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Friday, 29 March, 2024
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BJP ने बंगाल में दुर्गा पूजा के लिए एक गैर-ब्राह्मण महिला को चुना, आखिर इसके पीछे क्या संदेश छिपा है

बंगाल भाजपा ने 2020 में अपनी पहली दुर्गा पूजा आयोजित की थी और इस साल पार्टी एक भव्य उत्सव के आयोजन में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. पार्टी नेताओं का कहना है कि यह राज्य इकाई की संभवत: आखिरी दुर्गा पूजा होगी.

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कोलकाता: पश्चिम बंगाल भाजपा ने पहली बार अपनी वार्षिक पांच दिवसीय दुर्गा पूजा कराने के लिए एक गैर-ब्राह्मण महिला पुजारी को चुना है. कोलकाता स्थित सत्यप्रिया रॉय कॉलेज ऑफ एजुकेशन में गाइडेंस एंड काउंसलिंग की पढ़ाई कर रही 28 वर्षीय सुलता मंडल को इस हाई-प्रोफाइल आयोजन का बेसब्री से इंतजार है.

सुलता मंडल ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं बेहद उत्साहित हूं और उम्मीद करती हूं कि तमाम लोग आएंगे और समारोह में शामिल होंगे.’ साथ ही बताया कि बंगाल भाजपा महिला मोर्चा की प्रमुख तनुजा चक्रवर्ती ने गुरुवार सुबह उन्हें बताया कि पार्टी चाहती है कि उसकी तरफ से दुर्गा पूजा वही करें.

उत्तरी दिनाजपुर जिले की निवासी सुलता ने कहा, ‘अगर महिलाएं घर पर पूजा कर सकती हैं, तो बाहर क्यों नहीं? केवल पुरुष ही क्यों? मैं हमेशा से एक महिला के तौर पर कुछ अलग करना चाहती थी. मैं परिपाटी तोड़ना चाहती थी.’

‘शास्त्रों की पढ़ाई’ के बाद सुलता ने 2018 में धार्मिक समारोहों में अनुष्ठान कराने शुरू किए और तबसे सरस्वती पूजा, काली पूजा और दुर्गा पूजा करा रही हैं. उसने विवाह समारोहों में पूजा-अर्चना कराई है और श्राद्ध भी कराए हैं.

बहरहाल, एक पुजारी की भूमिका निभाना कोई आसान काम नहीं था. उन्होंने बताया, ‘मुझे समाज की तरफ से बहुत सारी आपत्तियां झेलनी पड़ीं. किसी को गैर-ब्राह्मण लड़की का इस तरह अनुष्ठान कराना पसंद नहीं आता था. लेकिन अब, लोग अधिक स्वीकार कर रहे हैं. वास्तव में, बहुत प्रोत्साहन मिलता है, लोग मुझे पूजा कराते देखने आते हैं जो कि परंपरागत रूप से पुजारी कराते थे.’

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मंडल को इस पर राजनीति की कोई चिंता नहीं है. उनके लिए यह सब युवा महिलाओं और पुरुषों को हिंदू रीति-रिवाजों को बेहतर ढंग से समझने के लिए प्रोत्साहित करने से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि बंगाल भाजपा प्रमुख सुकनाता मजूमदार ने उनसे कहा कि ‘एक बेटी में मां (देवी दुर्गा) की पूजा करने की शक्ति होती है.’

राजनीतिक विश्लेषक शौर्य भौमिक के मुताबिक, भाजपा इस कदम के जरिये पश्चिम बंगाल में छवि बदलने की कोशिश कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘भाजपा को ऊंची जाति की पार्टी के तौर पर देखा जाता है. उनके लिए पहले तो महिलाओं को पूजा अनुष्ठान की अनुमति नहीं थी या ऐसा देखा नहीं गया था. हालांकि, पिछले कुछ सालों में एक-आध मौकों पर दुर्गा पूजा के दौरान महिलाओं ने पूजा की हैं. यह अभी आम नहीं है. इस फैसले के साथ, भाजपा यह धारणा बनाने की कोशिश कर रही है कि वह राजनीतिक और सामाजिक रूप से प्रगतिशील है.’

बंगबासी कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर उदयन बंद्योपाध्याय ने कहा कि यह कदम ‘एक प्रगतिशील पहल नजर आता है.’

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि, इसकी वजह यही है कि भाजपा लोअर-कास्ट बंगाली हिंदू जातियों को साधना चाहती हैं और यह संदेश देना चाहती है कि भाजपा केवल ऊंची जातियों का नेतृत्व नहीं करती है.’


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भाजपा ने ‘बड़ी पहल’ बताया, टीएमसी बोली- ‘कुछ भी नया नहीं’

बंगाल भाजपा ने पहली बार 2020 में विधानसभा चुनाव से पहले दुर्गा पूजा समारोह का आयोजन किया था. यह तत्कालीन भाजपा नेताओं मुकुल रॉय और सब्यसाची दत्ता की पहल का नतीजा था और अब ये दोनों ही नेता वापस तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में लौट चुके हैं.

2020 में भाजपा की बंगाल इकाई की तरफ से आयोजित पहली दुर्गा पूजा का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअली किया था. वहीं, 2021 में कोविड-19 महामारी के कारण पार्टी ने पूजा आयोजन को छोटे पैमाने पर ही किया था.

