नई दिल्ली: हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई से लेकर ज्ञानवापी मामले में आ रहे घुमाव और मोड़ और पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के खिलाफ चल रही छापेमारियों तक- बहुत कुछ था जिसने इस हफ्ते उर्दू प्रेस को व्यस्त रखा. लेकिन दरअसल ये कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा थी, जिसकी गूंज अखबारों में ज़्यादा रही.
उनकी ज़्यादातर कवरेज पार्टी के आगामी अध्यक्षीय चुनावों पर केंद्रित रही, जिसे भारत में किसी राजनीतिक दल में अपनी तरह का एक अकेला सिस्टम बताया गया.
दूसरी खबरों में, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मदरसों के सर्वे और देश में बढ़ रही सांप्रदायिकता तथा पीएफआई के खिलाफ देश में छापेमारी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की मुस्लिम आउटरीच के बीच अखबारों में जगह बनाने की होड़ रही.
दिप्रिंट आपके लिए लाया है उर्दू प्रेस की झलकियां.
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कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव और उसकी भारत जोड़ो यात्रा उर्दू अखबारों की प्रमुख सुर्ख़ियां बनीं.
22 सितंबर को रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने खबर दी कि पद के एक प्रतियोगी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की, जबकि दूसरे प्रतियोगी तिरुवनंतपुरम से संसद सदस्य शशि थरूर कांग्रेस नेता मधुसूदन मिस्त्री से मिले थे.
23 सितंबर को इनक़लाब और सियासत दोनों ने ऐलान किया, कि चुनावों के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है. अपनी ख़बर में इनक़लाब ने कहा कि हालांकि 17 अक्टूबर को होने वाले चुनावों को पहले गहलोत और थरूर के बीच सीधी टक्कर के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन पूर्व मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री कमलनाथ और आनंदपुर साहिब सांसद मनीष तिवारी के नाम भी चल रहे हैं.
उसी दिन छपे अपने संपादकीय में, सियासत ने पूछा कि क्या इन चुनावों से, गांधी परिवार से क़रीबी के चलते इस पद के लिए उनकी पसंद माने जाने वाले गहलोत, और उनके पूर्व डिप्टी तथा टोंक से विधान सभा के मौजूदा सदस्य सचिन पायलट के बीच, सत्ता की रस्साकशी का एक और दौर शुरू हो जाएगा.
संपादकीय में कहा गया कि राहुल गांधी के साफ कर देने के बाद, कि पार्टी ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के नियम का पालन करेगी, अब ये स्पष्ट है कि अगर गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाते हैं, तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी होगी.
संपादकीय में आगे कहा गया कि गहलोत को चिंता थी कि अगर वो कुर्सी छोड़ते हैं, तो उनसे युवा और ज़्यादा लोकप्रिय पायलट, जिन्होंने 2020 में उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया था, इस पद पर बिठाए जा सकते हैं.
अध्यक्षीय चुनावों के अलावा, एक और विषय जिसपर उर्दू प्रेस ने तवज्जो बनाए रखी, वो था कांग्रेस पार्टी की चल रही भारत जोड़ो यात्रा.
18 सितंबर को अपने संपादकीय में, इनक़लाब ने लिखा कि कांग्रेस यात्रा की कामयाबी से साबित होता है, कि मुल्क वो नहीं है जो टेलीवीज़न प्रचार और ‘गोदी मीडिया’ (सरकारी प्रचार चलाने वाले मीडिया के लिए इस्तेमाल शब्द) उसे दिखाते हैं.
19 सितंबर को सियासत के पहले पन्ने पर ख़बर दी गई, कि कांग्रेस की यात्रा ने 11 दिन में 200 किमी. कवर किए हैं. अख़बार ने, जिसमें राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेस नेताओं का केरल में पैदल चलते हुए एक फोटो भी दिया गया, खबर दी कि हालांकि अभी कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी, लेकिनयात्रा को ज़बर्दस्त कामयाबी मिलती दिख रही है.
21 सितंबर के अपने संपादकीय में, इनक़लाब ने लिखा कि सिर्फ कांग्रेस में अध्यक्ष चुनने की ये प्रणाली है कि उसके लिए पार्टी के भीतर आमराय होनी चाहिए, और अख़बार ने बीजेपी की और से चुनावों की आलोचना को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से जोड़ते हुए कहा, कि अगर यात्रा साबित सफल हो जाती है तो ये आलोचना और तीखी हो जाएगी.
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सांप्रदायिकता
20 सितंबर को, इनक़लाब ने पहले पन्ने पर ब्रिटिश शहर लेस्टर में हिंदू-मुस्लिम तनाव पर ख़बर छापी, जो पिछले हफ्ते एशिया कप में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए मैच के बाद पैदा हुआ था. इस हफ्ते तनाव अपने चरम पर पहुंच गया, लेकिन पुलिस कह कहना है कि हालात अब फिर से सामान्य हो गए हैं. ख़बर में कहा गया कि 27 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
21 सितंबर को,सहारा के संपादकीय में कहा गया कि सांप्रदायिकता की तेज़ लहर ने पूरे मुल्क को अनी चपेट में ले लिया है, और माहौल इतना ख़राब हो गया है कि मुसलमानों को मजबूरन ख़ुद को दूसरे दर्जे का नागरिक समझना पड़ रहा है.
संपादकीय में कहा गया कि मुसलमान के व्यक्तित्व, उसकी पहचान, इस्लामी रस्मो-रिवाज, तहज़ीब, और कल्चर पर हमले हो रहे हैं. उसमें आगे कहा गया कि मौलिक अधिकारों का हनन, न्यायेतर हत्याएं, अत्याचार, पिटाई, अपमान, झूठे और निरर्थक मामले, और बरसों के लिए जेल को मुसलमानों का मुक़द्दर बना दिया गया है. उसमें ये भी कहा गया कि ऐसा माहौल राजनीतिक फायदों की वजह से पैदा किया गया है.
