scorecardresearch
Sunday, 24 November, 2024
होमराजनीति2018 से सबक लेकर भीम आर्मी से मुकाबले के लिए MP में दलित और आदिवासी तक तेजी से पहुंच रही BJP

2018 से सबक लेकर भीम आर्मी से मुकाबले के लिए MP में दलित और आदिवासी तक तेजी से पहुंच रही BJP

इस महीने की शुरुआत में हुई पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की एक बैठक के दौरान इस मामले पर विस्तार से चर्चा हुई. भाजपा की योजना 'सूक्ष्म-स्तरीय समन्वय' को बढ़ाने और सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों तक पहुंचने की है.

Text Size:

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश (मप्र) की दलित और आदिवासी आबादी के बीच क्रमशः भीम आर्मी और जन आदिवासी युवा शक्ति (जयस) जैसे नए संगठनों के बढ़ते प्रभाव से चिंतित भाजपा ने राज्य में अपने जनसम्पर्क के प्रयासों को और मजबूत करने का फैसला किया है.

पार्टी के नेताओं का कहना है कि दलितों और आदिवासियों के समर्थन की आई कमी उन कारकों में से एक थी जिन्होंने भाजपा को 2018 के चुनावों में स्पष्ट बहुमत हासिल करने से रोका था. तब 230 सदस्यीय राज्य विधानसभा में कांग्रेस को मिलीं 114 सीटों के मुकाबले पार्टी ने केवल 109 सीटें ही जीती थीं.

अगले विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक साल का समय बचे होने के साथ ही, 1 अक्टूबर को रातापानी वन्यजीव अभयारण्य स्थित एक रिसॉर्ट में शीर्ष राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय भाजपा नेताओं की बंद कमरे में हुई लम्बी बैठक के दौरान यह मामला चर्चा में आया. बैठक में उपस्थित लोगों में भाजपा महासचिव (संगठन) बी एल संतोष, राज्य में पार्टी के अध्यक्ष वी डी शर्मा, भाजपा के मध्य प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा शामिल थे.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘अन्य मुद्दों के अलावा, भाजपा विरोधी ताकतों पर भी लंबी चर्चा हुई. हालांकि बसपा (बहुजन समाज पार्टी) पहले एक प्रमुख कारक हुआ करती थी, मगर हमने देखा है कि उसका प्रभाव अब कम हो गया है, क्योंकि कुछ नई ताकतें जैसे कि भीम आर्मी और जयस समय के साथ आगे बढ़ रही हैं.’ साथ ही, उन्होंने कहा : ‘सीटों के मामले में उनका क्या प्रभाव हो सकता है, इस बारे में कुछ कहना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन वे एससी/एसटी (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) आबादी के बीच चर्चा का विषय जरूर बन गए हैं.’

2011 की जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश में सबसे अधिक आदिवासी रहते हैं और राज्य की जनसंख्या में अनुसूचित जनजाति (एसटी) आबादी का 21.5 प्रतिशत है, वहीं अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 15.6 प्रतिशत है. राज्य में एसटी के लिए 47 और एससी के लिए 35 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं. 2013 में मिली 31 एसटी सीटों के मुकाबले, साल 2018 में भाजपा ने सिर्फ 16 एसटी सीटें जीतीं थीं. एससी सीटों के मामले में, भाजपा ने 2013 में मिलीं 28 सीटों की तुलना में 2018 में सिर्फ 17 सीटें जीतीं थीं .

साल 2018 के चुनाव में भाजपा राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. मगर, यह मार्च 2020 में एक बार फिर से अपनी सरकार बनाने में सफल रही क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो अब एक केंद्रीय मंत्री हैं, कांग्रेस के 22 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे.

पार्टी के एक दूसरे नेता ने कहा कि वर्तमान में भाजपा को एससी/एसटी वोटों का 30-35 फीसदी हिस्सा मिलता है और लक्ष्य इसे 75 फीसदी तक पहुंचाने का है.

हालांकि, इस बात की आशंका है कि नए-नए उभरने वाले राजनीतिक दल राज्य में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के वोटों को और अधिक विभाजित कर सकते हैं, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य प्रदेश जैसे इलाकों के जिलों में जहां मुख्य रूप से एससी/एसटी/ओबीसी आबादी होने की वजह से बसपा और समाजवादी पार्टी की अच्छी-खासी उपस्थिति है.


यह भी पढ़ेंः क्यों RJD की बैठक में अचानक लिए गए एक फैसले से JD(U) में उसके विलय की चर्चा तेज़ हो रही


भीम आर्मी का उदय, और लोधी फैक्टर

भाजपा पिछले कुछ समय से एससी/एसटी समुदायों के बीच अपने समर्थन आधार को बढ़ाने की कोशिश कर रही है, और पिछले साल भी इसे ‘आदिवासियों और दलितों की पार्टी’ बनने में मदद करने के लिए एक आउटरीच कैंपेन (लोगों तक पहुंच बनाने का अभियान) शुरू किया गया था.

मगर यह अभी तक ठीक तरह से हो नहीं पाया है और सबसे बड़ा चिंता का क्षेत्र ग्वालियर-चंबल है, जहां भीम आर्मी अपनी कुछ पैठ बना रही है. इसके सह-संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद ने यह घोषणा भी कर रखी है कि उनके संगठन की राजनीतिक शाखा, आज़ाद समाज पार्टी, 2023 में मध्य प्रदेश का चुनाव लड़ने की योजना बना रही है.

एक और अप्रत्याशित जटिलता तब पैदा हो गई जब इस साल अगस्त में ब्राह्मणों के बारे में की गई विवादास्पद टिप्पणी को लेकर भाजपा ने ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के एक प्रमुख ओबीसी नेता प्रीतम सिंह लोधी को पार्टी से निष्कासित कर दिया.

