नई दिल्ली: भारत के चुनाव आयोग (इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया-ईसीआई) द्वारा झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े खनन पट्टा विवाद पर अपनी राय राज्य के राज्यपाल रमेश बैस को भेजे जाने के एक हफ्ते से भी अधिक के समय के बाद भी राज्यपाल में इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है.
विधानसभा के सदस्य (एमएलए) के रूप में सोरेन की अयोग्यता पिछले हफ्ते आसन्न लग रही थी और आयोग के सूत्रों के मुताबिक, ईसीआई को झारखंड के मुख्यमंत्री के खिलाफ ‘लाभ के पद’ के मामले को चालू रखने के लिए पर्याप्त सबूत मिले हैं.
ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि इस तरह की अयोग्यता का मतलब मुख्यमंत्री के पद से सोरेन का इस्तीफा होगा, जिससे झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की मिलीजुली गठबंधन वाली झारखंड सरकार में हलचल मच जाएगी. इस बात को लेकर भी अटकलें पहले से ही शुरू हो गई थीं कि क्या सोरेन अपनी पत्नी कल्पना को झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने की कोशिश करेंगे?
लेकिन एक हफ्ते से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी बैस की ओर से इस मुद्दे पर कुछ भी नहीं कहा गया है.
भारतीय जनता पार्टी के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इस ‘विलंब के पीछे का मुख्य कारण ईसीआई द्वारा की गयी सिफारिश की प्रकृति है’ और राज्यपाल कई कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श कर ऐसी कोई मिसाल खोजने में लगे हैं जो उन्हें न केवल सोरेन को एक विधायक के रूप में अयोग्य घोषित करने की अनुमति देगा, बल्कि उनके द्वारा एक निर्धारित अवधि के लिए फिर से चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा सकेगा.
उन्होंने कहा कि ऐसा करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि (सोरेन के) चुनाव लड़ने पर लगाया गया यह प्रतिबंध कानूनी रूप से ठोस हो, ताकि बाद में कोई किरकिरी न हो.
झारखंड राजभवन के सूत्रों का कहना है कि 25 अगस्त – जिस दिन ईसीआई की राय उन्हें भेजी गई थी – को दिल्ली से लौटने के बाद बैस ने उसी दिन से इस राय को स्पष्ट रूप से समझने और इसके क्या मायने हैं यह जानने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई कानूनी विशेषज्ञों के साथ कई तरीके के परामर्श किए हैं.
भाजपा सूत्रों ने बताया कि झारखंड संकट पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से चर्चा करने के लिए बैस शुक्रवार को फिर दिल्ली गए थे.
सूत्रों ने बताया कि इस बात को लेकर बनी अनिश्चितता के साथ कि क्या सोरेन को फिलहाल चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है?, और साथ ही पार्टी द्वारा महागठबंधन के विधायकों को तोड़ने का काम – जैसा कि महाराष्ट्र में किया गया था – बाकी रहने की वजह से झारखंड में भाजपा अभी कोई कदम उठाने के लिए तैयार नहीं है.
इधर, झारखंड भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि मौजूदा स्थिति झामुमो के लिए एक संकट है न कि भाजपा के लिए.
उन्होंने कहा, ‘हम ऐसे विपक्षी दल हैं जो जनता के लिए काम कर रहे हैं. क्या आपने कभी सुना है कि सत्तारूढ़ दल के विधायक राज्य से भाग गए हों (झामुमो सहित महगठबंधन के विधायकों द्वारा छत्तीसगढ़ की उड़ान पकडने का हवाला देते हुए) और विपक्षी विधायक उन्हें तोड़े जाने के किसी भी खतरे की फ़िक्र किये बिना यहीं रह रहे हैं. यह झामुमो का आंतरिक संकट है; हम तभी हरकत में आएंगे जब राज्यपाल चुनाव आयोग की सिफारिश पर कोई फैसला करेंगे.’
झारखंड के मुख्यमंत्री के लिए मुसीबत की शुरुआत इस साल फरवरी में हुई थी, जब पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुबर दास ने सोरेन पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने पिछले साल मई में रांची के अंगारा ब्लॉक में 0.88 एकड़ में फैली एक पत्थर की खदान के लिए खुद के नाम से एक खनन पट्टा आवंटित किया था और फिर जून 2021 में इसे ग्राम सभा द्वारा भी मंजूरी दे दी गई.
सोरेन की कंपनी को इस परियोजना के लिए सितंबर 2021 में पर्यावरण सम्बन्धी मंजूरी भी मिल गई थी.
इस मामले में प्रासंगिक दो मंत्री पद – वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन और साथ ही खनन तथा भूविज्ञान – खुद हेमंत सोरेन के पास ही हैं.
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9ए में कहा गया है कि किसी भी ऐसे व्यक्ति को (संसद या राज्य विधायिका की सदस्यता से) अयोग्य घोषित किया जाएगा ‘यदि, उसके द्वारा किसी समुचित सरकार के साथ अपने व्यापार या व्यवसाय के दौरान, माल की आपूर्ति के लिए, या उस सरकार द्वारा किए गए किसी भी कार्य के निष्पादन के लिए अनुबंध किया गया है.’
