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Friday, 29 March, 2024
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चुड़ैल से चंदनपुर- गुजरात का यह गांव अपना नाम बदलने की हरसंभव कोशिश करने में जुटा है

आधिकारिक स्तर पर नाम बदलने के क्रम में चुड़ैल का नया नाम दर्शाने के लिए सभी राजस्व रिकॉर्ड अपडेट करने होंगे. फिर भी, ग्रामीणों को लगता है कि यह सारी कवायद सार्थक ही साबित होगी.

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गुजरात में सूरत जिले के मांडवी तालुका में रहने वाले मनसुख चौधरी को अब से कुछ सालों पहले करीब 30 किलोमीटर दूर पड़ोसी जिले तापी के धमोडला गांव की निवासी संजना से प्यार हो गया. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन एक छोटी-सी बात उनकी शादी में एक बड़ी बाधा बनकर खड़ी हो गई.

दरअसल, चौधरी जिस गांव से ताल्लुक रखते हैं, उसका नाम चुड़ैल है और संजना के माता-पिता यह सोचकर कि लोग क्या कहेंगे और आगे पता नहीं उनकी बेटी और परिवार को क्या झेलना पड़ जाए, इस रिश्ते के खिलाफ थे.

आखिरकार काफी समझाने-बुझाने के बाद उन्होंने अनिच्छा से ही सही मनसुख और संजना को आशीर्वाद दिया और 2011 में उन दोनों की शादी हो गई. अब, संजना चुडैल ग्राम पंचायत की सरपंच हैं, और यह जोड़ा गांव का नाम बदलने के मिशन पर लगा है.

32 वर्षीय मनसुख बताते हैं, ‘मुझे (ससुराल वालों को) यह समझाने में एक साल लग गया कि गांव और इसके लोगों का इसके दुर्भाग्यपूर्ण नाम से कोई लेना-देना नहीं है. उनकी बेटी की अच्छी तरह देखभाल की जाएगी.’ उन्होंने आगे कहा, ‘और मैं अकेला नहीं हूं. इस वजह से अन्य बहुत से लोग भी परेशान होते हैं क्योंकि लोग अपनी बेटियों की शादी हमारे गांव में नहीं करना चाहते.’

वैसे तो भारत में गांवों, शहरों और जिलों का नाम बदलने की मांग अमूमन मुगलों और औपनिवेशिक शासनकाल के ऐतिहासिक संदर्भों को मिटाने के लिए उठाई जाती है. लेकिन चुड़ैल में कहानी कुछ अलग ही है.

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2011 की जनगणना के मुताबिक, पत्थर की खदान के बगल में स्थित इस छोटे से गांव की आबादी 951 है. और यहां के निवासियों को अक्सर अपने गांव के नाम की वजह से उपहास का पात्र बनना पड़ता है. ग्रामीणों का कहना है कि जब महिलाएं शिक्षा या नौकरी के सिलसिले में अन्य जगहों पर जाती हैं तो कई बार उनका मजाक उड़ाया जाता है और मनसुख जैसे लोगों को शादी करने में मुश्किलें आती हैं.

इन सबसे तंग आकर स्थानीय ग्राम पंचायत ने अक्टूबर में गांव का नाम बदलकर चंदनपुर करने का प्रस्ताव पारित किया है.

मनसुख ने बताया, ‘प्रस्ताव फिलहाल कलेक्टर ऑफिस में विचाराधीन है.’

माना जाता है, कभी प्रेतबाधित थी यह जमीन

गांव के किसी भी व्यक्ति को ठीक से तो नहीं पता कि टोले का नाम चुड़ैल कैसे पड़ा. लेकिन चौपालों या अलसाई दोपहरों में होने वाली गपशप से यही बात सामने आती है कि जिस जमीन पर यह गांव बसा है, उसके बारे में माना जाता है कि वहां कभी भूत-चुड़ैलों का डेरा था.

पत्थर की खदान में काम करने वाले 27 वर्षीय अजय चौधरी कहते हैं, ‘हमारे गांव के बुजुर्ग हमें 100-150 साल पहले की कहानियां सुनाते हैं कि यह गांव प्रेतबाधित था. यह वो जगह थी जहां आत्माएं दिन में भी खुलेआम घूमा करती थीं.’

अजय के मुताबिक, ‘हमारे दादा-दादी किसी ऐसे व्यक्ति को जानने की बातें किया करते थे जिसने भूतों और आत्माओं को देखा था. लेकिन युवा पीढ़ी इस सबको बकवास मानती हैं. हम पढ़े-लिखे हैं और इन सबमें विश्वास नहीं करते.’

बहरहाल, कहानी चाहे सच हो या झूठ, अजय बस यही चाहते हैं कि गांव का नाम बदला जाना चाहिए.

अजय के मुताबिक, ‘सूरत या भरूच जैसी जगहों पर पढ़ने जाने वाले युवाओं को एक बड़ी समस्या होती है. उन्हें इस नाम को लेकर रैगिंग झेलनी पड़ती है.’

अजय बताते है कि जब भी कोई उनसे उनका पता पूछता है, तो वह पूरा ब्योरा दिए बिना मांडवी तालुका कहना पसंद करते हैं.


यह भी पढ़ें: ‘खेती और पशुपालन’ झारखंड के आदिवासी गांवों में कैसे बदल रहा बेहद गरीब परिवारों का जीवन


बचपन में चुड़ैल नाम से बुलाते थे दोस्त

24 वर्षीय भविका प्रजापति अपनी तीन साल के बच्ची को पास ही पड़ी चारपाई पर बैठाती है और इस बात पर अपनी खुशी जाहिर करती है कि कम से कम उसकी बेटी का पता वांकला, मांडवी तालुका है, न कि चुड़ैल.