संपादकीय में कहा गया कि भारत के धर्मनिर्पेक्ष गणतंत्र में ज़्यादातर संस्थाएं मुसलमानों के खिलाफ हो गई हैं. उसमें आगे कहा गया कि जहां विधायिका में सांप्रदायिक तत्वों का दबदबा है, वहीं लगता है कि न्यायपालिका में भी (अल्पसंख्यकों के संरक्षण को लेकर) काफी संकोच है.
पीएफआई कार्रवाई
बृहस्पतिवार को भारत के कई सूबों में पीएफआई के खिलाफ क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों की संयुक्त कार्रवाई की ख़बर भी, शुक्रवार को अखबारों के पहले पन्नों पर छपी, हालांकि संपादकीय इसपर बिल्कुल ख़ामोश बने रहे. ये छापेमारी कितने राज्यों में की गई इस बारे में विरोधी ख़बरें थीं, हालांकि गिरफ्तार हुए लोगों की संख्या सभी अख़बारों में बराबर दी गई थी.
23 सितंबर को, सियासत में पहले पन्ने पर ख़बर दी गई, कि पीएफआई के खिलाफ ‘कार्रवाई’ की गई और राष्ट्रीय जांच एजेंसी, प्रवर्त्तन निदेशालय, और राज्यों की पुलिस ने संयुक्त रूप से देश के 11 सूबों में संयुक्त छापेमारी की, जिसमें 106 लोगों को गिरफ्तार किया गया.
दूसरी ओर, इनक़लाब ने ख़बर दी कि छापेमारी की ये कार्रवाई 15 सूबों में अंजाम दी गई. उसने ये भी कहा कि पुलिस कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन किए गए, और कार्रवाई के विरोध में केरल में एक दिन के बंध का ऐलान किया गया.
इस बीच सहारा ने 13 राज्यों में छापों की ख़बर दी.
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संघ की मुस्लिम आउटरीच
आरएसएस चीफ मोहन भागवत की प्रमुख मुस्लिम नेताओं और बुद्धिजीवियों से मुलाकात और बाद में इस्लामिक संस्थानों के उनके दौरे की ख़बर को उर्दू अख़बारों ने अपने पहले पन्नों पर जगह दी.
23 सितंबर को, सहारा ने भागवत के एक मस्जिद और एक मदरसे का दौरा करने की ख़बर, तस्वीरों के साथ अपने पहले पन्ने पर छापी. पेपर ने मुस्लिम नेताओं और बुद्धिजीवों के साथ भागवत की मुलाक़ात की भी खबर दी- जो अख़बार के मुताबिक़, एक महीने के भीतर उनकी ऐसी दूसरी मुलाक़ात थी. उन्होंने ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइज़ेशन के उमर अहमद इलियासी के साथ आमने-सामने बैठकर मुलाक़ात की, जिन्होंने भागवत को ‘राष्ट्रपिता’ करार दे दिया.
इससे बस दो दिन पहले, सहारा ने एक पुस्तक विमोचन आयोजन में भागवत की टिप्पणियों को अपने पहले पन्ने पर गह दी थी, जिनमें आरएसएस लीडर ने कहा था कि भारत को किसी की नक़ल नहीं करनी है, बल्कि उसे अपनी पहचान और अपने गौरवशाली अतीत के साथ जुड़ाव को बचाए रखने की ज़रूरत है.
मदरसे
तीन राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और असम में मदरसा शिक्षा की छानबीन को भी उर्दू अख़बारों में जगह दी गई.
20 सितंबर को अपने संपादकीय में, सहारा ने कहा कि बहुत से राज्यों में मदरसों को आज जिस छानबीन से गुज़रना पड़ रहा है, उसकी गहराई में जाने की ज़रूरत है. उसने ये भी कहा कि मुसलमानों के 5 प्रतिशत से भी कम बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं, और ये मदरसे ग़ैर-मुस्लिम बच्चों की ज़रूरतें भी पूरी कर रहे हैं.
संपादकीय में सुधारक राजा राम मोहन रॉय की मिसाल दी गई, जिन्होंने भारत से सती प्रथा ख़त्म कराने में एक अहम रोल अदा किया था. संपादकीय में कहा गया कि रॉय की शिक्षा भी मदरसों में हुई थी- पहले पश्चिम बंगाल के मदरसा आलिया, और फिर आज के बिहार में फुलवारी शरीफ के एक मदरसे में.
21 सिंबर को, सहारा ने अपने पहले पन्ने पर खबर दी, कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अंतर्गत उत्तराखंड सरकार ने एक कार्य योजना तैयार की है, जिसमें राज्य के मदरसों का सर्वे किया जाएगा, और उसने ये भी बताया कि सरकार राज्य के मदरसों में एनसीईआरटी सिलेबस शामिल करने की योजना बना रही है.
अगले दिन, सहारा ने अपने पहले पन्ने पर ख़बर भी छापी कि असम सरकार निजी मदरसों के नियमन पर ग़ौर कर रही है. ख़बर में असम के शिक्षा मंत्री रानोज पेगू का ये कहते हुए हवाला दिया गया, कि मौजूदा क़ानून के तहत सरकार को निजी मदरसों का नियमन करने का अधिकार हासिल है.
पेपर ने खबर दी कि ये प्रस्ताव तब विचाराधीन हुआ, जब कई मदरसा शिक्षकों को कट्टरपंथी संगठनों के साथ रिश्ते रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.
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