट बहुल मुजफ्फरनगर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है जहां इस साल मार्च में हुए चुनाव में भाजपा को छह में से चार विधानसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. इसे 2020 में मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों(जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया था) के खिलाफ लंबे समय तक आंदोलन का प्रभाव माना गया. हालांकि सैनी 16,000 से ज्यादा वोटों के साथ खतौली सीट को हासिल करने में कामयाब रहे थे.

आगामी उपचुनाव के लिए भाजपा के हमले ज्यादातर प्रतिद्वंद्वी पार्टी सपा-रालोद के उम्मीदवार मदन भैया को कथित ‘बाहुबली (मजबूत)’ और ‘बाहरी’ (खतौली निवासी नहीं) होने के लिए निशाना बनाने तक सीमित रहे हैं. बाल्यान जैसे नेताओं के भाषणों में भले ही दंगों का कुछ जिक्र हो, लेकिन वहां भी सचिन और गौरव के नाम गायब ही रहे.

उधर सपा-रालोद गठबंधन ने विपक्ष की ‘वंशवादी राजनीति’ की आलोचना करते हुए सैनी की पत्नी राजकुमारी को सीट पर उतारने के लिए भाजपा पर निशाना साधा.

हर बार चुनावों में दंगों का जिक्र, लेकिन इस बार एक गहरी खामोशी

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर बीजेपी ने यूपी की 80 में से 71 संसदीय सीटें जीती थीं. हालांकि, कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मुजफ्फरनगर दंगों के इर्द-गिर्द अपनी बयानबाजी से भी पार्टी को फायदा हुआ था.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मिर्जा अस्मेर बेग ने कहा, ‘हलांकि दंगों से पहले ही, बहुसंख्यक वाला नैरेटिव काफी समय से बन रहा था और भाजपा इसे भुनाने में कामयाब रही.’

फरवरी 2016 में, भाजपा के तत्कालीन कार्यकारी सदस्य उमेश मलिक एक चुनावी रैली के दौरान मुजफ्फरनगर के सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बाल्यान के बगल में खड़े हुए थे और दावा किया था कि दंगों की ‘चिंगारी’ ने नरेंद्र मोदी को पीएम बनने में मदद की थी और यह एक ‘पहचान और सम्मान’ का विषय है.

मौजूदा समय में देखें तो भाजपा नेता सुरेशवति देवी की उम्मीदवारी और आरोपों पर कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए पूर्व भाजपा विधायक सैनी ने दावा किया कि खतौली उपचुनाव एकतरफा चुनाव हैं और उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि उनकी पत्नी राजकुमारी, जिन्हें भाजपा ने मैदान में उतारा है, उनसे बड़ी जीत दर्ज करेंगी.

उन्होंने कहा, ‘मेरी पत्नी 50,000-60,000 वोटों से जीतेगी. यह एकतरफा चुनाव हैं.’

उन्होंने सुरेशवति देवी और उनके पति रवींद्र द्वारा लगाए गए आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.


यह भी पढ़ें: ‘फ्लैश मॉब, रॉक कॉन्सर्ट और हेडलाइनर’- MCD चुनावी अभियान में BJP का फोकस मोदी और PM की नीतियों पर


मिले-जुले मतदाता

खतौली में कथित तौर पर 3,12,000 मतदाता हैं. मतदाताओं में लगभग 77,000 मुस्लिम, 57,000 दलित और विभिन्न ओबीसी समुदायों के मतदाताओं की संख्या 70,000 से ज्यादा है.

ओबीसी मतदाताओं में 27,000 सैनी, 19,000 पाल और 17,000 कश्यप शामिल हैं.

इस निर्वाचन क्षेत्र में जाट समुदाय के लगभग 16,000 मतदाता और गुर्जर जाति के 20,000 मतदाता हैं.

इस जाट-मुस्लिम-गुर्जर-दलित वोट बैंक पर सपा-रालोद गठबंधन की उम्मीदें टिकी हैं और इस सीट के लिए गुर्जर उम्मीदवार मदन भैया को मैदान में उतारा है.

दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने भी भैया को समर्थन दिया है.

भाजपा ने खतौली में प्रचार का कार्यभार ओबीसी, एससी और सवर्ण जातियों के नेताओं और मंत्रियों को सौंपा है. इस सूची में कपिल देव अग्रवाल, नरेंद्र कुमार कश्यप, दिनेश खटीक, जसवंत सिंह सैनी, गुलाब देवी, जितिन प्रसाद और यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक शामिल हैं.

‘बाहरी’ बनाम ‘परिवारवाद’

सपा-रालोद उम्मीदवार भैया बाहुबली और ‘बाहरी’ होने के आरोपों से जूझ रहे हैं. गठबंधन आजाद समाज पार्टी के समर्थन और नोएडा में श्रीकांत त्यागी विवाद पर खतौली में त्यागी समुदाय के बीच मोहभंग को भुनाने की उम्मीद कर रहा है.

स्वयंभू भाजपा सदस्य को इस साल की शुरुआत में अपने आवासीय परिसर में एक महिला के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह जमानत पर बाहर हैं. उनके परिवार के सदस्यों ने पुलिस पर दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया. समुदाय के प्रवक्ताओं ने खतौली उपचुनाव में भाजपा के ‘बहिष्कार’ की घोषणा की है.

त्यागी, ब्राह्मण जमींदारों का एक समुदाय, ज्यादातर खतौली के पांच गांवों में है. हालांकि आबादी में उनकी हिस्सेदारी काफी कम है, लेकिन उनका काफी दबदबा है.

‘परिवारवाद (वंशवादी राजनीति)’ में शामिल नहीं होने और इस पर अन्य दलों को निशाना बनाने के दावों पर भाजपा को घेरते हुए, सपा-रालोद गठबंधन ने उस पर एक दोषी विधायक पत्नी को मैदान में उतारने का आरोप लगाया है.

सपा के मुजफ्फरनगर जिलाध्यक्ष प्रमोद त्यागी ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘विक्रम (सैनी) की पत्नी को मैदान में उतारकर भाजपा ने परिवारवाद को बढ़ावा दिया है.’

हालांकि, जमीनी स्तर पर यह धारणा सामने आ रही है कि सपा-रालोद ने अपने उम्मीदवार की पसंद की वजह से संभावना को खराब कर दिया है.

मुजफ्फरनगर निवासी नवनीत त्यागी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सपा-रालोद के पास चुनाव को अपने पक्ष में करने का अच्छा मौका था, लेकिन उन्होंने एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारा है, जिसे बाहरी और बाहुबली के रूप में देखा जा रहा है. इसलिए एक स्थानीय गुर्जर नेता (अभिषेक चौधरी) ने उम्मीदवारी के खिलाफ बगावत कर दी है.’

उनकी इन बातों से आरएलडी के पूर्व नेता चौधरी ने भी सहमति जताई. वह इस महीने की शुरुआत में खतौली उपचुनाव के लिए टिकट से वंचित होने के बाद भाजपा में शामिल हो गए थे. चौधरी ने दिप्रिंट को बताया कि मदन भैया जैसे ‘बाहरी और बाहुबली’ को मैदान में उतारकर पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को नीचा दिखाया है.

उन्होंने कहा कि सपा-रालोद गठबंधन को आजाद समाज पार्टी के समर्थन से ज्यादा फायदा होने की उम्मीद नहीं है. उम्मीदवार मनोज पंवार को मार्च में विधानसभा चुनाव में यहां केवल 824 वोट मिले थे.

नवनीत त्यागी के अनुसार, ‘बसपा का वोट बैंक’ सीट पर ‘निर्णायक कारक’ बन सकता है. मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने उपचुनाव लड़ने से परहेज किया है और ‘यह देखा गया है कि दलित वोट आमतौर पर बसपा की अनुपस्थिति में भाजपा के साथ जाता है.’

अनुवाद: संघप्रिया मौर्य

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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