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Sunday, 17 November, 2024
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वैदिक प्लास्टिक सर्जरी से टेस्ट-ट्यूब कर्ण तक – पीएम ने भी किए ऐसे अवैज्ञानिक दावे

अविश्वसनीय वैज्ञानिक दावे सिर्फ भारतीय विज्ञान कांग्रेस में ही नहीं किए जाते, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई प्रमुख लोगों ने ऐसा किया है.

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नई दिल्ली:  अल्बर्ट आइंस्टाइन और आइज़क न्यूटन के सिद्धांतों पर सवाल उठाने से लेकर प्राचीन काल में भारतीयों के स्टेम सेल तकनीक में दक्ष होने का दावा करने तक, 7 जनवरी को संपन्न भारतीय विज्ञान कांग्रेस के पांच-दिवसीय अधिवेशन में विवादास्पद से लेकर बिल्कुल अविश्वसनीय तक, अनेक दावे किए गए.

लेकिन विगत चार-पांच वर्षों में सार्वजनिक मंचों पर जितनी बड़ी संख्या में संदेहास्पद वैज्ञानिक दावे किए गए हैं, उनके मद्देनज़र विज्ञान कांग्रेस के दावों को विसंगति के रूप में नहीं देखा जा सकता.

ऐसा लगता है मानो व्यवस्था के हर स्तर तक ऐसे विमर्श की दखल हो चुकी है. मंत्रियों के अवैज्ञानिक बयान आते रहते हैं, और मोदी सरकार ने तो आरएसएस की अनुशंसा वाली एक पुस्तक के ज़रिए इनमें से कुछ दावों को उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने का भी प्रयास किया है.


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शीर्ष स्तर पर

अवैज्ञानिक दावों को आगे बढ़ाने के दोषियों में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं. मोदी ने 2014 में मुंबई में रिलायंस अस्पताल की शुरुआत के मौके पर यह कहकर वैज्ञानिक समुदाय को भौचक्का कर दिया कि भगवान गणेश  का सिर संभवत: किसी प्लास्टिक सर्जन ने लगाया होगा, और कर्ण टेस्ट-ट्यूब बेबी थे.

प्राचीन भारतीयों के उन्नत चिकित्सा में पारंगत होने का दावा करते हुए मोदी ने कहा था, ‘हम सब महाभारत में कर्ण के बारे में पढ़ते हैं. महाभारत में कही गई इस बात पर थोड़ी गहराई से सोचें कि कर्ण अपनी मां के गर्भ से पैदा नहीं हुए थे. इसका मतलब ये हुआ कि उस समय आनुवांशिक विज्ञान मौजूद था. तभी तो कर्ण अपनी मां की कोख के बाहर पैदा हुए.’

मोदी ने आगे कहा, ‘हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं. प्राचीन काल में कोई प्लास्टिक सर्जन रहा होगा, जिसने एक इंसान के शरीर के ऊपर हाथी का सिर जोड़कर प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत की होगी.’

राजनीतिक श्रृंखला में नीचे तक

इसके बाद मंत्रियों समेत कई दक्षिणपंथी वक्ताओं ने, मानो प्रधानमंत्री का अनुसरण करते हुए, अविश्वसनीय वैज्ञानिक दावे करने शुरू कर दिए.

मानव संसाधन राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने गत साल औरंगाबाद में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को चुनौती दे डाली. उन्होंने यह कहते हुए डार्विन को गलत करार दिया कि ‘किसी ने कभी बंदर को इंसान बनते नहीं देखा है.’

सिंह ने कहा, ‘डार्विन का (मनुष्य के क्रमिक विकास संबंधी) सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से गलत है. स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रमों में इसे बदला जाना चाहिए. हमारे पूर्वजों समेत किसी ने भी, लिखित या मौखिक रूप में, यह नहीं कहा है कि उन्होंने किसी बंदर को इंसान बनते देखा है.’

2017 में, राजस्थान के तत्कालीन शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने गाय को ऑक्सीजन अंदर लेने और ऑक्सीजन ही बाहर छोड़ने वाला एकमात्र जीव बताया था.

राज्य की एक गोशाला में उन्होंने बयान दिया, ‘गाय एकमात्र प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है, और ऑक्सीजन ही छोड़ता है.’

अ-विज्ञान कांग्रेस

हालांकि, सर्वाधिक चौंकाने वाले दावे भारतीय विज्ञान कांग्रेस में किए गए हैं, जबकि उसे देश के शीर्ष वैज्ञानिकों का सम्मेलन होना चाहिए था.

2015 में, भारतीय विमानन प्रौद्योगिकी पर प्रस्तुत एक रिसर्च पेपर में प्राचीन काल में महर्षि भारद्वाज द्वारा विमान निर्माण के बारे में विस्तृत निर्देश लिखे जाने का दावा किया गया था. उक्त पेपर को सेवानिवृत्त पायलट कैप्टन आनंद बोडस ने तैयार किया था. अपने दावे के समर्थन में उन्होंने बृहद विमानशास्त्र का हवाला दिया था.

पिछले साल केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने विज्ञान कांग्रेस में यह दावा कर आयोजकों और श्रोताओं को चौंका दिया था कि स्टीफन हॉकिंग तक ‘वेदों में आइंस्टाइन के मुक़ाबले बेहतर सिद्धांत’ होने की बात कह चुके हैं.

जबकि 2017 में विज्ञान कांग्रेस में एक प्रदर्शनी के ज़रिए रामायण और महाभारत के वैज्ञानिक अस्तित्व की व्याख्या की गई थी.

इस तरह की बातें इतनी होने लगी हैं कि वैज्ञानिकों के एक समूह को विज्ञान के इर्द-गिर्द फैलाए जा रहे मिथकों को तोड़ने के लिए सामने आना पड़ा.


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महाराष्ट्र स्थित वैज्ञानिक अनिकेत सुले, जो झूठी वैज्ञानिक सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिए प्रयासरत संस्था ब्रेकथ्रू साइंस सोसायटी से संबद्ध हैं, कहते हैं, ‘इस सरकार के आने से पहले भी ऐसी अनेक बातें कही गई थीं, पर उनमें से अधिकांश को कोई प्रमुख मंच नहीं मिला. ऐसी ज़्यादातर बातें ब्लॉगों के रूप में आईं या ऐसे आयोजनों में कही गईं कि जिन पर लोगों का ध्यान नहीं गया.

सुले ने कहा, ‘2014 के बाद से, बहुत से दक्षिणपंथी वक्ता विज्ञान कांग्रेस जैसे प्रमुख मंचों पर बोल रहे हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा करने का मौक़ा मिल रहा है.’

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