एक तीसरे राज्य भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘निष्कासित होने के बाद, लोधी ने भीम आर्मी से हाथ मिला लिया, जो मध्य प्रदेश में अपनी जड़ें लगातार मजबूत कर रही है.’

उन्होंने कहा, ‘हाल ही में शिवपुरी [ग्वालियर संभाग में] में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें भीम आर्मी के सह-संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद ने भाग लिया था. इसमें भारी भीड़ उमड़ीं, और तब से ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में लोग भीम आर्मी के इर्दगिर्द खूब चर्चा कर रहे हैं. प्रीतम सिंह लोधी द्वारा भीम आर्मी को समर्थन देने से राजनीति और भी गर्मा गई है.’

इस सब के अलावा इस साल जुलाई में हुए नगर निगम चुनाव में भाजपा ग्वालियर और मुरैना के मेयर (महापौर) की सीटों पर हार गई थी. ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में मिलीं इन दो पराजयों से पार्टी को अतिरिक्त दिक्कत हुई है, क्योंकि यह केंद्रीय मंत्रियों ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर का गढ़ माना जाता है. जयभान सिंह पवैया और नरोत्तम मिश्रा जैसे राज्य के वरिष्ठ भाजपा नेता भी इसी क्षेत्र से आते हैं.

‘गहन विचार मंथन’, नए जिला प्रमुख

हालांकि पिछले कई चुनावों से बसपा ने ही ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा को मुख्य रूप से चुनौती दी है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसकी लोकप्रियता कम होती जा रही है. भाजपा का लक्ष्य अब जो भी खाली स्थान पैदा हुआ है उसे भरना है.

साल 2013 में, बसपा ने मप्र में कुल मतों का 6.42 प्रतिशत हासिल किया था, और चार सीटें – डिमनी, अंबा, रायगांव और मंगवां – जीती थीं. लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनावों में, उसे केवल 5.11 प्रतिशत वोट मिले और उसने केवल दो सीटें जीतीं – एक भिंड जिले के भिंड निर्वाचन क्षेत्र में और दूसरी दमोह जिले के पथरिया में. बसपा के अधिकांश वोट ग्वालियर-चंबल और विंध्य क्षेत्रों की ग्रामीण सीटों से आते हैं.


यह भी पढ़ेंः ‘आप का दलित चेहरा और अंबेडकरवादी’ हैं धर्मांतरण विवाद पर इस्तीफा देने वाले दिल्ली के पूर्व मंत्री गौतम


तीसरे भाजपा नेता ने कहा, ‘गहन विचार मंथन हुआ और इस बात पर चर्चा हुई कि कैसे नए संगठन इन जिलों के माध्यम से राज्य में अपने लिए जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, खासकर कुछ हिस्सों में बसपा की लोकप्रियता कम होने के साथ. हम माइक्रो-लेवल कोआर्डिनेशन (सूक्ष्म स्तरीय समन्वय) को बढ़ाने जा रहे हैं और साथ ही सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों तक भी पहुंच बनाएंगे.’

उन्होंने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के बीच अपनी गतिविधियों को बढ़ाने और उनतक अपनी पहुंच को मजबूत करने के लिए कहा गया है, खासकर बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल जैसे उन क्षेत्रों में, जहां बसपा का अधिक प्रभाव रहा है.

गौरतलब है कि 1 अक्टूबर की बैठक के बाद और मुरैना और ग्वालियर मेयर की सीटों पर मिली हार से हुए नुकसान की पृष्ठभूमि में, पार्टी ने ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अपने चार जिला प्रमुखों – भिंड, ग्वालियर, अशोक नगर और गुना में- को बदल दिया है. कटनी, जहां भाजपा की बागी प्रत्याशी प्रीति सूरी ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़कर पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार को हराया था, के जिला प्रमुख को भी बदल दिया गया है .

‘भीम सेना, जयस पर नजर रखना हमारा कर्तव्य है’

पार्टी के सूत्रों ने कहा कि राज्य में एससी और एसटी आबादी का एक बड़ा वर्ग अभी भी भाजपा का समर्थन करने से हिचकिचा रहा है. यह एक ऐसा कारक है जिसके लिए इन नेताओं ने भाजपा संगठन में इन समुदायों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को जिम्मेदार ठहराया है, और यह एक ऐसे खामी है जिसे पार्टी जल्दी ही दुरुस्त करने की उम्मीद करती है.

यह पूछे जाने पर कि भीम आर्मी और जयस जैसे नए संगठनों की प्रगति का मुकाबला करने के लिए पार्टी की किस तरह की योजना है, राज्य भाजपा प्रमुख वी डी शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि वे ‘कोई खतरा तो नहीं’ हैं, लेकिन एक राजनीतिक दल के रूप में ‘यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन पर नज़र रखें.’

उन्होंने कहा कि भाजपा ने केंद्र और राज्य स्तर पर एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए कई कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू किए हैं और उम्मीद है कि इससे हमें लाभ मिलेगा.

उन्होंने आगे कहा, ‘जन जातीय दिवस मनाने से लेकर वाल्मीकि जयंती के आयोजन तक, हम सबका साथ, सबका विकास में विश्वास करते हैं. हम उनके विकास के लिए काम कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे. हमारे प्रधान मंत्री जी ने भी हमेशा से समाज के दलितों और गरीब वर्गों के कल्याण पर अपना ध्यान केंद्रित किया है और हम उसी एजेंडे को पूरा कर रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: AAP के पूर्व मंत्री गौतम ने कहा, ‘उत्पीड़न की वजह से हुए धर्मांतरण, भारत को बुद्ध के रास्ते पर चलना चाहिए’


share & View comments