हालांकि, इस बार पार्टी नेता परंपराओं को ध्यान में रखकर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते और यहां तक कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इस साल दुर्गा पूजा का उद्घाटन करने को कहा गया है. हालांकि, पार्टी नेताओं का यह भी कहना है कि ‘धन की कमी’ के कारण यह ऐसा आखिरी आयोजन हो सकता है.

इसे पार्टी की बंगाल इकाई के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बताते हुए भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी ने दिप्रिंट से कहा, ‘यह नारी शक्ति के लिए एक गर्व का क्षण है और हम केवल कह नहीं रहे हैं बल्कि इसे वास्तव में करके भी दिखा रहे हैं. यह महिलाओं को सशक्त बनाने और यह संदेश देने की दिशा में एक बड़ी पहल है कि महिलाएं आज पुरुषों के बराबर हैं. ममता बनर्जी के विपरीत, जो केवल महिलाओं के विकास के बारे में बातें ही करती हैं, और हम जानते हैं कि वास्तविकता कुछ और ही है.’

भाजपा विधायक अग्निमित्रा पॉल ने कहा कि पश्चिम बंगाल भाजपा का यह फैसला मोदी के प्रगतिशील नेतृत्व का एक उदाहरण है.

उन्होंने कहा, ‘बंगाल में हम आम तौर पर देवी की पूजा करते हैं, चाहे काली, सरस्वती, लक्ष्मी हो या दुर्गा. फिर हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से नहीं बल्कि कर्मों से ब्राह्मण बनता है और कहीं यह नहीं कहा गया है कि महिलाएं पूजा नहीं कर सकतीं. ममता बनर्जी के शासन में पश्चिम बंगाल में महिलाओं पर अत्याचार हो रहा है. हम एक उदाहरण के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं कि महिलाएं सशक्त हैं.’

भाजपा के दावों के जवाब में टीएमसी नेता चंद्रिमा भट्टाचार्य ने कहा कि किसी महिला का दुर्गा पूजा कराना कोई नई बात नहीं हैं, और भाजपा को ‘पश्चिम बंगाल की बात करने से पहले अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्यों में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार पर गौर करने की जरूरत है.’

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यहां महिलाएं पहले से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त हैं. ममता बनर्जी के कुशल नेतृत्व में पश्चिम बंगाल की महिलाओं के लिए कई विकास योजनाएं हैं. पहले भी महिला पुजारी दुर्गा पूजा करती रही हैं जो बंगाल की प्रगतिशील मानसिकता को ही दिखाता है.’


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दीदी की महिला मतदाता

टीएमसी ने महिलाओं के बीच एक अलग ही जनाधार बना रखा है और इसका श्रेय ममता बनर्जी को जाता है जिन्हें प्रेम से दीदी बुलाया जाता है. महिलाओं को ध्यान में रखकर लागू की गई तमाम कल्याणकारी योजनाओं के जरिये टीएमसी महिला मतदाताओं के बीच अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने में सफल रही है.

इनमें बाल विवाह रोकने के उद्देश्य के साथ छात्राओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली कन्याश्री योजना, छात्राओं को मुफ्त साइकिल देने वाली साबूज साथी योजना, किसी लड़की की शादी में मदद के लिए वित्तीय सहायता योजना रूपश्री, और हाल ही में कम आय वाले परिवारों की महिलाओं के लिए शुरू की गई एक मासिक वित्तीय सहायता योजना लक्ष्मीर भंडार आदि शामिल हैं.

2021 के विधानसभा चुनावों के लिए टीएमसी की पिच— ‘बंगाल अपनी बेटी चाहता है’— राज्य की महिला मतदाताओं को दिमाग में रखकर ही तैयार की गई थी.

इस साल, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक माह पहले दुर्गा पूजा ढाक (ड्रम) बजाया, और कोलकाता के दुर्गा पूजा समारोहों को ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ का टैग देने पर यूनेस्को को धन्यवाद देने के लिए एक रंगारंग परेड का नेतृत्व किया. इस माह के शुरू में कोलकाता, हावड़ा और बिधाननगर की 1,000 से अधिक प्रसिद्ध पूजा समितियां शहर के मध्य हिस्से में आयोजित परेड में शामिल हुई थीं.

जुलूस में पारंपरिक बंगाली पोशाक पहने सैकड़ों लोग शामिल हुए और पूजा गीतों की धुन पर नाचते-गाते सड़कों पर निकले, और इसका समापन ममता के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ. मंच पर उनके साथ पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली के अलावा कई मंत्री और नेता मौजूद थे.

लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा समारोह को लेकर भाजपा और टीएमसी के बीच जोर-आजमाइश चल रही है.

2017 में टीएमसी सरकार ने विजयदशमी पर मूर्ति विसर्जन को प्रतिबंधित कर दिया था, क्योंकि वह मुहर्रम के साथ पड़ रही थी. हालांकि, बाद में कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. लेकिन भाजपा ने इसे टीएमसी पर ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ में लिप्त होने का आरोप लगाने का मौका बना लिया.

यह मसला फिर से उठाते हुए केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने गुरुवार को ममता पर तंज कसा कि मूर्ति विसर्जन पर ‘प्रतिबंध’ लगाने वाली सरकार यूनेस्को के सम्मान का श्रेय ले रही है. लेखी ने कथित तौर पर कहा, ‘पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बहुत व्यस्त होंगी और उन्हें अपने सलाहकारों से जो सलाह मिल रही है वह सवालों के घेरे में है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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