scorecardresearch
Tuesday, 23 April, 2024
होमराजनीतिTN में पैठ बनाने और 'बाहरी' का टैग हटाने की कोशिश में BJP का काशी का बड़ा आयोजन कितना फिट बैठता है

TN में पैठ बनाने और ‘बाहरी’ का टैग हटाने की कोशिश में BJP का काशी का बड़ा आयोजन कितना फिट बैठता है

वाराणसी में काशी तमिल संगमम कार्यक्रम का उद्देश्य तमिलनाडु और काशी के बीच प्राचीन सांस्कृतिक संबंध को पुनर्जीवित करना और दक्षिणी राज्य में सत्तारूढ़ द्रमुक की भाषाई राजनीति को कमजोर करना है.

Text Size:

नई दिल्ली: शनिवार को वाराणसी में काशी तमिल संगमम के उद्घाटन में प्रतिष्ठित तमिल कवियों और विद्वानों का गुणगान करने से लेकर संगीत के उस्ताद इलैयाराजा को शामिल करने तक, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी तमिलनाडु में पैठ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. पार्टी को राज्य में भाषाई और वैचारिक आधार पर कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है.

महीने भर चलने वाले इस मेगा सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. भाजपा इसे केंद्र सरकार के उत्तर और दक्षिण के बीच सांस्कृतिक संबंधों को फिर से तलाशने, भाषाई मतभेदों को दूर करने और तमिलनाडु के लोगों के साथ भावनात्मक संबंध स्थापित करने के प्रयास बता रही है. हालांकि, इसका राजनीतिक एजेंडा साफ है – द्रविड़ इलाके में धीरे-धीरे घुसना और अपने लिए जगह बनाना.

यह आयोजन एक शुभ तमिल महीने कार्तिगई के साथ तालमेल बिठाते हुए पूरी तरह से समयबद्ध तरीके से शुरू किया गया है. इस दौरान राज्य के लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले भी क्रांतिकारी तमिल कवि सुब्रमण्यम भारथियार का नाम 2022 के बजट सत्र और तमिलनाडु की अपनी यात्राओं के दौरान विभिन्न अवसरों पर लिया है. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भरथियार के नाम पर एक कुर्सी स्थापित करने के अलावा, सरकार ने यह भी घोषणा की थी कि महान कवि की जयंती हर साल ‘भारतीय भाषा दिवस’ के रूप में मनाई जाएगी.

काशी तमिल संगम का उद्घाटन करने के बाद मोदी ने फिर से वाराणसी में भारथियार के बिताए गए समय की बात की. उन्होंने तमिलनाडु की महान हस्तियों का नाम भी लिया – जैसे कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन, वैदिक विद्वान राजेश्वर शास्त्री और पट्टाभिराम शास्त्री.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उद्घाटन समारोह में संत-कवि तिरुवल्लुवर के क्लासिक तमिल पाठ थिरुक्कुरल (दोहे) के 13 भाषाओं में अनुवाद को भी रिलीज किया गया.

राज्य के एक भाजपा पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि, ‘हम अपनी पार्टी को राज्य में द्रमुक (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के एक मजबूत दावेदार के रूप में पेश करने के लिए उत्सुक हैं. लेकिन भाषा और सांस्कृतिक मतभेदों का इस्तेमाल करते हुए यह दल हमारी पार्टी को रोक रहा है. इस काशी आयोजन के जरिए हमारा पहला मकसद तमिल संस्कृति की प्रशंसा करना और भाजपा एवं तमिल भाषी लोगों के बीच एक पुल बनाना है. दूसरा, हम यह बताना चाहते हैं कि तमिल संस्कृति अलग नहीं है, इसका उत्तर के साथ संबंध है. इसे द्रमुक अतीत में नकारने की कोशिश करता रहा है. वैसे हम नियमित सांस्कृतिक बातचीत, छात्रों के दौरे और प्रभावशाली लोगों से प्रचार के जरिए द्रमुक के नैरेटिव को कम कर सकते हैं.’

DMK और हिंदी-विरोधी आंदोलन

अन्य दक्षिणी राज्यों के विपरीत तमिलनाडु एकमात्र ऐसा राज्य है जहां भाजपा भाषाई नफरत का सामना कर रही है.

2021 के विधानसभा चुनाव के लिए DMK ने NEET (देश भर के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए एक प्री-एंट्रेंस टेस्ट) और भाषा की राजनीति को अपने मुख्य प्री-पोल नैरेटिव के रूप में इस्तेमाल किया था.

