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Thursday, 25 April, 2024
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महात्मा गांधी नौकरी नहीं दिला सकते तो फिर उनपर पढ़ाई क्यों करें

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महात्मा गांधी की 150वी जन्म शताब्दी 2019 में है. डाटा बताता है कि बहुत कम लोग गांधी पर पढ़ाई कर रहे है. लेकिन गांधी पर काम कर रहे विद्वान ज़्यादा चिंतित नहीं है.

नई दिल्ली: इस साल 2 अक्टूबर से सरकार गांधी की याद ऐसे करने की योजना बना रही है जो पहले कभी नहीं हुई और ये आयोजन अगले साल उनके 150वे जन्म दिवस तक जारी रहेंगे.

पर सोचने की बात ये है कि 21वी सदी में राष्ट्रपिता के बारे में कितने लोग जानना चाहते है. डाटा की माने तो ज़्यादा नहीं.

गांधियन स्टडीस में स्नातकोत्त्तर पाठ्यक्रम में देश भर में 2017-18 में 796 छात्र पढ़ रहे है. इनकी संख्या 2015-16 में 3840 थी. और गांधी पर एमफिल करने वाले आज तक के सबसे कम नंबर पर है – केवल 51. साथ में बस 69 छात्रों को पिछले चार सालों में गांधी पर पीएचडी मिली है.


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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की माने तो किसी भी विश्वविद्यालय में गांधी पर कोई पीठ नहीं है. यूजीसी चेयर नोबल पुरस्कार विजेताओं, वैज्ञानिक, और राष्ट्रीय महत्व रखने वाले लोगों पर बनती है ताकि उनके जीवन और काम पर चर्चा की जा सके. यूजीसी ने संसद को हाल में बताया था कि, “महात्मा गांधी चेयर किसी भी विश्वविद्यालय में स्थापित नहीं किया गया था क्योंकि किसी भी विश्वविद्यालय नें इसका प्रस्ताव नहीं दिया था.”

संकट में संस्थाएं

भारत में जिन संस्थाओं में गांधी पर अध्ययन के कोर्स ऑफर किये जाते है वे है अहमदाबाद स्थित गुजरात विद्यापीठ, वाराणसी में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय. भारत के बाहर केंब्रिज और ऑक्सफर्ड में गांधी स्टडीस डिपार्टमेंट है.

गुजरात विद्यापीठ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “छात्र गांधी पर कोर्स को अपना मुख्य अध्ययन इसलिए नहीं बनाते क्योंकि इसमें नौकरी नहीं है. जो आगे भी इसी विषय में पढ़ना चाहते है या शोध करना चाहते है वो ही इस विषय में दाखिला लेते है.”


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कुछ संस्थाओं जैसे वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने सामाजिक कार्य के साथ गांधी पर पढ़ाई को सम्मिलित किया है.

संस्थाओं के बाहर गांधी के विचार फलफूल रहे हैं

महात्मा गांधी के जानकार विश्वविद्यालयों के इस दावे को सही नहीं मानते की गांधी पर पढ़ाई में रूचि कम होती जा रही है. उनका कहना है कि चाहे गांधियन स्टडीस सेंटर में गांधी पर रूचि कम हो रही हो पर ऐसा नहीं है कि भारतीय छात्रों या विशेषज्ञ गांधी पर बहुत काम कर रहे है.

गांधी पर शोधार्थी आज की समस्याओं जैसे जल संकट, सांप्रदायिक तनाव आदि पर गांधी के विचारों के अनुरूप उत्तर खोजने की कोशिश कर रहें है. यहां तक की संस्थाएं जैसे आईआईटी और आईआईएम “गांधी के आचार विचार और मैनेजमेंट” जैसे कोर्स ऑफर करते है. हाल में देश के बटवारें में गांधी की भूमिका पर फिर बहुत रूचि जागी है.

गांधी के जीवन और काम पर बहुत शोध कर चुके एक विद्वान जो कि गांधी स्टडीस पढ़ा चुके है अपना नाम न बताने की शर्त पर कहते है “ऐसा नहां है कि गांधी और उनके काम के बारे में कोई पढ़ना नहीं चाहता. दुनिया भर में लोग गांधी पर बहुत ही रचनात्मक कार्य कर रहें है, पर शायद वो सब गांधियन स्टडीस के तहत नहीं आता. ये काम फिलोसोफी, सोशियोलोजी, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि क्षेत्रों में हो सकते है क्योंकि गांधी के विचार सभी क्षेत्रों में मौजूद है.”

इस विद्वान ने गांधी पर पाठ्यक्रम जिस तरह पेश किया गया है और डिज़ाइन किया गया है उसकी कड़ी आलोचना की.

वे कहते है, “लोग भारत में यह तय नहीं कर पाए कि गांधी को पढ़ने का मतलब क्या है – क्या इसका मतलब उनका जीवन के बारे में जानना है या उनकी जीवनी पढ़नी है. गांधियन स्टडीस के नाम पर आप भारत में जो पढ़ते है वो आपको जीवन में किसी चीज़ के लिए तैयार नहीं करता. शिक्षा या तो आपको उच्च शिक्षा के लिए तैयार करे या नौकरी पाने में मदद करे. पर इन संस्थाओं में पढ़ाया जा रहा पाठ्यक्रम इन दोनों में से कुछ नहीं करता.”


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इस विद्वान ने साथ ही कहा कि गांधी पर संस्थाओं के भीतर संकट है बाहर नहीं. “पढ़ाई ऐसी जगहों पर हो रही है जो गांधी स्टडीस के लिए नहीं है. जहां होना चाहिए वे कुछ नहीं कर रहे. पर संस्थाएं जैसे ओपी जिंदल युनिवर्सिटी, अशोका युनिवर्सिटी, जेएनयू जहां मज़बूत समाजशास्त्र विभाग है, वहां बहुत काम हो रहा है.”

नई दिल्ली के नेशनल गांधी म्यूज़ियम के निदेशक ए. अन्नामलाई ने इस बात से सहमति व्यक्त की. उन्होंने कहा, “ औपचारिक रूप से गांधी स्टडीस में अध्ययन करने वाले छात्रों की संख्या इसलिए कम हो रही है कि इस विषय को रोज़गार से जोड़ा नहीं गया है और हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि हर चीज़ रोज़गार से जुड़ी है. अगर आप इसे रोज़गार से जोड़ेंगे तो आपको बहुत छात्र मिलेंगे.” उनका कहना था कि गांधी को पढ़ने वालों की कमी नहीं, हां डिग्री के लिए पढ़ने वाले ज़रूर कम है.

आज के युवाओं के बीच फिर से बढ़ रही  रुचि

गांधी पीस फाउंडेशन के चेयरमैन कुमार प्रशांत ने कहा कि वास्तव में, आज के युवाओं में गांधी का अध्ययन करने में  रुचि बढ़ गई है.”विभाजन की पूरी थ्योरी उसमें गांधी की भूमिका पर चर्चा के साथ, बहुत से युवा गांधी के बारे में पढ़ने में रूचि दिखा रहे हैं. वे बहुत सारे प्रश्न पूछते हैं, कुछ उनके खिलाफ रहते है और कुछ उनके साथ .पिछले महीने, गांधी पीस फाउंडेशन में, 10-15 युवा थे जो गांधी पर शोध कर रहे थे. ”

Read in English : Studying Mahatma Gandhi is not going to get you a job & Indian students know it

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