भविका प्रजापति का जन्म चुडैल में हुआ था. वह वहीं पली-बढ़ी और शादी के बाद वेंकला आ गई.

Bhavika Prajapati with her three-year-old | Manasi Phadke, ThePrint
भाविका प्रजापति अपने तीन साल के बच्चे के साथ | मानसी फड़के, दिप्रिंट

भविका ने बताया, ‘आठवीं कक्षा तक तो मैं गांव के स्थानीय स्कूल में ही गई. फिर कक्षा 8 से 12 तक मैंने तालुका के दूसरे स्कूल में पढ़ाई की. इस दौरान वहां मेरा उपनाम ‘चुड़ैल’ ही रख दिया गया था. हर कोई मुझे चुड़ैल बुलाने का इतना अभ्यस्त हो गया था कि यह साधारण मजाक के तौर पर चिढ़ाने से परे हो गया था. मेरे दोस्त सामान्यत: कुछ भी पूछने या मुझे बुलाने के लिए ‘ऐ चुड़ैल’ ही बोला करते थे.’

वह कहती हैं, ‘पहले तो मुझे काफी चिढ़ होती थी, लेकिन धीरे-धीरे मुझे इसकी आदत हो गई.’

अभी 20 वर्षीय ख़ुशी चौधरी ठीक उसी स्थिति से गुजर रही हैं, जिससे कुछ साल पहले भविका गुजरी थी. मांडवी में विज्ञान स्नातक की छात्रा ख़ुशी के दोस्त अक्सर उसे ‘चुड़ैल’ बुलाते हैं.

Bhavika Prajapati standing in the foyer of her childhood home | Manasi Phadke, ThePrint
अपने बचपन के घर के प्रांगण में खड़ी भाविका प्रजापति | मानसी फड़के, दिप्रिंट

खुशी ने बताया, ‘कॉलेज में मेरे पहले दिन टीचर ने सभी से पूछा कि हम किस गांव से आते हैं. जब मैंने चुड़ैल बोला तो पहले तो टीचर का लगा कि मैं उनका अपमान कर रही हूं, फिर वह थोड़ा कन्फ्यूज हो गईं और उन्होंने मुझसे दो बार और गांव का नाम पूछा. उसके बाद काफी अचरज से बोलीं कि ऐसा भी कोई नाम होता है?’

खुशी की मां चुड़ैल गांव के स्‍थानीय स्‍कूल में रसोई संचालिका हैं. खुशी ने थोड़ा मुस्कुराते हुए बताया, ‘हर बार जब भी वह तहसील कार्यालय में क्षेत्रीय बैठकों के लिए जाती है, तो वहां लोग कहते हैं, ‘देखो चुड़ैल आ गई है.’

भविका, खुशी और गांव के अन्य लोग भी, जब बस की यात्रा कर रहे होते हैं तो टिकट चुड़ैल के बजाये आसपास के किसी गांव के नाम पर लेते हैं. क्योंकि नहीं चाहते हैं कोई अनावश्यक रूप से इस पर ध्यान दे या उनसे कोई सवाल पूछे.

चुड़ैल से चंदनपुर बनने की प्रक्रिया बहुत लंबी होगी

मनसुख ने बताया कि 1988 में तत्कालीन सरपंच ने गांव का नाम बदलाने की पहल की थी और इसे चंदनपुर कहने का फैसला किया. ‘लेकिन किसी न किसी कारण से इसमें सफलता नहीं मिली. शायद इसलिए भी प्रक्रिया काफी लंबी और समय लेने वाली है.’

आधिकारिक तौर पर किसी गांव का नाम बदलने के लिए, ग्राम पंचायत को पहले एक प्रस्ताव पारित करना होता है, फिर प्रस्ताव पर तहसील स्तर की बैठक में चर्चा की जाती है. एक बार स्वीकृत होने के बाद प्रस्ताव कलेक्टर दफ्तर में और अंत में राज्य सरकार के पास जाता है.

संजना के ग्राम प्रधान बनने से पहले 2017 से मनसुख ही यहां के सरपंच थे. उन्होंने 2018 के अंत में नाम बदलने की प्रक्रिया संबंधी कागजी कार्रवाई के बारे में पूरी जानकारी जुटाई.

आधिकारिक तौर पर नाम परिवर्तन की प्रक्रिया के तहत चुड़ैल गांव के नए नाम को दर्शाने के लिए सारे राजस्व रिकॉर्ड को अपडेट करना होगा. हर व्यक्ति का आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचानपत्र सहित अन्य दस्तावेज भी अपडेट होंगे. हालांकि, चुड़ैल के निवासियों को लगता है कि यह सारी कवायद सार्थक ही साबित होगी.

मनसुख ने कहा, ‘ग्राम पंचायत कागजी कार्रवाई में सभी की मदद करेगी. इसे पूरा करने में हमें दो महीने से ज्यादा का समय नहीं लगेगा.’

लेकिन आसपास के गांवों के लोग इस टोले को चुड़ैल कहने के आदी हैं. क्या उनकी पुरानी आदत बदलना संभव होगा?

इस सवाल पर मनसुख का कहना है, ‘क्यों नहीं?’ वह आगे कहते हैं, ‘अगली बार जब हमारे गांव की कोई महिला या लड़की नौकरी या पढ़ाई के लिए कहीं बाहर जाएगी तो अपना सिर ऊंचा करके और आत्मविश्वास के साथ तो बता पाएगी कि वह कहां से आई है.’

(अनुवाद: रावी द्विवेदी )

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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