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Thursday, 25 April, 2024
होमशासन"अविश्वसनीय" दावे करने वाली पुस्तक को कोर्स से हटाने के लिए वैज्ञानिकों ने दायर की याचिका

“अविश्वसनीय” दावे करने वाली पुस्तक को कोर्स से हटाने के लिए वैज्ञानिकों ने दायर की याचिका

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भावी इंजीनियरों के लिए लिखी एक किताब का दावा है कि भारतीय ऋषि ने राइट बंधुओं से 5,000 साल पहले विमानों का आविष्कार किया था, और गुरुत्वाकर्षण भी वैदिक युग की खोज थी।

नई दिल्ली: वैज्ञानिकों के एक समूह ने एक याचिका के माध्यम से ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) से आग्रह किया है कि वह इंजीनियरिंग के छात्रों को पढ़ाये जा रहे एक नए मॉड्यूल की समीक्षा करे। याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यह कोर्स प्राचीन भारत की तकनीकी शक्ति के बारे में “अविश्वसनीय” दावे तो करता ही है , उन्हें तथ्यों के रूप में भी प्रस्तुत करता है।

जैसा कि दिप्रिंट अपनी पुरानी रिपोर्ट में कह चुका है, ये दावे भारतीय विद्या सार नामक एक किताब में किये गए हैं जो ‘इंडियन नॉलेज सिस्टम्स’ नामक वैकल्पिक क्रेडिट कोर्स का एक हिस्सा है।


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उदहारण के तौर पर इस पुस्तक का दावा है कि वैदिक काल में भारत में बिजली का अविष्कार हो चुका था और एक भारतीय संत ने राइट बंधुओं से 5,000 वर्ष पहले ही विमान भी बना डाला था।

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यह किताब गुरुत्वाकर्षण की खोज का श्रेय भी वैदिक काल को देती है।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस पुस्तक को एआईसीटीई-संबद्ध इंजीनियरिंग कॉलेजों के पाठ्यक्रम में लगाने का निर्णय लिया है।

याचिका का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिकों में होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन (एचबीसीएसई), मुंबई के अनिकेत सुले, रोहिणी करांदिकर -डांगे और शताक्षी गोयल शामिल हैं। ये एक बड़े वैज्ञानिक समूह के सदस्य हैं जो सक्रिय रूप से विज्ञान गल्प के प्रचार को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें महाभारत काल में इंटरनेट की सुविधा होने जैसे दावे शामिल हैं।
वैज्ञानिकों ने अपनी याचिका में कहा, ” तकनीकी विषयों के छात्रों को भारतीय विज्ञान और दर्शन के इतिहास के बारे में जागरूक करना एक प्रशंसनीय लक्ष्य है।”

याचिका आगे कहती है, “इस तरह के पाठ्यक्रम छात्रों को सर्वांगीण अनुभव प्रदान करते हैं और एक व्यापक विश्वदृष्टि विकसित करने में उनकी मदद करते हैं। हालांकि भारत में इस क्षेत्र में बहुत काम किये जाने की आवश्यकता है। हमने अतीत में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किये गए उत्कृष्ट काम को देखा है।

इसके बाद यह याचिका इंडियन नेशनल साइंस अकैडमी (आईएनएसए) द्वारा किए गए कार्यों को उद्धृत करती है जिसमें सिद्धांत ग्रंथों का प्रकाशन शामिल है। इसके अलावा सेंटर फॉर स्टडीज इन सिविलाइज़ेशन द्वारा प्रकशित पुस्तकों की श्रंखला का ज़िक्र भी याचिका में है।

“ये उन वैज्ञानिक खोजों के उदाहरण हैं जिन्हें न केवल भारतीय शिक्षाविदों में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त है।”

याचिका आगे कहती है :”हालांकि, भारतीय विद्या सार नामक यह किताब कई निराधार दावे करती है, हम यहां कुछ सबसे विचित्र दावों को प्रस्तुत कर रहे हैं – ‘ऋषि अगस्त्य ने इलेक्ट्रो – वोल्टाइक सेल का आविष्कार किया’, ऋषि अगस्त्य ने ऑक्सीजन और जल से हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए इलेक्ट्रोलिसिस की विधि दी, ‘वैशेशिक सूत्र में ऋषि कणाद ने गति के प्रकार के साथ -साथ न्यूटन के नियमों पर भी चर्चा की है, इत्यादि। ”

कुछ और उदहारण: ” वैमानिक शास्त्र नामक यह पुस्तक लगभग 5000 साल पहले ऋषि भारद्वाज ने लिखी थी ‘,’ वैमानिक शास्त्र पुस्तक सिर्फ हवाई जहाज के निर्माण पर ही नहीं बल्कि नेविगेशन, विमानन ईंधन और पायलट तैयारी पर भी एक आधिकारिक पाठ है,’ ‘प्रकाश की गति ऋग्वेद में सही सही बताई गयी है’, ‘गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का उल्लेख ऋग्वेद में किया जा चुका है।’

वैज्ञानिकों का कहना है कि “इन दावों में से एक भी कभी किसी प्रतिष्ठित शोध पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुआ है।”

ये दावे गलतफहमी , दार्शनिक छंदों की जानबूझकर गलत व्याख्या किय जाने या पिछली शताब्दी के छंदों को प्राचीन बनाकर प्रस्तुत करने से पैदा हुए हैं।

वे आगे कहते हैं, ” इनमें से कई दावों को सम्मानित विद्वानों द्वारा कई बार गलत साबित किया जा चुका है।

उदाहरण के तौर पर आप 1974 में आईआईएससी के एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग संकाय के सदस्यों द्वारा लिखे गए  पढ़ सकते हैं जो वैमानिक शास्त्र में किये सभी दावों को खारिज करता है।”


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याचिका ने एआईसीटीई से पुस्तक को कोर्स से हटाने का आग्रह किया है।

याचिका आगे कहती है : “ये किताबें ऐसे ही झूठे दावे और मनगढंत सिद्धांत फैलाती हैं जिसके फलस्वरूप प्राचीन भारतीय ज्ञान को विद्यार्थियों तक ले जाने का हमारा उद्देश्य असफल हो जाता है। ”

“एआईसीटीई भी छात्रों के भावी अकादमिक करियर को प्रभावी रूप से नुकसान पहुंचा रही है , क्योंकि भारत या विदेश का कोई भी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय इस तरह की किताब पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों से निकले छात्रों को संदेह की दृष्टि से देखेगा।”

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