बीजेपी महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष और कोयंबटूर दक्षिण से विधायक वनथी श्रीनिवासन ने कहा, ‘डीएमके ने उत्तर और दक्षिण के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को रोकने के लिए भाषाई राजनीति का इस्तेमाल किया है. द्रविड़ राजनीति तमिल संस्कृति की एक अलग पहचान बनाने के लिए काम करती आई है. हम उस बाधा को खत्म करना चाहते हैं और लोगों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर देना चाहते हैं जो प्राचीन काल से मौजूद हैं.

द्रमुक ने राज्य में भाजपा के बढ़ते कदमों का मुकाबला करने के लिए फिर से ‘हिंदी-विरोधी’ आंदोलन को अपने हाथों में ले लिया है. इस राज्य ने आजादी से पहले और बाद में हिंदी-विरोधी आंदोलन देखे हैं.

संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिश में केंद्र सरकार के सभी संस्थानों में अंग्रेजी की बजाय हिंदी का इस्तेमाल करने की बात कही है. समिति की सिफारिश को ‘विभाजनकारी’ बताते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह एक और भाषा युद्ध के लिए मजबूर न करे.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘जब हमने बंगाल में आए, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कुछ इसी तरह की साजिश का इस्तेमाल किया था. उन्होंने भाजपा को एक उत्तर भारतीय पार्टी बताया, जो बंगाली संस्कृति को नष्ट करना चाहती है. उन्होंने विहिप द्वारा आयोजित रामनवमी यात्रा का भी विरोध किया. लेकिन हमने दुर्गा लिंकेज स्थापित करके, बंगाल में अपनी पार्टी के लिए रोड़ा बनाने के ममता के नैरेटिव को सफलतापूर्वक खत्म कर दिया.

भाजपा के नेता ने कहा, ‘हमने स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस, महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर और यहां तक कि प्रणब दादा की भी पूजा की है. हम तमिलनाडु में इसी तरह के प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं. हमें डीएमके के प्रभाव को कम करने के लिए सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी पैठ बनानी ही होगी. क्षेत्रीय दलों में द्रमुक ही कांग्रेस को ऑक्सीजन देने वाली पार्टी है, इस पर भी गौर करने की जरूरत है.

दक्षिण की काशी

बीएचयू के प्राचीन इतिहास विभाग के डॉ विनय कुमार ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि काशी और तमिलनाडु के बीच सांस्कृतिक संबंध साहित्य में पाया जा सकता है उन्होंने तमिलनाडु के एक छोटे से शहर तेनकासी (दक्षिण की काशी) के बारे में एक नैरेटिव सुनाया.

उन्होंने कहा, ‘13 वीं शताब्दी में मदुरै पर शासन करने वाले राजा पराक्रम पांडियन, भगवान शिव के लिए एक मंदिर बनाना चाहते थे. उन्होंने काशी की यात्रा की और एक लिंगम लेकर आए और इसे तेनकासी में स्थापित कर दिया. जो लोग काशी नहीं जा सकते, वे तेनकासी में इस मंदिर का दर्शन कर सकते हैं.’

काशीनाथ तमिलनाडु में एक लोकप्रिय नाम है. राज्य में काशी के नाम पर सैकड़ों मंदिर हैं. अकेले चेन्नई में 18 हैं. उन्होंने कहा, ‘हम काशी को तमिल संस्कृति से अलग नहीं कर सकते हैं.’

महत्वाकांक्षी सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्देश्य तमिलनाडु और काशी के बीच प्राचीन सांस्कृतिक और दार्शनिक जुड़ाव को पुनर्जीवित करना और इस संदेश को फैलाना है. भाजपा ने न सिर्फ सभी क्षेत्रों की मशहूर हस्तियों को बल्कि युवाओं को भी अपने साथ जोड़ा है. इस कार्यक्रम में तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों से छात्रों, शिक्षकों, पुरोहितों और कलाकारों सहित लगभग 2,500 प्रतिभागियों के शामिल होने की उम्मीद है.

वे अलग-अलग बैच में यहां पहुंचेंगे और उत्तर प्रदेश में -वाराणसी, अयोध्या और प्रयागराज में दो-दो दिन- कुल छह दिन बिताएंगे. कार्यक्रम का समापन 19 दिसंबर को होगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः संघप्रिया मौर्य)


यह भी पढ़ेंः चुड़ैल से चंदनपुर- गुजरात का यह गांव अपना नाम बदलने की हरसंभव कोशिश करने में जुटा है 


 

share & View comments