दास द्वारा लगाए गए इन आरोपों के एक दिन बाद, 11 फरवरी 2022, को सोरेन ने इस पट्टे को वापस कर दिया था. मगर अप्रैल 2022 में दास ने झारखंड के मुख्यमंत्री के खिलाफ नए आरोप लगाते हुए दावा किया कि उन्होंने रांची के एक औद्योगिक क्लस्टर में अपनी पत्नी को 11 एकड़ जमीन आवंटित की थी. संयोगवश, राज्य के उद्योग विभाग का प्रभार भी सोरेन के पास है.
इसके बाद, 8 अप्रैल 2022 को बैस ने इस मामले को चुनाव आयोग के पास विचार के लिए भेज दिया था.
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अयोग्यता नहीं, चुनाव लड़ने पर रोक है देरी का कारण
भाजपा के सूत्रों ने दावा किया कि हालांकि ‘चुनाव आयोग ने सोरेन को ‘लाभ के पद’ के मामले में दोषी पाया है, फिर भी बैस द्वारा उनकी अयोग्यता की सिफारिश करना भाजपा के मकसद को पूरा नहीं करेगा, क्योंकि वह इसकी वजह से होने वाले उपचुनाव में फिर से चुने जाने और विधानसभा में वापस आने का प्रयास करेंगे.
पार्टी के एक सूत्र ने कहा, ‘झारखंड में भाजपा के मिशन को तभी गति मिलेगी जब मुख्यमंत्री को अयोग्य घोषित किये के बाद उन्हें एक निर्धारित अवधि के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया जाएगा. इससे राज्य में बड़ी अनिश्चितता पैदा होगी, जिसके परिणामस्वरूप सत्तारूढ़ गठबंधन टूट जाएगा, और या तो राष्ट्रपति शासन लग सकता या नई सरकार भी बन सकती है.‘
हालांकि, इस क्षेत्र के विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9ए सोरेन केवल एक विधायक के रूप में अयोग्य ठहराने की ही अनुमति देती है (बशर्ते वह ‘लाभ के पद’ के मामले में दोषी पाया जाते हैं), लेकिन यह उनके फिर से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का प्रावधान नहीं करती है.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर वह खनन पट्टा घोटाले में ‘लाभ के पद के मामले’ के तहत दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें केवल उनकी वर्तमान (विधानसभा) सदस्यता से अयोग्य घोषित किया जा सकता है. ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कहता है कि वह फिर से चुनाव नहीं लड़ सकते हैं और उन्हें एक निश्चित अवधि के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया जाएगा.’
उन्होंने कहा: ‘अतीत में भी, कई नेताओं को अयोग्य घोषित किया गया है और उन्होंने फिर से (सदन का) सदस्य बनने के लिए चुनाव लड़ा. इस मामले में भी, वह इस्तीफा दे देंगे और फिर से चुने जाने की कोशिश करेंगे. उन्हें चुनाव लड़ने से तभी रोका जा सकता है जब चुनाव आयोग को उनके द्वारा सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार में शामिल होने का सबूत मिले. राज्यपाल इस बात की सिफारिश जरूर कर सकते हैं कि उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए, लेकिन इसे अदालत में खरा साबित होना होगा.’
विशेषज्ञों का कहना है कि सोरेन के मामले में खनन पट्टा का आवंटन भ्रष्टाचार का मामले नहीं है क्योंकि इस पट्टे के आधार पर कोई व्यापारिक लेनदेन नहीं किया गया था.
इस बीच, लोकसभा के पूर्व महासचिव पी.डी.टी.आचार्य ने दिप्रिंट को बताया कि झारखंड के राज्यपाल चुनाव आयोग की राय पर कार्रवाई को ‘अनिश्चित काल तक टाल नहीं सकते हैं.’
आचार्य ने दावा किया, ‘अगर चुनाव आयोग ने ‘लाभ के पद’ का कोई मामला पाया है, तो मुख्यमंत्री अपनी विधानसभा की सदस्यता जरूर खो देंगे, लेकिन चुनाव आयोग के पास किसी को भी तब तक चुनाव लड़ने से रोकने का अधिकार नहीं है, जब तक कि उसे किसी आपराधिक मामले में दोषी नहीं ठहराया गया और उसे जेल की सजा न सुना दी गयी हो.’
ऐसे मामलों में भी, चुनाव लड़ने पर रोक का सार्वभौमिक रूप से पालन नहीं किया जाता है.
संवैधानिक मामलों के एक वरिष्ठ विशेषज्ञ ने उनका नाम न छापने की शर्त पर सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग के मामले की ओर इशारा किया, जिन्हें चुनाव आयोग ने 2019 में भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बावजूद चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी थी. भाजपा उस सरकार में गठबंधन सहयोगी रही है.
भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में लाए गए 2018 के संशोधन ने तमांग को चुनाव लड़ने की अनुमति दी थी.
इन विशेषज्ञ ने सवाल किया, ‘आप किसी व्यक्ति को कैसे मना कर सकते हैं जब आपने किसी ऐसे व्यक्ति को चुनाव लड़ने की अनुमति दी थी जिसे भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराया गया था.’
चुनाव आयोग के पूर्व कानूनी सलाहकार और सोरेन के एक वकील एस.के. मेंदीरत्ता ने दिप्रिंट को बताया कि वह इस मामले में चुनाव आयोग की राय पर कार्रवाई करने में राज्यपाल द्वारा की जा रही देरी से ‘चकित’ हैं.
मेंदिरत्ता ने कहा, ‘मेरे विचार में, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9ए भी इस मामले में लागू नहीं होती है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों के अनुसार, खनन पट्टा कोई व्यवसाय नहीं है और न ही माल की आपूर्ति के लिए किया गया कोई अनुबंध है. लेकिन हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा कि ईसीआई ने किसी लीगल फ्रेमवर्क के तहत राय भेजी है और राज्यपाल कैसी कार्रवाई करते हैं.’
अटक गया है भाजपा का ‘मिशन झारखंड’
भाजपा के सूत्रों ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि चुनाव आयोग की राय पर कार्रवाई करने में राज्यपाल द्वारा की जा रही देरी आंशिक रूप से इस वजह से भी है क्योंकि पार्टी को अभी तक सत्तारूढ़ पक्ष के विधायकों अपने पाले में लाने और सरकार बनाने का दावा पेश करने (जैसे उसने इसी साल कुछ समय पहले महाराष्ट्र में किया था) की दिशा में अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है.
महाराष्ट्र में, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के सदस्यों का एक वर्ग भाजपा का साथ देने और सरकार बनाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी – जो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ बने गठबंधन की वजह से सत्ता में थी – से अलग हो गया था
लेकिन पार्टी सूत्रों ने दावा किया कि झारखंड में भाजपा द्वारा झामुमो, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों का ‘दिल जीतना’ अभी बाकी है.
झारखंड भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘राज्यपाल के कानूनी परामर्श ने हमें थोड़ा और समय दे दिया है.’
झारखंड में भाजपा के एक दूसरे नेता ने दावा किया कि ‘आंतरिक कलह के कारण, हमारी तरफ से ही किसी ने जानकारी लीक कर दी थी, जिससे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पुलिस से संपर्क करने में मदद मिली. अब झामुमो और कांग्रेस दोनों सतर्क हो गए हैं.’
कांग्रेस ने जुलाई में झारखंड के अपने उन तीन विधायकों को निलंबित कर दिया था, जिन्हें पश्चिम बंगाल के हावड़ा में कथित तौर पर भारी मात्रा में नकदी के साथ पकड़ा गया था. पार्टी ने भाजपा पर झारखंड में उसकी गठबंधन सरकार को गिराने की कोशिश करने का आरोप लगाया था. बंगाल सीआईडी जांच में शामिल सूत्रों ने भी इसे मामले में ‘स्पष्ट रूप से विधायकों की खरीद-फरोख्त के मकसद’ का आरोप लगाया था.
81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में झामुमो के पास 30, कांग्रेस के पास 16 और राजद के पास एक विधायक हैं. अगर भाजपा, जिसके पास 25 विधायक हैं, जुलाई में हुए राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट देने वाले 14 विपक्षी विधायकों का समर्थन हासिल करने में सक्षम हो जाती है, तो यह सोरेन सरकार को अल्पमत में ला सकती है.
इन 14 विधायकों के साथ भाजपा झारखंड विधानसभा में 40, यानि कि बहुमत के आंकड़े से सिर्फ एक सीट कम, की संख्या तक पहुंच जाएगी. वह निर्दलीय उम्मीदवारों से भी समर्थन मांग सकती है, और उसे पहले से ही अपने सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसु) का समर्थन प्राप्त है.
हालांकि, पार्टी के सूत्रों ने कहा कि राज्य के कई वरिष्ठ भाजपा नेता इस योजना में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, क्योंकि उन्हें स्वयं अपने लिए कोई खास लाभ होने की संभावना नहीं दिखती है.
पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास पिछला चुनाव हार गए थे और जब तक वह एक और चुनाव जीतने में सक्षम नहीं होते, तब तक उनके मुख्यमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं है. राज्य के एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, वर्तमान में एक केंद्रीय मंत्री हैं, जबकि बाबूलाल मरांडी – मुख्यमंत्री पद का एक और संभावित चेहरा – फ़िलहाल दलबदल के आरोपों का सामना कर रहे हैं. इस सप्ताह की शुरुआत में, झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो ने इस मामले में सुनवाई पूरी कर ली थी, लेकिन उन्होंने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
राज्य के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे सत्तारूढ़ गठबंधन को अस्थिर कर खुद की सरकार बनाने का दावा करने के बजाय मध्यावधि चुनाव करवाए जाने पर जोर दे रहे हैं.
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